मधुर और रेशमी आवाज से भारतीय सिनेमा को समृद्ध करने वाली गीता दत्त

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पुण्यतिथि पर विशेष…

हम रहे न हम, तुम रहे न तुम…

‘वक़्त ने किया क्या हसीन सितम, हम रहे न हम, तुम रहे न तुम।’ 1959 में रिलीज़ हुई ‘फ़िल्म काग़ज़ के फूल’ में जादुई आवाज़ की मलिका गीता दत्त जब शायर कैफ़ी आज़मी के इस गाने को संगीतकार सचिनदेव बर्मन की धुन पर गा रही थीं, तब उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी कि एक दिन वक़्त का क्रूर सितम उनकी अपनी ज़िंदगी का फलसफा बनकर सामने आएगा। निश्चित रूप से वक़्त ने अपने ज़माने की इस ख़ूबसूरत अदाकारा और बेहतरीन गायिका के साथ हसीन सितम नहीं बल्कि क्रूर सितम किया और भारतीय संगीतप्रेमियों से ख़ूबसूरत आवाज़ की गायिका को असमय छीन लिया।

मधुर और रेशमी आवाज़

भारतीय सिनेमा को अपनी मधुर और रेशमी आवाज़ से जिन गायिकाओं समृद्ध किया, उन चंद गायिकाओं में गीता दत्त का भी नाम आता है। ग्लैमरस दुनिया में गीता दत्त को ऐसी पार्श्वगायिका के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने अपनी दिलकश आवाज़ की कशिश से सीधे करोड़ों संगीतप्रेमियों के दिल को टच किया। जादुई स्वर की मलिका गीता दत्त ने बहुत कम उम्र में शोहरत की उस बुलंदी को चूम लिया था, जहां लोग पूरा जीवन खपाने के बावजूद नहीं पहुंच पाते हैं। यही वजह है कि उके गाने छह दशक बाद आज भी संगीत प्रेमी दिल से गुनगुनाने लगते हैं। हिंदी फिल्मों में गीता दत्त ऐसी गायिका थीं, जिन्होंने अपनी कशिश भरी आवाज़ के चलते हिंदी सिनेमा जगत में एक अलग मुकाम बनाया। सबसे बड़ी बात गीता दत्त ने उस दौर में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाया जब पार्श्वगायन के क्षेत्र में लता मंगोशकर शिखर पर पहुंच चुकी थीं और सुरैया, श्मशाद बेग़म और नूरजहां जैसी कालजयी गायिकाओं की भी तूती बोलती थी और आशा भोसले भी कड़ी चुनौती पेश करने लगी थीं।

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गायन व जीवन दोनों प्रभावित

यह कहना तनिक भी अनुचित नहीं होगा कि समर्थ गायिका गीता दत्त ने गुरुदत्त जैसे जीनियस लेकिन कन्फ्यूज़्ड फिल्मकार के साथ सात फेरे लेकर अपना संगीत का कैरियर ही नहीं, बल्कि समूचा जीवन ही नष्ट कर लिया और महज 42 साल की कम उम्र में इस दुनिया से सिधार गईं। हालांकि अपने अपेक्षाकृत संक्षिप्त करियर में वह भारतीय संगीत को कई बेमिसाल गाने और कर्णप्रिय गाने देकर गईं, जिन्हें छह दशक बाद आज भी लोग उसी चाव से सुनते हैं। अपनी आवाज़ की कशिश के लिए मशहूर गीता दत्त उस समय संगीतकारों की चहेती थीं। फिल्मों में वह गुरु दत्त से पहले से ही बतौर गायिका मशहूर हो चुकी थीं। उनकी आवाज़ में ख़ास तरह की कसक थी, जिससे उनके गाए गीत संगीत के कद्रदानों द्वारा ख़ूब पसंद किए जा रहे थे, लेकिन गुरु दत्त को पति के रूप में चुनने के बाद उनकी ज़िंदगी ही ट्रेजडी बन गई। गुरु दत्त की बेवफ़ाई ने उनसे उनका स्टारडम और शोहरत ही नहीं छीना, बल्कि अंत में उन्हें निपट तन्हा और मायूस कर दिया था। तन्हाई और मायूसी से निकलने के लिए उन्होंने भी शराब की पनाह ले ली। शराब पीने की लत उन्हें ऐसी लगी कि आखिरकार उनकी जान ही ले ली।

बंगाल का नमक और दर्द

गीता दत्त ने अपने संगीत सफ़र के दौरान बहुत अधिक गानों को अपना स्वर दिया। 72 फिल्मी गाने तो उन्होंने केवल सचिन देव बर्मन के लिए गाए। उनमें से 43 गाने सोलो सॉन्ग था। उनकी आवाज़ गीतकारों-संगीतकारों को कितनी भाती थी, इसका उदारण यह है कि उनके बारे में एक बार ‘वक़्त ने किया क्या हसीं सितम’ के लेखक मशहूर शायर कैफी आज़मी ने कहा था कि उनके आवाज में बंगाल का नमक और दर्द दोनों है। इसी तरह ओपी नैय्यर मानते थे कि गीता की आवाज़ में शहद की मिठास है तो मधुमक्खी के डंक का दर्द भी है।

अविभाजित भारत में हुआ जन्म

गीता घोष रॉयचौधरी से अमीर बंगाली जमींदार परिवार से ताल्लुक रखती थीं। उनका जन्म 23 नवंबर 1930 को फरीदपुर के इडलीपुर गांव में हुआ था। तब वह इलाका अविभाजित भारत का हिस्सा था, लेकिन आजकल बांग्लादेश के शरियतपुर जिले के गोसेरीहाट तहसील का हिस्सा है। गीता घोष रॉय चौधरी अपने माता-पिता की 10 संतानों से एक थीं। 1930 के दशक में परिवार पहले गुवाहाटी और बाद में कलकत्ता में शिफ्ट हो गया। उनके पिता 1942 में मुंबई आ गए और दादर में एक आलीशान घर लेकर रहने लगे। तब गीता 12 साल की थीं और उनका दाखिला दादर के बंगाली हाईस्कूल में करवा दिया गया।

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गायन का शौक बचपन से

कहा जाता है कि गीता रॉय का संगीत की ओर रूझान और गायन का शौक बचपन से था। वह घर में काम करते हुए गुनगुनाती रहती थी। वह पा‌र्श्वगायिका बनना चाहती थी। एक दिन उनके दरवाजे से म्यूज़िक कंपोज़र के हनुमान प्रसाद गुजर रहे थे। उन्होंने गीता राय को कोई गाना गाते हुए सुना। उनकी गायन प्रतिभा उन्हें असाधारण लगी। लिहाज़ा, उनके पिता से गीता को संगीत की तालीम दिलाने की गुजारिश की। पिता के राजी होने पर उन्होंने गीता को अपने संरक्षण में ले लिया। उन्हें गायन में प्रशिक्षित किया और गायन की बारीक़ियां समझाया। उन्होंने ही गीता रॉय को समर्थ गायिका के रूप में तैयार किया और महज 16 साल की उम्र में उन्हें अपनी पौराणिक फिल्म ‘भक्त प्रह्लाद’ (1946) में गाने का अवसर दिया।

मेरा सुंदर सपना टूट गया

हालांकि भक्त प्रह्लाद फिल्म के उस गाने में किशोरी गीता रॉय के हिस्से गाने के लिए सिर्फ़ दो पंक्तियां ही आईं, लेकिन अपनी अलग तरह की आवाज़ में गीता ने उन दो पंक्तियों को ही इस तरह गाया कि सभी लोग सम्मोहित हो गए। कहना न होगा कि उन दो पंक्तियों ने ही गीता रॉय की नियति ही बदल कर रख दी। इसके बाद गीता ने कश्मीर की कली, रसीली, सर्कस किंग (1946) जैसी फिल्मों में गाने गए, लेकिन उनको पहचान मिली फिल्म ‘दो भाई’ में जब एसडी बर्मन ने उनसे ‘मेरा सुंदर सपना टूट गया’ जैसा सोलो गाया गवाया। यह गाना फिल्म से पहले ही सुपरहिट हो गया।

बर्मनदा हुए स्वर से सम्मोहित

वैसे तो गीता को संगीत की तालीम और फिल्म में ब्रेक हनुमान प्रसाद ने दिया, लेकिन एक दिन स्टूडियों में एसडी बर्मन ने सिर्फ़ दो लाइन गाते सुना और उनकी आवाज पर सम्मोहित हो गए। उन्हें गीता दत्त में उभरता हुआ सितारा दिखाई दिया। उन्होंने कहा कि इस लड़की के गले में जादू है और ‘दो भाई’ में गाने की पेशकश की। 1947 में प्रदर्शित ‘दो भाई’ गीता दत्त के अहम फ़िल्म साबित हुई। उनका गाया यह गीत ‘मेरा सुंदर सपना बीत गया’ बहुत लोकप्रिय हुआ। इस गीत की सफलता से गीता दत्त की पहचान बन गई। उसके बाद तो गीता ने पीछे मुड़कर ही नहीं देखा।

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ओपी नैय्यर का मिला साथ

1958 में एसडी बर्मन की पार्श्व गायिका लता मंगेशकर के साथ किसी बात पर विवाद हो गया और उन्होंने फिर से गीता को गायिका के रूप में विकसित करने का प्रयास किया था, क्योंकि बर्मन के अनुसार तब आशा भोंसले अपने स्वर को लेकर अपेक्षाकृत कच्ची थीं। बहरहाल, उस समय गीता ने संगीतकार ओपी नैय्यर के संगीत निर्देशन में भी गाना शुरू किया। नैय्यर ने गायिका के रूप में उनके खिलने में मदद की। उन्होंने हिंदी सिनेमा के लिए कई यादगार गाने गाए और इस दुनिया को रुखसत करने से पहले अपनी आवाज़ में कई यादगार नगमे इस अंदाज़ में गाए कि मौसिकी की दुनिया में अमर हो गईं।

स्टूडियो में गुरु दत्त से मुलाकात

गीता दत्त फिल्म बाजी में गाना गा रही थीं और स्टूडियो में ‘तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना ले’ की रिर्काडिंग हो रही थी। वहीं उनकी मुलाकात प्रतिभाशाली युवा निर्देशक गुरु दत्त से हुई। गीता का गाना सुनकर गुरु दत्त उन पर मोहित हो गए और पहली मुलाकात में ही उनको दिल दे बैठे। पहली नज़र में प्यार होने की बात उन्होंने अपने होंठों तक आने नहीं दिया। मुलाकात का सिलसिला चलता रहा। उनकी दोस्ती इतनी आगे बढ़ती रही। उसी दौरान गीता रॉय ने भी महसूस किया कि वह गुरुदत्त को चाहने लगी हैं। उस समय गुरुदत्त माटुंगा में रहते थे, जबकि गीता दादर में। गीता अपनी कार लेकर उनसे मिलने माटुंगा चली आया करती थीं। घर में बहाना कर देती थीं कि लल्ली यानी ललिता लाज़मी से मिलने जा रही हैं। उनका प्रेम-संबंध 26 मई 1953 को विवाह में तब्दील हो गया।

लता मंगेशकर के समकक्ष

गीता दत्त ने फिल्म जगत में न तो बहुत अधिक वक़्त बिताया और न ही बहुत ज़्यादा गाने गाए। मतलब स्वर सामग्री लता मंगेशकर और आशा भोसले की तुलना में तो उनके गायन का सफर बहुत छोटा रहा। इसके बावजूद इस संक्षिप्त सफर में ही गीता दत्त ने अपनी आवाज़ से संगीत प्रेमियों पर प्रभाव छोड़ा, उसने उन्हें उनके दिलों में अमर बना दिया। कई गानें तो गीता दत्त ने इस तरह गाए कि वह लता के समकक्ष पहुंच गईं और उनको लेजेंड्री सिंगर का तमगा मिल गया। गीता दत्त को आज भी सुनने वाले बड़ी तादात में हैं। सबसे अहम नई पीढ़ी के लोग भी उनके गानें चाव से सुनते हैं। उन्होंने सुधीर दासगुप्ता और अनिल चटर्जी जैसे उल्लेखनीय संगीत निर्देशकों की धुनों पर गाते हुए कई गैर-फिल्मी गाने भी रिकॉर्ड करवाए।

निजी जीवन की टीस स्वर में

गीता दत्त के निजी जीवन में जो टीस थी, जो कसक थी, वही उनकी आवाज़ में दिल को छूने वाला दर्द पैदा करती थी। यह उनकी खूबी थी, चाहे जिस मिज़ाज़ या जिस विधा के गाने रहे हों, जिनको गीता ने गाया वे इस कदर लोकप्रिय हुए कि कई दशक बीतने के बावजूद आज भी नए और रुहानी लगते हैं। गीता दत्त के गानों का क्रेज इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि उनके गाए ज़्यादातर नगमों में वह कशिश है, वह दर्द है, जो उस गाने को बरबस दोबारा सुनने का मन हर संगीतप्रेमी का करता है। सबसे बड़ी बात उनके गानें जितनी बार भी सुनें, हर बार नए लगते हैं। उनके गानों को सुनकर जल्दी मन ही नहीं भरता है।

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गुरु दत्त वहीदा पर फिदा

शुरुआत में गीता दत्त और गुरु दत्त का वैवाहिक जीवन बहुत शानदार रहा और तरुण दत्त, अरुण दत्त और नीना बाद के रूप में तीन संतानें पैदा हुईं। 1957 में गुरु दत्त ने गीता दत्त को बतौर अभिनेत्री लॉन्च करते हुए ‘गौरी’ शुरू की। यह सिनेमास्कोप में भारत की पहली फिल्म थी, लेकिन कुछ रील शूट करने के बाद प्रोजेक्ट को रोक दिया गया। कहा जाता है कि गुरुदत्त अपनी फिल्मों की हिरोइन वहीदा रहमान पर इस तरह फिदा हुए कि ‘गौरी’ को को ठंडे बस्ते में डाल दिया। इसके अलावा अपनी व्यक्तिगत समस्याओं के चलते गीता अपने गायन के लिए पर्याप्त अभ्यास नहीं करती थी। लिहाज़ा, एसडी बर्मन के मानकों पर खरी नहीं उतर सकीं। इस तरह अपनी हरकतों से गुरुदत्त ने भारतीय सिनेमा की एक बेहतरीन गायिका की प्रतिभा को असमय ही नष्ट कर दिया।

किया किस्मत से समझौता

गीता दत्त के पति बनने वाले गुरु दत्त बेशक बेमिसाल क्रिएटिव, अत्यधिक संवेदनशील और एक-एक सीन को समझने वाले जीनियस फिल्मकार थे, लेकिन पति ही नहीं, बल्कि इंसान के रूप में वह उस दर्जे के आसपास भी नहीं पहुंच सके। यही वजह है कि शादी के बाद कुछ साल बाद उनकी धड़कन रही गीता दत्त से उनके मतभेद होने लगे। दरअसल, गुरु दत्त ने उनके काम में दख़ल देना शुरू कर दिया। वह चाहते थे गीता केवल उनकी फ़िल्म में ही गाए। लिहाज़ा, उनके दूसरे बैनर्स के लिए गाना गाने पर रोक लगा दिया। रिकॉर्डिंग स्टूडियो से घर आने का समय मुकर्रर कर दिया। काम में प्रति समर्पित गीता पहले तो इसके लिए राजी नहीं हुईं, लेकिन बाद में किस्मत से समझौता करना ही बेहतर समझा। पारिवारिक जीवन को बेहतर बनाने के लिए उन्होंने गायन को दूसरी वरीयता पर रख दिया। लिहाज़ा, धीरे-धीरे संगीतकारों ने उनसे किनारा करना शुरू कर दिया। इसके बावजूद वह दिल फेंक गुरु दत्त को संभालने में नाकाम रहीं।

शादी बनी गायन-जीवन पर ग्रहण

गुरु दत्त का नाम वहीदा से जुड़ने का सदमा गीता झेल नहीं सकीं और शराब पीने लगी। इस तरह शादी और शराब ने गीता के कैरियर को ग्रहण लगा दिया। उनके विवाहित ज़िंदगी मे दरार आ गई। इस दौरान दोनों बीच तनाव की भी खबरें आती रहीं। वहीदा के साथ गुरु दत्त के रोमांस की ख़बरों को गीता सहन न कर सकीं और उनसे अलग रहने का निर्णय कर लिया। इसके बाद वहीदा ने भी गुरुदत्त से दूरी बना ली। गीता और वहीदा दोनों के जीवन से दूर हो जाने से गुरुदत्त टूट से गए और 1964 में मौत को गले लगा लिया। गुरुदत्त की मौत से गीता दत्त को गहरा सदमा पहुंचा और उसने भी अपने आप को नशे में डुबो दिया और जिसके बाद वे बीमार रहने लगी।

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जब सभी ने मुंह मोड़ लिया

1964 से 1967 के बीच उन्होंने बमुश्किल दो दर्जन गाने गाए होंगे, वह भी लो बजट की फिल्मों के थे। उनको हर किसी ने मुंह मोड़ लिया। उन लोगों ने भी जिनका करियर संवारने में गीता ने मदद की थी। उन संगीतकारों ने भी उनसे नाता तोड़ लिया, जिनके लिए वह गाने गा चुकी थीं। मजबूरी में आजीविका चलाने के लिए उन्हें स्टेज शो और रेडियो जिंग्ल्स करने पड़े। यह उस प्लेबैक सिंगर की दास्तां है, जो कभी हर फिल्मकार और संगीतकार की चहेती हुआ करती थी। अंतिम दिनों में उन्हें बंगाली फिल्म प्यासी का की धुन बनाने को मिला। उन्होंने अपनी ही आवाज़ में एक गाना रिकॉर्ड भी किया। परंतु वह फिल्म ठंडे बस्ते में चली गई।

बंगाली फिल्म ‘बधू बरन’ में अभिनय

तब गीता ने अभिनय क्षेत्र में हाथ आजमाने का फैसला किया। 1967 में उन्हें डीएस प्रोडक्शन की बंगाली फिल्म ‘बधू बरन’ में अभिनय का मौका मिला। उनके साथ अभिनेता प्रदीप कुमार थे। दिलीप नाग निर्देशित इसी फिल्म से राखी का रूपहले परदे पर परिचय हुआ। यह फिल्म कलकत्ता के रूपबनी, भारती और अरुणा सिनेमाहाल में प्रदर्शित भी हुई, लेकिन फिल्म बॉक् ऑफिस पर बहुत सफल नहीं रही और छह-सात हफ्ते ही चल सकी। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी सौमेंदु रॉय की थी। दर्शक इसलिए अपनी मनपसंद गायिका का अभिनय देखने के लिए सिनेमा घर में आए।

प्यार और शराब ने ली जान

सिर्फ़ 42 साल की उम्र जीने वाली गीता दत्त ने अपनी जिंदगी में स्टारडम, शोहरत और अकेलापन सब देखा। कहा जाता है कि वहीदा रहमान के साथ गुरु दत्त के अफेयर की ख़बरों ने गीता दत्त को तोड़ दिया। गुरु दत्त की मौत से वह पूरी तरह टूट गईं। घर चलाने के लिए उनको फिर से काम करना पड़ा। इसके बाद वह भी बहुत अधिक शराब पीने लगीं। 1971 में सिर्फ 42 साल की उम्र में गीता ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

गीता दत्त के यादगार गानें

वक्त ने किया क्या हसीन सितम – यह गीत गीता दत्त के गाए गानों में सबसे ज़्यादा सुने जाने वाले गीतों की फेहरिस्त में है। कैफी आज़मी का लिखा और एसडी बर्मन द्वारा धुन में पिरोया गया यह गाना 1959 में रिलीज फिल्म ‘काग़ज के फूल’ का है। इस फिल्म को वहीदा रहमान और गुरुदत्त पर फिल्माया गया है। इस फिल्म में वहीदा गजब की ख़ूबसूरत दिखती हैं। सीन में यह गाना पार्श्व से उभरता है और बड़ा सुकून भरा लगता है। इसीलिए इस गाने को आज भी वह हर आदमी गुनगुना चाहता है, जिसके ऊपर वक़्त मेहरबान रहा। ख़ासकर वे खुशनसीब लोग जिनको अपने जीवन में प्यार हुआ।

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तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना ले – 1951 में सिनेमाघरों में प्रदर्शित ‘बाजी’ फिल्म में साहिर लुधियानवी के इस गाने की धुन सचिन दा ने बनाई है। यह गाना ब्लैक एंड व्हाइट दौर में फिल्माया गया था। गीता दत्त ने इस गाने को स्वर देकर यादगार बना दिया। देव आनंद और गीता बाली पर फिल्माया यह खूबसूरत गाना उस समय सुपर हिट हुआ था। इसे एक बार सुनने के बाद मन में दोबारा सुनने का खयाल जरूर आता है। गीता दत्त के गानों का क्रेज इसलिए भी ज्यादा है।

ये लो मैं हारी पिया हुई तेरी जीत रे – 1954 में रिलीज सुपरहिट फिल्म ‘आर पार’ का मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा यह रूपहले परदे पर अभिनेत्री श्यामा और गुरुदत्त पर बड़ी ख़ूबसूरती से एक कार में फिल्माया गया है, जहां नायिका नायक का मनाने के लिए यह गाना गाती है। संगीतकार ओपी नैय्यर ने इसकी अविस्मरणीय धुन बनाई है। यह कर्णप्रिय गाना गीता दत्त के सबसे अधिक पसंद किए जाने वाले गानों की फेहरिस्त में आता है।

बाबू जी धीरे चलना– फिल्म ‘आर पार’ का शायर मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा यह गाना ओपी नैय्यर के संगीत निर्देशन में तैयार किया गया। गीता दत्त का गाया यह गाना डांसर शकीला पर फिल्माया गया है, जो शराबखाने में किसी ख़ास ग्राहक को लक्ष्य करके यह गाना गाती है। वहां गुरु दत्त समेत कई लोग बैठे हैं। गीता दत्त के इस गाने में एक स्वैग है। इसीलिए यह गाना अपने समय का ट्रेंड सेटर माना जाता है।

हम आप की आंखों में इस दिल को बसा दें तो – 1957 में रिलीज ‘प्यासा’ फिल्म के साहिर लुधियानवी के इस गाने की धुन सचिन देव बर्मन ने बनाई। इस गीत को गीता दत्त ने मोहम्मद रफ़ी के साथ गाया है। रूपहले परदे पर यह गानान गुर दत्त और माला सिन्हा पर बड़ी खूबसूरती से कल्पनाओं की दुनिया में फिल्माया गया है। यह दृश्य गुरु दत्त के क्रिएटिव दिमाग़ की उपज था, जो हिट हो गया और उस समय फिल्म समीक्षकों द्वारा ख़ूब सराहा गया था।

पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे – 1962 में सिनेमाघरों में लगी सुपरहिट फिल्म ‘साहिब बीबी और गुलाम’ में शकील बदायूंनी के लिखे इस दिलकश गाने को धुन में ढाला है गायक-संगीतकार हेमंत कुमार ने। रुपहले परदे पर इसे बेनजीर अदाकार मीना कुमारी पर फिल्माया गया है, जो श्रृंगार करवाते समय अपने प्रियतम के बारे में सोच रही है और कल्पना लोक में डूबी हुई है। इसमें मीना कुमारी के आत्मिक सौंदर्य का दीदार होता है।

न जाओ सैयां छुड़ा के बैयां – सुपरहिट फिल्म ‘साहिब बीवी और गुलाम’ के इस गाने को भी शकील बदायूंनी और हेमंत कुमार मुखर्जी की जोड़ी ने तैयार किया था। रूपहले परदे पर इस गाने को मीनाकुमार और रहमान पर फिल्माया गया है। नायिका नायक से रुकने का भावनात्मक निवेदन करने वाले इस गाने में गीता दत्त की सुरीली आवाज़ ने चार चांद लगा दिया है।

जाने कहां मेरा जिगर गया रे – 1955 में रिलीज सुपरहिट फिल्म (‘मिस्टर एंड मिसेज 55’ के इस कॉमिक-रोमांटिक गाने को मजरूह सुलतानपुरी और ओपी नय्यर की जोड़ी ने तैयार किया है। इसे गीता दत्त में रफ़ी के साथ गाया है। जॉनी वॉकर की जबरदस्त कॉमिक एक्सप्रेशन्स से सजा यह मस्तीभरा गाना सुनने या देखने वाले को झूमने पर मजबूर कर देता है।

गीता दत्त के कई और गाने बहुत अधिख लोकप्रिय हुए और आज भी उसी अंदाज़ में सुने जाते हैं, उनमें कुछ नीचे दिए गए हैं। घूंघट के पट खोल रहे तोहे पिया मिलेंगे (जोगन), जा जा जा जा बेवफा (आर पार), ठंडी हवा काली घटा आ ही गई झूम के (मिस्टर एंड मिसेज 55), जाता कहां है दीवाने सबकुछ यहां है सनम (सीआईडी), जब बादल लहराया (छू मंतर), आज सजन मोहे अंग लगा लो (‘प्यासा’), जाने क्या तूने कही, जाने क्या मैंने सुनी (प्यासा), काली घटा छाए मोरा जिया तरसाए (सुजाता), नन्ही कली सोने चली (सुजाता), रिमझिम के तराने लेके आई बरसात (काला बाज़ार), मेरा सुंदर सपना बीत गया (दो भाई), कोई चुपके से आके (अनुभव) और मेरी जां मुझे जां न कहो मेरी जां (अनुभव) जैसे गानों ने गीता दत्त के गायन को क्लासिकल बना दिया।

गीता ने हिंदी के अलावा कई बांग्ला फ़िल्मों के लिए भी गाने गाए। बंगला फिल्म के गानों निशि रात बाका चांद (पृथ्वी आमार छाया), तुमी जो आमार (हरनो सुर), दूरे तुमी आज (इंद्राणी), एईसुंदर स्वर्णलिपि संध्या (हॉस्पिटल), ‘आमी सुनचि तुमारी गान’ स्वरलिपि) जैसे गानों को अपना स्वर देकर उन्हें अमर कर दिया और ये गीत श्रोताओं के बीच आज भी लोकप्रिय हैं।

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

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