हरिगोविंद विश्वकर्मा
डोंगरी पुलिस स्टेशन में सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर रणबीर सिंह लीखा एक दिन रूटीन पेट्रोलिंग पर थे। जीप में ड्राइवर की बग़ल की सीट बैठे कुछ सोच रहे थे। जैसे ही जीप जेजे अस्पताल के पास मेन रोड पर पहुंची तो उन्होंने देखा कि भारी ट्रैफ़िक जाम हो गया है। आधे घंटे तक जीप एक मीटर भी आगे नहीं खिसकी। वह झल्ला पड़े और जीप से उतर कर ट्रैफ़िक की ओर बढ़ गए। कुछ तमाशाई सड़क पर ही खड़े थे। उन्होंने साफ़ देखा, दो लोगों में मारपीट हो रही है। 25-30 लोग खड़े तमाशा देख रहे हैं।
लीखा को देखते ही भीड़ छंट गई। भीड़ छंटने के बाद उन्होंने जो कुछ देखा, यक़ीन ही नहीं हुआ। एक हट्टा-कट्टा पठान ख़ून से लथपथ था। साढ़े छह फुट लंबे पठान के मुंह से ख़ून बह रहा था लेकिन 20-22 साल का एक औसत लंबाई का युवक उसे बुरी तरह पीट रहा था। लीखा ने बीच-बचाव किया। देखा कि पुलिस को देखकर भी युवक उसी तरह पठान को पीट रहा है। उनके लिए यह नया अनुभव था। लीखा को पठान युवकों से कोई हमदर्दी नहीं थी फिर भी पिटते पठान बचाने के लिए उसे अलग कर दिया।
“अबे, इतनी बुरी तरह पीट क्यों रहा है। क्या नाम है तेरा?”
युवक ने लीखा को तरेरकर देखा, “मैं दाऊद हूं, दाऊद इब्राहिम कासकर। पुलिसवाले का बेटा हूं।”
लीखा को यक़ीन ही नहीं हुआ। अपनी पूरी सर्विस के दौरान उन्होंने इतना ढींठ लड़का नहीं देखा था। जो पुलिस के पहुंचने के बाद भागने की बजाय मारपीट पर आमादा है। उसे नाटिक़ के अल्फ़ाज़ याद आए। ‘छोकरे में दम है। लोहा लोहे को काट सकता है।’ लीखा को लगा, सचमुच इस युवक में दम है, पठानों को चैलेंज करने का।
लीखा ने दोनों को जीप में बैठाया और थाने की ओर चल पड़ा। थोड़ी दूर आकर मार खाए पठान से पूछा तो पता चला वह करीम लाला का आदमी है। उसे चौराहे पर उतार दिया और भाग जाने को कहा। दाऊद भी जीप से उतर रहा था लेकिन लीखा ने उसे थाने चलने को कहा। जीप आगे बढ़ गई। थाने में पहुंचने से पहले दाऊद को लगा उसे थाने में बंद कर दिया जाएगा। लेकिन लीखा उसे लेकर थाने नहीं गया। जीप बहुत धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी।
“तू इब्राहिम भाई का लड़का है इसलिए छोड़ रहा हूं।”
“इस तरह पठानों से मत उलझा करो। ये लोग बड़े ख़तरनाक और बेरहम होते हैं।”
“ये साले मुझ पर हमला करेंगे तो क्या मैं चुपचाप मार खा लिया करूं। मुझसे यह नहीं होगा साब। आप चाहे तो मुझे बंद कर सकते हैं। लेकिन मैं बुज़दिल नहीं जो पठानों से डरूं। सीधे बात करेंगे तो मैं भी शराफ़त से पेश आऊंगा। मारपीट करेंगे तो इसी तरह मारूंगा और ख़ूब मारूंगा। बार-बार मारूंगा।”
“चलो कोई बात नहीं, जो कर रहे हो, ठीक ही कर रहे हो। पुलिस का काम आसान कर रहे हो। पठानों ने नाक में दम कर रखा है। मारो सालों को, पर होशियारी से। अपने को बचाकर और हां क़ानून हाथ में मत लेना। जाओ।” लीखा ने उसे जाने की अनुमति दे दी, “पुलिस को अपना दोस्त समझो। इनसे निपटो अपने स्तर पर। हां, अपने को बचाना। कहीं ये लोग तुम्हारा काम-तमाम न कर दें।”
“इनकी इतनी औक़ात नहीं कि मेरा काम तमाम करे। एक-एक को मारूंगा।”
“शाबाश!”
“तुम घऱ जा सकते हो। तुम्हारे ख़िलाफ़ कोई केस दर्ज नहीं होगा। आज के बाद डोंगरी थाने में तुम्हारे ख़िलाफ़ कोई केस दर्ज नहीं होगा। मारो पठान गुंडों को।” लीखा रहस्यमयी मुस्कान के साथ बोला।
“साहब मुझे उतार दीजिए। बहुत लेट हो गया। और दरियादिली के लिए शुक्रिया।” दाऊद बोला।
जीप रुक गई और दाऊद उतरकर अपने घर मुसाफ़िरखाना की ओर बढ़ गया। जेजे मार्ग पर अपने आदमी की सरेआम पिटाई से पठान बौखला गए। लेकिन तुरंत दाऊद से भिड़ने की हिम्मत नहीं पड़ी। उन्हें पता था, कैसे दाऊद ने दस मिनट में बाशूदादा का मानमर्दन कर दिया था। साल भर में दाऊद ने कई पठानों को बुरी तरह पीटा और मोहल्ले ही नहीं पूरे शहर में उसकी तूती बोलने लगी।
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दाऊद इब्राहिम की पत्रकार इक़बाल नाटिक़ से अच्छी ट्यूनिंग हो गई, जो जल्द ही दोस्ती में तब्दील हो गई थी। नाटिक़ के लिए दाऊद सनसनीख़ेज़ ख़बरों का प्रमुख स्रोत था। इस नजदीकी से वह पठान गिरोह के आंख की किरकिरी बन गया। अयूब लाला, आमिरज़ादा उसके ख़ून के प्यासे हो गए।
जानकार बताते हैं, मुंबई में गैंगवॉर शुरू होने पर दाऊद की पहली लड़ाई पठानों से ही हुई। इस संघर्ष में दाऊद को कोंकणी मुस्लिम पुलिस कॉन्स्टेबल का बेटा होने का ख़ूब लाभ मिला। पुलिस को अपने पक्ष में करने के लिए मराठी कार्ड खेलना शुरू किया। मुंबई पुलिस के हर अफ़सर ने पठान और दाऊद की लड़ाई में दाऊद का ही पक्ष लिया। दाऊद पुलिस की आंखों का तारा बन चुका था।
दरअसल, दाऊद का उदय पठान गैंग को कतई रास नहीं आया। आमिरज़ादा, आलमज़ेब, शाहज़ादा और समद जैसे अपराधियों को दाऊद का शक्तिशाली होना बिलकुल हज़म नहीं हुआ। इससे दाऊद और पठानों में फिर से तलवारे खिंच गईं। वे एक दूसरे के ख़ून के प्यासे हो गए। लिहाज़ा दोनों गिरोह के गुर्गों में अकसर टकराव होने लगा। जो निरंतर ख़ूनी जंग में तब्दील हो रहा था। दोनों गिरोह आए दिन एक दूसरे के पंटरों की हत्या करने लगे।
खलील जाहिद बताते हैं, 1974 तक दाऊद-साबिर ख़तरनाक नाम बन चुके थे। लिहाज़ा, इमरजेंसी लगते ही वे मीसा में गिरफ़्तार कर लिए गए। परंतु अपराध का कारोबार उनके जेल में रहते भी बेरोकटोक चलता रहा। लंबे समय तक जेल में रहने से कासकर्स की दोस्ती मस्तान और यूसुफ़ पटेल से हुई। दाऊद सोने-चांदी की तस्करी के लिए प्राइम लैंडिग ऐजेंट बना दिया गया। जेल से रिहा होते ही वे तस्करी के जरिए हजारों, लाखों का वारा-न्यारा करने लगे।
दाऊद को लगा शहर में अच्छा कंट्रोल हो गया है। लिहाज़ा इक़बाल नाटिक़ को आपातकाल के बाद 1977 के लोकसभा चुनाव में दक्षिण मुंबई की सीट पर उतार दिया लेकिन उसे महज़ आठ सौ वोट ही मिले। उसकी ज़मानत ज़ब्त हो गई। यह दाऊद के लिए करारा आघात था लेकिन उसे वह झेल गया।
(The Most Wanted Don अगले भाग में जारी…)
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