बिहार चुनाव के जरिए भाजपा का शिवसेना को संदेश

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बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे चाहे जो हों और सरकार चाहे जिसकी बने, लेकिन मत-गणना के दिन भर के रूझान के बाद बिग ब्रदर के रोल में उभरी भारतीय जनता पार्टी ने कभी अपनी सहयोगी रही शिवसेना को अप्रत्यक्ष रूप से संदेश दिया है कि महाराष्ट्र में सत्ता के लालट में वह गठबंधन का धर्म भले नहीं निभा पाई, लेकिन भाजपा बिहार में गठबंधन का धर्म निभाएगी और बड़ी पार्टी होने के बावजूद नीतीश कुमार की हो मुख्यमंत्री बनाएंगी, क्योंकि विधान सभा चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा गया था।

यहां यह बता देना ज़रूरी है कि पिछले साल महाराष्ट्र में विधान सभा चुनाव उस समय मुख्यमंत्री रहे भाजपा के देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में लड़ा गया था। पूरे चुनाव में शिवसेना चुप रही, नतीजे आते ही शिवसेना ने ढाई-ढाई साल सीएम का फॉर्मूला पेश किया और ढाई साल के लिए सीएम पद पर दावा कर दिया। इसके चलते तीन दशक पुराना भाजपा-शिवसेना गठबंधन टूट गया और शिवसेना कांग्रेस-एनसीपी के सेक्यूलर खेमे में चली गई और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की अगुवाई में महाविकास अघाड़ी की सरकार बनी।

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बिहार में मत-गणना के बाद भाजपा नेताओं का बयान ध्यान देने लायक है। रूझान देखकर सभी के सुर भी बदल गए हैं। केंद्रीय मंत्री से लेकर प्रवक्ता तक बार-बार यही रट लगा रहे हैं, “हम बाबू नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री बनाएंगे। हम बाबू नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री बनाएंगे।” उल्लेखनीय बात यह है कि यह वाक्य अमूमन हर भाजपा नेता बोल रहा है और कई-कई बार बोल रहा है। दरअसल, इस वाक्य के ज़रिए भाजपा के लोग महाराष्ट्र की शिवसेना को संदेश दे रहे हैं कि महाराष्ट्र विधान सभा का चुनाव देवेंद्र फड़णवीस के नेतृत्व में चुनाव लड़ा, लेकिन सत्ता के लिए अपने सिद्धांत से समझौता कर लिया और चुनाव से पहले हुए समझौते को तोड़ दिया, लेकिन हम ऐसा नहीं करेंगे, जिसके नेतृत्व में चुनाव लड़े हैं, उसी को सीएम बनाएंगे।

भाजपा नेताओं के इस वाक्य में प्रयोग किए जा रहे “बनाएंगे” शब्द में बहुत गूढ़ अर्थ छिपा हुआ है। इस वाक्य के साथ नीतीश कुमार को अप्रत्यक्ष रूप से यह संदेश दिया जा रहा है कि इस बार आप अपने दम पर मुख्यमंत्री नहीं बन रहे, क्योंकि आपकी सीटे कम हो गई हैं। इस बार हमारी सीटें बढ़ गई हैं, फिर भी हम आपको आपको मुख्यमंत्री बना रहे हैं। यह ध्यान रखिए कि आपको सीएम बनाया जा रहा है। आप ख़ुद सीएम नहीं बन रहे हैं। यह नीतीश कुमार पर एक तरह का मनौवैज्ञानिक दबाव होगा, जिसका इस्तेमाल भाजपा भविष्य में कर सकती है।

बिहार विधान सभा चुनाव में भाजपा का यह अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। या कहें कि 2015 के चुनाव में जीतनी सीटें जनता दल यूनाइटेड ने जीता था, उतनी सीट भाजपा जीतती दिख रही है। इससे इस बात की भी सुगबुगाहट होने लगी है कि निकट भविष्य में बिहार को भाजपा का अपना मुख्यमंत्री बनाने का बहुप्रतीक्षित सपना फलीभूत हो सकता है। भाजपा नीतीश कुमार को केंद्र सरकार में बड़ा पद ऑफर करके दिल्ली बुला सकती है, क्योंकि रामविलास पासवान के निधन से एक बर्थ तो मोदी सरकार में रिक्त ही है। भविष्य में उस बर्थ को नीतीश को दे दिया जाए तो हैरानी नहीं होगी।

जनतांत्रिक गंठबंधन का हिस्सा रहे दूसरे दल लोकजनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान पहले से ही नीतीश कुमार का विरोध कर रहे है और कहते रहे हैं कि नीतीश को वह मुख्यमंत्री के रूम में स्वीकार नहीं करेंगे। इसी मुद्दे पर उन्होंने एनडीए के साथ चुनाव नहीं लड़ा। उन्होंने चुनाव प्रचार में नरेंद्र मोदी या अमित साह के बारे में कोई नकारात्मक बात नहीं की। इसीलिए अगर नीतीश को अंकुश में रखने के लिए भाजपा चिराग का इस्तेमाल करे तो कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए।

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बिहार विधान सभा मत-गणना में रूझान तीन दिन पहले आए एग्जिट पोल के एकदम उलट आ रहे हैं। मौजूदा परिवेश में पिछले दो तीन महीने से संभावना यह जताई जा रही थी कि बिहार में इस बार एंटी-इनकंबेंसी फैक्टर काम कर रहा है और नीतीश कुमार दोबोरा मुख्यमंत्री पद की शपथ नहीं ले पाएंगे। इसके बावजूद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गंठबंधन ने नीतीश के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का रिस्क उठाया। कहा जा रहा है कि एनडीए की कामयाबी का श्रेय केवल और केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को है।

इस विधान सभा चुनाव में अपना जनाधार गंवा रहे नीतीश कुमार के आगे नरेंद्र मोदी ढाल बनकर खड़े हो गए। हमेशा की तरह धुआंधार चुनावी रैलियां की। मोदी ने केवल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रतिष्ठा को नहीं बचाया नहीं, बल्कि ख़ुद भारतीय जनता पार्टी राज्य में बिग ब्रदर की भूमिका में आ गई है। ज़ाहिर है इस बार चुनाव के नतीजों ने नीतीश कुमार के क़द को घटा दिया है। इसके बावजूद अगर वह मुख्यमंत्री बने तो कमज़ोर या कठपुतली सीएम के रूप में ही कुर्सी पर बैठेंगे।

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भाजपा के चाणक्य अमित शाह अपने ख़राब स्वास्थ्य के चलते इस बार बिहार चुनाव प्रचार में उतने सक्रिय नहीं थे। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी कमी महसूस नहीं होने गी और इस चुनाव में कई रैलियों को संबोधित किया। उन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया कि भाजपा और साथी दलों के नेताओं को चुनाव जीताने का दमखम रखते हैं, क्योंकि मतदाताओं को खींचने का उनका जादू अब भी बरकरार है। नीतीश की अलोकप्रियता के बावजूद एनडीको को एक और बार सत्ता दिलाने का काम केवल और केवल मोदी ही कर सकते हैं। यही वजह है कि कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यूनाइटेड को आजमा चुकी बिहार की जनता ने अब भाजपा से उम्मीद लगा रही है।

अभी तो आधे भी वोट नहीं गिने जा सके हैं, इसलिए कोई पक्ष पूरे दावे के साथ कुछ नहीं कह सकता है कि वही जीतेगा। आमतौर पर माना जाता है कि शुरुआती तीन चार घंटे जिस दल या गठबंधन को जिस तरह का जनादेश मिलता है, वह जनादेश बरकरार रहता है।

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

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