प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने को साकार कर सकती है जेबा

0
3870

चौंकिए मत, जेबा न तो कोई दिल-फरेब हसीना है और न ही बॉलीवुड की कोई हिरोइन है। वस्तुतः जेबा नई-नई विकसित एक उन्नत एवं अत्याधुनिक कृषि तकनीक है। इसका वैज्ञानिक नाम प्रोन्यूटिवा जेबा टेक्नोलॉजी (Pronutiva Zeba Technology) है। यह ऐसी रामबाण कृषि तकनीक है जो वास्तव में 2022 तक देश के अन्नदाता किसानों की आमदनी को दोगुना करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने को साकार करने में सक्षम है।

देश की सत्ता की कमान संभालने के दो साल बाद 2016-17 में प्रधानमंत्री ने किसानों की आय बढ़ाकर दोगुना करने का लक्ष्य निर्धारित कर रखा था। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए थे। सब कुछ उम्मीद के मुताबिक चल रहा था। लेकिन नवंबर 2019 में चीन के वुहान शहर से निकले कोरोना वायरस ने सब गुड़ गोबर कर दिया और उस लक्ष्य को हासिल करने में सबसे बड़ी बाधा बन कर सामने आया है। कोरोना वायरस ने दो साल का महत्वपूर्ण समय निगल लिया, जिससे अब किसानों की आमदनी को दोगुना करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए केवल एक साल का समय शेष रह गया है।

इसे भी पढ़ें – सदियों के बाद पुनर्स्थापित हुआ काशी विश्वनाथ का गौरव

एक तरह से केवल एक साल में उस लक्ष्य हासिल करना मुश्किल दिख रहा है। लेकिन निराश होने की ज़रूरत बिल्कुल नहीं है, क्योंकि अब उस लक्ष्य को हासिल करने में उन्नत प्रोन्यूटिवा जेबा टेक्नोलॉजी रामबाण साबित हो रही है। अभी कुछ साल पहले ही खाद और कीटनाशक को बनाने वाली मशहूर स्वदेसी कंपनी यूनाइटेड फॉस्फोरस लिमिटेड यानी यूपीएल (UPL) के कृषि वैज्ञानिकों ने लंबे रिसर्च के बाद उन्नत जेबा तकनीक को विकसित किया है। इस तरह कृषि क्षेत्र के लिए भारत में शुरू की गई इस जेबा तकनीक के उपयोग से फसलों की पैदावार दो गुनी करके किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।

कोरोना की चपेट में आकर कर आर्थिक संकट का सामना करने वाले किसानों के लिए जेबा तकनीक इन दिनों उम्मीद की किरण सी बन गई है। इसका इस्तेमाल करने वाले किसान जेबा को फसल के लिए ही नहीं बल्कि अपने लिए भी संजीवनी बूटी बता रहे हैं। सबसे अहम महाराष्ट्र, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान में बड़ी संख्या में किसान जेबा का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके अलावा फिलहाल हरियाणा और गुजरात समते देश के 1.5 लाख से अधिक किसान जेबा तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं। अब तो इस तकनीक की मांग विदेशों में भी बढ़ रही है।

आमतौर पर माना जाता है कि गन्ने की फसल पानी का उपभोग बहुत ज्यादा करती है जिसकी वजह से कम पानी वाले इलाकों में इसकी खेती न करने की सलाह दी जाती है हालांकि यूपीएल की नई तकनीकी जेबा की वजह से महाराष्ट्र के कई इलाकों में न केवल 20 फीसदी पानी की बचत हो रही है, बल्कि 40 से 50 फ़ीसदी गन्ने की उत्पादन में भी वृद्धि हो रही है साथ ही किसान जो प्रति एकड़ 35 से 45 टन प्रति एकड़ की उपज पा रहे थे वह अब 95 से 120 टन का उत्पादन भी पा रहे हैं।

यूपीएल के क्रॉप स्थापना प्रमुख हर्षल सोनवणे के अनुसार जेबा ऐसा सस्टेनेबल उत्पाद है जो मक्के के स्टार्च से बना हुआ है जिसमें अपने वजन के 400 गुना से भी अधिक पानी और पोषण तत्वों को संचित करने की क्षमता है जो पौधों की जरूरत होने पर उन्हें पुनः प्रदान करता है जिसकी वजह से पानी और पोषण तत्त्वों की बचत होती है और नतीजतन ज्यादा उपज मिलती है। जेबा उत्पाद खेत की मिट्टी में पांच महीने तक सक्रिय रहता है। इसका मतलब यह है कि जेबा का साल में दो बार प्रयोग करके किसान अपने फसल की पैदावार बढ़ा सकता है। यह तकनीकी पर्यावरण अनुरूप भी है क्योंकि इसका कोई भी अवशेष जमीन में या मिट्टी में रह नहीं जाता यह मिट्टी में पूरी तरह से घुल जाता है।

इसे भी पढ़ें – भारत का ‘ब्रह्मास्त्र’ सिंधु जल संधि

इसके साथ ही यूपीएल ने एक उन्नत मोबाइल ऐप की भी सुविधा किसानों को मुहैया कराई है जिसके तहत खेतों में सेंसर लगाए गए हैं जो खेत के बाहर लगे लगभग 12 से 15 फीट ऊंचे टॉवरों के जरिए हर समय किसान के खेत की जानकारी इकठ्ठा करते रहते हैं और रियल टाइम में किसानों को उनके खेत में मौजूद नमी ,मौसम, पानी की खपत इत्यादि की जानकारी देते रहते हैं। किसान दुनिया के किसी भी कोने में बैठा वह एप के द्वारा जानकारी ले लेता हैं। इनोवेशन मोबाइल एप के इस्तेमाल से किसानों को यह पता चलता रहता है कि कब और कितना पानी फसल को देना है और उन्होंने कब और कितना लीटर पानी खेत में दिया हुआ है। इस ऐप में स्थानीय मौसम का भी अनुमान सटीकता से किसानों को उपलब्ध हो रही है जिसके कारण वे मौसम आधारित फसल सुरक्षा या नियोजन कर सकते हैं।

पुणे के शिरूर तालुका के वड़गांव रसाई गांव के निवासी गणेश विट्ठल कुंडले उर्फ तात्या कुंडले पढ़ाई पूरी करने के बाद पिछले 15 साल से खेती कर रहे हैं गणेश कुडले गन्ना ने यूपीएल की प्रोन्यूटिवा पैकेज के तहत जेबा टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल अपने खेत में किया जिससे आमतौर पर जहां उन्हें प्रति एकड़ 40 से 55 टन गन्ना मिलता था, वहीं अब वे 95 टन प्रति एकड़ गन्ने का उत्पादन हो रहा है और 20 फीसदी से भी ज्यादा पानी की बचत हो रही है। मोबाइल ऐप की वजह से अब उन्हें बार-बार खेत का मुआयना नहीं करना पड़ता है क्योंकि ऐप में ही उन्हें सारी जानकारियां उपलब्ध कराता रहता है।

गणेश यह भी जान लेते हैं कि उन्होंने अपने खेत में कब और कितना पानी देना है और अब तक उन्होंने कब और कितना लीटर पानी अपने खेत में दिया हुआ है। एप्प के द्वारा उन्हें स्थानीय मौसम का भी अनुमान उनके मोबाइल पर ही उपलब्ध हो जा रहा है। आजकल उनकी गिनती पुणे के बड़े किसानों में होने लगी है। तात्या शिरूर तालुका के आसपास के सभी किसानों के लिए रोल मॉडल बन गए है। वे कहते हैं कि अत्याधुनिक तकनीक वाली जेबा फसल और किसान दोनों के लिए संजीवनी बूटी की तरह काम कर रही है। वह बताते हैं कि पहले जितने पानी से वह 15 एकड़ में लगाए गन्ने की फसल की सिंचाई करते थे, उतने पानी से अब 40 एकड़ खेत की सिंचाई हो जाती है।

भारत तावरे जो मुंबई में उद्यमी हैं और उन्होंने अपने गांव वड़गांव रसाई में आठ एकड़ की खेती में प्रोन्यूटिवा और इनोवेशन ऍप तकनीकी का इस्तेमाल किया हुआ। आज वह इतने खुश हैं कि उन्हें मुंबई में रहते हुए एप के द्वारा अपने खेत की पूरी जानकारी रियल टाइम में उपलब्ध हो रही है। भरत तावरे का कहना है की जब उन्हें जेबा टेक्नोलॉजी के बारे में बताया गया तब उन्हें इस पर विश्वास नहीं हुआ था। इस तकनीकी को आजमाने और परिवर्तन को परखने के लिए तावरे ने एक एकड़ में बिना प्रोन्यूटिवा जेबा तकनीकी से गन्ना उगाया जिसमे उन्हें सिर्फ 77 टन का ही उत्पादन मिल पाया वहीँ जेबा प्लॉट में 120 टन का उत्पादन मिला। तब उन्हें इसपर जाकर विश्वास हुआ और अब वे इस तकनीकी का स्वयं कई बिज़नेस फ़ोरम्स में प्रचार प्रसार करते रहते हैं। अब वे इस परिणाम से खुश होकर अपनी उपज को 150 टन प्रति एकड़ पहुंचाने के लिए प्रयास कर रहे हैं।

इसे भी पढ़ें – कहानी – ग्रीटिंग कार्ड

यूपीएल के जेबा लीड अमोल आंधले ने बताया कि फिलहाल महाराष्ट्र में इन्नोवेशन टेक्नोलॉजी के तहत पांच किसानों के खेतों को लाया गया है और जल्द ही उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग के गन्ना उत्पादक क्षेत्र में 10 और प्लाट को भी इस तकनीकी का इस्तेमाल किया जाएगा। अमोल के अनुसार जेबा के उपयोग से न केवल पानी और पोषक तत्वों की बचत हो रही है बल्कि गन्ने की क्वालिटी और उसके आकार में भी बहुत ही सकारात्मक बदलाव जैसे गन्ने की मोटाई दो आंखों के बीच ज्यादा लंबाई, हरियाली इत्यादि देखने को मिल रही है।

हर्षल सोनावणे ने बताते हैं कि जेबा उत्पाद के लिए जहां पहले कंपनी के लोग खुद किसानों और कृषि सहकारी समितियों से संपर्क करते थे, वहीं अब किसान और कृषि सहकारी समितियां खुद कंपनी से संपर्क करने मार्गदर्शन करने का आग्रह कर रही हैं। सोनावणे ने बताया कि इस साल हमने 2 हजार टन जेबा प्रोडक्ट का उत्पादन किया। अगले साल यानी 2022 में हम 5 हजार टन जेबा प्रोडक्ट का उत्पादन करने वाले हैं। इसी तरह 2023 में कंपनी 10 हजार टन जेबा प्रोडक्ट का उत्पादन करने के लिए संधाधन की तैयारी कर ली है।

हर्षल सोनावणे ने बताया कि फिलहाल गन्ना उपज में अग्रणी सातारा, पुणे और अहमदनगर में बड़ी संख्या में किसान जेबा तकनीक से खेती कर रहे हैं। नासिक के किसान प्याज की खेती, अकोला, बुलढ़ाणा औरंगाबाद और जालना के किसान कपास की खेती में जेबा तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। सोनावणे ने बताया कि जेबा तकनीक केवल गन्ना, प्याज या कपास की फसल के लिए उपयोगी नहीं है, बल्कि ये मूंगफली, आलू, टमाटर, लहसुन, अदरक और अनार समेत हर फसल के लिए उपयोगी साबित हो रही है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कृषि से जुड़े संस्थानों को निर्देश दिया है कि किसानों के बीच जेबा तकनीक को लेकर जागरूकता फैलाई जाए, और उन्हें इस उन्नत तकनीक से खेती करने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित किया जाए, ताकि वे जेबा तकनीक से अपने खेत से सर्वोत्तम पैदावार प्राप्त कर सकें। लखनऊ स्थित भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान यानी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ शुगर केन रिसर्च समेत उत्तर प्रदेश की कई संस्थानों के साथ प्रोन्यूटिवा जेबा टेक्नोलॉजी के लिए जल्द ही यूपीएल का एमओयू साइन होने वाला है।

इसे भी पढ़ें – भारतीय इतिहास के कर्ण सुभाषचंद्र बोस

वस्तुतः देश की सत्ता की कमान संभालने के दो साल बाद नरेंद्र मोदी ने किसानों की आमदनी को 2022 तक दोगुना करने का लक्ष्य रखा था। दो वर्ष बाद आई उसकी रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया था कि इस लक्ष्य को पाने के लिए कृषि की वार्षिक विकास दर अनवरत 10.4 फीसदी रहना जरूरी होगा। अब कोरोना संक्रमण के कारण उस लक्ष्य का हासिल करने में जो बाधा आई है, तो उस बाधा को अत्याधुनिक जेबा तकनीक से निश्चित रूप से पार किया जा सकता है।

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

इसे भी पढ़ें – मुंबई से केवल सौ किलोमीटर दूर ‘महाराष्ट्र का कश्मीर’