राजकुमारी कौल के प्रति वाजपेयी की मोहब्बत व वफादारी सदैव अटल रही

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हमने देखी है इन आंखों की महकती खुशबू, हाथ से छूके इसे रिश्तों का इल्ज़ाम न दो… सिर्फ़ एहसास है ये रूह से महसूस करो, प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो… ख़ामोशी फिल्म में हेमंत कुमार की धुन पर लता मंगेशकर का गया गुलज़ार का यह अमर गाना भारतीय राजनीति के शलाका पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी और राजकुमारी हकसर-कौल के रिश्ते को बड़ी ख़ूबसूरती से बयां करता है। संभवतः इस हक़ीक़त बयानी को राजनेता और पत्रकार भी अटल के जीवनकाल में शिद्दत से महसूस करते रहे, इसीलिए अटल-राजकुमारी के संबंध की चर्चा कभी भी मीडिया में नहीं हुई। इसे भारतीय राजनीति के अजातशत्रु अटल का मीडिया के साथ हुआ अघोषित समझौता भी कहा जा सकता है, जिस पर न तो कभी मीडिया ने रुचि दिखाई और न ही अटल ने इस पर कभी कोई सफ़ाई देने की ज़रूरत महसूस की।

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यह भी संयोग है कि अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी ही पहली कविता प्रेम के प्रतीक ताज़महल पर लिखी थी। यह दीगर बात है कि अपनी कविता में उन्होंने न तो ताज़महल की ख़ूबसूरती को काग़ज़ पर ही उकेरा, और न ही मुमताज़ के लिए शाहजहां के प्यार का ही कोई ज़िक्र किया। दरअसल, अटल ने अपनी कविता उन मजदूरों को समर्पित किया, जिन्होंने मोहब्बत के इस भव्य और ऐतिहासिक प्रतीक को खड़ा करने में अपना ख़ून-पसीना बहाया था। जो भी अटल के मन में कवि के साथ एक पागल प्रेमी भी था, जो उन्हें लोगों के दुख-दर्द का महसूस करने की शक्ति देता था। इसीलिए उनकी पहचान एक कुशल राजनीतिज्ञ, प्रशासक, भाषाविद, कवि-लेखक, पत्रकार एवं प्रखर वक्ता के साथ साथ एक अच्छे इंसान रूप में भी रही।

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भारतीय राजनीति के इतिहास में महात्मा गांधी के बाद संभवतः अटल बिहारी वाजपेयी इकलौते नेता हैं जिन्होंने अपने निजी संबंधों को बड़ी साफ़गोई के साथ स्वीकार ही नहीं किया, बल्कि उसे आजीवन निभाया भी। राष्ट्रीय स्वसंसेवक संघ के लिए आजीवन अविवाहित रहने की बाध्यता के चलते भले ही वह अपनी अंतरंग मित्र कश्मीरी पंडित राजकुमारी कौल के साथ सात फेरे नहीं ले पाए, लेकिन अटल ने अंतिम समय तक अपनी मोहब्बत और वफ़ादारी का ईमानदारी से निर्वहन किया। यही वजह रही कि राजकुमारी जीवन भर सहचरी के रूप में उनके साथ रहीं और उनके ही घर में 2014 में आख़िरी सांस ली थी।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया के संपादक रहे वरिष्ठ लेखक-पत्रकार किंगशुक नाग ने अपनी चर्चित पुस्तक ‘अटल बिहारी वाजपेयीः ए मैन ऑफ आल सीजंस’ में अटल और राजकुमारी कौल की प्रेम कहानी का विस्तार से जिक्र किया है। उन्होंने राजकुमारी और अटल बिहारी की मोहब्बत को ऐसी प्रेम कहानी क़रार दिया है जो अपने आप में अधूरी होकर भी पूर्ण थी। उस प्रेम कहानी का प्रेम कोरा, सच और शाश्वत था। भले ही अंत तक उस दास्तान-ए-मोहब्बत को कोई औपचारिक नाम न दिया जा सका, लेकिन उन बेनामी रिश्तों में समर्पण और चाहत की कमी कभी नहीं रही।

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वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने टेलीग्राफ में अपने स्तंभ में एक बार लिखा था, “बहुत संकोची स्वभाव की मिस राजकुमारी कौल अटल बिहारी वाजपेयी की सब कुछ थीं। वे दोनों एक दूसरे के लिए ही बने थे। राजकुमार ने जिस तरह से आजीवन अटल बिहारी का साथ दिया। उनके दुख और सुख, संघर्ष और सफलता में उनके साथ रहीं, वह कोई और स्त्री कर ही नहीं सकती थी। वह एक साए की तरह हमेशा अटल के साथ रहीं।” नैय्यर ने अटल और राजकुमारी के संबंध को ‘देश के राजनीतिक हलके में घटी सबसे सुंदर प्रेम कहानी’ भी बताया था। इसी तरह दक्षिण भारत के पत्रकार गिरीश निकम ने एक जगह लिखा है, “अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री नहीं थे, तब भी मैं उनके घर पर फोन करता था तो वही फोन उठाती थीं और कहती थीं- हां बोलिए मैं मिसेज कौल बोल रही हूं। क्या काम है अटल जी से?”

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1940 के दशक में अटल और राजकुमारी हकसर दोनों ग्वालियर के लक्ष्मीबाई कॉलेज, जिसका तब नाम विक्टोरिया कॉलेज था, में पढ़ रहे थे। राजकुमारी ने स्नातक वहीं से किया। अटल और राजकुमारी में पहले कॉलेज में दोस्ती हुई, फिर अंतरंगता बढ़ती गई और अंत में दोनों एक दूसरे को चाहने लगे, लेकिन इज़हार-ए-मोहब्बत किसी ओर से नहीं किया गया। अटल ने अपने जज़बातों का इजहार करते हुए एक प्रेमपत्र लिखा, लेकिन तब का समाज आज की तरह खुला हुआ नहीं था। तब तक गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड का वेस्टर्न कॉन्सेप्ट भारत की सरज़मीं नहीं पहुंचा था। पहुंचा था तो बहुत उच्च तबक़े तक ही सीमित था। इसी वजह से अटल लाख चाहने के बावजूद अपने प्रेमपत्र को राजकुमारी को देने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। लिहाज़ा, उन्होंने उस पत्र को लाइब्रेरी की रखी उस किताब में रख दिया, जिसे राजकुमारी उस दिन पढ़ने वाली थीं।

राजकुमारी ने अटल के उस प्रेमपत्र को पढ़ा तो उनकी आंखें अचानक से चमक उठीं। उन्हें भरोसा हो गया कि मोहब्बत का पौधा केवल उनके दिल में ही नहीं अंकुरित हुआ है, बल्कि अटल के दिल में भी मोहब्बत की कली खिल रही है। राजकुमारी ने भी अपनी भावनाओं को एक ख़त में व्यक्त कर डाला और अपने प्रथम प्रेम पत्र को भी उसी किताब में उसी तरह रख दिया, लेकिन दूसरे दिन अटल लाइब्रेरी में रखी उस किताब को पलटते, उससे पहले किसी दूसरे ने वह किताब ले ली और संभवतः प्रेमपत्र भी उसके हाथ लग गया। लिहाजा, राजकुमारी का लिखा जवाब अटल तक नहीं पहुंच सका। इसके बावजूद उनकी मोहब्बत परवान चढ़ती रही। उसी दौरान अटल आरएसएस में भी सक्रिय हो गए थे। उनकी ओजस्वी कविताएं राजकुमारी को भी बहुत भाती थीं।

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‘अटल बिहारी वाजपेयीः ए मैन ऑफ़ आल सीज़ंस’ में किंगशुक नाग ने राजकुमारी कौल के एक परिवारिक करीबी के हवाले से लिखा है, “दरअसल राजकुमारी कौल अटल बिहारी वाजपेयी को टूटकर चाहने लगी थीं और उनसे शादी करने के लिए बहुत व्यग्र थीं। वह चाहती थीं कि उनका हमसफ़र अटल जैसा ओजस्वी और देशभक्त युवक ही बने, लेकिन घर में इसका जबरदस्त विरोध हुआ। राजकुमारी के पिता गोविंद नारायण हकसर जो कश्मीर और ग्वालियर रियासत में बहुत बड़े अधिकारी भी थे, ने कड़ा प्रतिवाद किया था।” दरअसल, अटल भी ब्राह्मण थे, लेकिन कश्मीरी पंडित कौल परिवार अपने को कहीं बेहतर कुल का मानता था। लिहाज़ा, पिता और परिवार के अन्य सदस्यों की मर्जी के अनुसार सगाई के लिए कौल परिवार ग्वालियर से दिल्ली आया। 1947 में दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध रामजस कॉलेज में प्रोफेसर ब्रिज नारायण कौल से राजुकमारी की पहले सगाई और बाद में ग्वालियर में ही शादी हुई। उन दिनों वहां बंटवारे के दौरान दंगा मचा हुआ था।

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कह सकते हैं कि गोविंद नारायण हकसर ने अपनी बेटी की शादी उस शख्स करने से साफ़ मना कर दिया, जो बाद में भारतीय राजनीति के आकाश में ध्रुव तारे की तरह अवतरित हुआ और तीन-तीन बार देश का प्रधानमंत्री बना। देश में यह मुकाम पाने वाले अटल पहले गैरकांग्रेसी नेता थे। उनका जीवन राजनीति, कविता और सादगी के बीच ही बीता। राजुकमारी की शादी के बाद उनकी और अटल की राहें अलग-अलग हो गईं। राजकुमारी कौल पति के साथ दिल्ली चली गईं। उनके पति रामजस कॉलेज में प्रोफेसर और रामजस हॉस्टल में वार्डन थे। वह बाद में रामजस कॉलेज के दर्शनशास्त्र विभाग के प्रमुख बने। वाजपेयी कानपुर से होते हुए लखनऊ पहुंच गए। कहने का मतलब दोनों अपनी-अपनी ज़िंदगी में रम गए। अटल संघ के प्रचारक बन गए और आजीवन अविवाहित ही रहे।

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कुछ साल बाद अविवाहित अटल बड़े राजनेता बन गए। उनका भी लंबा वक्त दिल्ली में ही गुज़रा। संयोग से दिल्ली में ही उनकी मुलाकात अपनी सोलमेट रहीं राजकुमारी से हुई। राजधानी दिल्‍ली में अटल और राजकुमारी कौल की दोस्ती फिर से ज़िंदा हो गई। उनकी बॉन्डिंग कॉलेज के दिनों जैसी हो गई। अटल उनके घर आने-जाने लगे। अगले कई साल तक अटल राजकुमारी के घर नियमित आने-जाने वालों में शामिल थे। कई बार उनके यहां रात में रुक भी जाते थे। बाद में वह कौल हाउस में शिफ्ट हो गए। 1978 में अटल जब मोरारजी देसाई सरकार में विदेश मंत्री बने तो वे राजकुमारी कौल और उनकी बेटियों के साथ लुटियंस जोन में अपने सरकारी आवास में शिफ्ट हो गए। उन्होंने कौल की बेटी नमिता और बाद में उनकी नातिन निहारिका को गोद ले लिया। अटल बिहारी वाजपेयी जब पीएम बने तो उनके सरकारी निवास पर भी राजकुमारी कौल अपनी बेटी नमिता और दामाद रंजन भट्टाचार्य के साथ रहती थीं।

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पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने एक बार एक इंटरव्यू में कहा था, “मैं और अटल बिहारी वाजपेयी दिल्ली में पड़ोस में ही रहते थे। घरों की दीवार से लगा एक दरवाजा था, जिससे कि हम दोनों परिवार के लोग आसानी से आ-जा सकते थे। अटल और मैं मछली के शौकीन थे। नमिता अक्सर हमारे घर आती थी। मेरी पत्नी और राजकुमारी कौल की अच्छी दोस्ती थी। जब नमिता की बंगाली ब्राह्मण रंजन भट्टाचार्य से शादी तय हुई तो मेरी पत्नी ने ही सारी तैयारी की थी, क्योंकि दूल्हा बंगाली था।” राजकुमारी कौल ने एक बार एक पत्रिका को दिए इंटरव्यू में कहा था, “अटल बिहारी वाजपेयी से मेरी दोस्ती को लेकर किसी को समझाने की ज़रूरत नहीं है। पति के साथ भी मेरा रिश्ता काफ़ी मज़बूत है।”

वैसे जब कभी अटल बिहारी वाजपेयी के अविवाहित होने का जिक्र होता है, तो लोकसभा के सदन पटल पर उनका वह बयान याद आ जाता है। विपक्ष के हमलों के बीच एक बार तब अटल ने बड़ी साफगोई के साथ कहा था, “मैं अविवाहित जरूर हूं, लेकिन कुंवारा नहीं।” कई बार अटल से सार्वजनिक जीवन के साथ निजी जीवन के बारे में सवाल पूछे गए। इस तरह के सवालों का वह बड़ी शांति और संयम से जवाब दिया करते थे और कह देते थे, ‘सार्वजनिक जीवन में अति व्यस्तता के कारण शादी संभव नहीं हो सकी।” यह कहकर अटल धीरे से अपने चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान बिखेर देते थे। उनके करीबियों का भी यही मानना है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लिए उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का फ़ैसला किया था।

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13 सितंबर 1925 में उज्जैन में कश्मीरी पंडित गोविंद नारायण हकसर और मनमोहिनी हकसर के घर में जन्मी राजुकमारी हकसर अटल जी के विपरीत शुद्ध शाकाहारी थीं। मनमोहिनी हक्सर कमला नेहरू की चचेरी बहन थीं। इस तरह राजकुमारी इंदिरा गांधी की चचेरी बहन थीं। राजकुमारी को घर में लोग बीबी कहकर बुलाते थे। 25 दिसंबर 1924 में जन्मे अटल से वह एक साल से भी कम छोटी थीं। पद्मा रानी हकसर राजकुमारी की सौतेली मां और चंद नारायण हकसर उनके सौतेले भाई थे। राजकुमारी की ब्रिज नारायण कौल से दो बेटियां नंदिता नंदा और नमिता भट्टाचार्य हैं। प्रखर वक्ता, दृढ़ राजनेता और कवि हृदय वाले अटल बिहारी वाजपेयी को राजनीति के पंडित ‘आदर्श प्रेमी’ की भी संज्ञा देते हैं।

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संसद के सदन पटल में विनोदी लहजे में दिए गए अटल के बयान को लेकर कुछ लोग उनका चरित्र-हनन करने से पीछे नहीं हटते लेकिन ‘कुंवारा’ शब्द का जो अर्थ उनके लिए था, उसे समझे बिना एक युगपुरुष का चरित्र-हनन करना पूरी तरह से गलत है। अटल के साथ काम करने वाले एक उनके सहयोगी के मुताबिक, ‘अटल कहते थे कि कुंवारा वह होता है, जिसकी आगे की पीढ़ी ना हो, जिसका परिवार ना हो लेकिन मेरे साथ परिवार भी है और मेरी अगली पीढ़ी भी तैयार है। वह पार्टी और देश को ही अपना परिवार मानते थे। राजनीतिक सेवाव्रत को पूर्ण करने के लिए उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लिया था।’

दूसरी पुण्यतिथि पर अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि।

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

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