हरिगोविंद विश्वकर्मा
26 दिसंबर 1955, सोमवार की गुलाबी शाम थी वह। जगह था मलबार हिल का राजभवन की ओर जाने वाला चौराहा। तब बहुत रईस लोगों के पास ही कारें हुआ करती थीं, इसलिए यदाकदा ही गाड़ियां आती थीं। लिहाज़ा, ट्रैफ़िक की कोई समस्या नहीं थी। फिर भी ट्रैफ़िक पुलिस में तैनात इब्राहिम का मन ड्यूटी में बिलकुल नहीं लग रहा था। उनके चेहरे पर बेचैनी साफ़ पढ़ी जा सकती थी। दरअसल, उनकी बीवी अमीना बी दूसरे बच्चे को जन्म देने वाली थी। वैसे, साबिर के रूप में उनका पहला बेटा था लेकिन दूसरी संतान का बाप बनने को लेकर वह कुछ ज़्यादा ही एक्साइटेड थे। दरअसल, कोंकणी मुसलमानों के मज़हबी गुरु और बेहद सम्मानित निराले शाहबाबा ने दो महीने पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी कि दूसरी संतान बेटा होगा, जो बहुत मशहूर, ताक़तवर और धनवान होगा। शाहबाबा ने यह भी कहा था कि वह दाऊद जैसा होगा।
दरअसल, पवित्र कुरान में “दाऊद” और हॉली बाइबिल में “डेविड” का ज़िक्र मिलता है। दोनों लब्ज़ अपने अपने धर्म को मामने वालो के लिए बेहद पाक माने जाते हैं। माना जाता है कि दाऊद ने सारी क़ायनात पर हुकूमत की। मजहबी ग्रंथों में दावा किया गया है कि दाऊद के स्पर्श मात्र से लोहे का रॉड टेढ़ा हो जाता है। दाऊद की आवाज़ इतनी मधुर थी कि पशु-पंछियों को अपनी ओर खींच लेती थी। उस मधुर स्वर का रसास्वादन के लिए जीव-जंतु ठहर जाते थे। बहरहला, शाहबाबा की भविष्यवाणी के कारण इब्राहिम कुछ ज़्यादा ही उत्साहित थे।
उसी समय संदेशवाहक ने आकर सूचना दी कि अमीना ने पुत्र को जन्म दिया है। इब्राहिम ख़ुशी से झूम उठे। अपने सीनियर से इजाज़त लेकर वह फ़ौरन पत्नी के पास पहुंचे और मासूम बच्चे को गोद में ले लिया। शाहबाबा की पहली भविष्यवाणी सच हुई। यानी दूसरी संतान लड़का हुआ। इसी को ध्यान में रखकर ही उसका नाम दाऊद रखा गया। इस उम्मीद से कि बड़ा होकर वह शोहरत और दौलत दोनों कमाएगा। घर की माली हालत बेहतर होगी, क्योंकि पुलिस में होने के बावजूद, उनकी इतनी हैसियत नहीं थी कि बेटे के जन्म पर पार्टी का आयोजन कर सकें। लिहाज़ा, यह ख़र्च वहन किया, उनके दोस्त करीम लाला ने।
दाऊद इब्राहिम की संपूर्ण कहानी पहले एपिसोड से पढ़ने के लिए इसे क्लिक करें…
वस्तुतः कासकर परिवार मूलतः कोंकणी मुसलमान है। आज़ादी से पहले ही रत्नागिरी के खेड़ तालुका के मुमका से मुंबई आकर बस गया। वैसे, देश में कोंकणी मुसलमानों का इतिहास पहला हमलावर मोहम्मद बिन कासिम से भी पुराना है। ये लोग हमलावर की तरह नहीं, बल्कि बतौर शरणार्थी-व्यापारी अरब सागर के रास्ते 7वीं सदी में भारतीय तट पर आए। इन लोगों ने दरअसल, बसरा के तानाशाह हजाज इब्ने यूसूफ़ अल-थक्काफ़ी के दमन से बचने के लिए यहां शरण ली। इनका मूल भले ही खाड़ी देश इराक, ओमान और यमन रहे हों, परंतु ये लोग कोंकण की माटी में रच-बसकर पूरी तरह मराठी हो गए। माहिम का मख़दूमअली माहिमी दरगाह 14वीं सदी से कोंकणी मुसलमानों की धर्मनिरपेक्षता की जीती-जागती मिसाल है। उर्स में आज भी वहां पहली चादर मुंबई पुलिस की ओर से चढ़ाई जाती है।
दाऊद के दादा हसन कासकर के चार बेटे थे। ग़रीबी से निजात पाने के लिए हसन मुमका से मुंबई चले आए। मुस्लिम बाहुल्य डोंगरी तब भी अपराध के लिए ख़ासा बदनाम था। सो वहां दुकान सस्ती मिल जाती थी। हसन ने चारनल में जूते की दुकान और छोटी-सी हेयर कटिंग सैलून खोल ली, जिसे नाज़ हेयर कटिंग सैलून नाम दिया। सहायता के लिए बेटे इब्राहिम को गांव से शहर बुला लिया। उनके शेष तीनों बेटे अहमद, महमूद, इस्माइल गांव में ही रह गए। उन बेटों के वंशज आज भी वहां रहते हैं। इधर, इब्राहिम का मन दुकानदारी में नहीं लगा। वह थोड़ा पढ़े-लिखे थे, लिहाज़ा, पुलिस में भर्ती हो गए। उस ज़माने में पुलिस की नौकरी पाना ज़्यादा मुश्किल नहीं था। इब्राहिम उसकी तैनाती, क्राइम ब्रांच में हुई। पत्नी अमीना और दो साल के साबिर अहमद के साथ वह कमाठीपुरा और जेजे अस्पताल के बीच टेमकर मोहल्ला की दस बाई दस की एक खोली में रहने लगे।
डोंगरी और आसपास के लोग सम्मान से उन्हें इब्राहिम भाई कहते थे। मुंबई पुलिस में भी उनकी अच्छी साख थी। डोंगरी में पोस्टिंग हो जाने से उनकी धाक और जम गई। तब पठानों का बड़ा आतंक था, लिहाज़ा, दक्षिण मुंबई को क्राइम-फ्री बनाने के लिए यूसुफ़ हवलदार और आदम हवलदार के साथ मिलकर एक शक्तिशाली ग्रुप बनाया। बहरहाल, डोंगरी, कुलाबा, माहिम और मलाबार हिल में बतौर हेड कॉन्स्टेबल की पोस्टिंग के बाद वह क्राइम ब्रांच भेजे गए। जहां, रिटायर होने तक रहे। चूंकि परिवार बहुत बड़ा हो गया था। पति-पत्नी के अलावा सात बेटे और पांच बेटियां यानी 14 लोग। आमतौर पर साल के हमेशा तंगी पांव पसारे रहती थी। लिहाज़ा, बच्चे सुबह चाय और वर्न पाव का नाश्ता करते थे। अगला भोजन रात में ही मिल पाता था। इब्राहिम के सपने आसमानी थे, पर आमदनी बेहद सीमित। लिहाज़ा, सपनों को पूरा करने के लिए वह चंद ग़लत लोगों की संगत में आ गए। इस दौरान उनका करीम लाला और मस्तान से मुलाक़ात हुई जो बाद में दोस्ती में तब्दील हो गई। इसके बाद करीम और मस्तान उनके यहां अकसर कुछ न कुछ भेजने लगे।
(The Most Wanted Don अगले भाग में जारी…)
अगला भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें – द मोस्ट वॉन्टेड डॉन – एपिसोड – 3