किसी सरकार या किसी जांच एजेंसी से निष्पक्षता की उम्मीद कम से कम आज के दौर में नहीं करनी चाहिए। मौजूदा दौर में कई ऐसे मामले भी आए हैं, जिनमें कई अदालतों ने संदिग्ध फ़ैसले दिए हैं। ऐसे में टीवी न्यूज़ चैनलों या समाचार पत्रों से भी निष्पक्षता की उम्मीद तो बिल्कुल नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वे राजस्व के लिए केवल और केवल विज्ञापनदाताओं पर निर्भर रहते हैं और विज्ञापनदाता बड़ी-बड़ी कंपनियां होती हैं, जिनका लाभार्जन एकमात्र लक्ष्य होता है। इसीलिए हर टीवी चैनल या समाचार पत्र वैचारिक रूप से किसी न किसी पार्टी के पक्ष ज़रूर झुका हुआ नज़र आता है। इसे समाचार माध्यमों की मजबूरी कहना अधिक प्रासंगिक रहेगा।
इस तरह की परिस्थितियों में किसी भी सरकार, अदालत, सरकारी संस्थान या जांच एजेंसी को भूलकर भी ऐसा कोई भी क़दम नहीं उठाना चाहिए, जो प्रथम दृष्या ही पक्षपातपूर्ण या पूर्वाग्रहित लगता हो। माना जा रहा है कि मुंबई पुलिस ने अपने कमिश्नर परमबीर सिंह की अगुवाई में यही गड़बड़ी की है। मुंबई पुलिस मुंबई पुलिस रिपब्लिक टीवी और उसके प्रमोटर अर्नब गोस्वामी जिस तरह का कार्रवाई कर रही है, उससे प्राइमा फेसाई यही लग रहा है कि महाराष्ट्र सरकार और मुंबई पुलिस पालघर साधु हत्याकांड और अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध मौत के मामले में आक्रामक रिपोर्टिंग के लिए अर्नब गोस्वामी से अपना खुन्नस निकाल रही है।
मुंबई पुलिस को लगता है कि रिपब्लिक टीवी के प्रमोटर अर्नब गोस्वामी की पत्रकारिता के चलते मुंबई शहर की शांति भंग हो सकती थी और दंगा भड़क सकता था। इसलिए उनके ख़िलाफ़ सीआरपीसी की धारा 111 के तहत “चैप्टर प्रोसिडिंग” (chapter proceedings) की कार्यवाही शुरू की गई है। खासकर पालघर में साधुओं की पीट-पीट कर हत्या और लव जेहाद जैसे मामले में रिपब्लिक टीवी जिस तरह की रिपोर्टिंग करता रहा है, उससे पुलिस को लगता है कि समाज में शांति व्यवस्था बंग हो सकती है। इसीलिए मुंबई पुलिस ने उनके ख़िलाफ़ “चैप्टर प्रोसिडिंग” की कार्यवाही करने का निर्णय लिया है।
अर्नब गोस्वामी को मुंबई में वर्ली डिवीजन के एसीपी ने भड़काऊ बातें करने के आरोप में नोटिस भेजा है। अब अर्नब को 10 लाख रुपए का बॉन्ड भरना होगा जिसमें यह वादा करना होगा कि अपने टीवी चैनल पर ऐसी कोई टिप्पणी नहीं करेंगे, जिससे शांति भंग हो और सांप्रदायिक दंगा फैले। इसके अलावा टीआरपी घोटाले में मुंबई पुलिस ने चैनल से जुड़े दो और लोगों निरंजन नारायण स्वामी और अभिषेक कपूर को समन भेजा गया है। इतना ही नहीं, मुंबई पुलिस ने कुछ दिन पहले खार के एक केस में रिपब्लिक टीवी के पत्रकार प्रदीप भंडारी को भी समन भेजा था। पुलिस की सक्रियता से यह तय हो गया है कि अर्नब गोस्वामी को अगर मुंबई में रहकर रिपोर्टिंग करनी है तो उन्हें अपनी स्टाइल बदलनी होगी और आक्रामक पत्रकारिता की जगह उदार पत्रकारिता करनी होगी।
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यहां यह बता देना बहुत ज़रूरी है कि पालघर में दो साधुओं समेत तीन लोगों की पीट-पीट कर हत्या करने के बाद रिपब्लिक टीवी के प्रमोटर अर्नब गोस्वामी महाराष्ट्र की विकास अघाड़ी सरकार, ख़ासकर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के ख़िलाफ़ बहुत अधिक मुखर थे। सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय मौत के बाद तो उनके निशाने पर मुंबई पुलिस भी आ गई थी। रिपब्लिक टीवी मानता आया है कि सुशांत केस में मुंबई पुलिस ने ढाई महीने तक बिना किसी एफ़आईआर के मैरॉथन पूछताछ करने में ही समय जाया कर दिया। इस मसले पर कई बार अर्नब गोस्वामी और उनके चैनल ने परमबीर सिंह को भी निशाना बनाया था। यह भी कह सकते हैं कि रिपब्लिक टीवी और अर्नब गोस्वामी ने इस दौरान कई बार मर्यादित रिपोर्टिंग की लक्षमण रेखा को भी पार किया।
यहा सबसे अहम यह बात है अगर रिपब्लिक टीवी और अर्नब गोस्वामी महाराष्ट्र सरकार और मुंबई पुलिस को जानबूझ कर टारगेट कर रहे थे और मर्यादित रिपोर्टिंग की लक्षमण रेखा की को लांघ रहे थे, तो सरकार और मुंबई पुलिस को उसी समय उचित कार्रवाई करनी चाहिए थी, या अदालत का दरवाज़ा खटखटाना चाहिए था, जैसे रिपब्लिक टीवी ने मुंबई पुलिस की कार्रवाई के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील की है। लेकिन उस समय न तो महाराष्ट्र सरकार और न ही मुंबई पुलिस ने रिपब्लिक टीवी या अर्नब गोस्वामी पर कोई कार्रवाई की। इसलिए अब जो कुछ किया जा रहा है, वह निष्पक्ष सोचने वाले हर नागरिक को पक्षपातपूर्ण और पूर्वाग्रहित लग रहा है।
बहरहाल, सुशांत सिंह राजपूत केस में वाकई ढाई महीने तक कोई एफ़आईआर दर्ज न करने और फिल्मकार अनुराग कश्यप के ख़िलाफ़ अभिनेत्री पायल घोष की इंडियन पैनल कोड की धारा 376 के तहत दर्ज प्राथमिकी के बावजूद कोई भी कार्रवाई न करने वाली मुंबई पुलिस अचानक से टीआरपी केस में उम्मीद से ज़्यादा सक्रिय नज़र आ रही है। धड़ाधड़ गिरफ़्तारियां कर रही है। सबसे अहम टीआरपी जैसे छोटे मामले में पुलिस कमिश्नर ख़ुद मीडिया को संबोधित करने के लिए प्रकट होते हैं और सीधे रिपब्लिक टीवी को निशाना बना रहे हैं। इसके अलावा अर्नब गोस्वामी को सीआरपीसी की धारा 111 के तहत “चैप्टर प्रोसिडिंग” की नोटिस भी दे दी है।
दरअसल, भारत टीवी रेटिंग के पूरे सिस्टम ही फ्राड कहें तो अधिक ठीक रहेगा। इस तरह के फ्राड में कई लोग शामिल रहते हैं। इस फ्राड में हर टीवी चैनल अपने बढ़त लेने की कोशिश करते हैं, क्योंकि अधिक टीआरपी से अधिक विज्ञापन मिलता है, जिससे चैनल को अधिक राजस्व मिलता है। यह कार्य केवल टीवी चैनल नहीं करते, बल्कि इसमें कई बार सरकारें की भी भागीदारी होती हैं। इसलिए मुंबई पुलिस या परमबीर सिंह जो कुछ कह रहे हैं, उसमें नया कुछ भी नहीं है। इसीलिए इस मुद्दे पर परमबीर सिंह का प्रकट होकर जांच के बहाने सीधे रिपब्लिक टीवी को टारगेट करना प्राइमा फैसाई किसी के गले नहीं उतर रहा है।
मीडिया रिपोर्ट और ख़ुद रिपब्लिक टीवी की ओर से जारी एफ़आईआर की कॉपी और बयान के मुताबिक ब्रॉडकास्ट ऑडिएंस रिसर्च कॉउंसिल यानी प्रसारण दर्शक अनुसंधान परिषद (बार्क) के बार-ओ-मीटर यानी टीआरपी बॉक्स का रख-रखाव करने वाली हंसा रिसर्च ग्रुप प्राइवेट लिमिटेड की ओर से दर्ज कराई गई एफ़आईआर में रिपब्लिक टीवी का नाम नहीं है, इसके बावजूद शहर के पुलिस प्रमुख ने रिपब्लिक टीवी का नाम ही नहीं लिया, बल्कि संभावित कार्रवाई के बारे में पुलिस की पूरी तैयारी का खुलासा भी कर दिया। इससे स्पष्ट है कि आने वाले दिन रिपब्लिक टीवी और अर्नब गोस्वामी के लिए बुरे हो सकते हैं, क्योंकि उनका मुख्यालय मुंबई में है।
परमबीर सिंह ने 8 अक्टूबर 2020 को प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो बयान दिया उससे यही कहा जा रहा है कि मुंबई पुलिस ने रिपब्लिक टीवी और उसके प्रमोटर अर्नब गोस्वामी को सीधे ख़त्म करने का मास्टर प्लान तैयार कर लिया है। मुंबई पुलिस की इसी रणनीति पर अमल करने के लिए रिपब्लिक टीवी के मुख्य वित्तीय अधिकारी (सीएफओ) को समन जारी किया गया। इसकी पुष्टि मुंबई पुलिस के संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) मिलिंद भारम्बे ने प्रतिद्वंद्वी चैनल्स से बातचीत में ख़ुद कर दी। हालांकि रिपब्लिक टीवी के अधिकारी ने 16 अक्टूबर तक की मोहलत की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
दरअसल, मुंबई पुलिस ने रिपब्लिक टीवी के आर्थिक सेहत पर हमला करने यानी सीधे न्यूज़ चैनल की कमर तोड़ देने का फ़ैसला कर लिया है। सबसे पहले पुलिस ने उन लोगों को बुलाकर सघन पूछताछ कर रही है, जिनके घरों में टीवी की रेटिंग करने वाले ब्रॉडकास्ट ऑडिएंस रिसर्च कॉउंसिल के बार-ओ-मीटर यानी टीआरपी बॉक्स लगे हुए हैं। कहा जा रहा है कि पूरे देश में 30 हज़ार लोगों के घरों में टीआरपी बॉक्स लगे हैं, जिनमें से दो हजार टीआरपी बॉक्स केवल मुंबई में लगे हुए हैं।
मुंबई के पुलिस आयुक्त ने अपने प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह भी कहा था कि मुंबई पुलिस उन कंपनियों के ज़िम्मेदार लोगों को पूछताछ के लिए बुलाने वाली है, जो कंपनियां या ब्रांड रिपब्लिक टीवी को विज्ञापन देती रही हैं। मुंबई पुलिस कंपनियों के एग्जिक्यूटिव्स से यह भी पूछेगी कि रिपब्लिक टीवी को विज्ञापन क्यों दिया जाता है और किस आधार पर दिया जाता है? इसके अलावा मुंबई पुलिस इन कंपनियों से ट्रांजेक्शन का बैंक स्टेटमेंट भी मांगने का फ़ैसला किया है। इससे पता चल जाएगा कि रिपब्लिक टीवी को कितनी राशि विज्ञापन के रूप में मिलती रही है।
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इस तरह मुंबई पुलिस ने कुल मिलाकर रिपब्लिक टीवी को विज्ञापन देने वाली सभी कंपनियों या ब्रांड भी परेशान करने का भी पूरा ख़ाका तैयार कर लिया है। ऐसे में कंपनियों या ब्रांड के लिए रिपब्लिक टीवी को विज्ञापन देने का मतलब सीधे पुलिस की आफ़त मोल लेने जैसा हो जाने वाला है। ज़ाहिर है, इससे कंपनियां रिपब्लिक टीवी को विज्ञापन देने से परहेज़ करेंगी। यह भी सर्वविदित है कि मीडिया प्रॉडक्ट यानी अख़बार या टीवी चैनल्स के समाचार या दूसरे कंटेंट का सेलिंंग कॉस्ट मैनुफैक्चरिंग कॉस्ट के मुक़ाबले कम ही होता है। मतलब जो अख़बार हमें दो-तीन रुपए में मिलता है, उसे छापने में पांच से दस रुपए ख़र्च होता है। इसी तरह टीवी पर हम जो समाचार फ्री या दो-चार, दस रुपए महीने भुगतान करके देखते हैं, उनका विडियो बनाने, एडिटिंग करके पैकेज बनाने और एयर करने में भारी धनराशि खर्च़ होती है। इसीलिए कोई भी मीडिया संस्थान बिना विज्ञापन के सरवाइव ही नहीं कर सकता। ऐसे में जब बिना विज्ञापन के कम खर्चीले दैनिक अख़बार सरवाइव नहीं कर सकते, तब रिपब्लिक टीवी जैसा एक-एक ख़बर में चार-चार, पांच-पांच रिपोर्टर लगाने वाला चैनल बिना विज्ञापन के बिल्कुल सरवाइव नहीं कर सकता।
इसीलिए रिपब्लिक टीवी और अर्नब गोस्वामी मुंबई पुलिस की मंशा जान गए हैं। इसी क्रम में पब्लिक टीवी ने आरोप लगाया है कि जिनके घरों में ब्रॉडकास्ट ऑडिएंस रिसर्च कॉउंसिल के बार-ओ-मीटर लगे हैं, मुंबई पुलिस उन लोगों को डरा धमका कर ग़लत बयान देने के लिए दबाव डाल रही है। इस चैनल के एक रिपोर्टर ने ऐसे ही एक व्यक्ति से बातचीत का स्टिंग किया, जिसके घर में टीआरपी बॉक्स लगा हुआ है। स्टिंग में उस व्यक्ति ने रिपब्लिक टीवी की बजाय दूसरे चैनल का नाम ले लिया है। रिपब्लिक टीवी ने इसे को अपना प्रमुख मुद्दा बनाया है और देश भर के प्रमुख लोगों के विचार को एयर कर रहा है।
यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि रिपब्लिक टीवी आक्रामक या चिल्लाकर या दौड़कर या छाती पीटकर की जा रही अपनी पत्रकारिता या एक्टिंग के चलते ही टीआरपी के गेम में सबसे आगे चला गया है। टीआरपी गेम में पिछड़ने वाले बाक़ी सभी चैनल एकजुट होकर रिपब्लिक टीवी और अर्नब गोस्वामी पर हमला बोल रहे हैं। सबसे मज़ेदार बात यह है कि सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय मौत के बाद जांच में ढिलाई बरतने के लिए मुंबई पुलिस को कठघरे में खड़ा करने वाले ये तमाम चैनल अब मुंबई पुलिस और पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह के मुरीद दिख रहे हैं। उनकी प्रशंसा कर रहे हैं।
अर्नब गोस्वामी की पत्रकारिता की भले आलोचना करें, लेकिन उन्होंने उसी मूलमंत्र को अपनाया जिसे अपनाकर नरेद्र मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पहुंचे। जी हा, जब कांग्रेस समेत दूसरे दल राग सेक्यूलर आलापती थे और एक समुदाय विशेष के ग़लत कार्य पर चुप्पी साध लेते थे, तब मोदी ने खुलकर हिंदुत्व का दामन थामा और अपने ऊपर हिंदूवादी नेता का टैग लगा लिया। जिसकी बदौलत अर्थ-व्यवस्था को न संभाल पाने के बावजूद पहले कार्यकाल में उन्हें इस देश के लोगों ने लोकसभा में 282 सीटें दी तो दूसरे कार्यकाल में सीटों की संख्या बढ़ाकर 303 कर दिया। अर्नब गोस्वामी को भी मीडिया का नरेंद्र मोदी कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगा। उन्होंने हिंदुओं के ख़िलाफ़ होने वाले अत्याचार पर फोकस करने की रणनीति बनाई। उसी रणनीति के तहत पालघर में साधुओं की हत्या और सुशांत सिंह की रहस्यमय मौत का प्रमुखता से कवरेज किया। जिसकी बदौलत कम समय में उनका अंग्रेज़ी और हिंदी दोनों चैनल सबसे ज़्यादा लोकप्रिय हो गए यानी टीआरपी की भाषा में नंबर एक चैनल हो गए।
रिपब्लिक टीवी या अर्नब गोस्वामी की ख़बरों को प्रस्तुत करने के तरीक़े से बेशक असहमत हुआ जा सकता है या इस तरह की ‘कॉमेडी शैली’ को नापसंद भी किया जा सकता है या इसका खुला विरोध किया जा सकता है और कंटेंट देखने वाली एजेंसी न्यूज़ ब्रॉडकास्ट असोसिएशन यानी एनबीए के यहां शिकायत की जा सकती है। लेकिन इसके बावजूद मुंबई पुलिस जिस तरह से जानबूझ कर इस न्यूज़ चैनल को टारगेट कर रही है, उसका एक स्वर से विरोध किया जाना चाहिए। रिपब्लिक टीवी से पूरे देश में सैकड़ों पत्रकारों समेत हज़ारों लोग और उनका परिवार जुड़ा है। अगर रिपब्लिक टीवी पर अर्थिक चोट पहुंची गई तो ज़ाहिर है, इसका असर इन सभी परिवारों पर भी पड़ेगा, जिनके लोग इस टीवी से जुड़े हैं।
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ऐसे में यह कहना समीचीन होगा कि अभिनेत्री कंगना राणावत ने जिस समय मुंबई को ‘पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर’ यानी पीओके कहा था, उस समय भले मुंबई पीओके जैसी न रही हो, लेकिन पिछले कुछ समय से स्कॉटलैंड यार्ड के समकक्ष मानी जाने वाली मुंबई पुलिस जिस तरह का काम कर रही है, उससे इस बात में दो राय नहीं कि देश की आर्थिक राजधानी में हालात बिल्कुल ही पीओके जैसे हो गए हैं। इसीलिए इस शहर में आम आदमी अपने मौलिक अधिकारों को लेकर आशंकित हो गया है। यहां वही हालत हो गई है कि पानी में रहकर मगरमच्छ से दुश्मनी करना अपना नुकसान कराना है।
हरियाणा में पैदा हुए भारतीय पुलिस सेवा के 1988 बैच के अधिकारी परमवीर सिंह अक्सर सुर्खियों में रहे हैं। सबसे अधिक चर्चा उन्हें तब मिला, जब वह हेमंत करकरे की अगुवाई वाली एटीएस की टीम का हिस्सा थे। एटीएस की उसी टीम ने दुनिया को हिंदू आतंकवाद की थ्यौरी के बारे में बताया था और कहा कि आतंकवादी केवल मुसलमान नहीं होते बल्कि हिंदू भी होते हैं। एटीएस ने मालेगांव बमकांड में साध्वी प्रज्ञासिंह ठाकुर और कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित समेत बड़ी संख्या में लोगों को आतंकवादी करार देकर गिरफ़्तार किया। सभी को टॉर्चर ही नहीं किया बल्कि लंबे समय तक जेल में भी रखा।
पिछले चुनाव में भोपाल से भाजपा सांसद चुनी गईं साध्वी प्रज्ञासिंह ठाकुर ने तो सीधे परमबीर सिंह पर हिरासत के दौरान पीटने के आरोप लगाया था। यानी परमबीर सिंह पर एक महिला ने टॉर्चर करने का आरोप लगाया है। एक अन्य आरोपी कर्नल पुरोहित की पत्नी डॉ. अपर्णा पुरोहित ने भी इसी तरह का आरोप लगाते हुए कहा था कि परमबीर सिंह ने उनके पति को बहुत अधिक टर्चर किया। यहां यह बताना भी ज़रूरी है कि साध्वी प्रज्ञा की गिरफ़्तारी का शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने खुला विरोध किया था। उस समय जब भाजपा के नेता चुप्पी साधे हुए थे, तब बाल ठाकरे, शिवसेना और पार्टी का मुखपत्र ‘सामना’ और ‘दोपहर का सामना’ बहुत मुखर थे और एटीएस पर हिंदू आतंकवाद की थ्यौरी गढ़ने का आरोप भी लगा रहे थे। यह भी अजीब संयोग है कि साध्वी प्रज्ञा को पीटने के आरोपी परमबीर सिंह बाल ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे के कार्यकाल में ही मुंबई के पुलिस कमिश्नर बनाए गए।
लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा