क्या देश के ‘मन की बात’ कहने लगे हैं राहुल गांधी?

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पिछले कुछ समय के घटनाक्रम पर गौर करें, तो यही लगता है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी बस एक ट्विट या पोस्ट भर कर देते हैं और केंद्र सरकार का हर मंत्री ही नहीं, बल्कि भाजपा अध्यक्ष से लेकर आम कार्यकर्ता तक तमतमा उठता है। सभी लोग एकसुर में तरह-तरह के बयान देने लगते हैं। कभी-कभी तो राहुल गांधी के एक ट्विट पर कई मंत्रियों का बयान आने लगता है। ऐसा लगता है, भाजपा के लोग छह साल तक देश पर शासन करने के बावजूद अभी तक ‘अपोज़िशन मोड’ में है। ये लोग राज करने के बावजूद विपक्ष की मानसिकता से बाहर नहीं आ पा रहे हैं। यही वजह है कि हर सवाल के जवाब में भाजपा नेता राग ‘कांग्रेस के सत्तर साल का शासन’ और ‘नेहरू’ आलापने लगते हैं।

इन दिनों राहुल गांधी दो ही टॉपिक चीनी वायरस यानी कोरोना की देश में और चीनी सैनिकों की भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ पर पर ट्विट या पोस्ट करते हैं। इस बार राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर अपनी पोस्ट में सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि कोरोना को लेकर शुरू से सरकार की नीति समझ से परे रही है। राहुल गांधी ने इसके लिए वॉशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट का हवाला दिया जिसे अमेरिकी अख़बार के दिल्ली के दो संवाददाताओं ने फाइल की है। यहां राहुल गांधी की बात को काटा नहीं जा सकता, जिसमें वह कहते हैं कि कुछ तो कंफ्यूजन है, जिस पर यह सरकार लीपापोती कर रही है।

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राहुल गांधी के सवाल पर भाजपा नेताओं के तर्क या जवाबी हमले से देश का आम नागरिक भी संतुष्ट नहीं होता है। आम आदमी के मन में शंका पैदा होती है कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ी ज़रूर है। यह भी गौरतलब है कि जब कोरोना से दस-बीस लोग संक्रमित हो रहे थे, तो हेल्थ, होम मिनिस्ट्री और संबंधित लोगों की रोज़ाना शाम चार बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस होती थी, अब जबकि रोज़ाना चालीस हज़ार से अधिक लोग कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं, तब सरकार बस आंकड़े जारी करके अपने फ़र्ज़ का इतिश्री कर रही है। इससे साफ़ है कि सरकार की नीति स्पष्ट नहीं है।

कहना न होगा कि भाजपा और मोदी समर्थकों को छोड़ दें तो राहुल गांधी का ट्विट करके या फेसबुक पोस्ट से केंद्र सरकार से सवाल पूछना आम नागरिक को भी बुरा नहीं लगता। इसका मतलब यह है कि लोग चाहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या उनकी सरकार साफ़-साफ़ राहुल गांधी के सवालों का जवाब दे, क्योंकि सरकार का काम जवाब देना है। सवाल पूछना नहीं। जबकि सरकार और भाजपा के लोग उलटी गंगा बहा रहे हैं। यहां भी राहुल के सवाल के जवाब में उलटे उनसे ही सवाल करना, जवाब देने की बजाय, चतुराई से मुद्दे को भटकाने के अलावा कुछ नहीं है। यह हर मुद्दे को लेकर अनावश्यक कन्फ्यूजन पैदा करने की कोशिश भी है।

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लद्दाख में चीन की कथित घुसपैठ के बाद जब 20 सैनिक शहीद हुए तो सरकार ने पिछले महीने सर्वदलीय बैठक बुलाई। उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश को बताया, “हमारी सीमा में न तो कोई घुसा है, न ही कोई घुस आया है।” देश के मुखिया की बात सबने मान ली। मोदी के कहने का मतलब चीन की पीपल लिबरेशन आर्मी भारतीय सीमा में नहीं घुसी है, जबकि सेटेलाइट चित्र में बताया जा रहा है कि चीनी सेना अपनी पोजिशन से आगे बढ़कर भारत की तरफ़ आ गई है। भारतीय पक्ष द्वारा अगर अप्रैल वाली स्थिति बहाल करने को कहा जा रहा है, तो इसका मतलब यही है कि चीनी सेना उस क्षेत्र में ‘घुस’ आई है। जिसे भारत अपना क्षेत्र बताता रहा है और जहां भारतीय जवान अब तक पेट्रोलिंग करते रहे हैं।

राहुल गांधी यही तो पूछ रहे हैं कि प्रधानमंत्री या उनकी सरकार यह बताए कि चीन की सेना भारतीय क्षेत्र में कहां तक घुस आई है और अब सीमा पर कैसे हालात हैं। यह तो देश विरोधी नहीं बल्कि देशवासियों के मन की बात है। सरहद से हर नागरिक का भावनात्मक रिश्ता होता है। इसलिए लोग जानना चाहते हैं कि कोई हमारे क्षेत्र में कैसे कोई घुस आया और स्थाई स्ट्रक्चर भी बना लिया। जब चीनी सैनिक आगे बढ़ रहे थे, तब हमारे सैनिक या लद्दाख में सरहद पर सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार लोग क्या कर रहे थे। ऐसी नौबत कैसे आ गई कि हमारे 20 जवानों को शहीद होना पड़ा।

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सबसे अहम राहुल गांधी और कांग्रेस अब भी इस बात पर दृढ़ हैं कि चीन की सेनाएं अब भी भारतीय क्षेत्र में बनी हुई हैं। यह बहुत गंभीर आरोप है। इसीलिए केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का लद्दाख का दौरा करने भर से काम नहीं चलेगा। चीनी सेना की मौजूदा स्थिति पर सरकार को पूरे देश को सूचित करना चाहिए, कि आख़िर अमेरिका समेत कई प्रमुख देशों के प्रतिकूल रुख के बावजूद चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार अपने सैनिकों को वापस क्यों नहीं बुला रही है।

ज़ाहिर है, ऐसे हालात में प्रधानमंत्री कुछ नहीं बोलेंगे, क्योंकि इस मसले पर वह पहले ही बोल चुके हैं। वह पहले ही कह चुके हैं कि हमारी सीमा में न तो कोई घुसा है, न ही कोई घुस आया है। मतलब जो नेता पहले ही कह चुका है कि चीन ने कोई घुसपैठ नहीं की है, तब वह किस मुंह से बताएगा कि चीन की सेनाएं कितना पीछे गई हैं। ज़ाहिर है, चीनी घुसपैठ के मुद्दे पर तब तक कन्प्यूजन बना रहेगा, जब तक दिल्ली सल्तनत में कोई बदलाव नहीं होता।

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राहुल गांधी को बच्चा कहकर या उनको उपहासजनक संबोधन देकर उनके सवालों की तासीर को कम नहीं किया जा सकता। इसमें दो राय नहीं कि राहुल गांधी जनता के मन की बात कहकर लोगों की आवाज बन रहे हैं और साथ ही साथ वह अपने को स्टेब्लिश कर रहे हैं। सरकार और भाजपा नेताओं का एक तरफ से राहुल गांधी पर पिल पड़ना भी यही दर्शाता है कि राहुल गांधी राष्ट्रीय स्तर पर उनके लिए सिरदर्द बन गए हैं। वह विपक्षी नेता की भूमिका का निर्वाह करते हुए बहुत जेनुइन मसले प्रधानमंत्री और उनकी सरकार पर घेर रहे हैं।

यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि कांग्रेस अब उबर रही है। इसीलिए भाजपा राहुल गांधी को ख़तरे के रूप में देखने लगी है। पार्टी जानती है कि उसे केवल राहुल गांधी से चुनौती मिल सकती है। इसीलिए उनके हर ट्विट का जवाब देने के लिए भाजपा नेताओं का तांता लग जाता है। सार्वजनिक तौर पर सरकार के काम का ज़िक्र करने की बजाय सभी लोग कांग्रेस कार्यकाल, गांधी फैमिली और नेहरू का ज़िक्र करते हैं। देश के लोग भली-भांति जानते हैं, कि नेहरू, शास्त्री, गांधीज, नरसिंह और मनमोहन के कार्यकाल में कांग्रेस ने क्या किया। जो नहीं जानते थे, उन्होंने सुन-सुन कर जान लिया कि कांग्रेस नेताओं ने क्या क्या? कांग्रेस ने गलती की, उसकी सज़ा जनता ने उसे दी और सत्ता से बाहर कर दिया। अब मौजूदा केंद्र सरकार ने अपने छह साल के कार्यकाल में क्या-क्या किया, यह जानने का अधिकार हर देशवासी को है। कम से कम उन लोगों को तो और भी ज्यादा जो लोग 2014 और 2019 में इस सरकार को वोट दिए हैं।

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दरअसल, भारत की जनता का टेस्ट ही ऐसा है कि यहां जुमलेबाज़ों के लिए ज़बरदस्त स्कोप रहा है। जनता को जुमलेबाज़ी से रिझा कर नरेंद्र मोदी सत्ता तक पहुंचे हैं। अगर कहें कि राहुल गांधी भी मोदी की तरह जुमलेबाज़ी करने लगे हैं, तो अतिशयोक्ति या हैरानी नहीं होनी चाहिए। पिछले दस साल से राहुल गांधी अच्छी जुमलेबाजी करने लगे हैं। फिलहाल तो वह बार-बार ट्विट करके चीनी वायरस और चीनी सेना के संक्रमण को रोकने में सरकार की नाकामी की बात करके मोदी और उनकी सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं।

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

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