राजनीतिक पर्यटकों की नजर गोवा की राजनीति पर

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हरिगोविंद विश्वकर्मा
क़रीब पांच सदी तक पुर्तगाली शासन के अधीन रहा और केवल 3,702 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले गोवा की 40 सदस्यीय विधान सभा में इस बार भी चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला है। यहां तक कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी भी तेरहवीं विधान सभा में जादुई आंकड़े से एक सीट पीछे रह गई है। सन 1961 में भारतीय गणतंत्र का हिस्सा बनने वाले गोवा पर्यटकों के बीच भले सबसे लोकप्रिय रहा हो, लेकिन भारत का यह दूसरा सबसे छोटा राज्य राजनीतिक दृष्टि से सबसे अधिक अलोकप्रिय और अस्थिर रहा है।

1987 में पूर्ण राज्य का दर्जा पाने वाला गोवा त्रिशंकु विधानसभा के लिए बदनाम रहा है। यह राजनीतिक रूप से इतना अधिक अस्थिर रहा है कि लोकप्रिय सरकार के अभाव में यहां पांच-पांच बार राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। 1990 से 2012 के बीच 23 साल में 15 मुख्यमंत्री बने थे। इस दौरान दल-बदल का आलम यह होता था कि पता ही नहीं चलता था कौन किस दल में है और किस नेता की वफ़ादारी किसके प्रति है। इसी दौरान बेदाग़ छवि वाले आईआईटी से इंजीनियरिंग स्नातक मनोहर पार्रीकर का गोवा की राजनीति में उदय हुआ। पार्रीकर के नेतृत्व में राज्य में भाजपा का जनाधार बढ़ा और पिछले 10 साल में राज्य की जनता ने केवल चार चीफ मिनिस्टर देखे।

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बहरहाल, गोवा में इस बार सूरत-ए-हाल 2017 के चुनाव परिणाम जैसे नहीं दिख रहे हैं। पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी और उसे 17 सीट और भाजपा को 13 सीटें मिली थीं, लेकिन मनोहर पार्रीकर ने क्षेत्रीय दलों और निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल करके भाजपा की सरकार बनाई थी। पणजी की गलियों में स्कूटर से चलने वाले पूर्व रक्षामंत्री पार्रीकर गोवा के मिस्टर क्लीन कहे जाते थे। उन्होंने ही सिक्किम के बाद सबसे छोटी विधान सभा वाले इस राज्य को राजनीतिक अस्थिरता के दलदल से बाहर निकालने का काम किया।

दुर्भाग्य से तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद पार्रीकर अस्वस्थ हो गए और 17 मार्च 2019 को उनका निधन हो गया। इसके बाद लगा, गोवा में भाजपा सत्ता गंवा देगी, लेकिन 19 मार्च 2019 को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले प्रमोद सावंत अपने दो साल के संक्षिप्त कार्यकाल में पार्रीकर के क़ाबिल उत्तराधिकारी साबित हुए और भाजपा ने पूरे पांच साल राज्य में शासन किया। यही बात मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत के पक्ष में दिखाई जाती दे रही है। उन्होंने भाजपा विधायकों की संख्या 13 से 20 करने में सफलता प्राप्त की है, लेकिन 22 विधायकों के लक्ष्य से थोड़ा पीछे रह गए। प्रमोद सावंत ने कहा है कि पार्टी आत्ममंथन शुरू करेगी कि वह अपने दम पर बहुमत का आंकड़ा पार करने में विफल क्यों रही।

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बहरहाल, बहुमत से दूर रहने के बावजूद भाजपा की सत्ता में वापसी हो रही है, क्योंकि चुनाव परिणाम आने के तुरंत बाद सभी तीन निर्दलीय और महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी यानी एमजीपी के दोनों निर्वाचित विधायकों सुदीन ढवलीकर और जीत आरोलकर ने भाजपा को बिना शर्त समर्थन देने की घोषणा कर दी है। गोवा के चुनाव प्रभारी देवेंद्र फड़णवीस ने मतगणना से पहले ही कह दिया था कि भाजपा और एमजीपी नेचुरल अलाई हैं और हम एमजीपी को साथ रखेंगे। वैसे गोवा चुनाव ने महाराष्ट्र के पूर्व का भी क़द बढ़ा दिया है। इससे पहले फड़णवीस बिहार में भाजपा के चुनाव प्रभारी थे और वहां भी पार्टी को नीतीश की जेयूडी से अधिक सीट दिलवाई थी।

बहरहाल, पांच विधायकों का समर्थन मिल जाने से गोवा में तस्वीर एकदम से साफ़ हो गई है। वैसे भी भाजपा इस बार के चुनाव परिणाम को अपनी जीत करार दे रही है। हालांकि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रवि नाइक समेत कई भाजपा नेता एमजीपी का समर्थन लेने के ख़िलाफ़ हैं। इनका तर्क है कि एमजीपी ने भाजपा की धुर विरोधी और पश्चिम बंगाल भाजपा कार्यकर्ताओं की कथित तौर पर हत्या करवाने वाली ममता बनर्जी के दल तृणमूल कांग्रेस से चुनावी गठजोड़ किया था। राजनीतिक हलकों में प्रमोद सावंत को पार्रीकर की ही तरह सीज़न्ड पॉलिटिशियन बताया जा रहा है और माना जा रहा है कि 13 विधायकों के बल पर पांच साल शासन करने वाले दल के लिए 20 विधायकों का आंकड़ा जादुई फीगर से कम भी नहीं है।

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इस बीच शुक्रवार को प्रमोद सावंत सरकार की अंतिम कैबिनेट मीटिंग में विधान सभा को भंग करने की सिफारिश का निर्णय लिया गया। स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे ने कैबिनेट की बैठक के बाद संवाददाताओं से बात करते हुए कहा कि भाजपा मंत्रियों ने एक बार फिर से पार्टी में विश्वास व्यक्त करने के लिए राज्य के लोगों को धन्यवाद देते हुए एक प्रस्ताव पारित किया। भाजपा लगातार तीसरी बार गोवा में अपनी सरकार बनाएगी।

नई सरकार का गठन 14 मार्च के बाद ही होगा। प्रमोद सावंत कांग्रेस उम्मीदवार से हारने से बाल-बाल बचे हैं, फिर भी मुख्यमंत्री पद पर उनका ही दावा सबसे मजबूत दिख रहा है। उन्होंने साफ़ कर दिया है कि राज्य में भाजपा सरकार का नेतृत्व कौन करेगी, इसका फैसला पार्टी हाईकमान यानी केंद्रीय संसदीय बोर्ड लेगा। वैसे इस बार कयास लगाए जा रहे थे कि आम आदमी पार्टी पंजाब की तरह गोवा में भी खेल करेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आप केवल दो सीटों तक सीमित रह गई, लेकिन यहां आप का खाता खुलना अहम माना जा रहा है।

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वैसे प्रमोद सावंत को ही मुख्यमंत्री बनाए जाने की सबसे अधिक संभावना है, लेकिन सीएम की रेस में उपमुख्यमंत्री चंद्रकांत बाबू कावलेकर, स्वास्थ मंत्री विश्वजीत राणे और परिवहन मंत्री मौविन गोडिन्हो और गोवा भाजपा अध्यक्ष सदानंद शेत तनवड़े भी बताए जाते हैं। वैसे शनिवार के केंद्रीय पर्यवेक्षक दल गोवा पहुंच गया और वह सभी 20 नवनिर्वाचित भाजपा विधायकों से बातचीत करने के बाद निर्णय लेगा कि किसे राज्य सरकार का नेतृत्व करने की मौका दिया जाना चाहिए।

गोवा की ख़ासियत यह रही है कि इसकी यूरोपीय संस्कृति का हर सरकार ने सम्मान किया। चाहे वह कांग्रेस की सरकार रही हो या फिर भाजपा की। यहां हर किसी को समुद्र तट पर घूमने फिरने की पूरी आज़ादी है। यहां न तो किसी तरह की कोई बंदिश होती है और न ही किसी तरह का फ़तवा या फ़रमान कि ऐसे रहो, ऐसे कपड़े पहनो। यही वजह है कि यहां लड़कियां समुद्र तट पर बिकनी पहन कर बिंदास घूम सकती हैं। अपने ढंग से ज़िंदगी जी सकती हैं। फिलहाल राजनीति के पर्यटकों की नजर राज्य की नई सरकार पर है।

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