राम भजन की सीरीज पर काम कर रही हैं पूनम विश्वकर्मा (Poonam Vishwakarma is working on the series of Ram Bhajan)

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हे दुख-भंजन राम प्रभुजी, दशरथ-नंदन राम प्रभु जी.. भजन की हुई रिकॉर्डिंग

वह इतनी बेनज़ीर और बेमिसाल गायिका हैं कि उन्हें सुनकर लगता है, उनके कंठ में साक्षात देवी मां सरस्वती का वास है। वह नैसर्गिक शायरा और गीतकारा तो हैं ही, उनका संपूर्ण मिज़ाज भी बेहद शायराना है। जब वह बोलती हैं तो लगता है कोई शेर पढ़ रही हैं। उन्हें सुनने या पढ़नेवाला कन्फ्यूज़ड हो जाता है कि उन्हें असाधारण गायिका की पदवी से नवाज़े या उन्हें बेहतरीन शायरा या गीतकारा कहे। उनके गायन और उनके लेखन की ख़ासियत यह है कि हर सुनने या पढ़ने वाले को यही लगता है, कि वह उसी के लिए गा रही हैं या उन्होंने अपनी रचना को उसी के लिए सृजित किया है। वस्तुतः उनका जन्म उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में हुआ। लेकिन शिक्षा-दीक्षा उन्हें प्रतापगढ़ में सम्पन्न हुई। उनकी शादी जौनपुर जिले में हुई और कर्मभूमि उन्होंने सपनों की नगरी मुंबई को बनाया। वह बातचीत भी करती है तो ऐसा लगता है दास्तान-ए-मोहब्बत बयां कर रही हैं।

यहां समर्थ शायरा-गीतकारा पूनम विश्वकर्मा (Poonam Vishwakarma) की चर्चा की जा रही है। इस दौर की बेहतरीन कलाकारा पूनम हर विधा में माहिर हैं। चाहे वह ग़ज़ल हो, या कोई प्रेम-गीत, प्रभु का भजन हो या फिर अवधी फिल्मों का गीत, पूनम के स्वर का बस स्पर्श पाकर ही ग़ज़ब का कर्णप्रिय व दिल-ओ-दिमाग़ को बेहद सुकून देने वाला संगीत बन जाता है। बार-बार सुनने का मन करता है। पूनम कहती हैं कि उनके मन में दबी ख़्वाहिशों को पूरा करने का अवसर इस सपनों की माया नगरी मुंबई में मिला। एक बार जब अवसर मिला तो पूनम ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। बस सफलता की सीढ़ियां चढ़ती चली गईं। बतौर गीतकारा उनके गीतों और भजनों को कुमार शानू, अलका याग्निक, उदित नारायण, अनुराधा पौडवाल, श्रेया घोषाल, विनोद राठौड़, अनूप जलोटा, शान और मधुश्री जैसे इस दौर के सर्वश्रेष्ठ गायकों का स्वर मिला है, वहीं बतौर गायिका पूनम ने अनगिनत ग़ज़लें, भजन और अवधी लोकगीत गाए हैं।

पिता डॉ राम जीत विश्वकर्मा पेशे से चिकित्सक और मेडिकल ऑफीसर हैं और मां कुशल गृहणी। पूनम के व्यक्तित्व में दोनों के गुण विद्यमान हैं। डॉक्टर होने के साथ पिता की संगीत में गहरी रुचि थी और वह साहित्यप्रेमी भी थे। आज भी वह खाली समय में संगीत और साहित्य को देते हैं। उनकी वही खूबियां हूबहू पूनम को विरासत मिली। बचपन से ही समय के साथ संगीत और साहित्य में पूनम की रुचि बढ़ती गई। धीरे-धीरे उन्होंने महसूस किया कि उन्हें तो साहित्य और संगीत से बेपनाह मोहब्बत हो गई है। इसके बिना वह रह ही नहीं सकती। पूनम संगीत की सिर्फ श्रोता न रहीं, बल्कि वह गीतों का सृजन भी करने लगी। बस क्या था, गीत लेखन, गायन और संगीत उनके जीवन का अहम और अभिन्न हिस्सा बन गया। शिक्षा के साथ-साथ संगीत शिक्षा भी चलती रही और गुज़रते समय के साथ उत्तर प्रदेश से स्नातक किया और प्रयाग संगीत समिति से प्रभाकर की शिक्षा पूर्ण कर ली।

जैसे ही ग्रैजुवेशन पूरा हुआ माता-पिता ने पूनम के हाथ पीले करने का फ़ैसला किया। इसे संयोग कहें या नसीब, कि जीवनसाथी के रूप में उन्हें बेस्ट-फ्रेंड मिल गया। पति संजीव उनकी कला के बड़े कद्रदान हैं। संजीव ने उनकी संगीत की रुचि को खुद तो स्वीकार किया ही, उन्होंने अपने परिवार के लोगों को भी उनकी कला को स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया। इस तरह संगीत के सफ़र में आगे बढ़ाने में पूनम को बहुत सहूलियत और सुविधा हो गयी। उन्हें संगीत जगत की यात्रा तय करने में जीवनसाथी का बहुत सक्रिय सहयोग मिला। विवाह पश्चात पति के साथ मुंबई आगमन हुआ। मुंबई में अपने गायन को और बेहतर बनाने और सीखने की चाह ने उन्हें गुसाईं घराना जिसे कुँवर श्याम घराना भी कहा जाता है, के क़रीब पहुंचा दिया। गुसाईं घराने के संगीताचार्य पंडित श्यामरंग शुक्ला से मुलाक़ात हुई और उनसे शास्त्रीय संगीत सीखने लगीं। क़ाबिल उस्ताद ने उनके सुरों को सजाया ही नहीं, बल्कि संगीत की बारीक़ियों से अवगत कराया और उन्हें मुक्म्मिल गायिका के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया।

सपनों की नगरी ने पूनम को ख़ुद उनकी दबी हसरतों को मुकम्मिल करने का मौक़ा दिया। यहां पहुंचते ही वह गीत लेखन में इस कदर व्यस्त हो गई जैसे लगा सपनों की नगरी मुंबई उनका ही इंतज़ार कर रही थी। बहरहाल, यहां साहित्य के प्रति उनके अगाध प्रेम ने उन्हें फिल्मों और अलबमों के लिए गीत लिखने को भी प्रेरित किया। इस सफ़र में बतौर गीतकार उन्हें एक से बढ़कर एक समर्थ गायकों और संगीतकारों का साथ मिला। उनके लिखे गीत इतने हिट हुए कि हिंदी भोजपुरी अवधी फ़िल्मों में कई फिल्मों के लिए उन्हें बेस्ट लीरिसिस्ट अवार्ड से भी नवाज़ा गया। अब भी जब पूनम अपने गीतों की रिकॉर्डिग में अपने पसंदीदा गायकों को गाते हुए सुनती हैं तो उन्हें अपना बचपन याद आने लगता है कि इन गायकों को सुनकर ही वह बड़ी हुई हैं और आज धुरंधर गायक उनके गीतों को अपनी आवाज़ दे रहे हैं। ये सुखद अनुभूति उन्हें निहाल कर देती है ।

अपने गायन की चर्चा करते हुए पूनम ने बताया, “मुझे गाते हुए सुन चुके कई मित्रों ने मुझे सलाह दी कि संगीत की तालीम तो आपने ले ही रखी है। अब आप गायन के क्षेत्र में भी उतरिए। इसके बाद लोगों की प्रेरणा व गुरु के आज्ञा व आशीर्वाद से मैंने भी गायन शुरू कर दिया। अलका याग्निक, कुमार शानू, उदित नारायण, अनुराधा पौडवाल, श्रेया घोषाल और शान जैसे गायक मेरे गीतों को गाते समय मुझे प्लेबैक सिंगिंग के टिप्स भी देते रहते हैं और मैं अच्छी शिष्या की तरह उनकी सलाह को सिरोधार्य करती रही। हिंदी भोजपुरी अवधी में मैंने अपनी कलम से जन्मे अनगिनत गीतों को अपनी आवाज़ भी दिया। टी सीरीज, टिप्स और वीनस जैसी म्यूज़िक कंपनी समेत बहुत सारी म्यूज़िक कंपनियों के लिए मैंने बतौर लेखिका गायिका काम किया है जिसमे भजन, ग़ज़ल और लोकगीत शामिल रहे।”

पूनम अब तक अनगिनत स्वरचित ग़ज़लों और भजनों के अलावा सैकड़ों अवधी लोकगीतों को अपना स्वर दे चुकी हैं। उनके सुरीले कंठ से निकले अनगिनत गाने बेहद लोकप्रिय भी हुए हैं। पूनम के गीतों के साथ साथ उनके गाए विश्वकर्मा भजन भी बहुत अधिक लोकप्रिय हुए हैं। उनके द्वारा लिखे गए हुए विश्वकर्मा भजनों ने उन्हें विश्वकर्मा समाज के एक-एक व्यक्ति के हृदय में बसा दिया है। एक-एक घर में स्थापित कर दिया है। दिन प्रतिदिन प्रशंसकों की बढ़ती उम्मीदों ने उन्हें बतौर लेखिका बतौर गायिका और निखारा संवारा और बेहतर कलाकार के रूप में स्थापित किया है।

पूनम विश्वकर्मा कहती हैं, “मेरे विश्वकर्मा भजनों की लोकप्रियता का आलम यह है कि मुझे कार्यक्रमों के प्रस्ताव मुम्बई व भारत के सभी राज्यों से आते रहते हैं पर कोविड के कारण इन कार्यक्रमों को छोड़ना पड़ा था। संगीत महोत्सवों के अलावा कई सामाजिक सांस्कृतिक कार्यक्रमो में मेरा गायन होता है। बतौर गायिका मुझे भजन साम्राज्ञी सम्मान, संगीत गौरव सम्मान, कलाश्री सम्मान और जाने कितनी बार समाज गौरव सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। इन्हीं कार्यक्रमों के दरमियान मुझे महाराष्ट्र, गुजरात, मारवाड़, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के विश्वकर्मावंशियों से सम्मानित होने के साथ उन्हें करीब से जानने का अवसर मिला। इस प्रवास के दौरान ही अनगिनत लोगों और संस्थाओं द्वारा समाजहित में किए गए कार्यों को जानने का व उनके द्वारा निर्मित मंदिरों के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ।”

वह आगे कहती हैं, “मुझे एक ख़ास अनुभूति भी हुई कि इतने बड़े विश्वकर्मा समाज के विश्वकर्मा प्रभु के पांचपुत्र मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी, दैवज्ञ हैं, लेकिन जाने कितने अलग-अलग उपनामों से जाने जाते हैं। लोग इस कदर बंटे हुए हैं कि एक राज्य का विश्वकर्मा दूसरे राज्य के विश्वकर्मा को जानता ही नहीं। मुझे लगता है कि ये पांचों जब उंगलियों की तरह एक होकर मुट्ठी का रूप धारण करेंगे तो हमारा समाज समर्थ हो जाएगा। इससे लोग एक दूसरे से बहुत लाभन्वित होंगे।” इसी विचार के तहत देश के समस्त विश्वकर्मा समाज को एकजुट करने के लिए पूनम ने विश्वकर्मा दर्शन यात्रा कार्यक्रम की शुरुआत की है।

पूनम कहती है, “मैंने मन ही मन प्रभु विश्वकर्मा से प्रार्थना की है कि हे परम पिता अपने पांचों विभाजित पुत्रों को एक करने के मेरे इस संकल्प को पूर्ण करें। मेरा संकल्प आपके ही शरण मे पूरा हो सकता है। यह उसी तरह का प्रयास है, जैसे अपना-घर होते हुए भी सभी पुत्रों के लिए पिता का घर वटवृक्ष के समान होता है। उसी तरह सभी विश्वकर्मावंशी जब एक होंगे तो सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वहन अच्छी तरह से कर पाएंगे। उससे समाज का उत्थान होगा। इसीलिए इन्हें जोड़ने के भाव से ही दर्शन यात्रा का ख़याल मन में आया और अब इन पांचों पुत्रों द्वारा निर्मित मंदिरों के माध्यम से इन्हें जोड़ने की यात्रा मैँ शुरू कर चुकी हूं क्योंकि मैँ कलाकारा हूं तो इन्हें जोड़ने का माध्यम मेरा गीत संगीत ही है।”

पूनम जानती हैं कि इतने बड़े समाज को एक मंच पर एक जगह लाना संभव नही है। इसीलिए वह आधुनिक तकनीक एवं सोशल मीडिया का सहारा ले रही हैं, क्योंकि आज के ज़माने में सोशल मीडिया पर एक ही समय में लाखों-करोड़ों लोग जुड़ सकते हैं। इसलिए प्रत्येक अमावस्या को भगवान विश्वकर्मा के मंदिर का दर्शन यात्रा को वह अपने फेसबुक पेज से लाइव करती हैं जिसमें हज़ारों लाखों विश्वकर्मा बंधु एकसाथ एक मंच पर आते हैं। पूनम कहती है, “अभी इसकी शुरुआत मात्र है मेरा आप सभी लोगों से निवेदन है कि इस अभियान का हिस्सा बनें और मंदिरों के माध्यम से समाज को जोड़ने के इस संकल्प को पूरा करें।”

अवधी भाषा में मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्री राम पर लिखे और गाए अपने नवीनतम भजन हे दुख-भंजन राम प्रभुजी, दशरथ-नंदन राम प्रभु जी.. की चर्चा करते हुए पूनम कहती हैं कि यह भजन मेरे यूट्यूब चै है। पोस्ट रिकॉर्डिंग का कार्य चल रहा है। उन्होंने उम्मीद जताई कि शीघ्र ही यह कर्णप्रिय भजन भगवान राम के अनन्य भक्तों को सुनने को मिलेगा। पूनम इन दिनों भगवान श्री राम के भजनों की श्रृंखला पर काम कर रही हैं। इन भजनों को उन्होंने खुद लिखा और स्वर दिया है।

लेख – हरिगोविंद विश्वकर्मा

 

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