गायक किशोर कुमार के जन्मदिन पर विशेष…
मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू…., मेरे महबूब कयामत होगी…, और मेरे सामने वाली खिड़की में… जैसे लोकप्रिय गीतों के लिए गायक किशोर कुमार हिंदी फिल्म-जगत के एक ऐसी धरोहर हैं, जिसे बनाने-संवारने में इंसान ही नहीं क़ुदरत को भी सदियों का समय लग जाता है। अपने गानों के माध्यम से संगीत के कद्रदानों को चीयरफुल, रोमांटिक एवं इमोशनल जर्नी पर ले जाने वाले किशोर सही मायने में हरफनमौला कलाकार थे। फ़िल्म की हर विधा में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले किशोर की डॉमिनेटिंग आवाज़ में वीररस जैसी बुलंदी थी तो, ग़म के मारों के लिए करुण रस भी बेशुमार था। यही वजह है कि मस्ती भरा ख़ुशरंग माहौल हो या फिर ग़मगीन तन्हाई, दोनों में उनके गाने हमारे हमसफ़र बनते हैं।
सत्तर-अस्सी का दशक हो या फिर आज का दौर, उनके गाए गाने हर समय के संगीतप्रेमियों की ज़बान पर रहते हैं। यह भी ख़ूबसूरत संयोग है कि किशोर ने जिन अभिनेताओं को अपने स्वर दिए, वे सुपरस्टार हो गए और रूपहले परदे पर उनका अभिनय अमर हो गया। किशोर की ख़ासियत यह थी कि उन्होंने देव आनंद की मोहक दंतहीन मुस्कान, राजेश खन्ना की आखें बंद करने वाली ख़ास अदा और अमिताभ बच्चन की एंग्री यंगमैन की इमैज के लिए अपनी आवाज़ दी और इन सभी अभिनेताओं पर उनकी आवाज़ ऐसी रची बसी मानो किशोर ख़ुद उनके अंदर मौजूद हों। इसीलिए कहा जाता है कि उनके जैसे ऑलराउंडर फ़नकार हमेशा पैदा नहीं हुआ करते हैं।
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दरअसल, किशोर कुमार के बड़े भाई अशोक कुमार गायक और ख़ुद किशोर अभिनेता बनने के लिए खंडवा से बंबई आए थे। दोनों भाइयों में गायन के साथ-साथ अभिनय की असाधारण प्रतिभा थी। यह संयोग देखिए कि हुआ इसके एकदम उल्टा। किशोर महान गायक बने और अशोक महान अभिनेता। किशोर कालजयी गायक कुंदनलाल सहगल के बहुत बड़े प्रशंसक थे, इसलिए शुरुआत में उनकी ही शैली में गाते और अभिनय करते थे। इससे शुरुआती सफलता के बावजूद उन्हें न तो पहचान मिली और न कोई ख़ास काम मिला। लिहाजा, सिनेमा जगत में किशोर का संघर्ष चलता रहा जबकि उनके भाई अशोक कुमार बतौर अभिनेता स्थापित हो गए। दरअसल, वह भारतीय सिनेमा का स्वर्णिम दौर था। उस दौर में गुरु दत्त, दिलीप कुमार, राज कपूर, देव आनंद, बलराज साहनी और रहमान जैसे समर्थ अभिनेताओं के साथ संगीत में मोहम्मद रफ़ी, मुकेश, तलत महमूद और मन्ना डे जैसे दिग्गज गायकों का बोलबाला था।
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फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत किशोर कुमार ने बतौर अभिनेता फ़िल्म ‘शिकारी’ से की थी। 1946 में शुरू हुई और दो साल बाद 1948 में रिलीज़ बॉम्बे टॉकीज़ की फ़िल्म ‘ज़िद्दी’ में किशोर ने 19 साल की उम्र में संगीतकार खेमचंद प्रकाश की धुन पर देव आनंद के लिए मरने की दुआ क्यों मांगू गाया था। फ़िल्म में अशोक कुमार लीड रोल में थे। फ़िल्म की सफलता के बावजूद 1950 तक किशोर को ज़्यादा कुछ नहीं हासिल हुआ। लिहाज़ा, वह 1950 में काम मांगने दादा यानी सचिनदेव बर्मन के पास गए। दादा ने ‘प्यार’ में गाने का मौक़ा दिया था। इसके बाद सचिनदा ने ‘बहार’ फ़िल्म का एक गाना गाने का भी अवसर दिया और गाना बहुत हिट हुआ। किशोर ने 1951 में फणी मजुमदार की फ़िल्म ‘आंदोलन’ में नायक का किरदार निभाया मगर फ़िल्म फ़्लॉप हो गई।
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शुरुआती वर्षों में संघर्ष के बाद अंततः संगीत निर्देशक सलिल चौधरी किशोर कुमार की आवाज़ में रिदम देखने में सफल रहे। 1954 में बिमल राय की ‘नौकरी’ में किशोर ने बेरोज़गार युवक की संवेदनशील भूमिका निभाकर अपनी असाधारण अभिनय प्रतिभा से भी परिचित किया। फ़िल्म में गीतकार शैलेंद्र के गीत को हेमंत कुमार और शैला बेले के साथ किशोर ने भी अपनी आवाज़ दी थी। छोटा सा घर होगा गाना किशोर का पहला सफल गीत था। 1955 में ‘बाप रे बाप’, 1956 में ‘नई दिल्ली’, 1957 में ‘मिस मेरी’ और ‘आशा’ और 1958 में ‘चलती का नाम गाड़ी’ में किशोर ने अपने दोनों भाइयों अशोक और अनूप के साथ काम किया। फिल्म में अभिनेत्री थीं हुस्न की मलिका मधुबाला। यह भी मज़ेदार कहानी है कि फ़िल्म ‘रागिनी’ एवं ‘शरारत’ में किशोर को मोहम्मद रफ़ी ने अपनी आवाज़ उधार दी तो मेहनताना सिर्फ़ एक रुपया लिया था।
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शुरू में किशोर कुमार को सचिनदा ही नहीं, बल्कि अन्य संगीतकारों ने भी अधिक गंभीरता से नहीं लिया और उनसे हल्के स्तर के गीत गवाए गए, लेकिन 1957 में ‘फंटूस’ में दुखी मन मेरे से ऐसी धाक जमाई कि तब संगीतकारों को उनकी गायन प्रतिभा का लोहा मानना पड़ा। इसके बाद दादा ने किशोर को और मौके दिए। उनके संगीत निर्देशन में किशोर ने ‘मुनीम जी’, ‘टैक्सी ड्राइवर’, ‘नौ दो ग्यारह’, ‘पेइंग गेस्ट’, ‘गाइड’, ‘ज्वेल थीफ़’, ‘प्रेम पुजारी’ और ‘तेरे मेरे सपने’ जैसी फ़िल्मों में अपनी जादुई आवाज़ से संगीतप्रेमियों को दीवाना बना दिया। ‘पड़ोसन’ में उन्होंने जिस मस्त मौला आदमी के किरदार को निभाया, कहते हैं वही किरदार वह ताउम्र अपनी असली ज़िंदगी में निभाते रहे। मधुबाला ने उनके साथ 1958 में रिलीज ‘चलती का नाम गाड़ी’ सहित कई फिल्मों में काम किया था। 1961 में बनी फ़िल्म ‘झुमरू’ में दोनों साथ काम किया था। यह फ़िल्म किशोर ने ही बनाई और निर्देशन किया था। 1962 में ‘हाफ टिकट’ में भी दोनों ने साथ काम किया। यह फ़िल्म किशोर की यादगार कॉमेडी के लिए भी जानी जाती है।
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राहुल देव बर्मन उर्फ पंचमदा और किशोर कुमार में अच्छी दोस्ती थी। 1969 में शक्ति सामंत ‘आराधना’ बना रहे थे। संगीत का दायित्व सचिन देव बर्मन को दिया था। परंतु सचिन दादा अचानक बीमार पड़ गए और उन्होने अपने पुत्र पंचमदा से गाने रिकार्ड करने को कहा। मेरे सपनों की रानी समेत सभी गाने मोहम्मद रफी गाने वाले थे, लेकिन उस समय वह हज करने गए थे। ऐसे में पंचमदा को मित्र किशोर से गवाने का अवसर मिल गया। फ़िल्म के दो गाने रूप तेरा मस्ताना और मेरे सपनों की रानी गाने बहुत लोकप्रिय हुए और राजेश खन्ना की लोकप्रियता आसमां छूने लगी। साथ ही बतौर गायक किशोर कुमार संगीतकारों की पहली पसंद बन गए।
किशोर कुमार सेल्फमेड टैलेंट थे और संगीत या अभिनय में उन्होंने बिना किसी प्रशिक्षण या तालीम के असाधारण सफलता हासिल की। अपने बॉलीवुड के चार दशक के अधिक के सफर में, उन्होंने ने 86 फिल्मों को अपने अभिनय से सजाया और 1,188 फिल्मों में गाने को अपनी आवाज़ दी। उन्होंने 18 फ़िल्मों का निर्देशन भी किया। बहुमुखी फिल्मकार किशोर की बेजोड़ गायन प्रतिभा किंवदंती है। उनकी अदाकारी के बारे लोग वास्तव में बहुत कम बहुत कम बात करते हैं। वह बहुत अच्छे फ़िल्म निर्माता, संगीतकार, गीतकार, निर्माता और स्क्रीन लेखक भी थे। उनके प्रशंसकों सहित हिंदी फ़िल्म उद्योग में हर कोई उन्हें किशोर के रूप में जानता है, लेकिन उनका असली नाम आभास कुमार गांगुली था।
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किशोर कुमार ने हिंदी के अलावा भोजपुरी, बंगाली, मराठी, गुजराती, असमी, तमिल, कन्नड़, मलयालम, उड़िया और उर्दू सहित कई भारतीय भाषाओं में गाया। उन्होंने बेस्ट सिंगर का 8 फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीतकर बतौर सिंगर सबसे ज्यादा फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीतने का रिकॉर्ड बनाया। उन्हें पहला फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार 1969 में ‘आराधना’ के गीत रूप तेरा मस्ताना प्यार मेरा दीवाना के लिए मिला। 1975 में फिल्म ‘अमानुष’ के दिल ऐसा किसी ने मेरा, 1978 में ‘डॉन’ के खइके पान बना रसवाला, 1980 में ‘थोड़ी सी बेवफाई’ के हज़ार राहें मुड़के देखें, 1982 में ‘नमक हलाल’ के पग धूंधरू बांध के मीरा नाची थी, 1983 में ‘अगर तुम ना होते’ के हमें और जीने की चाहत न होती अगर तुम न होते, 1984 में ‘शराबी’ के मंज़िलें अपनी जगह और 1985 में ‘सागर’ के गाना सागर किनारे के लिए भी उन्हें फिल्मफेयर अवार्ड से नवाजा गया। उन्हें मध्य प्रदेश सरकार ने लता मंगेशकर पुरस्कार दिया। मध्य प्रदेश सरकार ने हिंदी सिनेमा में योगदान के लिए किशोर कुमार पुरस्कार शुरू किया है।
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मध्य प्रदेश के खंडवा शहर में 4 अगस्त 1929 को जाने माने वकील कुंजीलाल गांगुली के यहां जन्मे, हिंदी फ़िल्म उद्योग के इस दिग्गज स्टार के गायन और अभिनय में सहगल की झलक मिलती थी। वह अपने चार भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर थे। अशोक कुमार गांगुली सबसे बड़े थे। इकलौती बहन सती देवी थीं। इंदौर के क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़ने वाले किशोर की कॉलेज कैंटीन से उधार लेकर खुद खाने और दोस्तों को भी खिलाने आदत थी। वह ऐसा दौर था जब 10-20 पैसे की उधारी भी बहुत मायने रखती थी। किशोर पर जब कैंटीन वाले के पांच रुपए बारह आना उधार हो गया। तब कैंटीन मालिक जब उनसे पैसे चुकाने को कहता तो वह कैंटीन में टेबल पर गिलास और चम्मच बजा बजाकर पांच रुपया बारह आना गा-गाकर कई धुन निकालते थे और कैंटीन वाले की बात अनसुनी कर देते थे। बाद में उन्होंने अपने एक गीत में इस पांच रुपया बारह आना का बहुत ही ख़ूबसूरती से इस्तेमाल किया। शायद बहुत कम लोगों को पांच रुपया बारह आना वाले गीत की यह असली कहानी मालूम होगी।
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अपने जीवन के हर क्षण किशोर खंडवा को याद करते थे। जब भी किसी पब्लिक मंच पर या फंक्शन में गाना गाते थे, तो शान से कहते थे किशोर कुमार खंडवे वाले। जन्मभूमि और मातृभूमि के प्रति ऐसा ज़ज़्बा बहुत कम लोगों में दिखाई देता है। 1975 में इमरजेंसी के विरोध में किशोर ने सरकारी समारोह में गाने से मना कर दिया, तो सूचना एवं प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ला ने आकाशवाणी से उनके गीतों के प्रसारण पर ही रोक लगा दिया था। उस समय उनके घर इनकम टेक्स का रेड पड़ा था। उन्होंने इमरजेंसी का समर्थन नहीं किया। लिहाज़ा, उनकी बनाई कई फ़िल्में आयकर विभाग ने ज़ब्त कर ली थीं, जिनमें कई अब तक अदृश्य भी हैं।
किशोर कुमार ने चार बार शादी की। उकी पहली पत्नी बंगाली गायिका-अदाकारा रूमा गुहा ठाकुरता उर्फ रोमा घोष थीं। उनसे किशोर ने 1950 में शादी की। शादी के कुछ साल बाद उनका रूमा से रिश्ता तल्ख़ हो गया। इसी दौरान वह मशहूर सिने-तारिका मधुबाला के इश्क़ में दीवाने हो गए। जब मधुबाला के इश्क़ में गिरफ़्त हुए तब शादीशुदा थे। दरअसल, मधुबाला दिलीप कुमार के साथ लंबे समय तक रिलेशनशिप में रहीं। कहा जाता है कि दिलीप कुमार ने उनका दिल तोड़ दिया था, जिससे वह उबरने की कोशिश कर रही थीं। प्यार में चोट खाईं मधुबाला को ऐसे पुरुष की तलाश थी जो उन्हें टूटकर चाहे, उनसे प्यार करे, उनकी परवाह करे। किशोर उस वक्त मधुबाला के साथ फ़िल्मों में काम कर रहे हैं। एक दिन किशोर कुमार ने उन्हें प्रपोज़ किया। बस क्या था मधुबाला उनकी दूसरी पत्नी बनने के लिए तैयार हो गईं।
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कुछ लोग कहते हैं कि किशोर कुमार और मधुबाला ने बिना सोचे समझे 1960 में शादी कर ली थी। किशोर शादी करने की जल्दी में थे, परंतु रूमा से उनका तलाक लंबा खिंच रहा था। यह भी कहा जाता है कि इसीलिए 1960 में उन्होंने इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लिया और अपना नाम बदल कर करीम अब्दुल कर लिया। हालांकि उन्होंने नमाज़ या रोज़ा जैसी इस्लामिक परपरा का निर्वहन कभी नहीं किया। इस्लाम धर्म कबूल करने के बाद उन्होंने मधुबाला से शादी कर ली। हालांकि उनके माता-पिता इस शादी के बहुत अधिक ख़िलाफ़ थे और शादी में आने से ही इनकार कर दिया। शादी से पहले भी किशोर को मधुबाला की बीमारी का पता था लेकिन वह इतनी गंभीर होगी, यह नहीं जानते थे। 27 साल की मधुबाला के दिल में छेद पाया गया था। मधुबाला को इलाज के लिए किशोर लंदन ले गए, जहां डॉक्टरों ने जवाब देते हुए कहा कि अब मधुबाला ज़्यादा से ज्यादा एक से दो साल ही जी पाएंगी।
बहरहाल शादी के बाद किशोर कुमार के घर में तनाव पैदा हो गया, जिसके चलते मधुबाला शादी के महीने भर के भीतर बांद्रा में अपने बंगले में वापस चली गईं। कहा जाता है कि किशोर ने अंतिम समय में मधुबाला को तन्हा छोड़ दिया था, लेकिन यह बात पूरी तरह सही नहीं है। दरअसल, शादी के तुरंत बाद किशोर मधुबाला को लेकर लंदन उस डॉक्टर के पास गए थे, जो मधुबाला का इलाज कर रहा था। डॉक्टर ने बताया कि मधुबाला दो साल से ज़्यादा नहीं जी पाएंगी। हालांकि मधुबाला दो साल नहीं, बल्कि नौ साल तक जीवित रहीं लेकिन जीवन के आख़िरी नौ साल उन्होंने बेहद एकाकी में गुज़ारे। लंदन के डॉक्टर ने यह भी कहा था, कि इन्हें किसी तरह का तनाव नहीं होना चाहिए। यह रोए भी न। किशोर इससे टूट से गए थे, क्योंकि वह मधुबाला से बहुत प्यार करते थे। जब वह बीमार मधुबाला से मिलने जाते तो वह उनसे मिलकर बहुत रोती थीं। दरअसल, मधुबाला जीना चाहती थीं, लेकिन यह उनके हाथ में ही नहीं था। रोने से मधुबाला की तबियत और ख़राब हो जाया करती थी। इसलिए किशोर महीने-दो महीने में ही उनसे मिलने जाते थे। हालांकि वह मधुबाला के इलाज का पूरा का पूरा ख़र्च ख़ुद वहन कर रहे थे। दरअसल, वह बिना मधुबाला के जीने के लिए अपने आपको मज़बूत कर रहे थे। वह चाहते थे कि मधुबाला उन्हें बेवफ़ा समझ लें और शांतिपूर्वक इस दुनिया से प्रस्थान करें। 23 फरवरी 1969 को मधुबाला की मौत हो गई और किशोर की ज़िंदगी में फिर से तन्हाई पसर गई।
मधुबाला के निधन के बाद आठ साल तक किशोर कुमार अकेले ही रहे। 1976 में उन्होंने तीसरी शादी अभिनेत्री योगिता बाली से की। यहां भी उनका दिल बुरी तरह टूटा, क्योंकि योगिता का दिल अचानक से तब के डिस्को डांसर मिथुन चक्रवर्ती पर आ गया था। लिहाज़ा, किशोर-योगिता से संबंध ख़राब हो गए और दो साल के भीतर उनकी शादी टूट गई। योगिता ने किशोर से तलाक़ लेकर मिथुन से शादी कर ली। दो साल तक किशोर कुमार तन्हा ही रहे। उनके साथ उनका रूमा से पैदा हुआ उनका बेटा अमित कुमार था। 51 वर्ष की उम्र में किशोर ने चौथी शादी 30 वर्षीय ख़ूबसूरत अदाकारा लीना चंद्रावरकर की। लीना उनकी चौथी बीवी हैं, जिनसे उन्होंने 1980 में शादी की। तब लीना उम्र में किशोर के बेटे अमित कुमार से महज़ दो साल बड़ी थीं। बहरहाल, लीना से उनको दूसरा बेटा सुमित कुमार पैदा हुआ।
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मनोज कुमार किशोर कुमार को लेकर एक यादगार किस्सा सुनाते हैं, “1966 में मैं ‘उपकार’ का कसमे वादे प्यार वफ़ा… गाना किशोरदा से गवाना चाहता था, लेकिन उन्होंने कहा कि केवल हीरो के लिए ही गाना गाते हैं, लिहाज़ा, विलेन पर फ़िल्माया जाने वाला गाना नहीं गा सकते। तब गाना मन्ना डे ने गाया। गाना हिट होने पर किशोर आए और कहा कि उन्होंने अच्छे गाने का मौका गंवा दिया। लेकिन उन्होंने यह स्वीकार भी किया कि मन्ना डे की तरह वह कई जन्म तक नहीं गा सकेंगे। वह उस गीत को गाते तो लोग इतने अच्छे गीत में मन्ना डे की खूबसूरत आवाज में सुनने से वंचित रह जाते।”
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किशोर कुमार ने 1988 में संगीतकार बप्पी लहरी की धुन पर फिल्म वक्त की आवाज़ में अपना अंतिम गाना गुरु-गुरु आशा भोसले के साथ मिथुन चक्रवर्ती के लिए गाया। किशोर ने वर्ष 1987 में फैसला किया कि फिल्म से सन्यास लेकर वह खंडवा लौट जाएंगे। वह कहा करते थे, ‘दूध जलेबी खाएंगे खंडवा में बस जाएंगे’। लेकिन उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका। 18 अक्टूबर, 1987 को उन्हें दिल का दौरा पड़ा और 58 साल की उम्र में वह ज़िंदगी के आख़िरी सफर पर निकल पड़े और दुनिया को अलविदा कह दिया था। हालांकि उनका अंतिम संस्कार मातृभूमि खंडवा में किया गया, जहां उनका मन बसता था। किशोर की सहगायिका आशा भोसले ने एक इंटरव्यू में कहा था, “किशोर कुमार एक तरह का था। उसने हर किसी को अपनी मज़ेदार आवाज के साथ घुमाया और यहां तक कि उसके चारों ओर हर किसी को हमेशा खुश कर दिया।”
लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा
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