क्या है पाकिस्तान का ईश-निंदा कानून और क्यों हुआ है उसका यूरोपीय संसद से पंगा?

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हरिगोविंद विश्वकर्मा
यूं तो इस्लाम मज़हब की केवल आलोचना कर देने से ही दुनिया भर में इस्लामी कट्टरपंथी नाराज़ और क्रोधित हो जाते हैं। कहीं-कहीं तो आलोचना करने वाले का सिर ही क़लम कर देते हैं, लेकिन पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में इस्लाम की आलोचना करने वाले को सरकार खुद दंडित करती है। वहां ईश-निंदा करने वालों को फ़ांसी के फंदे पर लटकाने का बहुत कठोर, निर्मम और अमानवीय प्रावधान किया गया है। इस क़ानून के चलते फिलहाल पाकिस्तान की यूरोपीय यूनियन से ठन गई है और यूरोपीय संघ की संसद ने कहा है कि अगर इस्लामाबाद ने इस बर्बर क़ानून को निरस्त करके अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की तो उसे मिल रहे व्यापार के विशेष दर्जे को ख़त्म कर दिया जाएगा।

पाकिस्तान में ईश-निंदा कानून को लेकर हालत बहुत ही बदतर है। सिर्फ़ ईश-निंदा के मामूली से मुद्दे को लेकर भी दंगे भड़क जाते हैं और कट्टरपंथियों की पाशविक प्रवृत्ति सार्वजनिक हो जाती है। धर्मांध कट्टरपंथियों की भीड़ हिंसा और हत्या पर उतारू हो जाती है और इस्लमा की मामूली आलोचना करने पर भी उसका सिर क़लम कर दिया जाता है। पाकिस्तान के राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार समूहों का कहना है कि पाकिस्तान में ईश-निंदा क़ानून का इस्तेमाल अक्सर धार्मिक अल्पसंख्यकों को डराने और अपनी छवि इस्लाम के रक्षक के रूप में बनाने के लिए किया जाता रहा है।

बहरहाल, पिछले हफ़्ते बृहस्पतिवार को यूरोपीय संघ की संसद ने इस बारे में एक प्रस्ताव पारित किया। इस प्रस्ताव के पारित होते ही पाकिस्तान और यूरोपीय यूनियन के बीच ठन गई। दोनों पक्षों के बीच तकरार बढ़ता ही जा रहा है। यूरोपीय संसद ने पाकिस्तान से 2014 में मौत की सज़ा पाए ईसाई दंपति शगुफ्ता कौसर और उनके पति शफकत इमैनुएल को ज़रूरी चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराने और उनकी मौत की सजा को ‘तुरंत और बिना शर्त’ ख़त्म करने का आग्रह किया है। यूरोपीय संघ की संसद ने विवादास्पद ईश-निंदा कानूनों को निरस्त करने का पाकिस्तान से आग्रह किया है।

ईसाई दंपति कौसर और इमैनुएल को 2013 में पूर्वी पंजाब प्रांत के स्थानीय मौलवी को कथित तौर पर निंदात्मक संदेश भेजने के संदेह में गिरफ़्तार किया गया था। दोनों पर मुक़दमा चलाकर उन्हें 2014 में मौत की सजा सुनाई गई थी। तब से उनकी अपील लाहौर हाई कोर्ट में विचाराधीन हैं। यह भी ख़बर आई है कि इस ईसाई दंपति को आवश्यक चिकित्सा सेवा से भी वंचित किया जा रहा है, जिससे दोनों जेल में बीमार चल रहे हैं। यूरोपीय संघ की संसद ने पाकिस्तान में आए दिन अल्पसंख्यकों, पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर हमले और ऑनलाइन गालीगलौज़ की बढ़ती घटनाओं पर भी गंभीर चिंता व्यक्त की है और पाकिस्तान को इस तरह के लोगों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी कदम उठाने के लिए कहा है।

पाकिस्तान ने शुक्रवार को यूरोपीय संघ की संसद के उस प्रस्ताव की निंदा की है, जिसमें कहा गया है कि इस्लामाबाद को धार्मिक अल्पसंख्यकों को स्वतंत्रता की अनुमति देना चाहिए। यूरोपीय संघ की संसद में पारित प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि अगर इस्लमाबाद ईश-निंदा क़ानून को निरस्त नहीं करता है तो इस देश को मिले व्यापार के विशेष दर्जे पर पुनर्विचार करने के लिए कहा गया है। इस्लामाबाद में जारी बयान में विदेश मंत्रालय ने यूरोपीय संघ की संसद के प्रस्ताव पर निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि संसद का यह क़दम दर्शाता है कि पाकिस्तान और दूसरे इस्लामी मुल्कों में ईश-निंदा कानूनों और धार्मिक संवेदनशीलता के संदर्भ में पश्चिम की समझ कितनी कम है। हालांकि, इसकी संभावना नहीं के बराबर है कि इस्लामाबाद इस मसले पर कोई कार्रवाई करेगा। हाल के वर्षों में पाकिस्तान में कट्टरपंथी और धर्मांध दल ईश-निंदा कानून में कोई बदलाव करने से रोकने के लिए हिंसक रैलियां करते रहे हैं।

दरअसल, 1920 में ब्रिटिश शासन के दौरान लाहौर में ‘रंगीला रसूल’ नामक पुस्तक के प्रकाशन के बाद इस्लमी कट्टरपंथियों ने प्रकाशक का सिर क़लम कर दिया था। लिहाज़ा, मुस्लिम नेताओं के दबाव में ब्रिटिश सरकार ने 1927 में क़ानून में संशोधन करके हेट स्पीच लॉ सेक्शन 295 (ए) को आपराधिक क़ानून संशोधन 35 वें अधिनियम का हिस्सा बना दिया। किसी भी धार्मिक समुदाय के संस्थापकों या नेताओं का अपमान करने के कार्य को अपराध की श्रेणी में रखा गया। इस तरह पाकिस्तान को ईश-निंदा कानून अंग्रेज़ों से विरासत में मिला। 1947 में पाकिस्तान बनने के बाद 1956 में पाकिस्तान के दंड संहिता में ईश-निंदा विरोधी कई धाराएं शामिल की गईं।

प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार की अगुवाई में नेशनल एसेंबली ने 7 सितंबर 1974 को संविधान में द्वितीय संशोधन के ज़रिए अहमदिया मुसलमानों को गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया। अहमदिया मुसलमान मक्का की काबा मस्जिद में हज करने नहीं जा सकते। आज भी जो अहमदिया मुसलमान अपनी असली पहचान छुपा कर हज करने जाते हैं। बहरहाल, 1980 और 1986 के दौरान जनरल ज़िया-उल हक की सैन्य सरकार ने उदारवादी अहमदिया मुसलमानों को मुस्लिम चरित्र से वंचित करने के लिए क़ानून को और सख़्त बना दिया और ईश-निंदा क़ानून को बर्बर बना दिया।

यूएस कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम की 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक 1986 के पहले पाकिस्तान में ईश-निंदा के केवल 14 मामले दर्ज थे। लेकिन 1987 से 2017 के बीच 1500 से अधिक लोगों के ख़िलाफ़ ईश-निंदा क़ानून के तहत आपराधिक मुक़दमा दर्ज किया गया। 80 लोगों को जेल में डाल दिया गया। 25 लोगों को फ़ांसी पर लटकाया जा चुका है और शेष 55 को आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे हैं या जेल में ही दम तोड़ चुके हैं। इतना ही नहीं कथित तौर पर ईश-निंदा करने वाले 75 लोगों की हत्या कट्टरपंथियों द्वारा कर दी गई।

कट्टरपंथियों के हमले के शिकार पाकिस्तान के उदारवादी नेता और पंजाब के पूर्व गवर्नर सलमान तासीर (भारत की वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह के पति) भी हुए। ईश-निंदा क़ानून के विरोधी सलमान की हत्या 2011 में उनके ही गार्ड मुमताज़ क़ादरी ने कर दी थी। उन्होंने ईश-निंदा के आरोप में मौत की सज़ा पाने वाली ईसाई महिला आसिया बीबी का बचाव किया था और उनसे मिलने के लिए जेल भी गए थे। सलमान की हत्या के आरोप में मुमताज़ क़ादरी को 1 मार्च 2016 को फांसी दे दी गई थी। उधर मौत की सजा पाने वाली आसिया बीबी आठ साल जेल में बिताने के बाद बरी कर दी गई थी और धमकी मिलने के बाद अपने परिवार सहित कनाडा चली गई थी।

यूरोपीय संघ की संसद ने दरअसल, कट्टरपंथियों पर अंकुश लगाने के लिए यह प्रस्ताव पारित किया है। पिछले साल नवंबर में फ्रांस की राजधानी पेरिस में इतिहास के अध्यापक सैमुअल पैटी ने कक्षा में पैगंबर मोहम्मद का एक कार्टून बना दिया, तो चेचन्या मूल के अब्दुलाख अंजोरोव नाम के कट्टरपंथी मुसलमान ने पैटी का गला ही काट दिया। इसके बाद फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों सिर क़लम करने की प्रवृत्ति को पाशविक प्रवृत्ति करार देकर कट्टरपंथियों और उनको शह और समर्थन देने वाले देशों के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर रहे हैं।

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