क्या ध्यान भटकाने के लिए सुशांत के डिप्रेशन की कहानी गढ़ी गई?

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अब जबकि केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई की एसआईटी टीम ने अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय मौत की जांच शुरू कर दी है। टीम ने मुंबई पुलिस से सारे दस्तावेज ले लिया है और पूछताछ करने के लिए एजेंसी सुशांत के नौकर नीरज और दूसरे संबंधित लोगों से पूछताछ शुरू कर दी है और बाक़ी लोगों को शहर न छोड़ने का निर्देश भी जारी कर दिया है। ऐसे में लोगों के लिए यह जानना बहुत ज़रूरी है कि स्कॉटलैंड यार्ड के समकक्ष मानी जाने वाली मुंबई पुलिस जांच के नाम पर क्या-क्या लीपापोती कर रही थी?

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आप यह जानकर दंग रह जाएंगे कि मुंबई पुलिस ने दो महीने से ज़्यादा समय तक इस हाई प्रोफ़ाइल केस में केवल और केवल लोगों का ध्यान भटकाने का ही काम किया। किसी को यक़ीन नहीं होगा, लेकिन यह सच है कि सुशांत की रहस्यमय मौत को कथित तौर पर आत्महत्या करार देने वाली मुंबई पुलिस ने इस घटना के 67 दिन बीत जाने तक कोई एफ़आईआर तक दर्ज़ नहीं किया। पुलिस जो भी कार्रवाई कर रही थी, बिना किसी एफ़आईआर के ही कर रही थी।

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कल्पना कीजिए, 1993 सीरियल ब्लास्ट को अंजाम देने वालों का सुराग मुंबई पुलिस ने 24 घंटे के अंदर ढ़ूंढ़ निकाला था, लेकिन उसी मुंबई पुलिस ने देश की सबसे बड़ी रहस्यमय मौत की जांच तो दूर की बात उस कथित आत्महत्या की कोई प्राथमिकी तक दर्ज़ नहीं की। क़ानून की जानकारी रखने वाले लोग ही नहीं, बल्कि क्राइम रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार भी इस बात पर हैरानी जता रहे हैं कि मुंबई पुलिस जैसी पेशवर जांच एजेंसी से इतनी बड़ी ग़लती कैसे हो गई।

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जहां छोटी-मोटी चोरी और मारपीट जैसी घटनाओं तक का पुलिस स्टेशन में एफ़आईआर दर्ज़ करना ज़रूरी होता है, वहीं राष्ट्रीय ख्याति के अभिनेता की उसके ही घर में संदिग्ध परिस्थिति में मौत हो गई, लेकिन देश की सबसे बेहतरीन पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज करना मुनासिब नहीं समझा। मुंबई पुलिस ने जिन-जिन लोगों के बयान दर्ज़ किए, वह बिना किसी एफ़आईआर के ही किया। अगर उस समय कोई व्यक्ति पुलिस स्टेशन आने से इनकार कर देता तो मुंबई पुलिस उस पर कोई दबाव भी नहीं डाल पाती, क्योंकि पुलिस स्टेशन में कोई एफ़आईआर ही नहीं दर्ज़ थी।

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सुशांत सिंह की मौत के बाद एफ़आईआर दर्ज करने की बजाय उलटे मुंबई पुलिस ने यह कहना शुरू कर दिया, यह ख़ालिस आत्महत्या का मामला है। और तो और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आने से पहले मीडिया में ख़बर चलने लगी कि सुशांत ने अपने घर में पंखे से लटक कर ख़ुदकुशी कर ली। बांद्रा पुलिस स्टेशन के पुलिसकर्मी जब घटना की जानकारी लेने के लिए सुशांत सिंह के घर पहुंचे, तो सुशांत के दोस्त कहे जाने सिद्धार्थ पिठानी नाम के व्यक्ति ने बताया, “सुशांत ने अपने बेडरूम में पंखे से लटककर ख़ुदकुशी कर ली। मैंने उसकी लटकती बॉडी को पंखे से उतार कर उसके बिस्तर पर लिटा दिया।”

 

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बांद्रा पुलिस ने सिद्धार्थ पिठानी से कोई सवाल तक नहीं किया और पार्थिव शरीर को पोस्टमॉर्टम के लिए कूपर अस्पताल भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी। यहां एबीपी न्यूज़ के गणेश ठाकुर ने सुशांत सिंह की मौत के बाद उसके बंद कमरे के दरवाज़े का इलेक्ट्रॉनिक लॉक तोड़ने वाले ताला मैकेनिक मुहम्मद रफी शेख़ को खोज निकाला। ताला मैकेनिक ने जो बात बताई, उससे सबके होश उड़ गए। ताला मैकेनिक के मुताबिक, उसने जैसे ही ताला तोड़ने के बाद दरवाज़े को खोलने के लिए अंदर ढकेलने का प्रयास किया तो वहां मौजूद सिद्धार्थ पिठानी ने उसे तुरंत रोक दिया। उन्होंने कहा कि अब आप यहां से चले जाइए, आपका काम हो गया। फिर सिद्धार्थ ने उसे दो हजार रुपए दिए और ताला मैकेनिक चला गया।

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ताला मैकेनिक ने ही टीवी रिपोर्टर को बताया कि सिद्धार्थ पिठानी के मोबाइल से उसके मोबाइल पर फोन आया और उस तुरंत आने को कहा था। ताला मैकेनिक के कहने पर सिद्धार्थ ने ताले का फोटो भी उसे भेजा था। तब मैकेनिक ने उन्हें बताया था कि इलेक्ट्रॉनिक लॉक है, खोलने या तोड़ने के दो हजार रुपए लगेंगे। इस पर सिद्धार्थ ने कहा कि पैसा कोई इशू नहीं है और उसे आने को कहा। इसके बाद ताला मैकेनिक सुशांत के फ्लैट पर गया। तब तक उसे पता नहीं था कि वह अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के घर का ताला खोलने जा रहा है।

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बहरहाल, ताला मैकेनिक ने पहले डुप्लीकेट चाबी से ताला खोलने का प्रयास किया, लेकिन जब बात नहीं बनी तो उसने सिद्धार्थ से पूछकर ताला तोड़ना शुरू किया, क्योंकि दरवाज़ा जल्दी से जल्दी खोलना उस समय सबसे बड़ी ज़रूरत थी। सात-आठ मिनट में ताला टूट गया और ताला टूटते ही जैसे ताला मैकेनिक ने दरवाज़ा खोलना चाहा तो उसे रोकते हुए सिद्धार्थ ने कहा, “वन मिनट, यह लो अपने पैसे और अब तुम यहां से चले जाओ।” इसलिए ताला मैकेनिक कमरे के अंदर देख नहीं पाया कि सुशांत सिंह पंखे से लटके हैं या नहीं।

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अमूमन जब भी किसी कमरे में किसी अनिष्ट की आशंका रहती है तो दरवाज़ा खुलते ही परिजन, दोस्त या घर में रहने वाले लोग सीधे दरवाज़ा ढकेल कर कमरे में ही भागते हैं। लोग बदहवाश रहते हैं और जल्द से जल्द यह जानना चाहते है कि अंदर क्या हुआ है। लेकिन यहां तो ताला टूटने के बाद सिद्धार्थ पिठानी ने कमरे में भागने की जगह पहले ताला मैकेनिक का हिसाब और उसे पेमेंट करने और उसे वहां से हटाने का काम किया। बाद में सुशांत के नौकर ने मीडिया को बताया कि ताला टूटने के बाद जब ताला मैकेनिक चला गया, तब कमरे के अंदर सबसे पहले सिद्धार्थ पिठानी ही गए थे।

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हैरान करने वाली बात यह है कि सिद्धार्थ पिठानी घटना के बाद हर गतिविधि का फोटो ले रहे थे, यहां तक कि श्मशान में जलते हुए पार्थिव शरीर का भी विडियो बना लिया, लेकिन उन्होंने कथित तौर पर पंखे से लटके सुशांत के पार्थिव शरीर का विडियो बनाना तो दूर उन्होंने उसका एक फोटो तक नहीं लिया। आश्चर्यजनक रूप से उन्होंने सुशांत के पार्थिव शरीर को पंखे से उतार कर बिस्तर पर लिटा दिया। जबकि सुशांत की बहन मीतू सिंह लगातार उन्हें फोन कर रही थी कि वह कुछ मिनट के अंदर वहां पहुंच रही हैं, लेकिन सिद्धार्थ ने उनका भी इंतज़ार नहीं किया।

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ऐसे में मुंबई पुलिस को सबसे पहले कड़ाई से सिद्धार्थ पिठानी को ही इंटरोगेट करना चाहिए था, लेकिन मुंबई पुलिस ने कुछ नहीं किया। मुंबई पुलिस को सबूत नष्ट होने से बचाने के लिए सुशांत के कमरे को फौरन सील कर देना चाहिए था, लेकिन मुंबई पुलिस ने उसे टीवी मीडिया के लिए खोल दिया और टीवी रिपोर्टर सुशांत के उसी कमरे से लाइव रिपोर्टिंग करते रहे। मुंबई पुलिस ने सुशांत की रहस्यमय मौत की गहन जांच की बजाय उसे नेपोटिज्म और डिप्रेशन का एंगल देकर उसी को साबित करने के लिए लोगों के बयान दर्ज़ करने की मैराथन प्रक्रिया शुरू कर दी।

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इतना ही नहीं, सुशांत सिंह की रहस्यमय मौत के बाद अचानक सक्रिय दिख रहे संदीप सिंह से भी मुंबई पुलिस को कड़ाई से पूछताछ करना चाहिए थी, लेकिन पुलिस ने यह भी नहीं किया। इंडियन एक्प्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया था कि संदीप सिंह को सुशांत से जुड़े लोग जानते भी नहीं थे, फिर संदीप सिंह अचानक सीन में कैसे आ गए? उन्हें किसने बुलाया? वैसे संदीप सिंह और सुशांत की पूर्व गर्लफ्रेंड अंकिता लोखंडे की कुछ अंतरंग तस्वीरें सोशल मीडिया में ज़रूर वायरल हो गई थीं। लेकिन सुशांत के जीते जी संदीप सिंह कहीं किसी चर्चा में नहीं थे। यही ऐसा बिंदु है, जहां शक की एक सूई अंकिता लोखंडे की ओर भी जा रही है।

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रिसर्च एंड एनालिसिस विंग(रॉ) के पूर्व प्रमुख विक्रम सूद ने यू-ट्यूब पर अपलोड अपने एक विडियो में संदीप सिंह के साथ साथ सुशांत के नौकर को कठघरे में खड़ा किया था। उन्होंने आशंका जताई थी कि संदीप ने ही कुछ लोगों के साथ मिलकर सुशांत की हत्या की होगी। इसी बिना पर उन्होंने संदीप का इंटरोगेशन करने पर ज़ोर दिया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि फूलप्रूफ़ साज़िश के तहत माफ़िया डॉन दाऊद इब्राहिम ने सुशांत की उनके ही घर पर हत्या करवा दी। लेकिन पुलिस ने इस बारे में कुछ नहीं किया। मुंबई पुलिस की ये तमाम ग़ल्तियां महाराष्ट्र सरकार के उस बयान की पोल खोलती हैं, जिनमें अंत तक दावा किया कि मुंबई पुलिस सही दिशा में जांच कर रही थी।

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पिछले तीन दशक से अपराध बीट कवर कर रहे नवभारत टाइम्स के वरिष्ठ पत्रकार सुनील मेहरोत्रा ख़ुद इस पर हैरानी जता रहे हैं कि इस हाइप्रोफाइल केस में मुंबई पुलिस ने इतना बड़ा ब्लंडर कैसे कर दिया। सुशांत की रहस्यमय मौत पर नवभारत टाइम्स में कई एक्सक्लूसिव रिपोर्ट फाइल करने वाले सुनील मेहरोत्रा कहते हैं कि बिना एफ़आईआर के पुलिस किसी भी संबंधित व्यक्ति को पूछताछ या बयान दर्ज करने के लिए पुलिस स्टेशन नहीं बुला सकती, इसलिए पुलिस को बयान दर्ज़ करने से पहले एफ़आईआर दर्ज़ करनी चाहिए थी।

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ऐसे में सवाल उठता है कि मुंबई पुलिस ने ऐसा क्यों किया? आख़िर किसके कहने पर मुंबई पुलिस ने
एफ़आईआर तक दर्ज़ न करने का ब्लंडर किया? किसके कहने पर मुंबई पुलिस ने सुशांत के डिप्रेशन में होने और आत्महत्या करने की कहानी गढ़ी? ऐसे में अब एकमात्र विकल्प है कि सीबीआई इस मामले में संबंधित पुलिस वालों की संदिग्ध भूमिका की जांच करे और सच तक पहुंचने के लिए उनसे भी गहन पूछताछ करे और ज़रूरी हो तो नार्को और लाई डिटेक्टर टेस्ट का इस्तेमाल करके सच जानने की कोशिश करे।

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यहां यह भी गौर करने लायक बात है कि सुशांत सिंह के मामले पूर्व गर्लफ्रेंड रिया चक्रवर्ती की याचिक की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई पुलिस की इसी भूमिका पर गंभीर टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुशांत केस में मुंबई पुलिस कोई जांच नहीं कर रही थी। जांच करने की जगह मुंबई पुलिस केवल इस बारे में लोगों के बयान दर्ज़ कर रही थी और बिना एफ़आईआर के बयान दर्ज़ करना जांच होती ही नहीं। इसलिए, देश की सबसे बड़ी अदालत ने सुशांत सिंह की रहस्यमय मौत के केस की जांच करने के लिए सीबीआई को अधिकृत कर दिया।

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मुंबई पुलिस जैसी पेशेवर जांच एजेंसी इतनी गंभीर लापरवाही और ब्लंडर कर ही नहीं सकती। ऐसे में सवाल यह उठता है कि मुंबई पुलिस ने यह सब किसके इशारे पर और क्यों किया? इसके पीछे मुंबई पुलिस का क्या इंटरेस्ट था। सुशांत के मामले में जब किसी का कोई वेस्टेड इंटरेस्ट ही नहीं था, तब जांच में इतनी गंभीर लापरवाही क्यों की गई, यह भी सिर चकरा देनी वाली बात है। बहरहाल, सीबीआई मुंबई पुलिस के दो डीसीपी और सुशांत के शव का पोस्टमॉर्टम करने वाले  कूपर अस्पताल के चारों डॉक्टरों से भी पूछताछ करने का फ़ैसला किया है।

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

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