मानवता के लिए समर्पित डॉ जलील पारकर

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बालासाहेब ठाकरे के निजी चिकित्सक 

हरिगोविंद विश्वकर्मा
रहीम का एक बड़ा मशहूर दोहा है – रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय। हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय।। इसका अर्थ यह है कि कुछ दिन की विपत्ति ठीक होती है, क्योंकि विपत्ति में ही आप लोगों के बारे में जान पाते हैं कि संसार में कौन आपका हितैषी है और कौन नहीं है। कोरोना जैसी विपदा मनुष्य के सामने क्या आई, उसे अपने-पराए का एहसास करा दिया। कोरोना वैश्विक महामारी ने हमें यह भी एहसास कराया कि डॉक्टर वाक़ई धरती पर इंसान के रूप में भगवान हैं या अल्ला के बंदे हैं। कोरोना संक्रमण काल में जिन लोगों ने अपनी जान को गंभीर जोखिम में डाल कर आम लोगों की जान बचाई, उनकी आदरणीय लोगों की फ़ेहरिस्त में लीलावती अस्पताल के पल्मोनोलॉजिस्ट (श्वास रोग विशेषज्ञ) डॉ जलील पारकर (Dr. Jalil Parkar) बहुत ऊपर हैं।

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जी हां, आपने सही पढ़ा, वही डॉ. जलील पारकर जो बहुत लंबे समय तक शिवसेना के संस्थापक हिंदू हृदय सम्राट बाल ठाकरे के निजी चिकित्सक रहे और सीनियर ठाकरे के अंतिम समय तक उनके स्वास्थ्य का निरीक्षण करने के लिए रोज़ाना मातोश्री में जाते थे। कोरोना संक्रमण के बाद लॉकडाउन के दौरान जहां देश भर के लोग अपने-अपने घरों में क़ैद हो गए थे, वहीं कोरोना योद्धा डॉ. पारकर पीटीई किट पहन कर रोज़ाना 80 से 100 कोरोना मरीज़ों को देख रहे थे। इसी दौरान 8 जून 2020 को डॉ. पारकर ख़ुद कोरोना वायरस की चपेट में आ गए और कोरोना पॉज़िटिव घोषित कर दिए गए। दो दिन बाद उनकी पत्नी को भी कोरोना ने डंस लिया और उन्हें भी अस्पलात में भर्ती कराना पड़ा।

डॉ. पारकर ख़ुद बताते हैं, “एक दिन, मुझे अचानक पीठ में तेज़ दर्द होने लगा। मुझे न तो बुखार था और न ही सांस में किसी तरह की तकलीफ़ थी, इसके बावजूद मेरी तबीयत लगातार बिगड़ती जा रही थी। मैंने लीलावती अस्पताल प्रबंधन को सूचित किया। वहां से एंबुलेंस भेजी गई और एंबुलेंस मुझे लेकर अस्पताल पहुंची। डॉक्टरों ने मेरा जांच करने के बाद मुझे कोविड-19 पॉज़िटिव घोषित कर दिया। मुझे आईसीयू में एडमिट कर दिया गया। एहतियात के तौर पर मेरी मेरी पत्नी का कोरोना टेस्ट कराया गया और उनका भी टेस्ट पॉज़िटिव आ गया। वह भी लीलावती अस्पताल के आईसीयू में मेरे ठीक बग़ल के बेड पर थीं।” डॉ. पारकर आगे बताते हैं, “कोरोना वायपस बाद में मेरी भूख, स्वाद और गंध पर भी अपना असर डालने लगा। लेकिन मैंने निश्चय कर लिया था कि मुझे मज़बूत बने रहना है और किसी भी कीमत पर हार नहीं माननी है, क्योंकि अगर मैंने हार मान ली तो मेरी पत्नी और परिवार की देखभाल कौन करेगा।”

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लगभग चार दशक से धरती पर फ़रिश्ता बनकर लोगों की सेवा कर रहे डॉ. पारकर के लिए कोरोना पॉज़िटिव होने की घटना एक बहुत अलग अनुभव तरह का लेकर आई। डॉ. पारकर कहते हैं, “बतौर डॉक्टर कोरोना मरीज़ों का इलाज करने का अनुभव अलग होता है, लेकिन ख़ुद कोरोना मरीज़ बनकर बेड पर वक़्त गुजारने का अनुभव एकदम से नया था। एक बार तो मैं बुरी तरह डर गया था। हालांकि अंततः मैं और मेरी पत्नी मौत के मुंह से निकल कर बाहर आने में कामयाब रहे। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह रही कि मेरा कोरोना का इलाज करने वाले मेरे सहकर्मी डॉक्टर भी बाद में पॉज़िटिव घोषित कर दिए गए और उन्हें भी अस्पताल में एडमिट कराना पड़ा। सच कहूं तो, कोरोना संक्रमण काल हम सभी डॉक्टरों पर बहुत अधिक मानसिक दबाव था। हम अपनी जान जोखिम में डालकर मरीज़ों को अटेंड कर रहे थे।”

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डॉ. पारकर कहते हैं कि कोरोना मरीज़ों को अछूत के रूप में देखने की हमारे समाज की मानसिकता बदलनी चाहिए। कोरोना मरीज़ों के बारे में अपना नज़रिया न बदलने वालों के दंडित किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे समाज में बहुत ग़लत संदेश जाता है। कोरोना पॉज़िटिव होने के बाद मेरे साथ भी इसी तरह का व्यवहार किया गया लेकिन मैं इस मानसिकता वाले लोगों को समझाने में सक्षम था। डॉ. पारकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और नारायण राणे, सांसद संजय राऊत, पूर्व सांसद चंद्रकांत खैरे, मंत्री अब्दुल सत्तार, आशीष शेलार, भाई जगताप और सचिन अहिरे का भी इलाज कर चुके हैं। वह महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे की मां का भी उपचार कर चुके हैं। वैसे बॉलीवुड से भी डॉक्टर पारकर का बहुत क़रीबी नाता रहा है।

कोरोना वैक्सीन लेने के बाद डॉ. जलील पारकर का धन्यवाद ज्ञापन

भारतीय सिनेमा को अपनी असाधारण भूमिकाओं से नई ऊंचाई देने वाले ‘ट्रेजडी किंग’ दिलीप कुमार, उनके दोनों भाइयों और बहन के अलावा डॉ. पारकर अभिनेत्री मनीषा कोइराला, सुष्मिता सेन, फिल्मकार विधुविनोद चोपड़ा, राजू विरानी, अभिनेता सलमान खान के परिवार और जावेद जाफरी का इलाज कर चुके हैं। अभी हाल ही में वह अभिनेता संजय दत्त का इलाज कर रहे थे। उसी दौरान पता चला कि संजय कैंसर के प्रारंभिक स्टेज में है। इस बारे में डॉ. पारकर कहते हैं, “जब संजय को कैंसर के बारे में पता लगा तो उन्होंने कहा था ‘हे ईश्वर, मुझे ही क्यों।’ संजय की हिस्टोपैथोलॉजी रिपोर्ट्स और कुछ बड़े विदेशी डॉक्टर्स से बात करने के बाद ही अन्होंने कोकिलाबेन अंबानी अस्पताल में ही कीमोथैरपी करवाने का फ़ैसला किया। हर पेशेंट का अधिकार होता है कि वह अपना इलाज किस अस्पताल में करवाए और किसमें नहीं।”

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डॉ. जलील पारकर इसके अलावा भी बड़ी संख्या में वीवीआईपी लोगों का इलाज कर चुके हैं और पिछले 21 साल से अपनी सामाजिक सेवा के प्रति प्रतिबद्धता के तहत पुलिस अस्पताल को अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वहां वह लोगों का मुफ़्त इलाज करते हैं। इसके अलावा डॉ. पारकर जेजे अस्पताल, सैफी अस्पताल और फोर्टिस अस्पताल जैसे बड़े अस्पतालों से भी जुड़े रहे हैं। अपने माता-पिता को रोल मॉडल मानने वाले 62 वर्षीय पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. पारकर इतने सरल स्वभाव के हैं कि यक़ीन नहीं होता कि इतना बड़ा डॉक्टर आम लोगों से इस तरह मिल सकता है। यही वजह है कि उनका कनेक्शन अब भी अपने गांव से नहीं छूटा है और कोंकण के रत्नागिरी जिले में में अपने गांव के बाग़ को देखने के लिए वह अकसर गांव जाते रहते हैं।

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मूल रूप से कोंकण के रत्नागिरी जिले के मंदनगड़ तालुका के बानकोट गांव के निवासी डॉ. पारकर अपने गांव के आसपास बुज़ुर्गों के लिए स्वास्थ्यवर्धक आशियाने के अपने सपने को साकार करने में जुटे हुए हैं। इस आशियाने के लिए उन्हें ज़मीन मिल गई है, बस निर्माण का भूमिपूजन शुरू करने वाले हैं। बुजुर्ग आशियाने के अपने कॉन्सेप्ट के बार में डॉ. पारकर कहते हैं कि वह ऐसा आवासीय परिसर होगा, जहां वृद्धों को अपने घर जैसा माहौल मिलगा। वहां वे लोग अपने को स्वस्थ्य रखने के लिए नियमित रूप से व्यायाम तो करेंगे ही, उनके मनोरंजन के भी साधन उपलब्ध रहेंगे। लोग एक कमरे में नहीं बल्कि एक परिसर में रहने का आनंद लेंगे। जहां वे ख़ुद खेती कर सकेंगे। राशन और सब्ज़ियां उगाएंगे। फलों के लिए बाग़वानी कर सकेंगे। बागों में फूल लगा सकेंगे। मुर्गी पालन या मछली पालन कर सकेंगे।”

डॉ. पारकर बताते हैं, “मध्यम वर्ग समाज में बच्चों के जन्म लेते ही माता-पिता उनकी परवरिश में अपनी जान खपा देते हैं। उन्हें पालते-पोसते हैं, उन्हें ऊंची तालीम दिलवाते हैं। एक तरह से बच्चों के सपने पूरे करने के चक्कर में माता-पिता अपनी ही ख़ुशियां क़ुर्बान कर देते हैं। लेकिन वही बच्चे जब रोज़गार की तलाश में उन्हें छोड़कर शहर या दूसरे स्थान पर चले जाते हैं तो माता-पिता अपने आपको अकेला महसूस करने लगते हैं। उन्हें ज़िंदगी निरर्थक लगने लगती है। बच्चे में शहर में घर छोटा होने का कारण अपने माता-पिता को साथ नहीं रख सकते है। ऐसे लोगों को ही स्वास्थवर्धक आवासीय सुविधा मुहैया कराने के लिए वृद्धाश्रम बनाने की परियोजना बनाई गई है।”

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डॉ. पारकर के पिता अब्दुल गफूर और माता मरियम देशमुख के साथ 1930 के दशक में मुंबई आकर यहीं रहने लगे और यहीं 22 मार्च 1957 को डॉ. जलील पारकर का जन्म हुआ। उनके दो भाइयों खलील पारकर और नदीम पारकर का भी जन्म मुंबई में हुआ। खलील पारकर कैनाडा वैंकूवर में रहते है। वह अस्पतालों की प्लानिंग और डिजाइनिंग करते हैं। मुंबई के हरकिशनदास अस्पताल और पातालगंगा (रायगड़) में रिलायंस अस्पताल की प्लानिंग और डिजाइनिंग उन्होंने ही की है। दूसरे भाई नदीम पारकर ट्रिपल अमेरिकन बोर्ड से इंटर मेडिसीन क्रिटिकल केयर का कोर्स कर चुके हैं और अत्याधुनिक 3डी टेक्निक पर काम कर रहे हैं।

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मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर के बांद्रा पश्चिम स्थिति आवास के पास ही रहने वाले डॉ. पारकर के पिता तो डॉक्टर नहीं थे, लेकिन उनके कई दोस्त बड़े-बड़े डॉक्टर थे। पिता चाहते थे कि उनका बेटा डॉक्टर बने। उस दौर में दो ही तरह के प्रोफेशन हुआ करते थे, पहला डॉक्टरी और दूसरा इंजीनियरिंग। बस डॉ. पारकर डॉक्टर बनने का सपना बचपन से ही देखने लगे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा उमरखाड़ी में हुई। डॉ. पारकर ने हाईस्कूल की परीक्षा सेंट जोसेफ हाईस्कूल उमरखाड़ी, जिन्हें उनके दोस्त यूके कहा करते थे, से 1975 में पास किया। उनका एचएचसी सेंट जेवियर कॉलेज, मुंबई से 1977 में पूरा हुआ। 1977 से 1986 के दौरान ग्रांट गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एंड सर जेजे ग्रुप ऑफ़ हॉस्पीटल्स, मुंबई से जुड़े रहे।

डॉ. पारकर कहते हैं, “मुझे भी लगा कि डॉक्टर बनने का मतलब बहुत कुछ हासिल कर लेना होता है। जब मैंने मेडिकल कॉलेज में एडिमिशन लिया तो एक बार तो लगा, मैं चांद-तारे तक पहुंच गया। लेकिन पढ़ाई पूरी करके जब वास्तविक दुनिया में आया तो नज़ारा कुछ और था।” बहरहाल, इस दौरान मेडिकल में ग्रेजुएशन यानी एमबीबीएस करने के बाद उन्होंने इसी मेडिकल कॉलेज से डॉक्टर ऑफ़ मेडिसीन यानी एमडी किया। इसके बाद वह जेजे अस्पताल से ही जुड़ गए। इस दौरान 1985 में उनका निकाह शगूफा के साथ हो गया। जिनसे उन्हें एक बेटा सरोश पारकर है। जो लार्शी स्विटजरलैंड से ग्रेजुएशन और दिल्ली से से ओसीएलडी में पीजी करने का बाद इन दिनों होटल ट्राइडेंट में गेस्ट रिलेशन मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं।

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डॉ. ओपी कपूर, डॉ. मोहसिन सैफी, डॉ. लुकमान अब्बास, डॉ. एआर वेंद्रे जैसे बड़े डॉक्टर को अपना प्रेरणस्रोत मानने वाले डॉ. पारकर के जीवन में 1993 में अहम मोड़ आया, जब उनका चयन वेस्टर्न रिज़र्व यूनिवर्सिटी, क्लीवलैंड, ओहियो, अमेरिका की अतिप्रतिष्ठित फैलोशिप के लिए हो गया। लिहाज़ा, 1993 में फेलोशिप वह आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चले गए। दो साल का मल्मोरी मेडिसीन कोर्स करने के बाद वहीं नौकरी करने लगे और 1995 से 2000 तक अमेरिका में ही नौकरी करते रहे। 2000 में डॉ. पारकर स्वदेश लौटने पर लीलावती अस्पताल से जुड़ गए। इस दौरान वह जेजे अस्पताल, सैफी अस्पताल, फोर्टिस अस्पताल और पुलिस अस्पताल को भी अपनी सेवाएं देते रहे।

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बाल ठाकरे से डॉ. जलील पारकर की पहली मुलाक़ात फरवरी 2007 में हुई। जब अस्वस्थ होने पर ठाकरे को लीलावती अस्पताल के सघन चिकित्सा कक्ष में भर्ती कराया गया था। उस समय उनका इलाज डॉ. पारकर ने ही किया था। इसके बाद डॉ. पारकर ठाकरे के निजी सर्जन बन गए और अंतिम समय तक उनकी सेहत का परीक्षण करने दिन में एक बार ज़रूर जाते रहे। डॉ. पारकर ठाकरे से बहुत प्रभावित थे। डॉ. पारकर कहते हैं, “शुरू में जब उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया तो उनका देखभाल करने वाली टीम में मेरे साथ-साथ कई नर्सें भी थीं। हम सब उनका इलाज कर रहे थे। उनका और उद्धव जी का हम लोगों पर पूरा भरोसा था। वाक़ाई बालासाहेब बहुत अच्छे इंसान थे। बालासाहेब से मिलना मेरी ज़िंदगी का सबसे यादगार पल रहा।”

डॉ. जलील पारकर की आम देशवासियों से मास्क पहनने की अपील

2007 में मां मरियम का साथ छूटना डॉ. पारकर के लिए सबसे दुखद पल रहा। वह जीवन की अपूरणीय क्षति थी। पिता अब्दुल गफूर 95 वर्ष का अवस्था में एकदम फिट है और डॉ. पारकर के साथ ही रहते हैं। किसी से बातचीत के दौरान डॉ. पारकर अपनी माता को ज़रूर याद करते हैं। उन्होंने अपनी माता से जुड़ा एक रोचक किस्सा सुनाया। उनके ही शब्दों में, “मेरी माता कोंकण के ग्रामीण अंचल की थीं। उन्हें मुर्गी पालने का बड़ा शौक़ था। उनकी शौक़ को पूरा करने के लिए मैंने रत्नागिरी में अपने घर पर एक पोल्ट्री फार्म खोलने की योजना बनाई। इसके लिए मैं आरे गया और वहां मुर्गी पालन की ट्रेनिंग ली और वहीं से अच्छी प्रजाति के दो सो चूज़े लिए। वे चूज़े शीघ्र ही मुर्गी होकर अंडे देने लगी और एक मुर्गी में एक साल में 250 दिन अंडे देती थी।”

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डॉ. पारकर आगे बताते हैं, “मैं सप्ताहांत रत्नागिरी जाता और अंडे लेकर आता तो, माताजी कहती इतने अंडे उन्हें दे आओ और इतने अंडे उन्हें दे आओ। रिश्तेदारों के घर मुंबई में बहुत पास-पास नहीं होते थे, जिससे उन्हें अंडे पहुंचाने में अंडों से ज़्यादा ट्रांस्पोर्टेशन में ख़र्च हो जाता था। बहरहाल, 2007 में माताजी की मौत के बाद पोल्ट्री फार्म बंद करना पड़ा।” डॉ. पारकर पढ़ने और संगीत के शौक़ीन हैं। उनकी यही हॉबी है। जब भी व्यस्त दिनचर्या से फ़ुर्सत मिलती है वह किताबें पढ़ते हैं या फिर पुराने संगीत सुनते हैं।

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