मकर संक्रांति से होती है शुभ दिन की शुरुआत !

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पिछले एक साल से कोरोना संक्रमण के चलते गंभीर संकट के दौर से गुज़र रहे भारत के लोगों के लिए मकर संक्रांति एक अच्छी ख़बर लेकर आया है। कोरोना को मात देने के लिए बनी वैक्सीन को लोगों को देने का सिलसिला बस शुरू ही होने वाला है। वैसे भी कहा जाता है और ऐसा विश्वास है कि 14 जनवरी यानी मकर संक्रांति से पृथ्वी पर अच्छे दिनों की शुरुआत होती है।

मकर संक्रांति वर्ष का पहला त्यौहार है। इसे भारत ही नहीं एशिया के कई देशों में अलग-अलग नामों से हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। भारत का यह प्रमुख पर्व हर जगह अलग-अलग नाम और भांति-भांति के रीति-रिवाजों के ज़रिए भक्ति एवं उत्साह के साथ सेलिब्रेट किया जाता है। मकर संक्रांति को पंतगबाजी का आयोजन होता है। गुजरात में पंतगबाज़ी का बहुत क्रेज़ है। इस दिन बच्चे-बुजुर्ग सभी पंतग उड़ाकर मकर संक्रांति सेलिब्रेट करते हैं। मकर संक्रांति हर साल अमूमन 14 जनवरी को मनाई को जाती है, लेकिन कभी-कभी यह त्योहार 15 जनवरी को भी पड़ता है।

दरअसल, यह पर्व तब मनाया जाता है, जब पौष मास में जब सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। हिंदू पंचांग और धर्म शास्त्रों के अनुसार सूर्य का मकर राशि में प्रवेश 14 जनवरी या 15 जनवरी को होता हैं। शास्त्रों के अनुसार रात में संक्रांति नहीं मनाते तो अगले दिन सूर्योदय के बाद ही उत्सव मनाया जाना चाहिए। इसलिए हिंदू धर्म को मानने वाले अब इस त्योहार को 14 जनवरी की जगह 15 जनवरी को मनाने लगे हैं।

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शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात नकारात्मकता का प्रतीक और उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण जैसे धार्मिक अनुष्ठानों का विशेष महत्व दिया जाता है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। जैसा कि इस श्लोक से स्पष्ठ होता है- माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम। स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥

इस परंपरा की शुरुआत भगवान राम ने की थी। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में इसका जिक्र करते हुए लिखा है, माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई॥ तुलसीदास ने राम चरित मानस में भगवान श्री राम के बाल्यकाल का वर्णन करते हुए लिखा है कि भगवान श्री राम ने भी पतंग उड़ायी थी। उन्होंने लिखा है कि पतंग उड़ाने की शुरूआत औरों से पहले श्रीराम ने की थी। इसके लिए यह चौपाई रची। राम इक दिन चंग उड़ाई, इंद्रलोक में पहुंची जाई। रामायण के अनुसार मकर संक्रांति ही वह पावन दिन था, जब प्रभु श्री राम एवं हनुमान जी की मित्रता हुई।

मकर संक्रांति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को बहुत शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है। माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रांति से शुरू होकर शिवरात्रि के आख़िरी स्नान तक चलता है। संक्रांति के दिन स्नान के बाद दान देने की भी परंपरा है। 14 जनवरी से ही इलाहाबाद में हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है। 14 दिसंबर से 14 जनवरी तक का समय खरमास के नाम से जाना जाता है। इस दौरान पूरे एक महीने कोई भी शुभ कार्य शुरू नहीं दिया जाता था।

मकर संक्रांति को ही मोक्षदायिनी गंगा भगीरथ के पीछे-पीछे चलती हुई कपिल मुनि के आश्रम से होकर गंगासागर में जा मिली थीं। इसीलिए गंगासागर (पश्चिम बंगाल) में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है। इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिए लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है। लोग कष्ट उठाकर गंगासागर की यात्रा करते हैं। कहा जाता है- सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार। इस पर्व पर स्नान के बाद तिल दान करने की प्रथा है। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था। बागेश्वर में बड़ा मेला लगता है। गंगा-स्नान रामेश्वर, चित्रशिला और अन्य स्थानों में भी होते हैं। इस दिन गंगा स्नान करके तिल के मिष्ठान को ब्राह्मणों और पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है। इस पर्व पर क्षेत्र में गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े-बड़े मेले लगते हैं। समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है।

उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से ‘दान का पर्व’ है। यहां में इसे खिचड़ी, पंजाब और जम्मू-कश्मीर में लोहड़ी तो तमिलनाडु में पोंगल नाम दिया गया है। कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। शेष राज्यों में इसे मकर संक्रांति ही कहते हैं। इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं, यह भ्रांति है कि उत्तरायण भी इसी दिन होता है। किंतु मकर संक्रांति उत्तरायण से भिन्न है। विभिन्न नाम भारत में यह त्योहार ताइ पोंगल, उझवर तिरुनल, माघी, भोगाली बिहु, शिशुर सेंक्रात, पौष संक्रांति, मकर संक्रमण, माघे संक्रांति, माघी संक्रांति और खिचड़ी संक्रांति नाम से भी जाना जाता है, जबकि इसे थाईलैंड में सोंगकरन, लाओस में पिमालाओ, म्यानमार में थिंयान, कंबोडिया में मोहा संगक्रान और श्रीलंका में पोंगल और उझवर तिरुनल कहा जाता है।

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हरियाणा और पंजाब में इसे एक दिन पूर्व 13 जनवरी को ही मनाया जाता है। इस दिन अंधेरा होते ही आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है। इस अवसर पर मूंगफली, तिल की गजक और रेवड़ियां आपस में बांटकर खुशियां मनाई जाती हैं। बेटियां घर-घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी मांगती हैं। नई बहू और नवजात बच्चे (बेटे) के लिए लोहड़ी का विशेष महत्व होता है। इसके साथ पारंपरिक मक्के की रोटी और सरसों के साग का आनंद भी उठाया जाता है।

महाराष्ट्र में इस दिन विवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रांति पर कपास, तेल व नमक जैसी वस्तुएं सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल-गूल नामक हलवे के बांटने की प्रथा भी है। इस दिन आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बांटने की भी प्रथा है। लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं -तिल गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो। असम में मकर संक्रांति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं।

तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं। प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल और चौथे व अन्तिम दिन कन्या-पोंगल। इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं। इस दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है।

मकर संक्रांति के अवसर पर भारत के विभिन्न भागों में, और विशेषकर गुजरात में, पतंग उड़ाने की प्रथा है। राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएँ अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही महिलाएँ किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं। इस प्रकार मकर संक्रांति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में दिखती है।

सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किंतु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छह-छह महीने के अंतराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहां पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं और सर्दी का मौसम होता है। किंतु मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं और गर्मी का मौसम शुरू हो जाता है।

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दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा और रात्रि छोटी होने से अंधकार कम होगा। अत: मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी। ऐसा जानकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है। सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रांति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष १४ जनवरी को ही पड़ता है।

ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में इस दिन का विशेष महत्व है। अपने वंश के नाश से दुखी पांडव अपने भगवान श्रीकृष्ण के साथ इसी दिन कुरुक्षेत्र में सरशैया पर पड़े भीष्म पितामह के पास गए थे। भीष्म पितामह ने देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था।

मकर संक्रांति की सभी लोगों को शुभकामनाएं…

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

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