हरिगोविंद विश्वकर्मा
हे मतदाताओं! मैं तुम्हें जनता-जनार्दन नहीं कहूंगा। मैं तो कहूंगा, तुम भाड़ में जाओ! मैं तुम्हारे आगे हाथ नहीं जोड़ने वाला। मैं तुम्हें इस क़ाबिल ही नहीं मानता, कि तुम्हारे आगे हाथ जोड़ूं। मैं तुमसे वोट भी नहीं मांगूंगा। मुझे पता है, तुम इस बार मुझे वोट नहीं दोगो, क्योंकि तुम मुझसे नाराज़ हो। ठीक उसी तरह जैसे, पांच साल पहले तुम मेरे विरोधी से नाराज़ थे। मैं जानता हूं, पिछले पांच साल के दौरान मैंने कुछ भी नहीं किया, इसलिए तुम नाराज़ होगे ही। तुम नाराज़ रहो मेरे ठेंगे से। पांच साल पहले, करोड़ों रुपए फूंककर मैं चुनाव लड़ा था। तुम्हारे भाइयों का शराब पिलाई थी। ढेर सारे लोगों को कैश भी बांटे थे। चुनाव में इतनी दौलत ख़र्च की थी, तो उसकी भरपाई क्यों न करता। मैं समाजसेवा के लिए पॉलिटिक्स में नहीं आया हूं। मैं इतना बड़ा बेवकूफ भी नहीं हूं, कि समाजसेवा के लिए इस गंदे क्षेत्र में आऊं। तुम लोग भले बेवकूफ़ी करो, मैं बेवकूफ़ी नहीं कर सकता।
इसीलिए अपने कार्यकाल में पांच साल मैंने जमकर पैसे बनाए। कह सकते हो, मैंने हर काम पैसे लेकर किया। मैंने सरकारी पैसे हज़म किए। इन सबका तुम्हें बुरा नहीं लगना चाहिए था, परंतु बुरा लगा। तो बुरा लगता रहे। मुझे रत्ती भर फ़र्क़ नहीं पड़ता। तुम मुझे वोट दो या न दो। इससे भी मेरी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता। बहुत होगा, मैं चुनाव हार जाऊंगा। वह तो इस क्षेत्र में हर पांच साल बाद होता है। इस बार भी हारने पर पांच साल घर बैठूंगा। इतने पैसे बनाया हूं, उसे ख़र्च करूंगा। परिवार के साथ देश-विदेश घूमूंगा। मुझे पता है इस बार तुम मेरे उसी विरोधी को वोट दोगे, जिसने मुझसे पहले तुम्हारी वाट लगाई थी। इस बार तुम उसे जीताओगे, तो वह पांच साल तक फिर तुम्हारी वाट लगाएगा। इतनी वाट लगाएगा, इतनी वाट लगाएगा कि अगली बार तुम मजबूरन फिर मुझे वोट दोगे। तुम्हारे पास और कोई विकल्प ही नहीं है। देश में लोकतंत्र के आगमन से यही होता आ रहा है। आगे भी होता रहेगा। बेटा, यह तुम्हारी नियति है। तुम्हारे पास नागनाथ या सांपनाथ हैं। तुम उन्हीं में किसी को चुनने के आदी हो चुके हो।
दरअसल, सबसे पहले तुम पर हिंदू राजाओं ने शासन किया। तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं किया। तुम्हें हर चीज़ से तुम्हे वंचित रखा। बाद में मुस्लिम सुल्तानों ने तुम्हारा ख़ून चूसा। उसके बाद आए अंग्रेज़। उन्होंने भी तुम्हारा जमकर दोहन किया। सबसे अंत में बारी आई मेरे जैसे नेताओं की। मैंने देखा कि शोषण का तुम विरोध तो दूर उफ् तक नहीं करते। ऐसे में मैं क्यों पीछे रहता। मैं जुट गया अपना और अपने परिवार की तरक़्क़ी करने में। आज मैं पोलिटिकल फ़ैमिली बनाकर ऐश कर रहा हूं। तुम्हें ख़ूब लूट रहा हूं। आगे भी ऐसे ही लूटता रहूंगा। मैं तुम्हें इसी तरह ग़ुलाम बनाए रखूंगा। सदियों से ग़ुलाम रहने के कारण ग़ुलामी तुम्हारे जीन्स यानी डीएनए में घुस गई है। मैंने तुम्हें ऐसा ट्रीटमेंट दिया है कि अब तुम मन से हमेशा ग़ुलाम ही रहोगे। मेरे चमचे बने रहोगे। मेहनत तुम करोगे और मौज़ मैं करूंगा।
हां, तुम्हारे पास कोई ईमानदार आएगा। तुम्हारा अपना कोई हितैषी बनेगा और तुम्हारे हित की बात करेगा। तुम्हें हम नेताओं की असलियत बताएगा और तुमसे वोट मांगेगा। ताकि तुम्हारा भला करे। मैं जानता हूं, तुम उसे वोट नहीं दोगे, बल्कि तुम उसकी टांग खींचोगे। उसे गाली दोगे। उसे फटकारोगे। ज़लील करोगे। उसके बारे में तरह-तरह की बातें फैलाओगे। कई ग़लत खुलासे करोगे। वह ईमानदार भी रहेगा तो भी तुम उस पर भरोसा नहीं करोगे, क्योंकि अपने समाज के लोगों को गरियाने का हुर तुम्हारे अंदर इस तरह फिट कर दिया गया है, कि वह कभी ख़त्म ही नहीं होगा। तुम अपने हर हितैषी को दुश्मन ही समझोगे। यह तुम्हें कलियुग का शाप है।
देखो न, तुम अपनी औक़ात नहीं देखते और बातें करते हो प्रधानमंत्री की। तुम चर्चा करते हो कि इसे पीएम बनाना है, उसे पीएम बनाना है। इसे सीएम बनाना है, उसे सीएम बनाना है। यहां तक कि जो नेता तुम्हें जानता तक नहीं तुम उसे भी पीएम बनाने की बात करते हो। तुम रेलवे टिकट लेने के लिए कई-कई दिन लाइन में खड़े रहते हो। लोकल ट्रेन में गेहूं की बोरी की तरह ठुंस जाते हो। रसोई गैस पाने के लिए धक्के खाते हो। पुलिस और सरकारी कर्मचारियों की गाली सुनते हो। तुम्हारी फरियाद कोई नहीं सुनता। तुम दर-दर भटकते हो। नौकरी पाने के लिए रिरियाते हो। नौकरी लग गई तो उसे बचाए रखने के लिए चाटुकारिता करते हो। तुम दीन-हीन रहोगे तब भी बात करोगे पीएम की। दिल्ली सल्तनत की। आजकल तो तुममें से कुछ लोग फ़ेसबुक पर आ गए हैं। एक स्मार्ट फोन लेकर हरदम अपने लोगों के ख़िलाफ़ कुछ न कुछ पोस्ट करते रहते हैं। कमेंट दो-चार लोग लाइक क्या करने लगे, बन गए बुद्धिजीवी। बुद्धिजीवी का स्वभाव होता है, वह उसी की वाट लगाता है जो उसकी मदद करना चाहता है। तुम भी वही करते हो। एक राज़ की बात बताऊं, तुम जैसे हो वैसे ही रहो। तुम बदलोगे तो मेरे और मेरे लोगों का अस्तित्व ख़तरे में पड़ जाएगा। इसलिए तुम जैसे हो वैसे ही रहो हमेशा। शोषित, दमित और उत्पीड़ित।
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