हिंदुस्तान की सरजमीं पर इस्लामिक देश ‘पाकिस्तान’ के बनने की कहानी

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1998

आज यानी 14 अगस्त को पड़ोसी देश पाकिस्तान में स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। कहने का मतलब यह कि पाकिस्तान अपने जन्मदाता भारत के आज़ाद होने से एक दिन पहले ही अस्तित्व में आ गया था। भारत के लोगों में हमेशा यह जानने की जिज्ञासा बनी रहती है कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान आख़िर ऐसा क्या हुआ जिसकी वजह से देश का बंटवारा हो गया और दुनिया के मानचित्र पर पाकिस्तान नाम का एक नया देश अस्तित्व में आ गया। तो आज इतिहास और ज्ञात प्रमाणिक तथ्यों के आधार पर चर्चा हिंदुस्तान की सरजमीं पर इस्लामिक देश ‘पाकिस्तान’ के बनने की जा रही है।

स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास पर लिखी पुस्तकों, तब के नेताओं के नोट्स एवं उनके पत्रों और अन्य दस्तावेज़ों का अध्यन करने पर ऐसी-ऐसी बातें और प्रसंग सामने आते हैं, जिन पर सहज यक़ीन नहीं होता है। वस्तुतः पाकिस्तान के निर्माण के लिए केवल मुस्लिम लीग और मोहम्मद अली जिन्ना को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, क्योंकि पाकिस्तान बनने की प्रक्रिया सन् 1857 की क्रांति के बाद ही शुरू हो गई थी। उसी प्रक्रिया के तहत उर्दू का अलिफ़ बे भी न जानने और नमाज न पढ़ते वाले मोहम्मद अली जिन्ना मुसलमानों के नेता बन गए। सबसे अहम जिन्ना सूअर का मांस खाने से परहेज़ नहीं करते थे। इसके बावजूद स्वतंत्र इस्लामिक देश के लिए उस समय की कट्टर मुस्लिम लीडरशिप नें जिन्ना का नेतृत्व सहज स्वीकार कर लिया था।

इतिहास की किताबों के मुताबिक पाकिस्तान के जन्म का सीधा संबंध अयोध्या की बाबरी मस्जिद से है, क्योंकि सन् 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेज़ों ने अयोध्या में राम मंदिर को लेकर एक रणनीति के तहत एक दीर्घकालीन साज़िश रची, जिसका नतीजा 90 साल बाद पाकिस्तान के रूप में सामने आया। विद्रोह के पहले 1856 में लॉर्ड पॉमर्स्टन सरकार ने लॉर्ड चार्ल्स जॉन कैनिंग को भारत का गवर्नर-जनरल नियुक्त किया था। विद्रोह के तुरंत के बाद कैनिंग ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री लॉर्ड विस्काउंट पॉमर्स्टन को एक रिपोर्ट भेजी। रिपोर्ट में कहा था कि अगर इंडिया में लंबे समय तक शासन करना है तो यहां की जनता के बीच धर्म के आधार पर मतभेद पैदा करना पड़ेगा। यह कार्य हिंदुओं के सबसे बड़े देवता राम की जन्मस्थली अयोध्या को विवाद के केंद्र में लाकर सबसे कारगर तरीक़े से किया जा सकता है।

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उसके बाद ही अयोध्या विवाद की साज़िश रची गई। इसके लिए इंतिहास से छेड़छाड़ भी की गई और इब्राहिम लोदी की बनाई गई मस्जिद को बाबरी मस्जिद का नाम दे दिया गया। उसके बाद ब्रिटेन से लॉर्ड कैनिंग से लेकर लॉर्ड माउंटबेटन तक जितने वॉयसराय दिल्ली भेजे गए। सभी को हिंदू-मुसलमानों के बीच पैदा हुई खाई को जितना संभव हो सके बढ़ाने का कार्य दिया गया। एक बात और उल्लेखनीय है, अंग्रेज़ों ने यह सब देश का विभाजन के लिए नहीं बल्कि लंबे समय तक यहां शासन करने के लिए किया था। लेकिन उनकी नीति के चलते दोनों समुदाय के बीच दूरी इतनी बढ़ी कि दोनों के दिल फिर कभी मिले ही नहीं।

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दरअसल, अयोध्या की मस्जिद में एक शिलालेख भी लगा था, जिसका जिक्र अंग्रेज़ अफ़सर ए फ़्यूहरर ने कई जगह अपनी रिपोर्ट्स में किया है। फ़्यूहरर ने 1889 में आख़िरी बार उस शिलालेख को पढ़ा, जिसे बाद में ‘बांटो और राज करो’ नीति के तहत अंग्रेज़ों ने नष्ट करवा दिया। शिलालेख के मुताबिक अयोध्या में मस्जिद का निर्माण इब्राहिम लोदी के आदेश पर सन् 1523 में शुरू हुआ और सन् 1524 में मस्जिद बन गई। इतना ही नहीं, शिलालेख के मुताबिक, अयोध्या की मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद नहीं था।

इब्राहिम लोदी के शिलालेख को नष्ट करने में फैजाबाद के अंग्रेज़ अफ़सर एचआर नेविल ने अहम भूमिका निभाई। नेविल ने ही आधिकारिक तौर पर फ़ैज़ाबाद का गजेटियर तैयार किया था। उनकी साज़िश में दूसरे फ़िरंगी अफ़सर अलेक्जेंडर कनिंघम भी शामिल थे, जिन्हें अंग्रेज़ी हुक़ूमत ने हिंदुस्तान की तवारिख़ और पुरानी इमारतों की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी सौंपी थी। इस तरह इंडियन सबकॉन्टिनेंट पर एक मुस्लिम देश बनाने की आधारशिला नेविल और कनिंघम ने 19 सदी के उत्तरार्ध में रख दी थी। यह मुस्लिम देश 14 अगस्त 1947 को अस्तित्व में भी आ गया। दोनों अफ़सरों ने साज़िश के तहत गजेटियर में दर्ज़ किया कि 1528 में अप्रैल से सितंबर के बीच एक हफ़्ते के लिए बाबर अयोध्या आया और उसके सूबेदार मीरबाक़ी ताशकंदी ने राम मंदिर को मिसमार करके बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया।

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हैरानी की बात यह रही है कि दोनों अंग्रेज़ अफ़सरों ने एक रणनीति के तहत बाबर की डायरी बाबरनामा, जिसमें वह रोज़ाना अपनी गतिविधियां दर्ज़ करता था, के 3 अप्रैल 1528 से 17 सितंबर 1528 के बीच लिखे गए 20 से ज़्यादा पन्ने ग़ायब कर दिए। सबसे अहम बात यह है कि दोनों अफ़सरान मस्जिद के शिलालेख का फ़्यूहरर द्वारा किए गए अनुवाद को ग़ायब करना भूल गए। आर्कियोल़जिकल इंडिया की फ़ाइल में वह अनुवाद आज भी जस का तस महफ़ूज़ है और ब्रिटिश अफ़सरों की साज़िश से परदा हटाता है।

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दरअसल, बाबर की गतिविधियों की जानकारी बाबरनामा की तरह हुमायूंनामा में भी दर्ज़ है। लिहाज़ा, बाबरनामा के ग़ायब पन्ने से नष्ट सूचना हुमायूंनामा से ली जा सकती है। हुमायूंनामा के मुताबिक 1528 में बाबर अफ़गान हमलावरों का पीछा करता हुआ घाघरा (सरयू) नदी तक अवश्य गया था, लेकिन उसी समय उसे अपनी बीवी बेग़म मेहम एवं अन्य रानियों और बेटी बेग़म ग़ुलबदन समेत पूरे परिवार के काबुल से अलीगढ़ आने की इत्तिला मिली। बाबर लंबे समय से युद्ध में उलझा होने की वजह से परिवार से मिल नहीं पाया था, इसलिए वह तुरंत अलीगढ़ रवाना हो गया। पत्नी-बेटी और परिवार के बाक़ी सदस्यों को लेकर अपनी राजधानी आगरा आया और 10 जुलाई तक उनके साथ आगरा में ही रहा। उसके बाद बाबर परिवार के साथ पिकनिक मनाने के लिए धौलपुर चला गया। वहां से सिकरी पहुंचा, जहां सितंबर के दूसरे हफ़्ते तक रहा।

अयोध्या की मस्जिद बाबर के आक्रमण और उसके भारत आने से पहले ही मौजूद थी। बाबर आगरा की सल्तनत पर 20 अप्रैल 1526 को क़ाबिज़ हुआ, जब उसकी सेना ने इब्राहिम लोदी को हराकर उसका सिर क़लम कर दिया। एक हफ़्ते बाद 27 अप्रैल 1526 को आगरा में बाबर के नाम का ख़ुतबा पढ़ा गया। बहरहाल, अयोध्या के राम मंदिर को बाबरी मस्जिद बनाकर अंग्रज़ों ने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच नफ़रत का जो बीज बोया वह दिनों-दिन बढ़ता ही गया। कालांतर में हिंदुओं और मुस्लमानों के बीच संघर्ष गहराता चला गया। रामंदिर-बाबरी मस्जिद का विवाद उसमें आग में घी का काम करने लगा।

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अंग्रज़ों ने इस बीच साज़िशन भारी विरोध के बावजूद 20 जुलाई 1905 को बंगाल का विभाजन कर दिया। बंग-भंग के प्रस्ताव पर इंडिया सेक्रेटरी का ठप्पा भी लग गया। राजशाही, ढाका तथा चटगांव कमिश्नरीज़ को असम के साथ मिलाकर नया प्रांत बना दिया गया, जिसका नाम पूर्ववंग और असम रखा गया। अंग्रेज़ यहीं नहीं रुके, उन्होंने कांग्रेस को हिंदुओं की पार्टी करार देकर मुसलमानों के लिए अलग राजनीतिक पार्टी बनवाई इसके लिए अंग्रज़ों ने ढाका के चौथे नवाब सर ख़्वाज़ा सलीमुल्लाह बहादुर और अलीगढ़ के नवाब मुहसिनुल मुल्क का इस्तेमाल किया। अंग्रज़ों की शह पर 30 दिसंबर 1906 को औपचारिक रूप से ब्रिटिश इंडिया के बंगाल स्टेट के ढाका शहर (अब बांग्लादेश) में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना की गई।

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मुस्लीम लीग के बनने के बाद उसका कांग्रेस से टकराव होने लगा। 1909 के बाद कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच मतभेद बहुत गंभीर होने लगे। जिन्ना पहले मुस्लिम लीग के नेताओं से नफ़रत करते थे। वह सेक्यूलर और उदारवादी मुसलमान थे। वह अली बंधुओं, जिनमें से लियाकत अली पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने, से भी बहुत नफ़रत करते थे। बहरहाल, 1913 में उन्होंने मुस्लिम लीग की सदस्यता स्वीकार की थी। हालांकि 1913 से 1920 तक जिन्ना कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों से जुड़े रहे।

जिन्ना ने महात्मा गांधी के ख़िलाफ़त आंदोलन का तगड़ा विरोध किया था। वह हैरान थे कि गांधी मुसलमानों के मामले में मुस्लिम नेताओं से भी ज़्यादा दिलचस्पी क्यों ले रहे हैं। ख़िलाफ़त आंदोलन के बाद उनका गांधी से मतभेद इस कदर बढ़ा कि फिर दोनों में कभी सुलह न हो सकी। वह गांधी से चिढ़कर पूरी तरह मुस्लिम लीग के लिए काम करने लगे। उधर गांधी ने मुस्लिम नेताओं को जितना अपनाने की कोशिश की वे कांग्रेस से उतने ही दूर होते गए। गांधी के ख़िलाफ़त आंदोलन का ज़रूरत से ज़्यादा समर्थन करने से भी हिंदू-मुसलमान नेताओं के बीच दूरी बढ़ती गई।

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बहरहाल, कुछ साल बाद 1927 में हैदराबाद निजाम के नवाब महमूद नवाज़ ख़ान क़िलेदार ने मुसलमानों की नई पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन, जिसके अध्यक्ष आजकल सांसद असदुद्दीन ओवैसी हैं, की स्थापना की। एमआईएम के नेता अलगाववादी जिन्ना और अली बंधुओं के खेमे में थे। विभाजन के लिए दबाव बनाने के लिए इन लोगों ने 1928 में मुस्लिम लीग से गठबंधन भी किया था। सन् 1930 में सबसे पहले शायर मुहम्मद इक़बाल ने भारत के उत्तर-पश्चिमी चार प्रांतों (सूबा-ए-सरहद) सिंध, बलूचिस्तान, पंजाब और अफ़गानिस्तान को मिलाकर एक अलग राष्ट्र बनाने की मांग की थी। पाकिस्तान शब्द वस्तुतः 1933 में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने वाले चौधरी रहमत अली ने दिया था।

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फ़रवरी 1938 में गांधी और जिन्ना ने देश में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच जारी तनाव का हल निकालने के लिए बातचीत शुरु की, लेकिन बातचीत नाकाम हो गई। दिसंबर में मुस्लिम लीग ने ‘मुसलमानों के उत्पीड़न’ की जांच के लिए एक समिति बनाई। सेक्यूलर और उदार जिन्ना धीरे धीरे कट्टर मुसलमान होते गए। पाकिस्तान बनने की कड़ी में अहम पड़ाव 23 मार्च 1940 को आया। जब मुस्लिम लीग ने लाहौर सम्मेलन में ‘पाकिस्तान प्रस्ताव’ पारित किया और स्वतंत्र मुस्लिम देश बनाए जाने की मांग की। सम्मेलन में जिन्ना ने कहा कि हिंदू और मुस्लिम दो अलग अलग धर्म के अनुयायी हैं, दोनों का धर्म ही अलग नहीं है बल्कि दोनों का जीवन दर्शन, सामाजिक परंपराएं और साहित्य भी अलग-अलग है। लिहाज़ा, मुसलमानों के लिए पृथक देश बनाया ही जाए।

तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने राजनीतिक और कानूनी गतिरोध दूर करने की कोशिश की। 11 मार्च 1942 को ब्रिटिश संसद में घोषणा की गई कि समाजवादी नेता सर स्टिफ़र्ड क्रिप्स जल्द ही नए सुझावों के साथ भारत भेजे जाएंगे। वह भारत में राजनीतिक सुधारों के लिए भारतीय नेताओं से बातचीत करेंगे। 22-23 मार्च 1942 को सर स्टिफ़र्ड क्रिप्स दिल्ली आए। उन्होंने भारतीय नेताओं से लंबी बातचीत की और 30 मार्च को क्रिप्स प्रस्ताव प्रकाशित हुआ। क्रिप्स मिशन के प्रस्तावों को भारतीय राष्ट्रवादियों ने नामंज़ूर कर दिया। 9 अगस्त 1942 में गांधी के नेतृत्‍व में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हो गया।

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1942 में अगस्त क्रांति के बाद गांधी समेत कांग्रेस के प्रमुख नेता दो से तीन साल तक जेल में रखे गए। इस दौरान जिन्ना और नवाब की अगुवाई में मुस्लिम और एमआईएम का पाकिस्तान बनाने की मिशन चलता रहा। कांग्रेस नेताओं का तीन साल के लिए मुख्यधारा से हट जाना मुस्लिम लीग के लिए बहुत लाभदायक रहा। मुस्लिम लीग ने उन मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों पर अपना जनाधार बना लिया, जहां उसका कोई आधार नहीं था। जेल से छूटने के बाद गांधी ने सितंबर 1944 में जिन्ना से बातचीत की और पाकिस्तान की मांग छोड़ने का आग्रह किया, पर वह नाकाम रहे। इस मुद्दे पर दोनों में गहरे मतभेद थे। जिन्ना को पाकिस्तान पहले चाहिए था और आज़ादी बाद में जबकि गांधी का कहना था कि आज़ादी पहले मिलनी चाहिए।

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1944 में नवाब की मौत के बाद हैदराबाद निज़ाम के पैरोकार एडवोकेट क़ासिम रिज़वी एमआईएम के अध्यक्ष बने थे। रिज़वी भी हैदराबाद स्टेट के भारत में विलय के कट्टर विरोधी थे। वह पाकिस्तान के साथ जाना चाहते थे, लेकिन सफल नहीं हुए। आज़ादी के बाद भी कई रियासतें भारत में शामिल नहीं हुई थीं। उनमें कश्मीर के अलावा हैदराबाद स्टेट भी था। रिज़वी ने भारत के ख़िलाफ़ संघर्ष भी छेड़ दिया था। उनके राष्ट्रविरोधी कार्य को रोकने के लिए सेना ने हैदराबाद में ऑपरेशन पोलो शुरू किया। सरदार बल्लभभाई पटेल ने एमआईएम पर प्रतिबंध लगाने के बाद रिज़वी को नज़रबंद कर दिया। नौ साल बाद उन्हें इस शर्त पर रिहा किया गया कि वह चुपचाप पाकिस्तान चले जाएंगे। इस्लामाबाद रवाना होने से पहले रिज़वी ने एमईआईएम का अध्यक्ष अपने वफ़ादार अब्दुल वाहिद ओवैसी को बनाया। अब्दुल ओवैसी के बाद एमआईएम की कमान उनके बेटे सुल्तान सलाउद्दीन ओवैसी ने संभाली और वह लोकसभा के लिए भी चुने गए। असदुद्दीन ओवैसी और अकबरूद्दीन ओवैसी सुल्तान के ही पुत्र हैं।

बहरहाल, 1946 में यह तय हो गया कि अंग्रेज़ अगले तीन-चार साल में भारतीय उपमहाद्वीप को छोड़ देंगे। उस साल मुस्लिम लीग ने कैबिनेट मिशन की योजना से ख़ुद को अलग कर लिया और जिन्ना ने मुसलमानों के लिए पृथक पाकिस्तान की मांग को लेकर 16 अगस्त 1946 को ‘डायरेक्ट ऐक्शन डे’ की घोषणा कर दी। उसके बाद देश भर में हिंदू और मुसलमानों के बीच भीषण दंगे शुरू हो गए। हिंसा की पहली लहर कलकत्ता में 16 से 18 अगस्त के बीच शुरू हुई। ‘ग्रेट कैलकटा किलिंग्स’ के नाम से याद की जाने वाली इस घटना में करीब 4000 लोग मारे गए, हज़ारों घायल हुए और लगभग एक लाख लोग बेघर हो गए। मुस्लिम बाहुल्य इलाके में भारी तादाद में हिंदुओं का क़त्ल हुआ। हिंसा की आग पूर्वी बंगाल के नोआखाली ज़िले तक फैल गई। प्रतिक्रिया स्वरूप बिहार में हिंदुओं ने मुसलमानों को निशाना बनाया। इस दंगे और कांग्रेस-मुस्लिम लीग के झगड़े ने भारत के विभाजन सुनिश्चित कर दिया। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने घोषणा की कि ब्रिटेन जून 1948 तक भारत छोड़ देगा और लॉर्ड माउंटबेटन वायसरॉय होंगे।

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24 मार्च 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन ने वायसरॉय पद की शपथ ली। 2 जून को उन्होंने भारतीय नेताओं से विभाजन की योजना पर चर्चा की। भारत के विभाजन के ढांचे को ‘3 जून प्लान’ या माउंटबैटन योजना का नाम से जाना जाता है। उसी दिन कांग्रेस प्रतिनिधि जवाहरलाल नेहरू, मुस्लिम लीग प्रतिनिधि मोहम्मद अली जिन्ना और सिख समुदाय के प्रतिनिधि बलदेव सिंह ने ऑल इंडिया रेडियो के प्रसारण में विभाजन की योजना के बारे में जानकारी दी। भारत और पाकिस्तान के बीच की सीमारेखा लंदन के वकील सर सिरिल रैडक्लिफ ने तय की। हिंदू बहुमत वाले इलाके भारत में और मुस्लिम बहुमत वाले इलाके पाकिस्तान में शामिल किए गए।

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18 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम को पारित किया जिसमें विभाजन की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया गया। तब ब्रिटिश इंडिया में बहुत से राज्य थे जिनके राजाओं के साथ ब्रिटिश सरकार ने तरह-तरह के समझौते कर रखे थे। इन 565 राज्यों को विकल्प दिया गया कि वे ख़ुद फ़ैसला करें कि भारत के साथ रहेंगे या पाकिस्तान में शामिल होना चाहेंगे। अधिकतर राज्यों ने बहुमत धर्म के आधार पर देश का चयन किया। जिन राज्यों के शासकों ने बहुमत धर्म के अनुकूल देश चुना उनके एकीकरण में काफ़ी विवाद हुआ। जिन्ना पाकिस्तान के गवर्नर जनरल और लियाकत अली खान प्रधानमंत्री बने। इस तरह जिस पौधे को नेविल ने रोपा था, वह वटवृक्ष बन गया और माउंटबेटन ने 3 जून 1947 को भारत भूमि पर भारत और पाकिस्तान नाम के दो राष्ट्र बनाने की घोषणा कर दी और 14 अगस्त यानी आज के दिन पाकिस्तान विश्व के मानचित्र पर अवतरित हुआ। पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र में नए सदस्य के रूप में शामिल किया गया।

हालांकि विभाजन के बहुत बाद माउंटबेटन ने इंटरव्यू में कहा था, “वॉयसराय बनकर भारत पहुंचने के बाद मैंने देखा कि मुस्लिम लीग की सारी ताक़त जिन्ना के हाथ में है और वह पाकिस्तान बनाने की मांग पर अड़े हुए हैं। अगर मुझे पता होता कि जिन्ना आज़ादी के साल भर बाद ही इस दुनिया से रुख़सत कर जाएंगे तो मैं हिंदुस्तान का बंटवारा कतई न होने देता। हिंदुस्तान संगठित तौर पर बना रह सकता था, रास्ते का कांटा सिर्फ़ मिस्टर जिन्ना थे, दूसरे नेता इतने ताक़तवर और सख़्त नहीं थे और मुझे यक़ीन है कि कांग्रेस उन लोगों के साथ किसी सुलह पर पहुंच जाती और पाकिस्तान क़यामत तक अस्तित्व में नहीं आता।”

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

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