बच्चों को सुलाते-सुलाते खुद सोने लगी है लोरी

0
12090

हरिगोविंद विश्वकर्मा

आज कल में ढल गया, दिन हुआ तमाम;
तू भी सो जा सो गई, रंग भरी ये शाम…

लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी के गाए इस अति सुकून भरी लोरी को सुनकर बच्चा क्या बड़े को भी नींद आ जाती है। लोरी की यही ख़ासियत है। भारतीय सिनेमा, ख़ासकर हिंदी फिल्मों ने लोरी को नई पहचान दी है, लेकिन अब अगर कहें कि बच्चों और बड़ों को सुलाते-सुलाते लोरी (Lori) ख़ुद ही सोने लगी है, तो अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा। दरअसल, 1980 और 1990 के दशक से हिंदी फ़िल्मों में तेज़ धुन वाले पॉप और आर्केस्ट्रा के घुसपैठ के बाद धीमी संगीत वाले स्लोट्रैक मेलोडी गीतों का चलन कम होने लगा है। इक्कीसवीं सदी के आते-आते इस तरह के कर्णप्रिय गीत अतीत का हिस्सा बनने लगे हैं। यानी लोरी परंपरा शुरू होने के आठवें दशक में ही भारतीय सिनेमा से ख़त्म होने लगी है। कानफोड़ू पश्चिमी संगीत में लोग इस कदर रम गए हैं कि संगीत के कद्रदानों को पिछले कई साल से दिलो-दिमाग़ को सुकून देने वाली लोरियां सुनने को भी नहीं मिल रही हैं। कहा जा सकता है कि इस संगीत आक्रमण ने भारतीय संगीत के माधुर्य पर इस तरह चोट किया है और कर्णप्रिय लोरी की समृद्ध परंपरा क़रीब-क़रीब नष्ट होने के कगार पर पहुंच गई है। अब न तो कोई गीतकार लोरी लिखता है, और न ही कोई संगीतकार उसे धुन में ढालता है। इस तरह एक गौरवशाली परंपरा बस ख़त्म होने वाली है।

भारतीय परंपरा के अनुसार बच्चों की नींद बड़ी चंचल मानी जाती है। चूंकि नींद बच्चों के लिए आहार से कम अहम नहीं होती है, इसलिए बच्चों को इस चंचल नींद में लाने की कोशिश की जाती रही है। बच्चों की नींद को बुलाने के लिए उन्हें लोरियों का प्रलोभन दिया जाता रहा है। बच्चे दिन भर गुड्डे-गुड्डी और खिलौने आदि से खेलने के बाद बिस्तर पर पड़ते ही अपनी मां, नानी अथवा दादी से लोरी सुनना पसंद करते हैं। लोरी सुनते-सुनते बच्चे ही नहीं, बल्कि बड़े भी उसमें इतने ज़्यादा खो जाते हैं कि अवचेतन की अवस्था में पहुंच जाते हैं। लोरियों की यही ख़ासियत होती है। संभवतः इसी से प्रेरणा लेकर बोलती फिल्मों का दौर शुरू होने पर बच्चों को सुलाने या बहलाने के लिए रूपहले परदे पर लोरियों का प्रयोग शुरू हुआ। यह प्रयोग आगे चलकर बहुत लोकप्रिय हुआ। इसे उस दौर के संगीतप्रेमियों ने सिर-आंखों पर बिठाया। यही वजह है कि हिंदी फिल्मों में गाई गई कई लोरियां आज भी दिलो-दिमाग़ को बेहद सुकून पहुंचाती हैं।

इसे भी पढ़ें – किसने दिलवाई अमिताभ बच्चन को हिंदी सिनेमा में इंट्री?

हिंदी सिनेमा में समय-समय पर लोरियां पेश की जाती रहीं हैं, जिन्हें सिनेमा देखने वाले ही नहीं, बल्कि संगीतप्रेमी भी ख़ूब पंसद करते रहे हैं। मानव सभ्यता के अस्तित्व में आने के बाद से ही बच्चों का थपकी देकर सुलाने की परंपरा रही है। यह परंपरा पूरी दुनिया की तरह भारत में भी काफी समृद्ध रही है। कहानियों को रूपहले परदे पर दिखाने की परिपाटी शुरू होने के बाद फिल्मों में भी बच्चों को सुलाने की लिए लोरी की परिकल्पना की गई। फिल्मों में भी आम जीवन की तरह मां अपने बच्चे को सुलाने के लिए लोरी गुनगुनाने लगी। फिल्मों में भी मां जैसे ही लोरी गुनगुनाना शुरू करती है, लोरी में मौजूद वात्सल्य से बच्चा झपकी लेने लगता है और धीरे-धीरे सो जाता है।

भारत और लोरी का संबंध सदियों पुराना है। मार्कंडेय पुराण में मदालसा का प्रसंग मशहूर है। मदालसा अपने बच्चों को सुलाने के लिए सुंदर लोरियां गाती है। मदालसा को ही लोरी की जननी कहां जाता है। कहते हैं कि सर्वप्रथम मदालसा ने ही अपने पुत्र अलर्क को सुलाने के लिए लोरी गाई थी। इसका विवरण मार्कंडेय पुराण में मिलता है। रामायण युग में भी माता कौशल्या बालक राम को सुलाने के लिए लोरी गाती हैं। तुलसीदास ने गीतावली में लिखा है, पौढ़िए लालन पालने हौं झुलावौं, कद पद सुखं चक कमल लसत लखि, लौचन भंवर बुलावौ… इसी तरह माता यशोदा भी अपने नंदलाल यानी कृष्ण को पालने में लोरी गाकर सुलाया करती थीं। सूरदास जी ने लिखा भी है – यशोदा हरि पालने में झुलावे, हलरावै दुलरावे मल्हरावै, जोई जोई कुछ गावै, मेरे लाल को आऊ निदरिया, काहौ न आए निदरिया…

इसे भी पढ़ें – तेरे मेरे बीच में कैसा है ये बंधन अनजाना… ओ हो आपड़िया…

कमोबेश दुनिया के हर देश में लोरी की गौरवशाली परंपरा रही है। भारत के अधिकांश हिस्से में बच्चों को जो लोरियां सुनाई जाती हैं, उनमें चंदा मामा का ज़िक्र ज़रूर होता है। इसी तरह इराक की लोरियां दर्द से सराबोर होती हैं। स्वीडन में कुछ लोरियों में बच्चों को भाषा सिखाने की कोशिश की जाती है, तो कुछ लोरियां शिक्षाप्रद होती हैं। कीनिया में मां लोरियों में अक्सर लकड़बग्घे का ज़िक्र करती है, ताकि बच्चा डर से सो जाए। पश्चिमी कीनिया के तो लुओ जाति के बीच लोरी काफी प्रचलित हैं जिसमें बच्चों से कहा जाता है कि जो बच्चा नहीं सोएगा, उसे लकड़बग्घा खा जाएगा।

कहा जाता है कि लोरी अंग्रेज़ी शब्द ‘ललबाई’ (lullaby) का हिंदी अनुवाद है। ‘ललबाई’ यानी ‘लल’ और ‘बाई’ से मिलकर बना है। वैसे lullaby भी दो शब्द lullen और by(e) से उत्पन्न हुआ है। लल का अर्थ शांत होना और बाई का अर्थ नींद की ओर प्रस्थान करना होता है। इतिहास में और पीछे जाएं तो lullaby, दरअसल, एक यहूदी लोक व्युत्पत्ति “लिलिथ-अबी” (“Lilith-Abi”) से निकला हुआ है। कहने का मतलब लोरी मूलरूप से यहूदी सभ्यता से निकली है। यहूदी परंपरा में, लिलिथ एक राक्षस था, जिसे माना जाता था कि वह रात में बच्चों की आत्माओं को चुरा लेता था। लिलिथ से बच्चों की रक्षा के लिए यहूदी माताएं “लिलिथ-अबेई” (लिलिथ-बेगोन”) शिलालेख के साथ नर्सरी की दीवारों पर चार ताबीज लटकाने लगीं। वैसे पहली लोरी क़रीब 1560 में रिकॉर्ड की गई थी। लोरी सुखदायक पालना गीत-संगीत है, जो आमतौर पर बच्चों को सुलाने के लिए गाया या बजाया जाता है।

इसे भी पढ़ें – हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है…

लोरी के इतिहास को और अधिक खंगालने पर ज्ञात होता है कि तक़रीबन चार हज़ार साल पहले बेबीलोनिया सभ्यता में पहली बार किसी मां ने अपने बच्चे को लोरी सुनाई थी। ईसा पूर्व 2000 में मिट्टी के एक छोटे से टुकड़े पर गहरे खुदे लोरियों के शिलालेख बताते हैं कि लोरियां गुनगुनाने का इतिहास कितना पुराना है। इस पर लिखी लोरी को जहां तक पढ़ी जा सकी है, उसका अर्थ निकलता है कि जब बच्चा रोता है तो ईश्वर विचलित होने लगते हैं, जिसका नतीजा घातक होता है। यानी पहले लोरियों में प्रेम से अधिक डर का भाव होता था। इस शिलालेख को लंदन के ब्रिटिश संग्रहालय में रखा गया है। लोरी का उल्लेख करते हुए संगीतकार ज़ोय पामर कहते हैं कि पहले लोग बच्चों को धमकाते थे, “तुम बहुत शोर मचा चुके हो और इस शोर से बुरी आत्माएं जाग गई हैं और अगर तुम अभी तुरंत नहीं सोए तो प्रेत आत्माएं तुम्हें खा जांएगी।”

डॉक्टरों का कहना है कि मां लोरी के माध्यम से बच्चे पर अच्छे संस्कार के बीजारोपण करती है। लोरी सुनते हुए शिशु को आनंद की अनुभूति होती है। उसके भीतर एक तरह के आनंद रस का प्रवाह होता है। जिससे वह रोमांचित भी होता है। उसके भीतर ग्रहण शक्ति का विकास होता है। दूसरी ओर बाल विकास पर कई किताबें लिख चुके लेखक गोड्डार्ड ब्लेथ कहते हैं कि दुनिया भर में हर जगह लोरियां गाई या सुनाई जाती हैं। कहीं-कहीं तो उनका शाब्दिक अर्थ ही नहीं निकाला जा सकता। ब्लेथ के अनुसार गर्भ के चौबीसवें सप्ताह में ही बच्चा मां की आवाज़ सुनने लगता है। उनका कहना है कि मां और बच्चे के बीच बातचीत और लोरियों का पुराना इतिहास है। कई शोध बताते हैं कि बच्चों में ताल और लय को समझने की अदभुत क्षमता होती है।

इसे भी पढ़ें – कोई उनसे कह दे हमें भूल जाएं…

हिंदी फिल्मों ने लोरी को अपने आंचल में इतनी ख़ूबसूरत से संजोया है कि उसे सुनते ही बनता है। एक से बढ़कर एक मधुर शब्दों का चयन जो सीधे दिल में उतर जाता है। इसीलिए लोरी को सिनेमाप्रेमियों ने ख़ूब पसंद किया। लिहाज़ा, लोरी फिल्मों परंपरा चल निकली। इसके बाद अक्सर फिल्मों में लोरी की दस्तक होने लगी। परंतु कर्णप्रिय लोरी को तथाकथित विकास और पश्चिमी चकाचौंध ने ग्रहण लगा दिया। भारतीय सिनेमा से कई दूसरी समृद्ध परंपराओं की तरह लोरी परंपरा भी एक तरह से ख़त्म सी होने लगी है। लोरी की त्रासदी का आलम यह है कि वह तो आठवें दशक में ही दम तोड़ रही है। इस तरह बच्चों-बड़ों को सुलाते सुलाते लोरी ख़ुद भी असमय सोती जा रही है। फिल्म से जुड़े लोगों का मानना है कि सन् 2014 के बाद बॉलीवुड में कोई ऐसी फ़िल्म नहीं बनी, जिसमें लोरी के रूप में कोई गाना शामिल किया गया हो। 1940 से 2014 के बीच हिंदी सिनेमा में लगभग सौ लोरियां पेश की गईं।

हिंदी फिल्मों में लोरी की परंपरा शुरू करने का श्रेय फिल्मों के स्वर सम्राट कुंदनलाल सहगल को दिया जाता है। 1940 में बनी ज़िंदगी फिल्म में उन्होंने पहली लोरी गाई थी। वह लोरी थी, सो जा राजकुमारी सो जा, सो जा मन बलिहारी सो जा… गीतकार केदार शर्मा के बोल को संगीतकार पंकज मलिक ने गजब की धुन में पिरोया है और सहगल की आवाज़ पाकर वह लोरी अगर हो गई। उस लोरी को सुनकर आज भी बच्चे ही नहीं, बल्कि बड़े-बुज़ुर्ग भी अपने सारे ग़म और सारे तनाव भूल जाते हैं और निद्रा की आग़ोश में चले जाते हैं।

इसे भी पढ़ें – ये क्या जगह है दोस्तों, ये कौन सा दयार है…

दूसरी लोरी सुनने को मिली 1945 में रिलीज़ फिल्म ज़ीनत में। जिसमें शेवान रिज़वी की लिखी आ जा री आ निंदिया तू आके न जा, नन्हीं सी आंखों में घुल जा… नूरजहां की खनकती आवाज़ और हाफ़िज़ ख़ान की धुन पाकर यह लोरी यादगार बन गई है। 1951 की फिल्म अलबेला में लता मंगेशकर ने रामचंद्र नरहर चितलकर उर्फ सी रामचंद्र के साथ अब तक की सर्वश्रेषठ लोरी धीरे से आ जा री अंखियन में निंदिया आ जा री आ जा… को स्वर दिया है। इसके बाद तो लोरी की परंपरा दिन दूनी रात चौगुनी फलने-फूलने लगी। 1950, 1960 और 1970 के तीन दशक को लोरी का स्वर्णकाल कहें तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। 1952 आई फिल्म पूनम की लोरी आई आई रात सुहानी, सुन ले ख़ुशी की कहानी, नींद की परियां आई सुलाने… को आवाज़ लता ने दी है और हसरत जयपुरी के बोल को शंकर जयकिशन ने संगीत में ढाला है। उसी साल इंसान फिल्म में बीएन बाली के संगीत निर्देशन में साजन बिहारी की लिखी लोरी सो जा रे सो जा रे दुखियारी मां की आंख के तारे… गीता दत्त ने अपनी मधुर आवाज़ देकर अविस्मरणीय बना दिया है।

1953 में बनी दो बीघा ज़मीन में शैलेंद्र के बोल और सलिल चौधरी की धुन पर आ जा री निंदिया तू आ जा… को लता के स्वर ने कर्णप्रिय बना दिया है। 1953 में एक और लोरी सो जा मेरे प्यारे सो जा… ख़ासी लोकप्रिय हुई। फुटपाथ फिल्म की इस लोरी को खैयाम के संगीत निर्देशन में आशा भोंसले ने स्वर दिया है। इस लोरी को सरदार अली ज़ाफ़री ने मज़रूह सुल्तानपुरी के साथ मिलकर लिखा है। उसी साल बनी फिल्म नौ लखा हार में गायिका राजकुमारी की गाई झुलना झलाए मैया… लोरी बहुत मधुर लगती है। रमेश गुप्ता की लिखी इस लोरी को भोला श्रेष्ठ ने संगीतबद्ध किया है। अगले साल यानी 1954 में भी तीन-तीन फिल्मों में लोरी सुनने को मिली। पहली लोरी राही फिल्म की प्रेम धवन की लिखी चांद सो गया तारे सो गए… है, जिसे मीना कपूर के स्वर और अनिल बिस्वास की धुन पर तैयार किया गया है। दूसरी लोरी शैलेंद्र की लिखी माशूक़ा की झिलमिल तारे करे इशारे सोज सोज सोज राज दुलारे… है, जिसे सुरैया और मुकेश की आवाज को रोशन ने स्वरबद्ध किया है। तीसरी लोरी जीवन ज्योति के लिए सो जा रे सो जा, मेरी अंखियों के तारे… को साहिर लुधियानवी ने लिखी है। इसे गीता दत्त ने सचिनदेव बर्मन की धुन पर गाया है।

इसे भी पढ़ें – पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले, झूठा ही सही…

कवि प्रदीप ने एक लोरी 1954 में बाप बेटी के लिए लिखी है। रोशन की धुन पर लता की गाई यह लोरी ले चल निंदिया ले चल हमें… जन जन में लोकप्रिय हुई। उसी साल प्रदर्शित होने वाली शबाब फिल्म में शकील बदायूंनी के बोल चंदन का पलना रेशम की डोरी, झूला झुलाऊं निंदिया को तोरी… को नौशाद के संगीत ने अविस्मरणीय बना दिया। साल की तीसरी लोरी को वारिस के लिए क़मर जलालाबादी ने लिखा है। उनके बोल तारों की नगरी से चंदा ने एक दिन धरती पे आने की ठानी… अनिल बिस्वास की धुन पर सुरैया की स्वर पाकर यह लोरी मधुर बन गई है। साल की चौथी लोरी फिल्म सुहागन में है। एहसान रिज़वी की लिखी लोरी मेरे लल्ला को सुलाएगी निंदिया… को वसंत रामचंद्र की धुन पर तलत महमूद ने अपनी आवाज़ देकर असाधारण बना दिया है। इस लोरी को आशा भोसले की आवाज़ में भी रिकॉर्ड किया गया है। 1955 में बनी फिल्म वचन में गीतकार-संगीतकार रवि और गायिका आशा भोसले की जोड़ी ने चंदा मामा दूर के… को अमर बना दिया है।

लोरी के नज़रिए से वर्ष 1957 असाधारण वर्ष रहा, क्योंकि इस वर्ष रिलीज़ छह फिल्मों में लोरियां रखी गईं। फिल्म बंदी में किशोर कुमार की आवाज़ और हेमंत कुमार की धुन पर राजेंद्र किशन के बोल चुप हो जा अमीरों की ये सोने की घड़ी है… चर्चित रही। दो आंखें बारह हाथ फिल्म में भरत व्यास की लिखी लोरी मैं गाऊं तू चुप हो जा, मैं जागू रे तू सो जा… को वसंत देसाई की धुन पर लता मंगेशकर की सुरीली आवाज़ मिली है। फिल्म मुसाफ़िर में शैलेंद्र की लिखी लोरी मुन्ना बड़ा प्यारा, मम्मी का दुलारा… को किशोर कुमार और सलिल चौधरी की जोड़ी ने हिट कर दिया है। परदेसी फिल्म में प्रेम धवन की लिखी लोरी सो जा रे ललना, झुलाऊं तोहे पलना… को अनिल विस्वास के संगीत निर्देशन में आवाज़ मीना कपूर ने दी है। कठपुतली फिल्म में हसरत जयपुरी की लिखी सो जो सो जो मेरे राजदुलारे सो जा… को शंकर जयकिशन की धुन पर लता ने स्वर दिया है। राजेंद्र किशन ने आशा फिल्म में साल की दूसरी लोरी सो जा रे चंदा सो जा… लिखी, जिसे सी रामचंद्र की मौसिकी पर आवाज़ आशा भोसले ने दी है।

इसे भी पढ़ें – मोहब्बत की झूठी कहानी…

1958 में रिलीज़ लाजवंती मज़रूह सुल्तानपुरी की लिखी लोरी चंदा रे चंदा रे छुपे रहना सोए मेरी मैना… को आशा भोसले की आवाज़ में राहुल देव बर्मन रिकॉर्ड किया है। अगला साल यानी 1959 लोरी के मामले में मील का पत्थर साबित हुआ, क्योंकि इस वर्ष संगीत प्रेमियों को आठ-आठ लोरियां सुनने को मिलीं। सभी एक से बढ़कर एक थीं। इस साल फिल्म सुजाता में मज़रूह सुल्तानपुरी के शब्दों को सचिन दा ने अलग हटती हुई धुन में ढालकर नन्ही परी सोने चली, हवा धीरे-धीरे आना… के रूप में बेमिसाल लोरी की रचना की है। गीता दत्त ने इसे अपना स्वर देकर इसे ममता एवं मातृत्व से सराबोर कर दिया है।

उसी साल प्रदर्शित फिल्म नया संसार में राजेंद्र किशन की लिखी लोरी चंदा लोरी सुनाए हवा झुलना झुलाए… को चित्रगुप्त की धुन पर लता मंगेशकर के स्वर में रिकॉर्ड किया गया तो नई राहें फिल्म में शैलेंद्र की लिखी लोरी कल के चांद आज के सपने, तुमको प्यार बहुत सा प्यार… को संगीतकार रवि की धुन पर हेमंत कुमार और लता मंगेशकर ने गाया है। वर्ष की चौथी लोरी संतान फिल्म में हसरत की लिखी कहता है प्यार मेरा ओ मेरे लाडले तू है मेरा सहारा… थी। लता की आवाज़ में इसे दत्ताराम वाडकर के संगीत निर्देशन में रिकॉर्ड किया गया है। उसी साल बरखा फिल्म में राजेंद्र किशन की लोरी पूछूंगी एक दिन पिछले पहर में सोए हुए चांद तारों से… को चित्रगुप्त की धुन पर लता ने तहे दिल से गाया है।

इसे भी पढ़ें – चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो..

1959 की छठवीं लोरी फिल्म पहली रात में मज़रूह सुल्तानपुरी की लिखी सो मेरी रानी सो मेरी रानी… जिसे रवि के संगीत निर्देशन में आशा भोसले ने स्वर दिया है। फिल्म चिराग कहां रोशनी कहां में गीतकार-संगीतकार रवि ने लता से गवाकर लोरी टिमटिम करते तारे ये कहते हैं सारे… को अविस्मरणीय बना दिया है। वर्ष की आठवीं अद्भुत लोरी फिल्म सुजाता के लिए मज़रूह सुलतानपुरी ने नन्ही कली सोने चली, हवा धीरे आना… के रूप में लिखी है। गीता दत्त की सुरीली आवाज़ और संगीतकार सचिन देव बर्मन की धुन में सजी इस लोरी को सुनते-सुनते हम इतने खो जाते हैं कि अवचेतन में चले जाते हैं। 1960 में आई सोहराब मोदी की फिल्म मेरा घर मेरे बच्चे में हसरत जयपुरी की लिखी, सरदार मलिक की धुन पर मुकेश की गई लोरी चंदा के देश में…. काफी चर्चित हुई।

1961 में रिलीज़ फिल्म प्यार की प्यास में भरत व्यास ने चंदा ढले पंखा झले मैया तुम्हारी, फूलों पे सो जा मेरी राजकुमारी… के रूप में असाधारण लोरी लिखी है। लता मंगेशकर की आवाज़ में वसंत देसाई ने इसका यादगार संगीत बनाकर इसे कर्णप्रिय बना दिया है। उसी साल फिल्म चार दीवारी में शैलेंद्र की लिखी नींद परी लोरी गाए, मां झुलाए पालना, सो जा मेरे ललना मीठे-मीठे सपनों में… सलिल चौधरी की धुन और लता की आवाज़ पाकर यादगार बन गई है। 1961 में ही रिलीज हमारी याद आएगी में केदार शर्मा की लिखी और स्नेहल भाटकर की संगीतबद्ध की गई और मुकेश की गई लोरी फ़रिश्तों की नगरी में आ… को समीक्षकों ने काफी सराहा था।

1962 में आई फिल्म जादूगर डाकू में गीतकार प्रेम धवन की लिखी ना चांद हो ना सूरज हो ना तुम… को संगीतकार एसएन त्रिपाठी की धुन पर मुकेश ने गाकर यादगार बना दिया। उसी साल प्रदर्शित मेरी बहन फिल्म में गीतकार पंडित इंद्र ने नन्हें-मुन्ने वाल देश के… जैसी लोरी लिखी। मुकेश ने संगीतकार धनी राम के संगीत निर्देशन में अपनी आवाज़ से संवारा है। इस लोरी को भी बार-बार सुनने का मन करता है।

इसे भी पढ़ें – परदेसियों से ना अखियां मिलाना…

1963 में बहूरानी में सी रामचंद्र की धुन पर लता मंगेशकर के स्वर में साहिर लुधियानवी की लिखी लोरी मैं जागूं सारी रैन सजन तुम सो जाओ… बड़ी हिट हुई। रूपहले परदे पर नायिका माला सिन्हा इस लोरी को गाकर अपने प्रियतम को सुलाती है। उस वर्ष की दूसरी लोरी दूर के ओ चंदा आ मेरी बांहो में आ… को एक दिल सौ अफ़साने फिल्म के लिए शैलेंद्र ने लिखी, जिसे शंकर जयकिशन की धुन पर लता ने गाया है। इस साल की तीसरी लोरी तारों की गोरी चांद की गुड़िया… की रचना मज़रूह सुल्तानपुरी ने की है। देखा प्यार तुम्हारा फिल्म की इस लोरी को संगीतकार के रतन की धुन पर सुमन कल्याणपुर ने गाया है। फिल्म मुझे जीने दो में साहिर लुधियानवी की लिखी तेरे बचपन को जवानी की दुआ देती हूं… इस साल की चौथी लोरी थी, जिसे जयदेव के संगीत निर्देशन में लता ने अपनी जादुई आवाज़ दी है।

अगले साल यानी 1964 में भारतीय सिनेमा की सबसे अधिक कर्णप्रिय लोरियों में से एक आई। शंकर जयकिशन जोड़ी के संगीत निर्देशन तैयार फिल्म बेटी बेटे में लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी की गाई और शैलेंद्र की लिखी लोरी आज कल में ढल गया, दिन हुआ तमाम, तू भी सो जा सो गई, रंग भरी ये शाम… आज भी उस लोरी को जब रेडियो या कहीं और बजती है तो लोग सब कुछ भूलकर उसी में खो से जाते हैं। उसी साल शैलेद्र की लिखी एक और लोरी, खोया-खोया चांद खोये खोये तारे सो गए… ख़ासी लोकप्रिय हुई। यह लोरी दूर गगन की छांव में फिल्म की थी, जिसे किशोर कुमार की धुन पर आशा भोंसले ने गया है। 1964 में ही सांझ और सबेरा फिल्म में हसरत जयपुरी की लिखी एक और लोरी बेहतर संगीत के साथ आई। चांद कंवल मेरे चांद कंवल चुपचाप सो जा… को शंकर जयकिशन की धुन पर सुमन कल्याणपुर ने अपनी आवाज़ देकर बेमिशाल बना दिया है। साल की अगली लोरी फिल्म आंधी और तूफान की चांद गगन में एक है चमके दो चंदा से घर मेरा थी। फ़ारुक कैसर के बोल को संगीतकार रॉबिन बनर्जी की धुन पर मुबारक बेग़म ने बड़ी ख़ूबसूरती से गाया है।

इसे भी पढ़ें – तेरा जलवा जिसने देखा वो तेरा हो गया….

1965 में प्रदर्शित फिल्म खानदान के लोरी तुम्ही मेरे मंदिर तुम्ही मेरी पूजा, तुम्हीं देवता हो तुम्हीं देवता हो… को कौन भूल सकता है। यह गाना सुनते समय आज भी आंखें बंद हो जाती हैं। गीतकार राजेंद्र कृष्ण की इस लोरी को संगीतकार रवि की धुन पर लता मंगेशकर ने गाया है। यह लोरी लता के सर्वश्रेष्ठ गीतों में से एक है। उसी साल सिनेमाघरों में आई रिश्ते नाते फिल्म के लिए हसरत जयपुरी की लिखी लोरी आ री निंदिया की परी मेरी गुड़िया को सुला, चांद के पलने में मेरी मैना को झुला… को लता से गवाकर संतीकार मदन मोहन ने इसे अमरता प्रदान कर दी है। अगले साल यानी 1965 में रिलीज़ फिल्म सती नारी में सुमन कल्याणपुर ने संगीतकार शिवराम की धुन पर नीरज की लिखी सो जा सो जा तू सो जा मेरे लाल सो जा… यादगार बना दिया है।

1966 में रिलीज़ हुई आसरा में भी कर्णप्रिय लोरी मेरे सूने जीवन का आसरा है तू… थी। आनंद बक्शी की लिखी लोरी को लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत पर आशा भोसले ने गाया है। उसी वर्ष आई फिल्म आख़िरी ख़त में क़ैफ़ी आज़मी की लिखी कर्णप्रिय लोरी मेरे चंदा मेरे नन्हें तुझे अपने सीने से कैसे लगाऊं… को खैय्याम ने अपनी धुन से संवारा है। यह लोरी काफी पसंद की गई। इस लोरी को लोग आज भी मन से सुनते हैं। इसी तरह 1967 में मिलन फिल्म में मुकेश ने यादगार लोरी गया है। आनंद बख्शी के बोल राम करे ऐसा हो जाए, मेंरी निंदिया तोहे लग जाए मैं जागू, तू सो जाए… को लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने बड़ी खूबसूरत से धुन में ढाला है। उसी साल मेरा मुन्ना फिल्म के लिए क़मर जलालाबादी की लिखी लोरी सो जा लाडले, सो जा लाडले सो जा रे सो जा… को कल्याणजी आनंदजी की धुन पर लता ने गाया है। 1967 में ही प्रदर्शित फिल्म भक्त प्रह्लाद की पीबी श्रीनिवास और एस जानकी की गाई लोरी नज़र ना लगे लगे नज़र ना… बड़ी कर्णप्रिय है। प्यारेलाल संतोषी के बोल को एस राजेशवरराव ने धुन में ढाला है।

इसे भी पढ़ें – हम रहे न हम, तुम रहे न तुम…

1968 में ही शंकर जयकिशन ने ब्रम्हचारी फिल्म में मैं गाऊं तुम सो जाओ सुख सपनों में खो जाओ… की धुन तैयार की थी। मोहम्मद रफ़ी ने इसे गाया है। संगीत के जानकारों के अनुसार बेहद तेज़ संगीत की वजह से शैलेंद्र की इस ख़ूबसूरत रचना को वह प्रतिसाद नहीं मिला, जिसकी यह हक़दार थी। 1968 में आई सपनों का सौदागर फिल्म में शैलेंद्र की लिखी और मुकेश की गई लोरी ले लो सपनों के सौदागर… बहुत लोकप्रिय हुई थी। उसे शंकर जयकिशन ने सुरबद्ध किया है। 1969 में बनी फिल्म मुझे सीने से लगा लो में भी एक लोरी ओ मत करियो शोर… थी। प्रेम धवन की लोरी को हंसराज बहल की धुन पर उषा मंगेशकर ने गाया है। 1970 में रिलीज़ फिल्म मस्ताना में आनंद बक्शी की लिखी लोरी सोइ जा तारा लइके अपने खिलौने… को लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की धुन पर हेम लता और किशोर कुमार ने गाया है।

1971 में मेरे अपने फिल्म में गुलज़ार के बोल रोज़ अकेली आए, रोज़ अकेली जाए चांद कटोरा लिए भिखारिन… को सलिल चौधरी ने संगीत से संवारा है। लता मंगेशकर ने इसे अपना स्वर देकर इसे अच्छी लोरी की श्रेणी में जगह दिलाई। उसी साल लाखों में एक फिल्म में आनंद बक्शी की लिखी लोरी चंदा ओ चंदा चंदा ओ चंदा कितने चुराई तेरी निंदिया… को आरडी बर्मन की धुन पर लता और किशोर ने अपने स्वर दिए हैं। साल की तीसरी लोरी को लिखा था गुलज़ार ने सीमा फिल्म की इस लोरी एक थी निंदिया दो थे नैना… को शंकर जयकिशन की धुन पर सुमन कल्याणपुर ने आवाज दी है। 1971 में ही मन मंदिर फिल्म में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की धुन पर लता और मुकेश ने ऐ मेरी आंखों के पहले रंगीन सपने मासूम सपने… जैसी शानदार लोरी को अपना स्वर दिया है। साल की पांचवी लोरी फिल्म हंगामा में थी। अनजान के लिखी लोरी सूरज से जो किरण का नाता है… को धुन में ढाला है राहुल देव बर्मन ने और मुकेश की आवाज़ में इसे रिकॉर्ड किया गया है।

इसे भी पढ़ें – वक्त ने किया क्या हसीन सितम…

1972 में बनी अनुराग फिल्म एक कर्णप्रिय लोरी, मेरा राज बेटा बूझे एक पहली सोए जग जागे रात अकेली थी… है। सचिनदेव बर्मन के संगीत निर्देशन में लता ने इस लोरी को गाया है। उस वर्ष की दूसरी लोरी फिल्म कोशिश में मेरे बाबा रे नन्हें बाबा रे, सो जा बाबा मेरे… गुलज़ार की लिखी है, जिसे मदन मोहन की धुन पर मोहम्मद रफ़ी ने गाया है। वर्ष की तीसरी लोरी मेरी बगिया की कली तू सदा ही खिलना… को इंदीवर ने फिल्म दो राही के लिए लिखा है, जिसे सपन जगमोहन के निर्देशन में आशा भोसले ने गाया है। 1972 की चौथी लोरी रविराज फिल्म की है। हसरत जयपुरी के बोल तुझ जैसी लाड़ली लाखों में एक… को शंकर जयकिशन की धुन पर किशोर दा ने अपनी आवाज दी है। वर्ष की पांचवी लोरी फिल्म लोरी पल भर जो बहला दे, कोई ऐसी… काफी हिट रही। रवींद्र जैन के बोल और उनकी ही धुन पर इसे मुकेश ने गाया है।

1973 में रिलीज़ फिल्म बड़ा कबूतर की लोरी चंदा मामा बोले तारे भी बोले, नजारे बोले तू सो जा रे… को योगेश ने लिखा है और राहुलदेव बर्मन की धुन पर आशा भोसले ने गाया है। उसी साल आई फिल्म नन्हा शिकारी में भी तू मेरा चंदा तू ही तारा… लोरी शामिल की गई थी। मुकेश ने योगेश के बोल को भप्पी लहिड़ी की धुन पर गाया है। अगले साल यानी 1974 में कुंवारा बाप फिल्म में मज़रूह सुल्तानपुरी की लिखी और राजेश रोशन के संगीत में तैयार चर्चित लोरी आ री आ जा निंदिया तू ले चल कहीं… को लता-किशोर और महबूब ने अपने स्वर दिए हैं। उस साल बेनाम फिल्म में भी एक लोरी एक दिन हंसाना एक दिन रुलाना… को मज़रूह की लिखी है। इसे राहुलदेव बर्मन की धुन पर लता ने गाया है। 1974 की तीसरी लोरी नन्हें मुन्ने राजा को निंदिया सुलाए… फिल्म दूसरी सीता में सुनने को मिली। गुलज़ार के बोल को पंचम की धुन पर आशा भोसले अपनी आवाज़ दी है। उस साल की चौथी लोरी ये छोटे छोटे नैना, ये लंबी लंबी रैना… फिल्म हम शकल में आई। राहुल देव बर्मन की ही धुन पर आनंद बक्शी के बोल को किशोर दी ने अपनी आवाज़ दी है।

इसे भी पढ़ें – कि घूंघरू टूट गए…

1975 में लता ने खैय्याम के संगीत निर्देशन में मेरे घर आई नन्ही परी… गाया। फिल्म कभी कभी की यह मधुर लोरी भी काफी सराही गई। साहिर लुधियानवी की इस लोरी को लता मंगेशकर ने अपनी आवाज़ दी है। 1976 में बनी फिल्म सज्जो रानी में आशा भोसले की गई जां निसार अख़्तर की लोरी पांवों में पायल… को सपन जगमोहन ने संगीतबद्ध किया है। उसी साल आई बारूद फिल्म में आनंद बक्शी ने एक लोरी तू सैतानों का सरदार है… लिखी। सचिनदेव बर्मन की धुन पर इसे मुकेश ने गाया है।

अगले साल यानी 1977 में तीन लोरियां सुनने को मिलीं। मुक्ति फिल्म में राहुलदेव बर्मन की धुन पर आनंद बख्शी के बोल लल्ला लल्ला लोरी दूध की कटोरी… को लता ने एक बार फिर अपना स्वर देकर यादगार बना दिया। इस लोरी को मुकेश के स्वर में भी रिकॉर्ड किया गया है। फिल्म मीनू में योगेश की लिखी लोरी धीरे धीरे हौले से निंदिया रानी बोले तू सो जा… को सलिल चौधरी के निर्देशन में आशा भोसले ने अपना स्वर दिया है। साल की तीसरी लोरी हरि, दिन तो बीता हुई रात पार करा दे… को फिल्म किताब के लिए गुलज़ार ने लिखा है। राहुलदेव बर्मन की धुन पर उसे अपनी बेजोड़ एवं ख़ूबसूरत आवाज़ राजकुमारी ने दी है।

1978 प्रदर्शित त्रिशूल फिल्म में साहिर सुधियानवी की लिखा लोरी तू मेरे साथ रहेगा मुन्ने ताकि तू जान सके… को खैय्याम के संगीत निर्देशन में लता मंगेशकर ने अपनी आवाज़ दी है। उसी साल रिलीज बहादुर जिसका नाम फिल्म की लोरी मैं तो नहीं जाऊंगी, तुम… थी। अगले वर्ष तीन लोरियां सुनने को मिलीं। पहली मान अपमान फिल्म में भरत व्यास की लिखी और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की धुन पर लता के सुर में रिकॉर्ड आ जा री आ आ निंदिया नन्हीं सी आंखों में आ चुपके से आ, चोरी से आ… थी। तो दूसरी लोरी फिल्म नौकर की थी। मज़रूह की लिखी लोरी अंखियां में छोटे छोटे सपने सजाइ के, बहियों में निंदिया के पंख लगाइ के… को राहुलदेव बर्मन की धुन पर किशोर दा ने गाया है। तीसरी लोरी फिल्म आंगन की कली की है। शैली शैलेंद्र की लिखी और बप्पी लाहिड़ी की संगीतबद्ध की गई ना रो ना मुन्नी तू ना रो… किशोर कुमार ने अपनी आवाज़ देकर यादगार बना दिया। राजेंद्र कृष्ण के गीत को कल्याणजी आनंदजी के संगीत पर मुकेश ने गाया है। 1980 रिलीज़ अपने पराए फिल्म में योगेश ने एक लोरी हलके-हलके आई चलके, बोली निंदिया रानी चुपके-चुपके क्या सोचे रे… लिखी, जिसे बप्पी लहड़ी की धुन पर लता ने गाया है।

इसे भी पढ़ें – आवाज दे कहां है दुनिया मेरी जवां है…

1970 के दशक के गुज़रते गुज़रते लोरी का क्रेज़ सिनेमा में कम होने लगा। इसीलिए 1980 के दशक में लोरी की परंपरा प्रतीक मात्र बनने लगी। इसीलिए अगली लोरी दो साल बाद 1982 में श्रीमान श्रीमती फिल्म में सुनने को मिली। मज़रूह की लोरी ओ री हवा धीरे से चल, सोता है मुन्ना हमारा… को संगीतकार रोशन की धुन पर किशोर कुमार की आवाज़ में रिकॉर्ड किया गया है। इसके बाद 1983 में यसुदास ने राजा की धुन पर सदमा फिल्म में एक खूबसूरत लोरी सुरमुई अंखियों में नन्हा मुन्ना सपना दे जा रे… गाई थी। उसी साल मासूम फिल्म में भी एक लोरी सुनने को मिली। गुलज़ार के शब्दों दो नैना और एक कहानी… को संगीत में ढाला है राहुलदेव बर्मन ने और उसे आरती मुखर्जी ने अपनी ख़ूबसूरत आवाज़ दी है। 1983 में ही रिलीज फिल्म दर्द का रिश्ता में किशोर कुमार की आवाज़ में बाप की जगह मां ले सकती है… लोरी है। आनंद बक्शी के बोल को राहुल देव बर्मन इस तरह धुन में पिरोया है कि यह लोरी दर्द को उभारकर सतह तक ला देती है। उसी साल प्रदर्शित वो जो हसीना की लोरी चांद चल तू ज़रा धीमे-धीमे… शामिल की गई है। रवींद्र रावल के बोल को राम लक्ष्मण की धुन पर किशोर कुमार ने बड़ी ख़ूबसूरती से गाया है। 1984 में रिलीज ज़िंदगी जीने के लिए की इंदीवर की लिखी लोरी आजा री निंदिया आ ले चल तू हमको वहीं… को राजेश रोशन के संगीत निर्देशन में किशोर कुमार की आवाज़ में रिकॉर्ड किया गया है।

सागर सरहदी ने 1985 में लोरी नाम से फिल्म ही बना डाली। लता-खैय्याम, बशीर नवाज़ -आ जा निंदिया आ जा, नैनन बीच समा जा, अमृत रस बरसा जा, पवन झुलाए पलना… खैय्याम की धुन पर लता की गाई लोरी आ जा निंदिया आ जा नैनन के बीच समा जा… ने लोकप्रियता के नए आयाम स्थापित किए थे। उसी साल लता की आवाज़ और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की धुन पर अनजान की लिखी संजोग फिल्म के गाने -जू जू जू, जू जू जू, यशोदा का नंनदलाला, बृज का उजाला है… को भी जानकार लोरी की फेहरिस्त में रखते हैं। अगले साल यानी 1986 में बाबुल फिल्म में यशुदास के स्वर में लोरी तेरी भोली मुस्कानों ने मुझे बाबुल बना दिया… सुनने को मिली। जिसे रवींद्र जैन ने लिखा और संगीत में ढाला है।

इसे भी पढ़ें – कहानी – हां वेरा तुम!

संगीत प्रेमियों को अगली लोरी के लिए छह साल इंतज़ार करना पड़ा। यश चोपड़ा की 1991 में बनी फिल्म लम्हे में लोरी गुडिया रानी निंदिया रानी… है। शिव हरि के संगीत निर्देशन में लता मंगेशकर ने इसे गाया है। इसके बाद से फिल्मों में लोरी का प्रचलन थम सा गया। हालांकि लोरी आमतौर पर बच्चों को सुलाने के लिए मान ली गई, लेकिन मुंबई की फिल्मों में कई बार नायिका नायक अथवा नायक नायिका को लोरी गाकर सुलाते रहे हैं। उसी साल डैडी फिल्म में सूरज सनीम की लिखी लोरी घर के उजियारे सो जा रे… सुनने को मिली, जिसे राजेश रोशन की संगीत पर तलत अजीज ने गाया है। तीन साल बाद 1994 में फिल्म ख़ुद्दार में ज़फ़र गोरखपुरी की लिखी लोरी रात क्या मांगे एक सितारा लहर क्या मांगे एक किनारा… आई, जिसे अनु मलिक के संगीत निर्देशन में अलका याग्निक ने गाया है। 1996 में दूसरी बार बनी मासूम फिल्म में कविता कृष्णमूर्ति और अभिजीत के स्वर में सो जा मेरे लाडले सो जा मेरे लाल… लोरी रिकॉर्ड की गई है। इसे लिखा और धुन में ढाला है आनंदराज आनंद ने।

इसके बाद लगा कि लोरियों की परंपरा हिंदी सिनेमा से ख़त्म हो गई। तभी नौंवें साल यानी 2003 में आई फिल्म छोटा जादूगर में चंदा मेरे तू भी सो जा… को सुधाकर शर्मा के संगीत निर्देशन में एसपी बालसुब्रमण्यम और चित्रा केएस की आवाज में लोरी सुनने को मिली। अगले साल यानी 2004 में आई फिल्म स्वदेस में जावेद अख़्तर की लिखी लोरी आहिस्ता-आहिस्ता निंदिया तू आ, इन नैनों में हलके से हौले से कुछ सपने में भोले से… सुनने को मिली, जिसे एआर रहमान के संगीत निर्देशन में उदित नारायण ने गाया है। संयोग से अपने अवसान काल में 2005 में दो लोरियां रूपहले परदे पर गाई गईं। पहली फिल्म शबनम मौसी की थी। कुक्कू प्रभास के बोल आ जा रे निंदिया रानी तू आ जा चुपके से धीरे से तू आ जा, चंदा सोया, सोए सितारे… को संगीत और आवाज़ क्रमशः कनक राज और कुमार शानू ने दी है। दूसरी लोरी लोर लोरी लोरी लाल लोरी लोरी… समीर ने फिल्म फैमिली के लिए लिखी, जिसे संगीतकार राम संपत की धुन पर नवोदित गायिका सोना महापात्र ने गाया है।

इसे भी पढ़ें – मुंबई से केवल सौ किलोमीटर दूर ‘महाराष्ट्र का कश्मीर’

अगले साल यानी 2006 में एक और लोरी फिल्म ऐसा क्यों होता है में सुनने को मिली। गीतकार सईद के बोल तेरे बचपन की मैं लोरी तुझे सुनाती हूं… को संगीतकार तौसीफ़ अख़्तर की धुन पर अलका याग्निक ने गाया है। इसके बाद लोरी के लिए संगीत के कद्रदानों को चार साल इंतज़ार करना पड़ा। 2010 में बनी लाइफ़ एक्सप्रेस शकील आज़मी की लिखी कोरस लोरी झुले-झुले पालना... को संगीतबद्ध किया है रूप कुमार राठौर ने। दो साल बाद यानी 2012 रिलीज़ फिल्म राउडी राठौर में समीर की लिखी लोरी चंदनिया छुप जाना रे चन भर को कुल जाना रे… को साजिद-वाजिद के संगीत निर्देशन में श्रेया घोसाल ने गाया है। दो साल बाद यानी 2014 में सिनेमा इतिहास की आख़िरी लोरी फिल्म मेरी कॉम में सुनने को मिली संदीप सिंह के बोल तेरी मैं बलाएं लूं तुझे मैं दुआएं दूं, चाओरो… को शशि सुमन के संगीत निर्देशन में मेरी कॉम की किरदार निभाने वाली प्रियंका चोपड़ा ने ही ख़ुद गाया है। उसके बाद पिछले छह साल के दौरान कोई नई लोरी सुनने को नहीं मिली।

दाऊद इब्राहिम की पूरी कहानी पढ़ें 35 एपिसोड में – द मोस्टवॉन्टेड डॉन – एपिसोड – 1