सूरमा भोपाली के रूप में सदैव जिंदा रहेंगे जगदीप

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हास्य अभिनय में नई-नई इबारतें लिखकर भारतीय सिनेमा प्रेमियों को बरबस हंसाने वाले सहाबहार अभिनेता जगदीप ने इस नश्वर शरीर को भले अलविदा कह दिया हो, लेकिन भारतीय सिनेमा इतिहास की सबसे सफल फिल्म ‘शोले’ में निभाए गए सूरमा भोपाली के किरदार के रूप में वह सिनेमा प्रेमियों के मानस-पटल पर सदैव जीवित रहेंगे और उसी अंदाज़ में हंसाते रहेंगे।

बॉलीवुड​ के सबसे बेहतरीन कॉमेडी कलाकारों में गिने जाने वाले जगदीप की कॉमेडी के आज भी लोग कायल हैं। उन्होंने हिंदी सिनेमा में कॉमेडी जोनर को एक अलग ही मुकाम पर पहुंचाया। अपने करियर में जगदीप ने अनगिनत फिल्मों में कॉमेडी कर दर्शकों को हंसाया ही नहीं बल्कि लोटपोट कर दिया। जगदीप ने खुद को उस दौर में स्थापित किया, जब जॉनी वॉकर और महमूद की तूती बोलती थी। इसीलिए उन्हें कॉमेडी का जीनियस कहा जाता है।

सात दशक लंबे करियर में 400 से अधिक फिल्मों में अभिनय करने वाले जयदीप का असली नाम नाम सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी था। मध्य प्रदेश के दतिया में 29 मार्च 1939 को जन्मे जगदीप के पिता सैयद यावर हुसैन जाफरी का इंतकाल जब वह बहुत छोटे थे तभी हो गया। उनकी मां कनीज़ हैदर जाफरी आर्थिक तंगी से जूझती हुई मुंबई पहुंची और एक अनाथालय में कुक का काम करने लगीं।

जगदीप को बचपन से ही अभिनय का शौक था। उन्होंने 12 साल की उम्र में 1951 रिलीज फिल्म ‘अफसाना’ में बाल कलाकार के रूप में ‘मास्टर मुन्ना’ का किरदार निभाकर अभिनय का श्रीगणेश किया। जहां उन्हें फिल्म के निर्माता बीआर चोपड़ा से पारिश्रमिक के रूप में तीन रुपए मिले थे। इसके बाद भी उन्होंने कई फिल्मों में बतौर बाल कलाकार काम किया जिनमें गुरु दत्त की आर पार, बिमल रॉय की ‘दो बीघा जमीन’ जैसी बेहतरीन फिल्में शामिल हैं। दो बीघा ज़मीन में पहली बार उनके अंदर के हास्य कलाकार की झलक देखी गई।

जगदीप ने यूं तो अपनी हर फिल्म में अपने किरदार को कमाल शानदार ढंग से निभाया। 1957 में प्रदर्शित फिल्म ‘हम पंछी एक डाल के’ में उनके उनके किरदार लालू उस्ताद को लोगों ने काफी सराहा गया था और भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी जगदीप की तारीफ़ की थी। ‘हम पंछी एक डाल के’ को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। उन्होंने भाभी (1957) समेत कई फिल्मों में लीड रोल भी निभाया, लेकिन कालांतर में अपने आपको कॉमेडी अभिनेता के रूप में स्थापित कर लिया।

जगदीप ने अपने अभिनय का जलवा सुपहिट फिल्म शोले में शूरमा भोपाली के किरदार में दिखाया। क्या कमाल का अभिनय किया था उन्होंने। साल 1975 में रमेश सिप्पी के निर्देशन में बनी शोले में सूरमा भोपाली के रूप में वह हर सिनमा प्रेमी की जबान पर आ गए। उस किरदार से वह बहुत अधिक चर्चा में आ गए। हालांकि उनके सूरमा बोपाली बनने का किस्सा भी बेहद दिलचस्प है। एक इंटरव्यू के दौरान इस प्रसंग को विस्तार से उन्होंने खुद ही बताया था।

एक सवाल के जवाब में जगदीप ने कहा, “सूरमा भोपाली का किस्सा बड़ा लंबा और दिलचस्प है। दरअसल, सलीम-जावेद की फिल्म ‘सरहदी लुटेरा’, मैं कॉमेडियन था। मेरे डायलॉग बहुत लंबे थे। फिल्म डायरेक्टर सलीम के पास गया और उन्हें बताया कि डायलॉग बहुत लंबे हैं। तो उन्होंने जावेद के पास जाने को कहा। मैं जावेद के पास गया तो उन्होंने बड़ी ही फुर्ती से डायलॉग को पांच लाइन में समेट दिया। मैंने कहा कमाल है यार, तुम तो बड़े ही अच्छे राइटर हो। बहरहाल, हम शाम को साथ बैठे। किस्से कहानी और शायरियों का दौर चल रहा था। उसी बीच जावेद ने एक लहजा बोला ‘क्या जाने, किधर कहां-कहां से आ जाते हैं।‘ मैंने पूछा कि अरे ये क्या कहां से लाए हो। तो वह बोले कि भोपाल का लहजा है।”

अगर निजी ज़िंदगी की बात करें तो जयदीप ने तीन शादियां की। पहली पत्नी नसीम बेगम से तीन संतान पुत्र हुसैन जाफरी और दो बेटियां शकीरा शफी और सुरैया जाफरी, दूसरी पत्नी सुघरा बेगम से दो बेटे अभिनेता जावेद जाफरी और नावेद जाफरी और तीसरी बीवी नाज़िमा से बेटी मुस्कान है। जगदीप के दोनों बेटे जावेद जाफरी और नावेद जाफरी भी मशहूर अभिनेता हैं।

जगदीप ने आगे कहा, “मैंने कहा भोपाल से यहां कौन है, मैंने तो कभी नहीं सुना। इस पर उन्होंने कहा कि भोपाल की औरतों का लहजा है भाई यह। वे इसी तरह बात करती हैं। तो मैंने कहा मुझे भी सिखाओ यार। इस घटना के 20 वर्ष बीत जाने के बाद ‘शोले’ शुरू हुई। मुझे लगा मुझे भी बुलाएंगे, ऐसा नहीं हुआ। फिर एक दिन रमेश सिप्पी का फोन आया। वह बोले, तुमको शोले में काम करना है। मैंने कहा, क्या मज़ाक कर रहो भाई। उसकी तो शूटिंग भी खत्म हो गई। तब उन्होंने कहा कि नहीं, तुम्हारे किरदार की सीन असली है इसकी शूटिंग अभी बाकी है। तो जल्दी से आ जाओं और यही से शुरू हुआ सूरमा भोपाली का किरदार। सूरमा भोपाली के रूप में उन्होंने पहचान तो बनाई ही, साथ में भोपाल शहर की उस बोली को भी देश भर में मशहूर कर दिया।”

बहरहाल, जगदीप ने ‘पुराना मंदिर’ में मच्छर का किरदार और ‘अंदाज अपना अपना’ में सलमान खान के पिता का किरदार निभाकर दर्शकों का जबरदस्त मनोरंजन किया। उन्होंने सूरमा भोपाली फिल्म का निर्देशन भी किया। 2012 में प्रदर्शित फिल्म ‘गली गली चोर’ में वह आखिरी बार अभिनय करते नज़र आए। इस फिल्म में वह पुलिस कांस्टेबल की भूमिका में नजर आए थे। मशहूर पटकथा लेखक संजय मासूम के शब्दों में अलविदा सूरमा भोपाली! एक और अद्भुत अदाकार को आखिरी नमस्कार!

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

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