तेरा जलवा जिसने देखा वो तेरा हो गया….

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1960 के दशक के बेहतरीन अदाकारा कुमकुम को विनम्र श्रद्धाजलि

तेरा जलवा जिसने देखा वो तेरा हो गया, मैं हो गई किसी की कोई मेरा हो गया लता मंगेशकर के गाए हसरत जयपुरी के गाने को शंकर-जयकिशन की संगीतकार जोड़ी ने इतनी खूबसूरती से बेहतरीन सुर में डाला है कि 1959 में रिलीज़ उजाला के इस गाने को हर संगीतप्रेमी गुनगुना चाहता है। रूपहले परदे पर इस गाने को अपने ज़माने की बेहतरीन अदाकारा और बहुत निपुण नृत्यांगना कुमकुम पर फिल्माया गया है। वही कुमकुम 28 जुलाई को बड़ी खामोशी से इस दुनिया को अलविदा कह गईं।

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घूंघट नहीं खोलूंगी पिया सैंया तोरे आगे… रूपहले परदे चंपा (कुमकुम) के इस शोख गाने को कौन भूल सकता है, जब वह रामू (राजेंद्र कुमार) को रिझाने के लिए गाती है। वर्ष 1957 में रिलीज सुपरडुपर हिट फिल्म ‘मदर इंडिया’ के इस बेमिसाल गाने को लोग शिद्दत याद करते हैं। नौशाद की धुन पर शकील बदायूंनी के इस गीत लता मंगेशकर ने गाया और रूपहले परदे पर इसे ब्लैक एंड ह्वाइट से इस्टमैन कलर के दौर की अभिनेत्री कुमकुम के लिए फिल्माया गया था।

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मेरा दिल तोड़ने वाले तुझे दिल ढूंढ़ रहा है सन् 1962 में रिलीज ‘सन ऑफ इंडिया’ का यह गाना हर वह प्रेमी गा रहा था, जिसका दिल किसी न किसी वजह से टूटा था, लेकिन वह अपनी प्रियतम को भूल नहीं पाया था। नौशाल और शकील की जोड़ी ने इस गाने को लता और मोहम्मद रफी की आवाज में रिकॉर्ड किया गया, लेकिन रूपहले परदे पर इसे गाते हुए सिनेमा प्रेमियों ने कुमकुम को देखा। इसी तरह राजा और रंक का गाना मेरा नाम है चमेली, मैं हूं मालन अलबेली, चली आई हूं अकेली बीकानेर से… जब भी बजता है, तो संगीतप्रेमी कुमकुम के अंदर की शोख नायिका को याद करते हैं।

दो साल पहले धर्मेंद्र ने अपनी डेब्यू फिल्म को लेकर एक मजाकिया ट्विट किया था। धर्मेंद्र ने लिखा, “1960 में ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी। मगर फिल्म फ्लॉप रही।” धर्मेंद्र ने अपना और कुमकुम का फोटो शेयर करते हुए ट्वीट किया। कैप्शन लिखा- “मेरी मुख्तसर सी प्यारी सी हीरोइन कुमकुम अपनी पहली ही फिल्म में इनसे कह बैठा ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’, इनसे कुबूल ना हुआ, फिल्म फ्लॉप हो गई।”

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कुमकुम ने 1956 में रिलीज ‘मेमसाहेब’ में शम्मी कपूर के साथ साइड रोल किया, लेकिन 1959 में  प्रदर्शित फिल्म ‘चार दिल चार राहें’ में शम्मी कपूर के साथ उनकी नायिका का किरदार निभाया। किशोर कुमार के साथ 1964 में आई ‘मिस्टर एक्स इन बॉम्बे’ से कुमकुम को बतौर समर्थ अभिनेत्री पहचान मिली। बतौर अभिनेत्री कुमकुम लेखक-निर्देशक रामानंद सागर की पसंदीदा थीं। उन्होंने उन्हें 1968 में रिलीज़ ‘आंखें’ फिल्म में धर्मेंद्र की बहन की भूमिका दी थी। 1973 में रिलीज प्रकाश मेहरा की ब्लॉकबस्टर कॉमेडी फिल्म ‘एक कुंवारा एक कुंवारी’ में उन्होंने प्राण के अपोजिट का रोल किया। इसके अलावा गीत, ललकार और जलते बदन में भी कुमकुम ने लीड रोल किया था।

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वस्तुतः कुमकुम ने 1952 में बतौर डांसर बॉलीवुड में कदम रखा था। एक बार कुमकुम ने इंटरव्यू में ख़ुद बताया, “नौशाद साहब के आग्रह पर मैं 1952 में मुंबई आई। नौशाद साहब भी मूल रूप से लखनऊ के ही रहने वाले थे। मैं उन्हें बहुत अच्छी तरह जानती थी। जब मैं नौशाद साहब से मिली तो फिल्म दुनिया में यह चर्चा फैल गई कि एक बहुत अच्छी डांसर लड़की नौशाद साहब के संपर्क में आई है। उसी समय मुझे हिंदी फिल्मों में नृत्य करने के ऑफर्स मिलने लगे।
मैंने सबसे पहले शमशाद बेगम के सुर में रिकॉर्ड फिल्म शीशा के गाने अंगना बाजे शहनाई रे, आज मोरी जगमग अटरिया में नृत्य किया। शाहिद लतीफ निर्देशित ‘शीशा’ उसी साल यानी 1952 में रिलीज हुई। उस गाने की धुन तैयार की थी गुलाम मोहम्मद ने। इसमें सज्जाद और नरगिस मुख्य किरदार में थे। घर वाले उन्हें जेबा भी कहते थे। फिलमों में मुझे कुमकुम नाम मिला। 1954 में मुझे नूर महल और मिर्ज़ा ग़ालिब में नृत्य करने का मौक़ा मिला।

लिहाज़ा, कुमकुम के फिल्मों में मूक और बोलती फिल्मों के महान अभिनेता, निर्माता-निर्देशक सोहराब मोदी द्वारा ब्रेक दिए जाने की बात सही नहीं है। हालांकि सोहराब मोदी ने ने कुमकुम को 1954 में रिलीज अपनी ब्लैक एंड ह्वाइट फिल्म ‘मिर्जा ग़ालिब’ में तवायफ का किरदार दिया। उस समय कुमकुम की माली हालत ख़राब थी इसलिए छोटे से रोल को करने के लिए तैयार हो गई और उस किरदार को कुमकुम ने बखूबी निभाया। उन दिनों को याद करते हुए एक बार एक इंटरव्यू में कुमकुम ने कहा था, “मैं सोच भी नहीं सकती थी, कि मैं फिल्मों में काम करूंगी, लेकिन अपने शौक को पूरा करने के लिए नहीं, मजबूरी में, बस पेट पालने के लिए।”

कुमकुल को भले ही सोहराब मोदी की मिर्ज़ा ग़ालिब में अभिनय का मौका मिला, लेकिन हिंदी सिनेमा के जीनियस फिल्मकार गुरुदत्त की खोज मानी जाती हैं। दरअसल, गुरुदत्त को अपनी फिल्म आर पार के गाने ‘कभी आर कभी पार लागा तीरे नज़र’ का फिल्मांकन एक्टर जगदीप पर किया था, लेकिन बाद में गुरुदत्त महिला पर फिल्माने की सोची। उस समय, कोई भी इतना छोटा सा गाना करने के लिए सहमत नहीं हुआ। तब आखिरकार गुरुदत्त ने कुमकुम पर इस गीत का चित्रण किया। बाद में गुरु दत्त ने अपनी फिल्म प्यासा में भी उन्हें छोटा सा किरदार दिया।

खुद एक बार कुमकुम ने बताया था, “आर पार रिलीज होने के लिए तैयार थी, रिलीज की तारीख़ भी मुकर्रर हो गई थी, लेकिन सेंसर बोर्ड ने शमशाद बेगम के गाए कभी आर कभी पार लागा तीरे नज़र पर आपत्ति जताई, क्योंकि वह जगदीप पर फिल्माया गया था। सेंसर बोर्ड ने ही इस गाने को किसी महिला कलाकार पर फिल्माने की सलाह दी। लिहाज़ा, गुरु दत्त जी के पास बहुत समय नहीं था, लिहाज़ा, उन्होंने मुझे स्क्रीन टेस्ट के लिए बुलाया। मैं स्क्रीन टेस्ट में पास हो गई तो गुरु दत्त की कोरियोग्राफी में वह गाना मुझ पर फिल्माया गया। आर पार सुपर हिट रही और मेरे नृत्य और गाने की चर्चा फिल्म इंडस्ट्री में होने लगी।”

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कुमकुम का असली नाम ज़ैबुनिस्सा है। घरवाले उन्हें जेबा कहकर पुकारते थे। फिल्मों में उन्हें कुमकुम नाम दिया गया। इस अभिनेत्री ने अपने करियर में लगभग 115 फिल्मों में अभिनय किया। मदर इंडिया (1957), मिस्टर एक्स इन बॉम्बे (1964), सन ऑफ इंडिया (1962), कोहिनूर (1960), उजाला, नया दौर, श्रीमान फंटूश, एक सपेरा एक लुटेरा और राजा और रंक जैसी सुपरहिट और यादगार फिल्मों में कुमकुम ने शानदार अभिनय किया। उन्होंने अपने दौर के कई स्टार्स के संग काम किया, जिनमें गुरु दत्त और किशोर कुमार का भी नाम शामिल है। इनके अलावा कुमकुम पहली भोजपुरी फिल्म ‘गंगा मैया तोहे पियारी चढ़ाइबो’ (1963) में भी अभिनय किया था।

1955 में रिलीज फिल्म ‘मिस्टर एंड मिसेज-55’ की चर्चा करते हुए एक बार कुमकुम ने कहा था, “मुझे पांच बच्चों की मां का किरदार दिया गया, जबकि मैं उस समय बहुत कम उम्र की थी। कोई 20-21 साल की थी। इसीलिए कैमरामैन वीके नूर्ति ने मुझे लेने का विरोध किया और कहा कि यह तो बच्ची लग रही है, लेकिन गुरु दत्त मुझे वह रोल देने के अपने फैसले पर अडिग रहे। यह फिल्म भी सुपरहिट रही और मुझे फिलम इंडस्ट्री में नृत्यांगना के साथ अच्छी अभिनेत्री के रूप में पहचान मिली।”

कुमकुम के निधन की ख़बर बहुत देर से तब सब को मिली जब कुमकुम के सहअभिनेता जॉनी वॉकर के बेटे नासिर ख़ान ने 1960 के दशक के बेहतरीन अभिनेत्री के निधन की ख़बर को अपने ट्विटर हैंडल पर पोस्ट किया। नासिर ने जॉनी वॉकर और कुमकुम की फोटो शेयर करते हुए लिखा, ‘बीते जमाने की एक्ट्रेस कुमकुम आंटी का निधन हो गया, वो 86 साल की थीं। बहुत सारी फिल्मों में गीत उन पर फिल्माए गए। कई गानों में उन्होंने डांस किया। उन्होंने पापा जॉनी वॉकर के अपोजिट भी कई फिल्में कीं। कुमकुम ने इसके अलावा हाउस नंबर 44 (1955), कुंदन (1955), फ़ंटूश (1956), बसंत बहार (1956), शरारत (1959), काली टोपी लाल रूमाल (1959), किंग कांग (1962), शेर खान (1962), लागी नहीं छुटे राम (1963, भोजपुरी), गंगा की लहरें (1964), गुनाह और कानून (1970), आन बान (1972), ललकार (1972), धमकी (1972) और जलते बदन (1973) में भी काम किया।

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बाद में अभिनेता जगदीप के बेटे नावेद जाफरी ने अपने भी ट्विट पर जताया शोक जताते हुए लिखा, ‘हमने एक और दिग्गज खो दिया। मैं उन्हें तब से जानता था जब मैं बहुत छोटा था। वो परिवार जैसी थीं। कमाल की आर्टिस्ट और शानदार इंसान। भगवान आपकी आत्मा को शांति दे कुमकुम आंटी’। नावेद ने अपने ट्वीट में कुमकुम के लिए एक दुआ भी लिखी।

आज़ादी से पहले बिहार में पटना के पास शेखपुरा में 22 अप्रैल 1934 को कुमकुम ज़ेबुन्निसा उर्फ जेबा के रूप में हुसैनाबाद के नवाब सैयद नवाब मंसूर हसन खान और खुशी बानो के घर पैदा हुईं। जब वह ढाई साल की थीं तो उनका परिवार पटना शिफ्ट हो गया। उनके पिता नवाब थे और उनके पास अपार दौलत थी। लेकिन आज़ादी से पहले ब्रिटिश सरकार उनकी सारी संपत्ति जब्त कर लिया और परिवार को दो जून की रोटी के लाले पड़ने लगे। मजबूरी में सैयद नवाब मंसूर हसन अपने परिवार के साथ कलकत्ता में शिफ्ट हो गए। उस समय कुमकुम केवल पांच साल की थीं। लेकिन कलकत्ता में उनका दिल किसी और स्त्री पर आ गया। उन्होंने उस महिला से निकाह करके परिवार को अनाथ छोड़ दिया और जब देश का विभाजन हुआ तो पूर्वी पाकिस्तान चले गए।

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कुमकुम को नृत्य का शौक बचपन से ही था, इसलिए स्कूल की पढ़ाई पूरी करके वह लखनऊ चली गई, जहां उन्होंने शंभू महाराज से कथक नृत्य शैली की तालीम ली। कथक नृत्य शैली के उस्दात पंडित शंभू महाराज कुमकुम को अपनी बेटी की तरह मानते थे। पंडित शंभू महाराज से ही ली थी। उन्होंने अपने नृत्या की नुमाइश कोहिनूर फिल्म में ‘मधुबन में राधिका नाचे रे…’ के दौरान की। पंडित शंभू महाराज ने कुमकुम की जरूरत के वक़्त बड़ी मदद की थी।

कुमकुम के बारे में एक और रोचक कहानी प्रचलित है कि वह अभिनेता गोविंदा की छोटी मौसी भी थीं। दरअसल, मशहूर कथक नृत्यांगना सितारा देवी ने एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि कुमकुम बनारस घराने के मशहूर तबला वादक वासुदेव महाराज बेटी थीं। कुमकुम की छोटी बहन राधा (फिल्म का नाम राधिका) भी अभिनेत्री थीं और उन्होंने ‘मिस्टर एंड मिसेज 55’, ‘रात के राही’ ‘काला समुंदर’ और ‘लाल निशान’ जैसी सफल फिल्मों में काम भी किया। ‘रात के राही’ का गाना दाएं बाएं छुप छुप के कहा चले  राधिका और शम्मी कपूर पर फिल्माया गया है। यह गाना यूट्यूब पर उपलब्ध है।

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सितारा देवी के अनुसार कुमकुम अभिनेता गोविंदा की छोटी मौसी भी थीं, क्योंकि गोविंदा की मां और बेहतरीन सिंगर निर्मला देवी कुमकुम की सौतेली बहन थी। दोनों के पिता एक ही थे और उनके पिता का नाम वासुदेव नारायण सिंह उर्फ वासुदेव महाराज था। वह मशहूर तबलावादक थे। उनकी दो पत्नियां थीं। निर्मला देवी वासुदेव महाराज पहली पत्नी से पैदा हुईं थीं। जबकि कुमकुम और राधा उनकी मुस्लिम पत्नी से पैदा हुईं। वासुदेव महाराज गोविंदा के पुत्र और मशहूर तबला वादक लच्छू महाराज भी वासुदेव महाराज के पुत्र थे और उनका असली नाम लक्ष्मी नारायण सिंह था। गोविंदा अपने एक इंटटरव्यू में कुमकुम मौसी ने मुझे आदेश दिया है। इससे इस चर्चा का जन्म मिला। हालांकि इस विषय पर कुमकुम ने कभी ख़ुद कुछ नहीं कहा। न तो सितारा देवी के दावे का खंडन किया और न ही उसकी पुष्टि की। सबसे अहम यह है कि वासुदेव नारायण सिंह क्षत्रीय थे और एक जमीदार परिवार से ताल्लुक रखते थे।

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1975 में कुमकुम ने फिल्मों से संन्यास ले लिया और लखनऊ के बिजनेसमैन सज्जाद अकबर खान से निकाह कर लिया। कुमकुम ने ही बताया था, “सत्तर के दशक के बाद मैं फिल्मी दुनिया से बोर होने लगी। 1973 में किरण कुमार के साथ जलते बदन के रिलीज होने के बाद मैंने तय कर लिया कि इंडस्ट्री छोड़ दूंगी। हालांकि मेरी अंतिम फिल्म बॉम्बे बाई नाइट 1976 में प्रदर्शित हुई। यह ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म थी, जिसमें हीरो संजीव कुमार थे। 1975 में मैंने शादी कर लिया। सज्जाद अकबर ख़ान से शादी कर ली। कुमकुम फिल्मी दुनिया को छोड़ने के बाद एक बार कहा था, “बदकिस्मत होते हैं वे लोग, बदकिस्मत नहीं बेवकूफ होते हैं, जो ज्यादा पैसे कमाने के चक्कर में सारा वक्त गंवा देते हैं। उन्हें पैसे तो मिलते हैं, लेकिन वे ज़िंदगी को जी नहीं पाते। इसलिए मैंने ज़िंदगी को जीने के लिए फिल्म लाइन छोड़ने का फ़ैसला किया।”

चूंकि उनके शौहर सज्जाद ख़ान सऊदी अरब में कारोबार करते थे, लिहाज़ा, कुमकुम भी शादी के बाद सऊदी अरब में शिफ्ट हो गईं। कुमकुम और सज्जाद की एक बेटी अंदलीब खान और एक बेटा हादी अली अबरार है। बहरहाल, 23 साल बाद 1995 में कुमकुम भारत बापस आ गईं और मुंबई में रहने लगीं। 2004 में कुमकुम ने पहली भोजपुरी मैगजीन शुरू किया था। कभी मुंबई में लिकिंग रोड पर उनके बंगले का नाम ही कुमकुम हुआ करता था। जिसे बाद में तोड़कर इमारत बना दी गई। बहरहाल, उस खूबसूरत अदाकारा को विनम्र श्रद्धांजलि।

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

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