द मोस्ट वॉन्टेड डॉन – एपिसोड – 22 – गिरफ्तारी से कुछ मिनट पहले दाऊद का डोंगरी से दुबई पलायन

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हरिगोविंद विश्वकर्मा

टेबल पर पड़ी एशट्रे में रखी महंगे ब्रांड की सिगरेट के जलते हिस्से से धुंआ लगातार निकल रहा था। सिगरेट की तीक्ष्ण गंध सहज महसूस की जा सकती थी। कमरे का एसी भी चल रहा था। कमरे में सब कुछ सलीके से था। बस वहां धूसर सन्नाटा पसरा था। यह दाऊद इब्राहिम का दफ़्तर-ए-ख़ास था। जो चाल मुसाफ़िर खाना की पहली मंज़िल पर था। साफ़ लगा, डॉन अभी चंद मिनट पहले तक यहीं पर था। दरअसल, मुंबई पुलिस में मौजूद दाऊद के ख़ास सूत्रों ने उसे सूचित कर दिया कि क्राइम ब्रांच उसके यहां रेड करने वाली है। इसके बाद वह नौ दो ग्यारह हो गया। पुलिस को दाऊद अपने अड्डे पर नहीं मिला। पूरे मुसाफ़िर खाना की सघन तलाशी ली गई लेकिन दाऊद कहीं नहीं मिला। दाऊद वहां था ही नहीं तो मिलता कैसे। वैसे रात भर दाउद के संभावित ठिकानों पर छापेमारी होती रही लेकिन डॉन का कुछ अता-पता नहीं चला।

दरअसल, मुंबई पुलिस पर शुरू से दाऊद को लेकर बहुत नरम रवैया अपनाने और डॉन को सूचनाएं लीक करने के गंभीर आरोप लगते रहे हैं। यह सही भी था। 1981 से 85 के बीच दक्षिण मुंबई के क़रीब-क़रीब सभी पुलिस थानों के लिए दाऊद जाना पहचाना नाम बन चुका था। वह मुंबई पुलिस का ब्लूआई परसन होने के कारण ही पठानों को कुचलने में कामयाब ही नहीं हुआ बल्कि मुंबई अंडरवर्ल्ड का शहंशाह यानी डॉन बन गया। इस दौरान वह समद ख़ान की हत्या समेत दो मर्डर केसेज़ में बतौर आरोपी पुलिस की गिरफ़्त में आया भी लेकिन मई 1984 में जब पीरज़ादा नवाब ख़ान मर्डर केस में उसे अंतरिम ज़मानत मिली तो वह फ़रार हो गया और अंडरग्राउंड ही रहा।

इस बीच उसके शार्प शूटर सुहैल ख़ान ने समद ख़ान के पिता और करीम लाला के छोटे भाई रहीम लाला की हत्या कर दी। उस हत्याकांड में भी दाऊद का नाम आया। नतीजतन, पुलिस रहीम मर्डर केस में भी उसकी तलाश कर रही थी। कहा जाता है, मुंबई पुलिस के कई अफसरों हमेशा को पता रहता था कि दाऊद कहां है। इसके बावजूद डॉन को गिरफ़्तार नहीं किया गया। जब-जब उसे पकड़ने की योजना बनी, तब-तब सूचना पहले उस तक पहुंचा दी गई। लिहाज़ा हर बार वह बच निकलता रहा। दरअसल, उसका नेटवर्क पुलिस में कई लेयर पर था। हर सूचना आला पुलिस अफ़सरों से पहले उस तक पहुंच जाती थी। यह भी आरोप लगते रहे हैं कि कई नामचीन एन्काऊंटर स्पेशलिस्ट केवल दाऊद की टिप्स पर ही अपराधियों को पकड़ते है या मारते हैं।

बहरहाल, भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी जुलियो रिबेरो के बाद मुंबई पुलिस कमिश्नर का पद ग्रहण करने वाले डीएस सोमण ने पुलिस में दाऊद के कनेक्शन ख़त्म करने और उसे पकड़कर डी-कंपनी का साम्राज्य ध्वस्त करने का फ़ैसला किया। अपराधियों के सफ़ाए के लिए उन्होंने जांबाज़ अफ़सर मधुकर झेंडे को पूरी छूट दी। जहां करीम लाला और हाजी मस्तान जैसे बड़े डॉन क़ानून के साथ सहयोग कर रहे थे, वहीं दाऊद पुलिस और अदालत दोनों को ठेंगा दिखा रहा था। ज़मानत रद होने पर भी उसने ख़ुद को क़ानून के हवाले नहीं किया।

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ऐसे में लाइलाज़ हो चुके डॉन दाऊद का तत्कालीन पुलिस कमिश्नर सोमण ने स्थाई इलाज़ करने का फ़ैसला किया। उसे पकड़ने के लिए एक स्पेशल टीम बनाई। उस टीम को बता दिया गया कि अगर दाऊद गिरफ़्तारी का विरोध करे तो बेख़ौफ़ होकर बल प्रयोग किया जाए। यानी डॉन अगर एनकाउंटर में मारा जाता तो पुलिस उसके लिए भी पूरी तरह तैयार थी। दाऊद के ख़िलाफ़ कार्रवाई को बहुत गोपनीय रखा गया। जानकारी बहुत सीमित लोगों को ही थी। 1986 को अचानक देर रात दाऊद के अपने मुसाफ़िर खाना ऑफ़िस में होने की पक्की ख़बर मिली।

पुलिस की टीम फौरन रवाना हो गई। लेकिन पांच मिनट पहले दाऊद वहां से भी निकल चुका था। जब कमिश्नर को बताया गया कि दाऊद फ़रार हो गया और अब आसपास भी नहीं मिल रहा है तो सोमण स्तंभित रह गए। उनकी समझ में ही नहीं आया कि इतनी गोपनीय सूचना दाऊद तक कैसे पहुंची। वह ख़ासे नाराज़ हुए। उन्होंने केवल चार बहुत भरोसेमंद पुलिसवालों की टीम बनाई थी। ऑपरेशन की जानकारी केवल उन्हीं अफ़सरों को थी। बहरहाल, दूसरे दिन ख़ुफ़िया ख़बर आई कि दाऊद ने मुंबई ही नहीं, देश भी छोड़ दिया है। डॉन अब दुबई पहुंच चुका है। यह मुंबई पुलिस के लिए संभवतः बहुत बुरी ख़बर थी।

पुलिस कमिश्नर ने अपनी केबिन में आपात बैठक बुलाई। सीधे स्पेशल टीम से सवाल किया, “इतनी पक्की इन्फ़ॉर्मेशन के बावजूद हम दाऊद को पकड़ नहीं पाए। क्यों? क्या पुलिस के बहुत भरोसेमंद लोग दाऊद के हमदर्द या मोल हैं? या मुंबई पुलिस फ़ोर्स में हर लेवल पर उसके जासूस मौजूद हैं?”

पुलिस टीम के पास अपने कप्तान के सवाल का कोई जवाब नहीं था। स्पेशल टीम का हिस्सा रहे विनोद भट्ट ने कहा, “सर हम लोग जब मुसाफ़िर खाना पहुंचे, उससे दस मिनट पहले उसे हमारे प्लान की जानकारी मिली और वह तत्काल फ़रार हो गया। मुसाफ़िर खाना से वह सीधे सांताक्रुज़ एयरपोर्ट गया और वहां से दिल्ली पहुंच गया। दिल्ली एयरपोर्ट पर खाड़ी देश जाने वाली फ़्लाइट पकड़कर वह दुबई की धरती पर उतर गया।”

स्पेशल टीम के मुखिया ने दावा किया कि उनकी टीम के किसी सदस्य से यह सूचना लीक नहीं हुई, “दाऊद को एनी अदर चैनल से इन्फॉर्मेशन मिली सर!”

“वॉट डू यू मीन बाई एनी अदर चैनल?” कमिश्नर ने सवाल किया। वह सोचने लगे, अगर पुलिस से सूचना लीक नहीं हुई, तब कहां से हुई?

फौरन उनका ध्यान गृह मंत्रालय की ओर गया, क्योंकि दाऊद के ख़िलाफ़ संभावित कार्रवाई की जानकारी गृह मंत्रालय के कुछ लोगों के पास भेजी गई थी, जिनमें कई बड़े नेता और शीर्ष नौकरशाह भी थे। तो क्या दाऊद के तार मंत्रालय तक जुड़े थे। इसकी पूरी संभावना थी कि ऑपरेशन के बारे में दाऊद को पॉलिटिकल चैनल से आगाह किया गया। दाऊद पुलिस को छका रहा था।

हताश सोमण ने व्यंग्यात्मक लहज़े में पूछा, “दाऊद का ज़ब्त पॉसपोर्ट पुलिस के पास सुरक्षित है, या पुलिस से अधिक स्मार्ट डॉन उसे भी अपने साथ ले गया।”

इस पर सोमण को बताया गया, ‘नहीं, दाऊद का पॉसपोर्ट मुंबई पुलिस के पास सेफ़ है। राजा तंबत के लॉकर में जस का तस रखा हुआ है।’ दरअसल, कुछ महीने पहले अंतरराष्ट्रीय अपराधी चार्ल्स शोभराज को ट्रैप करने वाले सोमण दाऊद के भागने की ख़बर पचा नहीं पा रहे थे। उनके ही निर्देश पर मधुकर झेंडे ने 10 अप्रैल 1986 को शोभराज को गोवा से गिरफ़्तार किया था।

असली पॉसपोर्ट पुलिस के लॉकर में होने के बावजूद दाऊद के भागने में सफल रहने का मतलब हुआ, डॉन फ़र्ज़ी पॉसपोर्ट की सहायता से दुबई गया। पठान गिरोह को कंट्रोल करने के लिए जिस दाऊद को मुंबई पुलिस ने खड़ा किया वह दाऊद अब मुंबई पुलिस से भी बड़ा हो गया। इतना बड़ा कि दुनिया की सबसे स्मार्ट मानी जानी वाली पुलिस असहाय थी। इस तरह मेहज़बीन से निकाह करने के दो हफ़्ते बाद दाऊद देश छोड़कर दुबई चला गया।

(The Most Wanted Don अगले भाग में जारी…)

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