आजकल जहां ज़्यादातर अस्पतालों में नर्सों, डॉक्टरों और वह उपलब्ध कराई जाने वाली सर्विस से मरीज़ और उनके परिजन संतुष्ट नहीं होते और शिकायत करते रहते हैं, वहीं देश के सबसे बेहतरीन अस्पतालों में से एक दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान जिसे एम्स के नाम से जाना जाता है, में मरीज़ों को शानदार उपचार और सर्विस मिलती है। यह खुलासा एक सर्वेक्षण में हुआ है। लगातार तीसरी बार अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) नई दिल्ली ने राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग (NIRF 2020) में चिकित्सा श्रेणी में शीर्ष स्थान प्राप्त किया।
रोज़ाना क़रीब 10 हजार मरीज़ों का इलाज करने वाला दिल्ली का अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स पिछले कई दशक से कई उतार चढ़ाव का गवाह रहा है। एम्स दरअसल, सार्वजनिक आयुर्विज्ञान महाविद्यालय का समूह है। इस समूह में नई दिल्ली का एम्स देश का सबसे पुराना उत्कृष्ट एम्स संस्थान माना जाता है। इसकी साख़ इतनी अच्छी है कि प्रधानमंत्री, पूर्व प्रधानमंत्री से लेकर दूसरे वीआईपी कैटेगरी के ढेर सारे लोग इलाज या मेडिकल चेकअप के लिए इसी अस्पताल में आते रहे हैं।
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सन् 1952 में रखी गई आधारशिला
एम्स इसकी आधारशिला सन् 1952 में रखी गई थी। इसका सृजन 1956 में संसद के एक अधिनियम के माध्यम से स्वायत्त संस्थान के रूप में स्वास्थ्य देखभाल के सभी पक्षों में उत्कृष्टता को पोषण देने के केंद्र के रूप में कार्य करने के लिए किया गया। अरविंद मार्ग से सटे दिल्ली के रिंग रोड के चौक, जिसे अब एम्स चौक कहा जाता है, पर इसकी इमारत बनाने की शुरुआत हुई। नौ साल में एम्स की शानदार इमारत बनकर तैयार हो गई।
ब्रिटिश महारानी ने किया उद्घाटन
ब्रिटिश महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने 27 जनवरी 1961 को एम्स की इमारत की औपचारिक शुरुआत की थी। इस अवसर पर बहुत भव्य समारोह आयोजित किया गया था, जिसमें ब्रिटेन के प्रिंस फिलिप द्वितीय, तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद और तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू भी मौजूद थे। एम्स के द्घाटन समारोह की वह दुर्लभ स्मारक पट्टिका अभी भी पं. नेहरू प्रेक्षागृह की इमारत में लगी हुई है।
दीमक खा गए गुलमोहर का वृक्ष
बहरहाल, इस प्रमुख चिकित्सा संस्थान के भव्य उद्घाटन के समय महारानी एलिजाबेथ द्वारा इसके मुख्य परिसर में लगाया गया पेड़ कुछ साल पहले दीमकों के कारण नष्ट हो गया। हालांकि उसके नष्ट होने के बाद वहां पर नए पेड़ लगा दिए गए हैं। दरअसल, एम्स की इमारत के क़रीब ब्रिटिश महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने वह पेड़ भी लगाया था। वह गुलमोहर का पेड़ था। बाद में दीमकों के कारण नष्ट होने के कारण इस पेड़ के स्थान पर हमने बॉटल ब्रुश के चार पौधे लगाए जबकि इसके बाहरी घेरे पर भी आठ पौधे और लगाए गए हैं।
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पीएम करते हैं निदेशक की नियुक्ति
शाही दंपत्ति का एम्स दौरे वाला दुर्लभ चित्र अभी भी संस्थान के अभिलेखागार में रखा है। कुछ साल पहले संस्थान की हीरक जयंती के मौके पर उनमें से कई चित्र प्रदर्शन के लिए भी रखे गए थे। महारानी एलिजाबेथ द्वितीय सरकारी मेहमान के तौर पर 1961 में भारतीय गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल होने भारत आई थीं। एम्स के निदेशक की नियुक्ति प्रधानमंत्री कार्यालय से की जाती है। आजकल डॉ. रणदीप गुलेरिया एम्स के निदेशक हैं।
इस समय देश में 14 एम्स
बहरहाल, अब एम्स का विस्तार करके सात अन्य एम्स संस्थान देश के अलग-अलग क्षेत्रों में स्थापित किए जा रहे हैं। अब क़रीब-क़रीब हर बजट में एम्स की शाखाएं कहीं न कहीं बनाने की घोषणा की जाती है। फिलहाल देश के दूर-दराज के लोगों को बेहतर इलाज की सुविधाएं उपलब्ध कराने के मकसद से 14 अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान काम कर रहे हैं। सरकार ने दिल्ली के अलावा 2012 में भोपाल, भुवनेश्वर, जोधपुर, पटना, रायपुर और ऋषिकेश में एम्स की स्थापना की। 2016 में भटिंडा, झारखंड के देवधर और अहमदाबाद में एम्स शुरू हो गया। इसके बाद तेलंगाना के बीबीनगर, आंध्र प्रदेश के मंगलगिरी, नागपुर और रायबरेली में भी एम्स की स्थापना कर दी गई है।
एम्स की स्थापना सभी शाखाओं में स्नातक और स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा में अध्यापन के पैटर्न विकसित करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय महत्व के एक संस्थान के रूप में की गई थी, ताकि भारत में चिकित्सा शिक्षा के उच्च मानक प्रदर्शित किए जा सकें तथा स्वास्थ्य गतिविधि की सभी महत्वपूर्ण शाखाओं में कार्मिकों के प्रशिक्षण हेतु उच्चतम स्तर की शैक्षिक सुविधाएं एक ही स्थान पर लाने और स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा में आत्मनिर्भरता पाई जा सके।
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मरीज़ों के लिए बेहतरीन सुविधाएं
एम्स में अध्यापन, अनुसंधान और रोगियों की बेहतर देखभाल के लिए बहुत व्यापक सुविधाएं हैं। यहां से हर साल बड़ी संख्या में छात्र मेडिकल में ग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट होकर निकलते हैं। यहां ग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट दोनों ही स्तरों पर मेडिकल और पैरामेडिकल पाठ्यक्रमों में पढ़ाई होती है। यह संस्थान छात्रों को अपनी डिग्री देता है। फिलहाल यहां 42 विषयों में स्टडी और रिसर्च की सुविधा उपलब्ध हैं। एम्स में एक नर्सिंग महाविद्यालय भी चलाया जाता है और यहां बीएससी (ऑनर्स) नर्सिंग पोस्ट प्रमाण पत्र डिग्री के लिए छात्रों को बेहतरीन ट्रेनिंग भी दी जाती है।
कैंसर मरीज़ों के लिए सर्वश्रेष्ठ
एम्स में हर बीमारी का बेहतरीन और सस्ता उपचार उपलब्ध है। लेकिन कैंसर मरीज़ों की यहां सर्वोत्तम इलाज होता है। जो लोग निजी अस्पतालों का ख़र्च वहन करने की स्थिति में नहीं होते वे एम्स का रुख करते हैं। अगर प्रारंभिक स्टेज में कैंसर का पता चल जाता है तो यहां के डॉक्टर उसे बचा ही लेते हैं। यहां कैंसर का इलाज करने वाली हर तरह की अत्याधुनिक मेडिकल सुविधाएं मौजूद हैं। यहां आने वाले मरीज़ की हर तरह की जांच संस्थान के विभिन्न विभागों में हो जाती है। इसीलिए कैंसररोगियों के लिए काम करने वाले कई स्वयंसेवी संस्थान एम्स से जुड़ कर कैंसर मरीज़ों की आर्थिक और दूसरे तरह की मदद करते रहते हैं।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान दिल्ली की ओर से हरियाणा के वल्लभगढ़ में 60 बिस्तरों वाले व्यापक ग्रामीण रूरल केयर सेंटर भी चलाया जाता है, जहां दूर-दराज़ से आने वाले मरीज़ों का बेहतर इलाज किया जाता है। यहां सामुदायिक उपचार के लिए हेल्थ सेंटर के ज़रिए क़रीब 2।5 लाख आबादी को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं। इस तरह एम्स हर साल लाखों बीमार लोगों का इलाज करके उन्हें भला-चंगा करके घर भेजता है।
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एम्स के 78 फीसदी मरीज़ सेवा से संतुष्ट
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में इलाज कराने वाले 78 फीसदी मरीज़ संस्थान की सेवाओं और यहां के माहौल से संतुष्ट हैं। यह जानकारी एक सर्वेक्षण में सामने आई है। एम्स के अनुसार, इस आंकड़े में सुधार हुआ है। पहले 67 फीसदी मरीज़ ही एम्स की सेवाओं से संतुष्ट और 33 फीसदी असंतुष्ट थे। इसका प्रमुख कारण अस्पताल में रूखे स्टॉफ को बताया गया था। एम्स ने एक बयान में कहा, “बहुत संतुष्ट और असंतुष्ट के अनुपात में दूसरे चरण के दौरान किए गए सर्वेक्षण में 21 अक्टूबर 2016 से 4 दिसंबर 2016 के दौरान सुधार आया है। यह 67 से बढ़कर 78 फीसदी हो गया है। यह अक्टूबर 2016 तक पहले चरण के सर्वेक्षण के दौरान 67 फीसदी था।”
लोगों की प्रतिक्रिया एक आवेदन ‘मेरा अस्पताल’ के जरिए ली गई। इसे मरीज़ों की प्रतिक्रिया जानने के लिए बनाया गया था। दूसरे चरण के तहत सर्वेक्षण में भाग लेने वाले कुल मरीज़ों की संख्या 45,481 थी। एम्स के अनुसार, इस सर्वेक्षण से अस्पताल की सुविधाओं को बेहतर करने के प्रयास में मदद मिलेगी। बयान में कहा गया, “एम्स प्रशासन आपसी संवाद व संचार में सुधार करने की योजना तैयार करने और सभी हितधारकों के बीच मृदु व्यवहार के लिए दृष्टिकोण पैदा करेगा। इसके अलावा एम्स गुणवत्ता सुधार परियोजना को प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग, आपातकीलीन चिकित्सा, बाल चिकित्सा और अस्पताल प्रशासन में लागू करना जारी रखेगा।”
ऑनलाइन पंजीकरण
पांच साल पहले अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में इलाज कराने के लिए ओपीडी कार्ड बनवाने की जद्दोजहद से निजात मिल गई। जब इसका पंजीकरण ऑनलाइन कर दिया गया। मरीज़ों को रात में ही अस्पताल पहुंचकर लाइन में खड़े रहने और फिर सुबह काउंटर खुलने का इंतजार करने की ज़रूरत नहीं रहती है। मरीज़ ऑनलाइन ओपीडी कार्ड बनाकर आराम से इलाज करा लेते हैं। 15 मई 2015 से इसकी शुरुआत हुई। इससे दिल्ली-एनसीआर के अलावा दूसरे राज्यों से यहां पहुंचने वाले मरीज़ों को बड़ी राहत मिल रही है। इतना ही नहीं एम्स के मरीज़ों को आधार से भी जोड़ दिया गया है। आधार नंबर से मरीज़ आसानी से ऑनलाइन अप्वाइंटमेंट व ओपीडी कार्ड बना लेते हैं।
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एम्स में रोज़ाना क़रीब 10 हजार मरीज़ इलाज के लिए पहुंचते हैं। इनमें से ज़्यादातर दिल्ली, एनसीआर, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड से आते हैं। पहले मरीज़ों के अत्यधिक दबाव के चलते रात तीन बजे से ही ओपीडी कार्ड के लिए काउंटर के पास मरीज़ लाइन में लग जाती थी और सुबह 8।30 बजे तक उसके खुलने का इंतजार करते थे। भीड़ के चलते ओपीडी कार्ड बनाने में कई बार भ्रष्टाचार की बात भी सामने आती थीं। ऐसे में इलाज से पहले मरीज़ों को शारीरिक व मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ता था।
ऑनलाइन भी कटा सकेंगे पर्ची
ओपीडी कार्ड बनाने के लिए 10 रुपए भुगतान करना पड़ता था। अब एम्स की वेबसाइट के पेशेंट पोर्टल पर जाकर डेबिट व क्रेडिट कार्ड के जरिये 10 रुपए का भुगतान कर पर्ची कटा लेते हैं। इस तरह अपना ओपीडी कार्ड बनवा लेते हैं। एम्स कंप्यूटरीकरण के चेयरमैन डॉ। दीपक अग्रवाल के मुताबिक़, “ऑनलाइन ओपीडी कार्ड बनाने के बाद मरीज़ सीधे डॉक्टर के कमरे में जाकर इलाज करवाते हैं। ऑनलाइन अप्वाइंटमेंट के लिए मरीज़ों को अपने नाम, पते व मोबाइल नंबर के ब्योरे देने पड़ते हैं। मरीज़ आधार नंबर के ज़रिए ऑनलाइन अप्वाइंटमेंट लेते हैं। मरीज़ का आधार नंबर डालने पर उसका पूरा ब्योरा ख़ुद सामने आ जाता है। उसे भरने की ज़रूरत नहीं पड़ती। इससे समय की बचत होने लगी है।
एम्स की लाइब्रेरी
फैकेल्टीज़ के डॉक्टर्स, छात्रों और रिसर्चर्स की सूचना संबंधी ज़रूरतें संस्थान की लाइब्रेरी पूरा करती हैं जो 1957 से में हैं। पहले इसे पूर्व क्लिनिकल ब्लॉक के तल मंज़िल पर बनाया गया था, बाद में इसे मौजूदा परिसर में लाया गया। इसे संस्थान के संस्थापक निदेशक डॉ। बीबी दीक्षित लाइब्रेरी का नाम दिया गया। दो मंज़िले भवन में 27000 वर्ग फीट क्षेत्रफल और 300 लोगों के बैठने की सुविधा है। डॉक्टर जॉन एफ फुलटन, राजकुमारी अमृत कौर, मेजर जनरल अमीर चंद और अमेरिका में रहने वाले एम्स के पूर्व छात्रों ने लाइब्रेरी के विभिन्न सेक्शन्स में योगदान दिया है, जिन्हें उनके नाम पर बनाया गया है। ग्रेजुएट मेडिकल छात्रों के लाभ के लिए समाज वैज्ञानिक द्वारा धर्मार्थ दान से पुस्तक बैंक की स्थापना की गई है। अगस्त 2003 से लाइब्रेरी हर समय खुली रहती है, वर्तमान संग्रह में 71844 पुस्तकें, 66825 जिल्द बंद पत्रिकाएं, 5309 शोध पत्र और 17034 पेम्फ्लेट शामिल हैं। फ़िलहाल में लाइब्रेरी द्वारा 957 पत्रिकाओं को अंशदान दिया गया है। लाइब्रेरी में पुस्तकें जारी और वापस करने के लिए बारकोड प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाता है तथा पुस्तकों की चोरी रोकने के लिए विद्युत चुम्बकीय सुरक्षा प्रणाली लगाई गई है। लाइब्रेरी में ई-पत्रिकाओं/ई-पुस्तकों को देखने के लिए वाइ फाइ इंटरनेट नेटवर्क सुविधा उपलब्ध कराई गई है।
लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा
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