Home Blog Page 52

आप भी बदल सकते हैं गुस्से को प्यार में…

2

आजकल की व्यस्त एवं भागदौड़ की जिंदगी में गुस्सा आना आम बात है। बच्चे हो बूढ़े हो या फिर जवान, हर किसी को ग़ुस्सा आता है, लेकिन कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो अपने ग़ुस्से पर नियंत्रण नहीं कर पाते हैं, जिसका नतीजा बहुत भयावह होता है। कभी-कभी किसी दूसरे की ग़लती या चीज़ें अपने मुताबिक़ न होने से ग़ुस्सा आ ही जाता है। ऐसा होना बहुत स्वाभाविक है, क्योंकि ग़ुस्सा मानव का नेचुरल इमोशन है। रोज़मर्रा की ज़िदगी में वैसे भी तरह-तरह की परिस्थितियों से गुज़रना पड़ता है। ऐसे में हर चीज़ मन के मुताबिक़ हो ही नहीं सकती। लिहाज़ा, धीरज से काम न लेने पर ग़ुस्सा आ ही जाता है। वैसे, ग़ुस्सा आना बुरी बात नहीं है, लेकिन उसका बेक़ाबू हो जाना ज़रूर बुरा है। यह घातक नतीजा देता है और शांत होने पर पछताना पड़ता है।

WhatsApp-Image-2020-06-23-at-15.15.04-276x300 आप भी बदल सकते हैं गुस्से को प्यार में...

इसे भी पढ़ें – क़ुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, बस रोज़ाना 30 मिनट योग करें…

जानेमाने मनोचिकित्सक डॉ. पवन सोनार कहते हैं, “ग़ुस्सा भावना का एक रूप है। जैसे हम ख़ुश होते हैं, दुखी होते हैं या तनाव में आते हैं, उसी तरह हमें ग़ुस्सा भी आता है, लेकिन कभी-कभी ग़ुस्से की भावना व्यवहार और आदत में बदल जाती है। जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर असर डालने लगती है। तब ग़ुस्सा करने वाले के साथ दूसरों पर इसका सीरियस इंपैक्ट होने लगता है। इसलिए ज़रूरी है कि ग़ुस्से की सही वजहों की पहचान करके उस पर अंकुश रखें अन्यथा नुक़सान उठाना पड़ता है।” छोटी-छोटी बातों पर ग़ुस्सा होना यानी अपना ही ख़ून जलाना समझदारी भरा काम तो बिल्कुल नहीं है। पहले यह सोचना चाहिए कि आख़िर ज़्यादा ग़ुस्सा क्यों आ रहा है? इससे ज़िंदगी प्रभावित तो नहीं हो रही है। रिसर्च से पता चला है कि ज़्यादा ग़ुस्से से अपना ही नुक़सान होता है। हम मानसिक रूप से परेशान तो होते ही हैं, अक्सर रिश्ते पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। करियर ख़राब हो जाता है। बेक़ाबू ग़ुस्सा सामाजिक जीवन (Social Life) को भी प्रभावित करता है। ऐसे में कहने में गुरेज नहीं कि ग़ुस्सा हमें तहस-नहस करके चला जाता है, जिसकी पीड़ा हम लंबे समय तक महसूस करते हैं।

Taapsee-Angry-300x200 आप भी बदल सकते हैं गुस्से को प्यार में...

पति-पत्नी का ग़ुस्सा तो अक्सर बड़े विवाद के रूप में तब्दील हो जाता है, जो बड़ा नुकसान करके ही शांत होता है। सबसे बुरी बात यह है कि ग़ुस्से में आदमी सही-ग़लत का भेद भूल जाता है। वह ऐसे-ऐसे शब्द बोल देता है, जो अंततोगत्वा स्थाई टीस की वजह बनते हैं। रिश्ते में ग़ुस्से का सामना शांत होकर करना चाहिए। एक व्यक्ति ग़ुस्से में है, तो दूसरे को चुप हो जाना चाहिए, बात संभालने की कोशिश करनी चाहिए। महान दार्शनिक अरस्तू ने कहा है कि ग़ुस्सा किसी को भी आ सकता है, लेकिन सही समय पर, सही मकसद के लिए और सही तरीक़े से ग़ुस्सा करना हर किसी के वश की बात नहीं है। ग़ुस्सा अगर क्रिएटिव है तो ज़रूर करना चाहिए, लेकिन अगर निगेटिव है तो ग़ुस्से से बचना चाहिए।

Ashwarya-Rai-283x300 आप भी बदल सकते हैं गुस्से को प्यार में...

इसे भी पढ़े – क्या महात्मा गांधी को सचमुच सेक्स की बुरी लत थी?

आख़िर कैसे आता है ग़ुस्सा

ग़ुस्सा दरअसल मन के मुताबिक़ काम न होने की दशा में सामने आता है। आदमी प्रायः अपनी झुंझलाहट, चिड़चिड़ाहट और निराशा ग़ुस्से के रूप में व्यक्त करता है। यानी यह एक तरह का तेज़ रिएक्शन है। चूंकि यह नेचुरल इमोशन है इसलिए इससे पूरी तरह मुक्त होना मुमक़िन नहीं है। किसी को ग़ुस्सा आने पर हाथ-पैरों में रक्त संचार तेज़ हो जाता है, हार्टबिट्स बढ़ जाती हैं, एड्रिनलिन हॉर्मोन तेज़ी से रिलीज़ होता है। यह बदलाव शरीर को कोई ताक़त से भरा ऐक्शन लेने के लिए तैयार कर देता है। ग़ुस्सा उस समय पूरे व्यक्तित्व पर हावी हो जाता है। इससे शरीर में कुछ और रसायन रिलीज़ होते हैं, जो थोड़ी देर के लिए शरीर का एनर्जी लेवल बढ़ा देते हैं। इसी दौरान नर्वस सिस्टम में कॉर्टिसोल समेत थोड़े और रसायन निकलते हैं, जो शरीर और दिमाग़ को लंबे समय तक अपनी गिरफ़्त में लिए रहते हैं। इससे दिमाग़ उत्तेजित अवस्था में रहता हैं, जिससे विचारों का प्रवाह बहुत तेज़ी से होता है।

Angry-face-253x300 आप भी बदल सकते हैं गुस्से को प्यार में...

ग़ुस्सा आने के कारण

  • अपेक्षाएं पूरी न होने से पैदा होने वाली निराशा गुस्से की वजह होती है।
  • रिजल्ट मन मुताबिक न होने से बेचैनी होती है। जो ग़ुस्से के रूप में व्यक्त होती है।
  • अगर कोई हमारी भावनाओं को हर्ट कर दे तो उस पर हमें गुस्सा आने लगता है।
  • लंबे समय तक ऊहापोह की स्थिति में रहने से परिणाम गुस्से के रूप में सामने आता है।
  • कोई धोखा करे तक दुख के साथ ग़ुस्से भी आता है।
  • आजकल वर्क प्रेशर के चलते भी लोगों में ग़ुस्सा आने लगा है।
  • कहीं किसी काम से गए हैं परंतु लाइन लंबी है तब भी ग़ुस्सा आता है।
  • सहनशक्ति कम होने पर छोटी-छोटी बात पर ज़्यादा गुस्सा आता है।
  • भय, निराशा और अपराध बोध की स्थितियों में भी गुस्सा आता है।
  • नया ट्रेंड यह है कि कमज़ोर लोगों पर शक्तिशाली लोगों को ग़ुस्सा आता है।

Angry-Face-1-181x300 आप भी बदल सकते हैं गुस्से को प्यार में...

इसे भी पढ़े – आबादी पर अंकुश लगाने के लिए सख़्त प्रावधान की ज़रूरत

करें सच का सामना

  • कोई भी इंसान दुनिया तो दूर अपने आसपास के लोगों और चीजों को नहीं बदल सकता। ऐसे में हालात को जस का तस स्वीकार कर लेना समझदारी भरा क़दम होता है।
  • किसी पर ग़ुस्सा आने पर कुछ बोलने से पहले धीमी आवाज़ में गिनती गिनें। इससे आपका ग़ुस्सा कंट्रोल हो जाएगा। रोम में यह नुस्खा बहुत प्रचलित है।
  • ग़ुस्सा आए तो उस जगह को छोड़कर कहीं और चले जाएं। थोड़ा इधर-उधर तफरी करके वापस आएं। जब चित्त शांत हो जाए तो अपनी बात को सहजता से रखें।
  • ग़ुस्से को तर्क के ज़रिए भी शांत किया जा सकता है। ग़ुस्सा आने पर मन में ही तर्क करें। जवाब मिल जाने से ग़ुस्सा ख़त्म हो जाएगा।
  • कोशिश करें कि शांत रहें। घर और ऑफिस की ढेर सारी जिम्मेदारियां चिड़चिड़ा कर सकती हैं, पर यथासंभव चुप रहने की कोशिश करें।
  • लाइफस्टाइल में बदलाव लाकर भी ग़ुस्से को काबू किया जा सकता है। भागदौड़ कम करके अपने लिए रोज़ाना आधे घंटे का वक़्त निकालें।
  • पद्मासन बैठकर ओम का जाप करें। पद्मासन के अलावा सिंहासन, शवासन, मर्कटासन और अनुलोम-विलोम, भस्त्रिका और भ्रामरी रोज़ाना करें। ग़ुस्से पर क़ाबू रख सकेंगे।
  • पानी ज्यादा पीएं। लिक्विड फूड का ज़्यादा सेवन करें। खाने में हरी सब्जियों ज़्याद हो तो ग़ुस्सा कम आता है।

इसे भी पढ़े – शव में तब्दील होती भारत की जनता

ग़ुस्सा अच्छी सेहत का संकेत

अमूमन यह माना जाता है कि ग़ुस्सा नुकसानदेह होता है। उसका बुरा प्रभाव तन व मन दोनों पर पड़ता है, लेकिन जर्नल साइकोलॉजिकल साइंस में प्रकाशित एक रिसर्च में यह पता चला है कि ग़ुस्सा बुरा नहीं, बल्कि अच्छी सेहत का संकेत है। यह भी पता चला है कि अत्यधिक क्रोध को कुछ लोग, ख़ासकर जापानी समाज बेहतर जैविक स्वास्थ्य से जोड़कर देखता है।

जैसा कि बताया गया है कि ग़ुस्सा एक तरह की भावना है। ग़ुस्सा आने पर हृदय की गति बढ़ जाती है; ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। इसीलिए इसे सेहत के लिए ठीक नहीं माना जाता है। इसीलिए ग़ुस्से को मानव के लिए नुक़सानदायक माना जाता है। University of Michigan के मनोचिकित्सक शिनोबु कितायामा कहते हैं कि क्रोध को बुरे स्वास्थ्य से जोड़कर देखना आमतौर पर पश्चिमी संस्कृति का हिस्सा है, जहां ग़ुस्से को मायूसी, निराशा, डिप्रेशन निर्धनता और उन कारकों से जोड़कर देखा जाता है, जो सेहत को नुक़सान पहुंचाते हैं। रिसर्चर्स ने अमेरिका और जापान में एकत्र किए गए आंकड़ों का अध्ययन किया। अच्छे स्वास्थ्य के स्तर को मापने के लिए उत्तेजना और हृदय से जुड़ी गतिविधियों का अध्ययन किया।

अध्ययन में पता चला कि अमेरिका में अत्यधिक क्रोध को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जाता है, जबकि पूर्व के शोधों में भी कहा गया है कि अत्यधिक क्रोध को जैविक स्वास्थ्य के ख़तरे के स्तर में गिरावट लाने और अच्छे स्वास्थ्य की निशानी से जोड़कर देखा जाता है। कितायामा ने कहा कि अध्ययनों से पता चलता है कि सामाजिक-सांस्कृतिक कारक भी जैविक प्रक्रियाओं को महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करते हैं।

कहानी – बदचलन

Amitabh-Bachchan-Angry-300x211 आप भी बदल सकते हैं गुस्से को प्यार में...

ग़ुस्सा कैसे कंट्रोल करें

  • ग़ुस्से पर कंट्रोल करने के लिए ज़रूरी है, ख़ुद अपने बारे में ठीक से जानें कि आपका अपने प्रति व्यवहार कैसा है। आपको किसी बात पर ग़ुस्सा आख़िर क्यों आ रहा है।
  • शांत रहकर अपनी समस्याओं से लड़ने की क्षमता बढ़ाएं और विचार करें कि ग़ुस्सा वाकई जायज था।
  • अपने व्यवहार में यथासंभव बदलाव लाएं। ग़ुस्से आने पर यह भी सोचें कि इस ग़ुस्से से आपके अपने तो हर्ट नहीं हुए होंगे।
  • शांत होने के बाद आराम से बैठें और इस बात पर बहुत गहन विचार करें कि आपको आख़िर किस बात पर ग़ुस्सा आता है और क्यों आता है।
  • अगर मुमकिन हो तो जब भी ग़ुस्सा आए, थोड़ा पानी पी लिया करें।
  • जिसकी बात बुरी लगी हो अगर संभव हो तो उससे शांत होकर नाराज़गी ज़ाहिर कर दें।
  • कोशिश करें कि आपका अटेंशन डाइवर्ट हो जाए। आप कोई दूसरी बात सोचने लगें।
  • कहने का मतलब इस तरह की छोटी-छोटी बातों पर गौर करके आप ग़ुस्से पर काबू पा सकते हैं और भविष्य में ग़ुस्से से बच सकते हैं।

Socrates-237x300 आप भी बदल सकते हैं गुस्से को प्यार में...

सुकरात को नहीं आता था ग़ुस्सा

महान यूनानी दार्शनिक सुकरात के व्यवहार में बिल्कुल अहंकार नहीं था। वे सबको अपने बराबर मानते थे। सुकरात की पत्नी उनके स्वभाव के विपरीत बहुत ग़ुस्सैल थीं। वह हमेशा छोटी-छोटी बातों पर सुकरात से लड़ती थीं, लेकिन सुकरात एक भी शब्द नहीं बोलते थे। वे एकदम शांत रहते थे। उनके तानों का भी जवाब नहीं देते थे। पत्नी का व्यवहार और कटु हो जाने पर भी उनके अंदर कोई प्रतिक्रिया नहीं होती थी। एक बार सुकरात शिष्यों के साथ गंभीर चर्चा कर रहे थे। उसी समय उनकी पत्नी ने आवाज लगाई, लेकिन चर्चा में मशगूल सुकरात का ध्यान पत्नी की ओर नहीं गया। पत्नी का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा। उसने शिष्यों के सामने ही एक घड़ा पानी सुकरात ऊपर डाल दिया। शिष्यों को बहुत बुरा लगा। लेकिन शिष्यों की भावना समझकर सुकरात शांत स्वर में बोले, “मेरी पत्नी कितनी अच्छी है जिसने भीषण गर्मी में मेरे ऊपर पानी डालकर दिया। मेरी सारी गर्मी जाती रही।” सुकरात की सहनशीलता से शिष्य अभिभूत हो गए और पत्नी का क्रोध भी जाता रहा।

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

इसे भी पढ़ें – क्या पुरुषों का वर्चस्व ख़त्म कर देगा कोरोना?

कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें…

2

Yog10-300x295 कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें...

अगर आपने अपने शरीर को फिट और निरोग रखा है तो यकीन मानिए, आप धरती के सबसे बड़े शिल्पी यानी कलाकार हैं। आमतौर पर हर इंसान अपने शरीर को सबसे ज़्यादा प्यार करता है। अगर आप अपने आपसे प्यार करते हैं तभी आप दूसरे से प्यार कर सकते हैं। अगर आपको ख़ुद से ही प्यार नहीं है तो आप किसी से प्यार नहीं कर सकते हैं। कभी-कभी इंसान अपने आपसे प्यार तो करता है, लेकिन अपना उचित ख़याल नहीं रखता। मतलब जो अपना ख़याल नहीं रखता, वह दूसरे का ख़याल नहीं रख सकता। हां, वह प्यार करने या ख़याल रखने का अभिनय ज़रूर कर सकता है।

Yog2-209x300 कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें...Yog3-211x300 कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें...Yog4-229x300 कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें...

दरअसल, यह मानव शरीर क़ुदरत से मानव को मिला अनुपम वरदान है। धर्म में आस्था रखने वाले अनुयायी इसे अपने आराध्य़ देव का दिया गया वरदान भी कह सकते हैं। लिहाज़ा, यह हमारी पहली और बुनियादी ज़रूरत हो जाती है कि क़ुदरत से मिले इस अनुपम वरदान को ठीक रखते हुए जीवन को मज़े से जिएं। हम स्वस्थ्य रहेंगे तो ख़ुश रहेंगे और संतुष्ट रहेंगे। ख़ुश और संतुष्ट रहने से हमारे अंदर पॉज़िविट ऊर्जा बढ़ेगी जो अंततः हमारी कार्य-क्षमता और प्रॉडक्टिविटी बढ़ा देगी।

Yog5-243x300 कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें... Yog7-226x300 कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें... Yog14-244x300 कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें...

वस्तुतः मानव शरीर की बनावट ही ऐसी है कि अगर मानव चाहे तो वह ख़ुद एक सौ पचास साल से अधिक समय का जीवन तंदुरुस्त रह कर जी सकता है। इसलिए आप अपने जीवन की आयु से वर्षों को कम क्यों करें। जबकि हक़ीक़त यह है कि जब आप अपने जीवन में अतिरिक्त साल जोड़ सकते हैं और आप स्वस्थ, ख़ुशहाल और लंबा जीवन जी सकते हैं। इससे आप दूसरों को भी स्वस्थ रहने की प्रेरणा दे सकता है।

Yog13-241x300 कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें... Yog12-243x300 कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें... Yog6-265x300 कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें...

जीवन कुछ नहीं, बस शरीर में सेल्स यानी कोशिकाओं का बनने और नष्ट होने का संतुलन मात्र है। मानव शरीर में इन कोशिकाओं का निर्माण और क्षय जीवन पर्यंत चलता रहता है। किसी स्वस्थ मानव शरीर में कुल 37 लाख 20 हजार करोड़ कोशिकाएं होती हैं। इन कोशिकाओं का निर्माण रक्त यानी ख़ून से होता है। इसीलिए मेडिकल साइंस की भाषा में रक्त का सुप्रीम मेडिसीन भी कहा जाता है।

Yog9-213x300 कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें...Yog8-300x242 कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें...Yog11-243x300 कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें...

इसीलिए अस्पतालों में जब भी कोई मरीज़ सीरियस होता है, या किसी मरीज़ की कोई ऑपरेशन या सर्जरी होती है तो ख़ून की ही ज़रूरत पड़ती है। इसलिए रक्तदान को जीवनदान भी कहा जाता है। कहने का मतलब मानव शरीर में रक्त सबसे महत्वपूर्ण अवयव है। इसीलिए डॉक्टर भी मानते ही कि जिसके शरीर में रक्त निर्माण, रक्त प्रवाह और रक्त उपभोग सही होता है, कोई बीमारी उसका बांल भी बांका नहीं कर सकती।

Yog-BSF-300x177 कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें...Yog-ITBT2-300x225 कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें...

इसलिए रक्त निर्माण यानी शरीर में ख़ून का बनना, रक्त प्रवाह यानी ख़ून का हर कोशिका तक पहुंचना और रक्त उपभोग यानी ख़ून की ख़पत को जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। ये तीनों प्रक्रियाएं मानव को चोड़कर धरती के बाक़ी जीवों में सामान्य रहती हैं। केवल मानव की महत्वकांक्षा के चलते उसमें ये गड़बड़ हो जाती है और मानव को बीमार कर देती हैं। इसीलिए कहा जाता है कि मानव में भी अगर ये तीनों प्रक्रियाएं दुरुस्त रहें तो मानव का शरीर भी धरती के दूसरे जीवों के शरीर की तरह अपना ख़ुद उपचार कर लेगा और मानव अपना पूरा जीवन जी सकता है।

Yog-ITBT3-300x200 कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें... Yog-ITBT-300x225 कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें...

इसके लिए ज़रूरी है कि भोजन प्राप्त करने के लिए धरती के बाकी जीवों की तरह मानव भी काम करे। यानी शरीर के हर अंग को गतिशील रखे। गतिशील रखने की इस क्रिया को ही आध्यात्मिक भाषा में योग, ध्यान, आसन या कसरत कहा जाता है। इन सबका यही प्रयोजन होता है कि आप एक जगह स्थिर होकर न रहें, बल्कि शारीरिक गतिविधि भी करते रहें। रक्त तो बनता रहता है, लेकिन वांछित शारीरिक गतिविधि न होने पर उसका प्रवाह और उपभोग प्रभावित होता है। फिर वह वसा यानी फैट में बदल जाता है।

Yog-BSF3-300x201 कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें...Yog-BSF2-300x195 कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें...

योग वह आध्यात्मिक प्रकिया है जिसमें शरीर, मन और आत्मा को साथ लाने (योग) का कार्य होता है। योग शब्द भारत से बौद्ध धर्म के साथ चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण पूर्व एशिया और श्रीलंका तक फैला है। अब तो दुनिया का हर देश योग को शिद्दत से अपना रहा है। योग संस्कृत धातु ‘युज’ से निकला है, जिसका अर्थ व्यक्तिगत चेतना या आत्मा का सार्वभौमिक चेतना या रूह से मिलन है। योग, भारतीय ज्ञान की दस हजार साल से भी अधिक पुरानी शैली है।

Yog-President2-300x200 कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें...Yog-President3-200x300 कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें...

वास्तव में योग केवल शारीरिक व्यायाम है। जहा लोग शरीर को मोड़ते, मरोड़ते, खींचते हैं और श्वास लेने के जटिल तरीक़े अपनाते हैं। योग विज्ञान में जीवन शैली का पूर्ण सार आत्मसात किया गया है। आज (यानी 21 जून को) अंतरराष्ट्रीय योग दिवस है। 11 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने हर साल वर्ष 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मान्यता दी है। इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छह साल की सबसे बड़ी उपलब्धि कहा जा सकता है।

Yog-Modi-300x200 कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें...Yog-Foreign-300x200 कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें...

योग सिर्फ व्यायाम और आसन नहीं है। यह भावनात्मक एकीकरण और रहस्यवादी तत्व का स्पर्श लिए हुए एक आध्यात्मिक ऊंचाई है, जो आपको सभी कल्पनाओं से परे की कुछ एक झलक देता है।

Yog-Shiva-300x169 कुदरत की नेमत है शरीर, इसे स्वस्थ रखें, रोज 30 मिनट योग करें...

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

इसे भी पढ़ें – क्या पुरुषों का वर्चस्व ख़त्म कर देगा कोरोना?

तेजिंदर तिवाना की अपील, वॉलेट पावर से चीन की अर्थव्यवस्था पर वार करो !

0

संवाददाता
मुंबईः लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों द्वारा 20 भारतीय सैनिकों की बर्बर हत्या के बाद चीनी सामानों के बहिष्कार की मुहिम शुरू करते हुए भारतीय जनता युवा मोर्चा, मुंबई के अध्यक्ष तेजिंदर सिंह तिवाना ने आज से “चायनीज़ हटाओ लोकल अपनाओ” मुहिम शुरू की।

Tiwana2-225x300 तेजिंदर तिवाना की अपील, वॉलेट पावर से चीन की अर्थव्यवस्था पर वार करो !

इस अभियान के तहत आज मुंबई के विभिन्न दुकानों में जाकर दुकानदारों से मिलकर उनसे चीनी खिलौने, मोबाइल या दूसरे इलेक्ट्रॉनिक सामान न बेचने की अपील की साथ ही उन्हें अपनी वॉलेट पावर का इस्तेमाल कर चीन को आर्थिक तौर पर कमज़ोर करने की देश्वासयों की इस जंग में शामिल होने का आग्रह किया ।

Tiwana1-300x225 तेजिंदर तिवाना की अपील, वॉलेट पावर से चीन की अर्थव्यवस्था पर वार करो !

आज मालाड पश्चिम में चीनी खिलौने बेचने वाली दुकान में जाकर श्री तिवाना ने दुकानदार से चीनी खिलौने न बेचने का आग्रह किया। इसके बाद दुकानदार ने चीनी खिलौने न बेचने का संकल्प लिया और अपनी दुकान के खिलौने भाजयुमो कार्यकर्ताओं के हवाले कर दिया, जिसे भाजयुमा कार्यकर्ताओं ने नष्ट कर दिया।

Tiwana6-300x225 तेजिंदर तिवाना की अपील, वॉलेट पावर से चीन की अर्थव्यवस्था पर वार करो !

इससे पहले तेजिंदर सिंह तिवाना ने सभी ई-कॉमर्स कंपनियों को पत्र लिखकर अपनी साइट से चीनी उत्पादों को हटाने की अपील की थी।

Tiwana4-225x300 तेजिंदर तिवाना की अपील, वॉलेट पावर से चीन की अर्थव्यवस्था पर वार करो !

अमेजन एलएलसी, फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, पेटीएम, जबॉन्ग, मिंत्रा, शॉपक्लूज और टाटा क्लिक को एक पत्र लिखकर अपील की है कि भारत में कारोबार कर रही हर ई-कॉमर्स कंपनी को व्यापक राष्ट्रीय हित में चीन में बने हर सामान किसी भी कीमत पर नहीं बेचना चाहिए। भारतीय जानत युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों ने भी सोशल मीडिया पर ई-कॉमर्स कंपनियों के सीनियर अधिकारयों को टैग करते हुए चायनीज़ प्रोडक्ट्स को हटाने की मांग की !

Tiwana5-1-300x225 तेजिंदर तिवाना की अपील, वॉलेट पावर से चीन की अर्थव्यवस्था पर वार करो !

चायनीज़ प्रोडक्ट्स के बहिष्कार के साथ ही श्री तिवाना ने ई-कॉमर्स कंपनियों से अपील की है कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के “वोकल फॉर लोकल” के आह्वान पर अमल करते हुए चीनी सामानों को जगह भारत में बने सामान को प्रोत्साहित करते हुए भारतीय सामान और उत्पाद को प्रमुखता दें।

तेजिंदर सिंह तिवाना ने शुरू की “चायनीज हटाओ लोकल अपनाओ” की मुहिम

0

Tajinder6-109x300 तेजिंदर सिंह तिवाना ने शुरू की "चायनीज हटाओ लोकल अपनाओ" की मुहिमTajinder5-300x300 तेजिंदर सिंह तिवाना ने शुरू की "चायनीज हटाओ लोकल अपनाओ" की मुहिम

संवाददाता

मुंबईः लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों द्वारा 20 भारतीय सैनिकों की बर्बर हत्या के बाद चीनी सामानों के बहिष्कार की मुहिम शुरू करते हुए भारतीय जनता युवा मोर्चा, मुंबई के अध्यक्ष तेजिंदर सिंह तिवाना ने सभी ई-कॉमर्स कंपनियों को पत्र लिखकर अपनी साइट से चीनी उत्पादों को हटाने की अपील की है।

Amazon3-99x300 तेजिंदर सिंह तिवाना ने शुरू की "चायनीज हटाओ लोकल अपनाओ" की मुहिमAmazon1 तेजिंदर सिंह तिवाना ने शुरू की "चायनीज हटाओ लोकल अपनाओ" की मुहिमTata-Cliq-300x246 तेजिंदर सिंह तिवाना ने शुरू की "चायनीज हटाओ लोकल अपनाओ" की मुहिमMyntra-198x300 तेजिंदर सिंह तिवाना ने शुरू की "चायनीज हटाओ लोकल अपनाओ" की मुहिम

Jabong2-300x111 तेजिंदर सिंह तिवाना ने शुरू की "चायनीज हटाओ लोकल अपनाओ" की मुहिमJabong1 तेजिंदर सिंह तिवाना ने शुरू की "चायनीज हटाओ लोकल अपनाओ" की मुहिमFlipkart2-300x175 तेजिंदर सिंह तिवाना ने शुरू की "चायनीज हटाओ लोकल अपनाओ" की मुहिम

Jabong3-1 तेजिंदर सिंह तिवाना ने शुरू की "चायनीज हटाओ लोकल अपनाओ" की मुहिमShopclues-1 तेजिंदर सिंह तिवाना ने शुरू की "चायनीज हटाओ लोकल अपनाओ" की मुहिमPaytm2-300x158 तेजिंदर सिंह तिवाना ने शुरू की "चायनीज हटाओ लोकल अपनाओ" की मुहिम

अमेजन एलएलसी, फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, पेटीएम, जबॉन्ग, मिंत्रा, शॉपक्लूज और टाटा क्लिक को एक पत्र लिखकर अपील की है कि भारत में कारोबार कर रही हर ई-कॉमर्स कंपनी को व्यापक राष्ट्रीय हित में चीन में बने हर सामान किसी भी कीमत पर नहीं बेचना चाहिए। भारतीय जानत युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों ने भी सोशल मीडिया पर ई-कॉमर्स कंपनियों के सीनियर अधिकारयों को टैग करते हुए चायनीज़ प्रोडक्ट्स को हटाने की मांग की !

WhatsApp-Image-2020-06-19-at-01.31.43-201x300 तेजिंदर सिंह तिवाना ने शुरू की "चायनीज हटाओ लोकल अपनाओ" की मुहिम

चायनीज़ प्रोडक्ट्स के बहिष्कार के साथ ही श्री तिवाना ने ई-कॉमर्स कंपनियों से अपील की है कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के “वोकल फॉर लोकल” के आह्वान पर अमल करते हुए चीनी सामानों को जगह भारत में बने सामान को प्रोत्साहित करते हुए भारतीय सामान और उत्पाद को प्रमुखता दें।

चीनी कंपनियों को भारत से निकाल बाहर करो –  मारकंडे काटजू, 20 जवानों की शहादत पर देश में रोष

0

लद्दाख (Ladakh) के गेलवान घाटी (Galwan Valley) में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीन के सैनिकों के साथ हुई झड़प में 20 भारतीय जवानों की शहादत पर अपनी प्रतिक्रिया में पूर्व न्यायाधीश मारकंडे काटजू (Markandey Katju) ने कहा कि चीन ने अब सारी सीमाएं पार कर दी हैं। लिहाज़ा, यह समय साहस दिखाने, चीन के उत्पादकों पर प्रतिबंध लगाने और चीनी कंपनियों को भारत से निकाल बाहर करने का सबसे उपयुक्त समय है। अपने ट्विट में जस्टिस काटजू ने कहा,”मोदीजी, 56 इंच का सीना दिखाइए और चीन के उत्पादकों पर प्रतिबंध लगा दीजिए तथा चीनी कंपनियों को भारत से निकाल बाहर कीजिए।”

जस्टिस काटजू ने कहा कि राजनीति समझने के लिए हमें पहले अर्थशास्त्र समझना होगा, तभी हम भारत-चीन संबंधों को समझ सकते हैं। देश को यह समझना होगा कि चीन अब समाजवादी देश नहीं रह गया है और वह अब एक पूंजीवादी देश है और अपनी सरप्लस पूंजी को खपाने के लिए वह आक्रामक विस्तारवादी साम्राज्यवाद के रास्ते पर चल पड़ा है और पूरी दुनिया के लिए बड़ा खतरा है। भारत सरकार को चाहिए कि वह चीनी कंपनियों को भारत से निकालकर बाहर करे।

Xi-Modi-reverse-300x169 चीनी कंपनियों को भारत से निकाल बाहर करो -  मारकंडे काटजू, 20 जवानों की शहादत पर देश में रोष

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि उनकी शहादत बेकार नहीं जाएगी। हमारे लिए देश की एकता और अखंडता सर्वोपरि है। भारत शांति चाहता है, लेकिन माकूल जवाब देने का सामर्थ रखते हैं। देश को इस बात को लेकर आश्वस्त रहना चाहिए। हमारे लिए देश की एकता और अखंडता सर्वोपरि है। भारत शांति चाहता है, लेकिन माकूल जवाब देने का सामर्थ रखते हैं। हमारे वीर शहीद मारते-मारते मरे हैं।

WhatsApp-Image-2020-06-16-at-10.26.08-PM-287x300 चीनी कंपनियों को भारत से निकाल बाहर करो -  मारकंडे काटजू, 20 जवानों की शहादत पर देश में रोष

सैनिकों की शहादत के बाद पूरे देश में लोगों का खून खौल रहा है। हर देशवासी अचानक हुई इस घटना से हतप्रद है। इसलिए इस अप्रत्याशित घटना पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की जा रही है। केंद्र सरकार की तरफ से बनने वाले दिल्ली-मेरठ सेमी हाई स्पीड रेल कॉरिडोर का ठेका एक चीनी कंपनी शंघाई टनल इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड को देने का विरोध शुरू हो गया है। बताया जा रहा है कि सरकार इस ठेके को रद करने पर विचार कर रही है।

Rahul-Gandhi-Photo-300x300 चीनी कंपनियों को भारत से निकाल बाहर करो -  मारकंडे काटजू, 20 जवानों की शहादत पर देश में रोष

लद्दाख में हुई झड़प पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सबसे कठोर प्रतिक्रिया दी है। ट्विटर पर ट्विट किए गए अपने संदेश में राहुल गांधी ने कहा है, “प्रधानमंत्री मोदी मौन क्यों हैं? वह क्या छिपा रहे हैं? अब यह बर्दाश्त से बाहर हो रहा है। हमें जानने की आवश्यकता है कि लद्दाख में क्या हुआ? चीन ने हमारे सैनिकों की हत्या की गुस्ताखी कैसी की? हमारी ज़मीन पर क़ब्ज़ा कैरने की हिमाक़त कैसे की?”

कांग्रेस ने भी लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ ‘हिंसक टकराव’ में भारतीय जवानों की शहादत पर बहुत कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। पार्टी ने भारतीय सेना के एक अधिकारी और 19 जवानों के शहीद होने की घटना पर मंगलवार को इसे अस्वीकार्य बताया है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने चीनी सैनिकों के साथ झड़प में शहीद हुए जवानों के परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की है।

Sanjay-Raut-2-300x300 चीनी कंपनियों को भारत से निकाल बाहर करो -  मारकंडे काटजू, 20 जवानों की शहादत पर देश में रोष

शिवसेना प्रवक्ता संजय राऊत ने ट्विट किया है, “चीन के मुंहजोरी को कब मिलेगा करारा जबाब? बिना गोली चले हमारे 20 जवान शहीद होते हैं। हमने क्या किया? चीन के कितने जवान मारे गये? चीन हमारे जमीन पर घुस गया है क्या? प्रधानमंत्रीजी इस संघर्ष के घड़ी में देश आपके साथ है, लेकिन सच क्या है? बोलो। कुछ तो बोलो। देश सच जानना चाहता है।”

Sharad-Pawar-175x300 चीनी कंपनियों को भारत से निकाल बाहर करो -  मारकंडे काटजू, 20 जवानों की शहादत पर देश में रोष

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता और पूर्व रक्षा मंत्री शरद पवार ने लद्दाख में हुए ख़ूनी संघर्ष पर बेदह सधी हुई और परिपक्व प्रतिक्रिया दी है। शहीद हुए जवानों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा है कि हमारे जवान देश की सरहद की सुरक्षा करने में पूरी तरह सक्षम हैं।

Sanjay-Masoom-2-300x300 चीनी कंपनियों को भारत से निकाल बाहर करो -  मारकंडे काटजू, 20 जवानों की शहादत पर देश में रोष

पत्रकार रहे फिल्मों के मशहूर पटकथा एवं संवाद लेखक संजय मासूम ने 20 जवानों की शहादत को बहुत मुश्किल इस घड़ी में पूरे देश से एकजुट होने का आह्वान किया है। सोसल मीडिया पर अपनी पोस्ट में संजय मासूम ने लिखा है, “मुश्किल… मुश्किल… मुश्किल वक़्त! सब कुछ भूलकर हमें खड़ा रहना होगा। देश के साथ… हो कर सख़्त…!!!!! ”

Chine-India चीनी कंपनियों को भारत से निकाल बाहर करो -  मारकंडे काटजू, 20 जवानों की शहादत पर देश में रोष

चीन पर नज़र रखने वाले कई राजनीतिक टीकाकार चीनी सेना का भारतीय सैनिकों पर धोखे से किया गया हमला प्रधानमत्री के लिए व्यक्तिगत आघात मान रहे हैं। लोगों का कहना है कि मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते चार बार चीन गए। इसी तरह प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी पांच बार चीन का दौरा कर चुके हैं। पिछले छह साल के दौरान विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मोदी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से 18 बार मिले और दोस्ती का वास्ता दिया। इसके बावजूद चीन ने 1962 की तरह भारत की पीठ में छुरा भोंप दिया।

Milind-Khandekar-1-178x300 चीनी कंपनियों को भारत से निकाल बाहर करो -  मारकंडे काटजू, 20 जवानों की शहादत पर देश में रोष

वरिष्ठ पत्रकार मिलिंद खांडेकर ने अपने ट्विट में लिखा है, “भारत के प्रधानमंत्री और चीन के राष्ट्रपति 2014 के बाद 18 बार मिले यानी औसतन साल में तीन बार। भारत के प्रधानमंत्री पांच बार चीन गए, 70 साल में इतनी चीन यात्राएँ किसी प्रधानमंत्री ने नहीं की। फिर भी चीन ने धोखा दे दिया।”

Ashutosh-138x300 चीनी कंपनियों को भारत से निकाल बाहर करो -  मारकंडे काटजू, 20 जवानों की शहादत पर देश में रोष

राजनीतिक समीक्षक और आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता आशुतोष ने मोदी और शी जिनपिंग की झूला झूलने वाली फोटो के साथ ट्विट किया है, “मोदी जब CM थे तब मनमोहन सिंह से पूछा था। अब देश पूछ रहा है, चीन को लाल आंख कब दिखाओगे मोदी जी?”

Ajit-Anjum-300x137 चीनी कंपनियों को भारत से निकाल बाहर करो -  मारकंडे काटजू, 20 जवानों की शहादत पर देश में रोष

वरिष्ठ पत्रकार अजित अंजुम ने ट्विट किया है, “नेहरू की जिम्मेदारी तय करने की सुनियोजित और प्रायोजित कोशिशें शुरू हो गई है। 62 में हारे तो नेहरू की जिम्मेदारी। आज चीन हमारे सैनिकों को मारे तो सिर्फ सेना की जिम्मेदारी।” पत्रकार सीमा चिश्ती ने ट्विट किया है, “वास्तिवक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के साथ कर्नल-रैंक के अधिकारी सहित 20 भारतीय सेना के जवानों की हत्या से दक्षिण ब्लॉक में काफी बेचैनी है। मोदी ने शी जिनपिंग से 18 बार मुलाकात की है।”

इसे भी पढ़ें – चीन जानता है, चीनी सामान के बिना नहीं रह सकते भारतीय

गलवान घाटी में शहीद सैनिकों के सम्मान में स्मारक बना

0

भारतीय थल सेना ने पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून 2020 को चीनी सैनिकों के साथ झड़प में शहीद हुए अपने 20 जवानों के सम्मान में एक स्मारक बनाया है। यह स्मारक पूर्वी लद्दाख के पोस्ट 120 में स्थित है और इस हफ्ते की शुरूआत में इसका अनावरण किया गया था। इस पर ‘स्नो लियोपार्ड’ (हिम तेंदुआ) अभियान के तहत ‘गलवान के वीरों’ के बहादुरी भरे कारनामों का उल्लेख किया गया है।

स्मारक पर यह उल्लेख भी किया गया है कि किस तरह से भारतीय सैनिकों ने चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को झड़प में भारी नुकसान पहुंचाते हुए इलाके को मुक्त कराया। चीन ने अपने मारे गए जवानों की संख्या सार्वजनिक नहीं की। हालांकि उसने अपने पांच सैनिकों के हताहत होने की बात आधिकारिक रूप से स्वीकार की है। एक अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक चीन के 35 सैनिक हताहत हुए थे। श्योक-दौलत बेग ओल्डी मार्ग पर स्थित पोस्ट 120 पर बने स्मारक पर थल सेना के सभी 20 शहीद कर्मियों के नाम लिखे गए हैं। झड़प में शहीद हुए जवानों में कर्नल बी संतोष बाबू भी शामिल थे जो 16 वीं बिहार रेजीमेंट से थे।

इसे भी पढ़ें – देश ने कारगिल घुसपैठ से कोई सीख ली होती तो गलवान विवाद न होता

स्मारक पर 20 सैन्य कर्मियों की सूची में तीन नायब सूबेदार, तीन हवलदार और 12 सिपाही शामिल हैं। रक्षा मंत्रालय ने कर्नल बाबू और अन्य सैनिकों के नाम दिल्ली स्थित राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर भी उकेरने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। गलवान झड़प के बाद चीन से लगी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर दोनों देशों के बीच पैदा हुआ गतिरोध अब भी कायम है। हालांकि, दोनों देशों के बीच कूटनीतिक एवं सैन्य वार्ता हुई है लेकिन गतिरोध समाप्त करने के लिये अब तक कोई सफलता नहीं मिल सकी है।

लद्दाख के गलवान वैली सीमा पर चीनी सैनिकों के साथ 15 जून 2020 झड़प में 20 भारतीय सेनिकों के शहीद हो गए थे। भारत के आधिकारिक बयान के मुताबिक सीमा से पीछे हटने के दौरान हुई झड़प में सेना के एक अधिकारी और दो सैनिकों की मौत हो गई थी, कई सैनिक घायल हुए थे, उनमें 17 की मौत हो गई। इस तरह इस झड़प में कुल 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए। समाचार एजेंसियों ने कहा है कि इस झड़प में 43 चीनी सैनिकों की भी मौत हुई थी।

दोनों देशों के सैनिकों के बीच गोलीबारी तो नहीं हुई, लेकिन खूनी संघर्ष हुआ, जिसमें भारत के 20 सैनिक शहीद हो गए थे।संकरी पहाड़ी पर संघर्ष के दौरान कुछ भारतीय सैनिक नदी में गिर गए। भारत और चीनी सैनिकों के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हिंसक झड़प को लेकर विदेश मंत्रालय ने कहा कि 15 जून को चीन की ओर से स्थिति बदलने के प्रयास के फलस्वरूप ऐसा हुआ। हालांकि इसमें दोनों पक्षों को नुकसान हुआ, जिससे बचा जा सकता था। कहा गया था कि झड़प में 43 चीनी सैनिकों की मौत हुई थी। हालांकि चीन सरकार ने अपने 43 सैनिकों के मारे जाने की पुष्टि नहीं की थी। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने कहा है कि झड़प में 5 चीनी सैनिक मारे गए।

CHine-India-1-300x212 गलवान घाटी में शहीद सैनिकों के सम्मान में स्मारक बना

चीन के सैनिक पहले से ही पूरी तरह तैयार होकर आए थे,भारतीय सैनिकों पर अचानक कर दिया और शुरुआत में भारतीय कर्नल सहित 3 जवान शहीद हुए। सूत्रों के अनुसार चीन बड़ी सेना लेकर करीब 800 सैनिक के साथ एलएसी पर आ धमका, जबकि भारत के सिर्फ़ 50 से 60 जवान थे। चीनियों ने एकाएक हमला किया,कई भारतीय सैनिकों को अगवा कर लिया,उनको छुड़ाने गए जवानों पर अग्रेसिव हमला किया। तभी तक भारत की और सेना की टुकड़ी पहुंची और चीनियों को खदेड़ना शुरू किया, जिसमें करीब कई चीनी सैनिक घायल हुए।

चायनीज़ पीपल लिबरेशन आर्मी के जवान अपने साथ रोड,कंटीले तार और नुकीले पत्थर लेकर आए थे।

सीमा प्रबंधन को लेकर जिम्मेदार रवैये के मद्देनजर भारत सभी काम एलएसी में अपनी सीमा के अंदर ही करता है। चीन से भी ऐसी ही उम्मीद रखता है। भारत सीमा पर शांति बनाए रखने और बातचीत के माध्यम से मतभेदों के समाधान को लेकर आश्वस्त है। भारत अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को सुनिश्चित करने के लिए दृढ़ता से प्रतिबद्ध है। सीमा पर जारी तनाव के बीच पेइंचिंग में चीनी उप विदेश मंत्री लुओ झाओहुई से भारतीय राजदूत विक्रम मिसरी ने मुलाकात की थी।

शहीदों की पूरी सूची

  1. कर्नल बिकुमल्ला संतोष बाबू (हैदराबाद)
  2. नायब सूबेदार नुदूराम सोरेन (मयूरभंज)
  3. नायब सूबेदार मनदीप सिंह (पटियाला)
  4. नायब सूबेदार सतनाम सिंह (गुरदासपुर)
  5. हवलदार (गनर) के. पलानी (मदुरै)
  6. हवलदार सुनील कुमार (पटना)
  7. हवलदार बिपुल रॉय (मेरठ सिटी)
  8. नायक दीपक कुमार (रीवा)
  9. सिपाही राजेश ओरांग (बीरभूम)
  10. सिपाही कुंदन ओझा (साहिबगंज)
  11. सिपाही गणेश राम (कांकेर)
  12. सिपाही चंद्रकांत प्रधान (कंधमाल)
  13. सिपाही अंकुश (हमीरपुर)
  14. सिपाही गुरबिंदर (संगरूर)
  15. सिपाही गुरतेज सिंह (मनसा)
  16. सिपाही चंदन कुमार (भोजपुर)
  17. सिपाही कुंदन कुमार (सहरसा)
  18. सिपाही अमन कुमार (समस्तीपुर)
  19. सिपाही जयकिशोर सिंह (वैशाली)
  20. सिपाही गणेश हंसदा (पूर्वी सिंहभूम)
    इसे भी पढ़ें – कहानी मुन्ना बजरंगी की

आवाज दे कहां है दुनिया मेरी जवां है…

0

हैंडसम पुरुषों की ओर बरबस खिंचती चली जाती थीं नूरजहां

हिंदी और उर्दू फिल्म में अपनी दिलकश आवाज़ और अदाकारी से कई दशक तक अपने कद्रदानों के दिलों पर राज करने वाली बेनजीर गायिका-अभिनेत्री ‘मल्लिका-ए-तरन्नुम’ नूरजहां का दिल बड़ा चंचल था। ज़िंदगी को अपनी शर्तों पर जीने वाली नूरजहां को हैंडसम पुरुष आकर्षित करते थे। यही वजह है कि उनकी ज़िंदगी में ख़ूबसूरत लम्हों के साथ-साथ बदसूरत लम्हें भी आए। अनगिनत प्रेम संबंध बनाने वाली नूरजहां ने कई पुरुषों से निकाह किया और कई पुरुषों को तलाक़ दिया। ज़िंदगी के सफ़र में उनके कितने आशिक रहे यह तो अंत तक पहेली ही रही। किंतु इतना सच है कि मोहब्बत करने का शगल उन्हें बचपन से था और यह ताउम्र बना रहा।

इसे भी पढ़ें – ये क्या जगह है दोस्तों, ये कौन सा दयार है…

रोमांस के बारे नूरजहां का 1990 के दशक में पाकिस्तान के एक नामी पत्रकार राजा तजम्मुल हुसैन को दिया गया एक बोल्ड इंटरव्यू बहुत अधिक चर्चित हुआ था। सबसे बड़ी बात उस इंटरव्यू में राजा तजम्मुल हुसैन ने हिम्मत करके नूरजहां से उनके अफेयर्स की संख्या के बारे पूछा था। इससे नूरजहां नाराज़ नहीं हुई, बल्कि बेतकल्लुफ होकर अपने रोमांसों को गिनाते हुए पंजाबी में बोली थीं कि अब तक 16 अफ़ेयर। नूरजहां ने कहां, “हाय अल्लाह! ना-ना करदियां वी 16 हो गए ने!” नूरजहां ने बड़ी साफ़गोई से स्वीकार किया कि उन्हें हैंडसम पुरुष बहुत अधिक पसंद थे। वह पंजाबी में बोली थीं, “जदों मैं सोहना बंदा देखती हां, ते मैन्नू गुदगुदी हुंदी है।”

इसे भी पढ़ें – हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है…

1969-70 में नूरजहां का रोमांस पाकिस्तान के तानाशाह राष्ट्रपति जनरल याह्या खान के साथ हुआ। हालांकि, न तो याह्या और न ही नूरजहां ने अपने रिश्ते को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार नहीं किया। कहा जाता हैं कि नूरजहां को याह्या नूरी और नूरजहां उन्हें सरकार कहकर बुलाते थे। याह्या से नाम जुड़ने के बाद नूरजहां को ‘मैडम’ पुकारा जाने लगा। एक बार याह्या ने अपने हममैकदे जनरल हमीद से कहा, “हैम, अगर में नूरी को चीफ़ ऑफ़ द स्टॉफ़ बना दूं, तो वह तुम लोगों से बेहतर काम करेगी।” जनरल याह्या के बेटे अली ख़ान के निकाह में नूरजहां ने गाने भी गाए थे। याह्या का शासन दो साल में ख़त्म हो गया लेकिन नूरजहां मरते दम तक पूरे मुल्क की ‘मैडम’ बनकर ही रहीं।

इसे भी पढ़ें – कोई उनसे कह दे हमें भूल जाएं…

नूरजहां के रोमांस का सिलसिला वर्ष 1942 में पंचोली पिक्चर के बैनर तले बनी फिल्म ‘खानदान’ से शुरू हुआ। इस फिल्म में नूरजहां अभिनय के साथ साथ गाने गा रही थीं। फिल्म का गाना कौन सी बदली में मेरा चांद है आ जा उनके स्वर में रिकॉर्ड हुआ जो बहुत लोकप्रिय हुआ। ‘खानदान’ में अभिनय के दौरान ही नूरजहां फिल्म के निर्देशक शौकत हुसैन रिज़वी को दिल दे बैठीं। दोनों का रोमांस ख़ासा चर्चित रहा और दोनों एक दूसरे पर जान छिड़कते थे। बहरहाल, नूरजहां की मोहब्बत परवान चढ़ी और शौकत हुसैन के साथ उनका निकाह हो गया। हालांकि उनका नाम उस समय हिंदी सिनेमा के एक बड़े अभिनेता से भी रोमांस हुआ।

Noor-Jahan-Singer-300x188 आवाज दे कहां है दुनिया मेरी जवां है...

नूरजहां का सबसे चर्चित इश्क पाकिस्तान के लिए टेस्ट क्रिकेट में पहली गेंद खेलने और पहला टेस्ट शतक लगाने वाले महान सलामी बल्लेबाज नज़र मोहम्मद से रहा। कहा जाता है कि 1953 में एक बार पति शौक़त हुसैन रिज़वी की अनुपस्थिति नज़र में नूरजहां से मिलने उनके घर पहुंच गए। दोनों अंदर थे कि अचानक डोरबेल बजी। आनन-फानन में नूरजहां ने आईहोल से देखा तो सामने शौहर खड़े थे। उस दिन वह अचानक सरप्राइज करते हुए घर पहुंच गए थे। लिहाज़ा, हड़बड़ी में नज़र घर की खिड़की से कूद गए और उनके बाईं बांह और बाएं पांव की हड्डियां टूट गईं। हालांकि वह लंगड़ाते हुए भाग गए थे। नज़र तब पाकिस्तानी के हीरो थे और केवल पांच ही टेस्ट खेले थे। लेकिन चोट के बाद उनका चमकता करियर वक़्त से पहले ही ख़त्म हो गया।

इसे भी पढ़ें – पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले, झूठा ही सही…

हालांकि कई लोग कहते हैं कि यह वाकया नूरजहां के घर में नहीं, बल्कि होटल के कमरे में हुई थी। जहां दोनों एक ही कमरे में रुके थे। उनके ठहरने की खबर शौकत हुसैन रिज़वी को लग गई और वह पिस्तौल लेकर होटल कमरे में घुस गए। उनके हाथ में बंदूक देखकर नज़र मोहम्मद डर गए और जान बचाने के लिए खिड़की से कूद गए। इस मुद्दे पर शौक़त और नूरजहां में भारी विवाद हुआ और इसके चलते 1954 में उनका तलाक़ भी हो गया। तब नूरजहां उनके तीन संतानों की मां थीं। पंजाबी फिल्म ‘पाटे खान’ के निर्माण के दौरान नूरजहां हैंडसम दिखने वाले फिल्म वितरक मोहम्मद नसीम की ओर खिंच गईं। इस दौरान उनकी कई फिल्में फ्लॉप रहीं और नसीम से उनका रिश्ता किसी मुकाम पर पहुंचने से पहले ही ख़त्म हो गया। 1959 में वह अपने से 14 साल छोटे अभिनेता एजाज़ दुर्रानी को दिल दे बैठीं। लंबे रोमांस के बाद उनके साथ से निकाह पढ़ लिया। दुर्रानी से भी उनके तीन बच्चे पैदा हुए। फिर 1970 में उनसे भी तलाक़ हो गया।

इसे भी पढ़ें – मोहब्बत की झूठी कहानी…

हिंदी सिनेमा और संगीत पर कई किताबें लिखने वाले डिप्लोमेट प्राण नेविल की किताब ‘सेंटिमेंटल जर्नी टू लाहौर’ नूरजहां के इस शौक़ भी जिक्र मिलता है। किताब के मुताबिक, “नूरजहां, उसी जलसे में जाती थीं, जहां स्मार्ट पुरुष बुलाए जाते थे। 1978 में सिएटल में प्राण भारत के काउंसल जनरल थे। लोग उन्हें मुख्य अतिथि के रूप में बुलाना चाहते थे। नूरजहां से इजाज़त मांगी गई, तो उन्होंने कहा कि शख़्स हिंदुस्तानी हो या पाकिस्तानी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है। मेरी केवल एक शर्त है कि देखने में अच्छा होना चाहिए। बदशक्ल पुरुष देखकर मेरा मूड ऑफ़ हो जाता है। जब उन्हें बताया गया कि लाहौर में जन्में प्राण देखने में बुरे नहीं हैं। तो वह तैयार हो गईं। प्राण ने लगा है मिस्र का बाज़ार देखो की फ़रमाइश की तो उनके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई।”

Noor-Jahan3-300x272 आवाज दे कहां है दुनिया मेरी जवां है...

नूरजहां और गायिका फ़रीदा ख़ानम दोनों जिगरी दोस्त थीं और दोनों हैंडसम युवकों को देखने के लिए लालायित रहती थीं। पाकिस्तान के लाहौर के गवर्नमेंट और लॉ कालेज के बाहर मुख्य सड़क पर पर फ़रीदा ख़ानम अपनी लंबी कार पर नूरजहां के साथ बहुत तेज़ी से निकला करती थीं। लेकिन सबसे बड़ी बात, जब इनकी कार इन लड़कों के सामने से गुज़रने लगती थी तो उसकी रफ़्तार अचानक एकदम से धीमी हो जाया करती थी। कहा जाता है कि दोनों मशहूर गायिकाएं उन नौजवान छात्रों को देखते हुए गुजरा करती थीं। इस तरह दोनों उसी समय उस सड़क से गुज़रती थीं, जब सड़क पर लड़कों की आवाजाही अधिक रहती थी।

इसे भी पढ़ें – चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो..

दरअसल, नूरजहां 21 सितंबर 1926 को लाहौर से लगभग 50 किलोमीटर दूर उस छोटे से कसूर कस्बे में पैदा हुईं, जहां की फ़िज़ाओं में ही रूमानियत और रोमांस घुली हुई है। मशहूर सूफ़ी दार्शनिक बुल्ले शाह की मज़ार वहीं है। शहर की आबोहवा ही जीनियस है। यही वजह है कि यहां से कई बड़े फ़नकार निकले, जिनमें हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के बड़े नाम और पटियाले घराने के उस्ताद बड़े गुलाम अली खान और उनके भाई उस्ताद बरकत अली खान शामिल हैं। दरअसल, नूरजहां उस दौर में मौसिक़ी की दुनिया में आईं, जब संगीत बेशक अमीर था, लेकिन फ़नकार ग़रीब हुआ करते थे। इसीलिए उनका फ़न आसाधारण होता था।

इसे भी पढ़ें – परदेसियों से ना अखियां मिलाना…

कहा जाता है कि जब नूरजहां पैदा हुई थीं तो उनके रोने की आवाज़ सुनकर उनकी बुआ ने उनके पिता मदद अली से कहा था- “भाईजान, इस बच्ची के रोने में भी संगीत की लय आ रही है। आप भी सुनिए, यह लड़की तो रो भी सुर में रही है। देख लेना यह आगे चलकर यह बहुत बड़ी गायिका बनकर आपका नाम रौशन करेगी।” बुआ झूठ नहीं बोल रही थीं, वाक़ई नन्हीं बच्ची तरन्नुम में ही रो रही थी। आगे बुआ की बात सच साबित हुई और नूरजहां बड़ी गायिका बन गईं। उनकी गायकी में वह जादू था कि स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने जब अपने करियर का आगाज़ किया तो उनके गायन पर नूरजहां की गायकी का प्रभाव साफ़ दिखता था।

Anmol-Ghadi-1946-225x300 आवाज दे कहां है दुनिया मेरी जवां है...

मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मी नूरजहां का असली नाम अल्लाह वसाई था। वह अपने माता-पिता की 11 संतानों में एक थीं। उनके पिता मदद अली और माता फतेह बीबी संगीत के अलावा थिएटर से भी जुड़े थे। घर का माहौल संगीतमय होने से बाल्यावस्था से ही उनका रुझान संगीत की ओर हो गया। वह किसी भी गीत को सुनते ही याद कर लिया करती थीं। इसलिए मां ने उन्हें संगीत की तालीम दिलाने का इंतजाम किया। नूरजहां ने बाल्यावस्था से ही बड़ी गायिका बनने के सपने देखने लगी। संगीत की शुरुआती हुनर कज्जनबाई से सिखने का बाद शास्त्रीय संगीत की तालीम उस्ताद गुलाम मोहम्मद और उस्ताद बड़े गुलाम अली खान से ली थी। उस दौरान उनकी बड़ी बहन पहले से ही नृत्य और गायन का प्रशिक्षण ले रही थीं।

इसे भी पढ़ें – तेरा जलवा जिसने देखा वो तेरा हो गया….

1920-30 के दौरान कलकत्ता थिएटर का गढ़ था। मदद अली के परिचित दीवान सरदारी लाल ने कलकत्ता के एक थिएटर में पैसा लगाया था। लिहाज़ा, वह नूरजहां और उसकी दो बड़ी बहनों को कलकत्ता ले गए। वहीं नूरजहां ने फिल्मों में क़दम रखा। उनका नाम अल्लाह वसाई से नूरजहां कर दिया गया। चार साल की उम्र में फिल्मी सफ़र की शुरुआत इंडियन पिक्चर के बैनर तले बनी मूक फिल्म ‘हिंद के तारे’ में अभिनय से की। क़रीब दर्जन भर मूक फिल्मों मे अभिनय करने के बाद उन्होंने बतौर बाल कलाकार अपनी पहचान बना ली। बोलती फिल्मों का दौर शुरू होने पर नूरजहां की 1932 में आई फिल्म ‘शशि पुन्नु’ पहली टॉकी फिल्म थी।

इसे भी पढ़ें – हम रहे न हम, तुम रहे न तुम…

1935 में नूरजहां ने ‘मदान थियेटर्स’ की फिल्म ‘गैबी गोला’ के बाद ‘मिस्र का सितारा’, ‘फ़ख्रे इस्लाम’ और ‘तारणहार’ में काम किया। 1936 में आई ‘शीला’ (उर्फ़ पिंड दी कुड़ी) में उन्होंने पहली बार अभिनय के साथ गाना भी गाया। इस बीच लाहौर में कई स्टूडियो अस्तित्व में आ गए। गायकों की बढ़ती मांग के चलते नूरजहां 1937 में वापस लाहौर आ गईं। वहां उनकी मुलाकात उस वक़्त के बड़े संगीतकार ग़ुलाम अहमद चिश्ती उर्फ लाहौर बाबा से हुई। कहा जाता है कि चिश्ती उस दौर में स्टेज शो में संगीत देते थे। वह नूरजहां को प्रति गाने साढ़े सात आने देने लगे। साढ़े सात आने उन दिनों अच्छी ख़ासी रकम मानी जाती थी। उसके बाद वह नियमित रूप से चिश्ती के साथ स्टेज शो में गाने लगीं।

Khandan-1942 आवाज दे कहां है दुनिया मेरी जवां है...

कोलकाता प्रवास में में उनकी मुलाकात फिल्म निर्माता दलसुख पंचोली से हुई थी। उनको नूरजहां के अंदर सिनेमा की उभरती अदाकारा-गायिका दिखी। उन्होंने ‘गुल-ए-बकवाली’ फिल्म में उनको ले लिया। फिल्म में नूरजहां ने अपना पहला गाना साला जवानियां माने और पिंजरे दे विच रिकार्ड करावाया। फिल्म 1939 में रिलीज हुई और ज़बरदस्त सफल रही। नूरजहां की चर्चा मुंबई की हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में होने लगी। इसके बाद उनकी फिल्म ‘सजनी’ (1940) और ‘रेड सिग्नल’ (1941) आई। इसके बाद उन्होंने ‘रणजीत मूवीटोन’ की ‘ससुराल’, ‘उम्मीद’, ‘चांदनी’, ‘धीरज’ और ‘फ़रियाद’ जैसी फिल्मों में गाना गाने के साथ अभिनय भी किया।

इसे भी पढ़ें – कि घूंघरू टूट गए…

1942 में ही आई पंचोली पिक्चर की फिल्म ‘खानदान’ ने नूरजहां का डंका बजा दिया। ग़ुलाम हैदर की धुन पर गाना कौन सी बदली में मेरा चांद है आ जा बहुत लोकप्रिय हुआ। ‘खानदान’ की सफलता के बाद वह हिंदी सिनेमा में स्थापित हो गईं। 1943 में वह बंबई में शिफ़्ट हो गईं। उसी वर्ष ‘नादान’ के रौशनी अपनी उमंगों की मिटाकर चल दिए, और या अब तो नहीं दुनिया में कहीं ठिकाना जैसे गाने काफी लोकप्रिय हुए। उनके फ़िल्मी सफ़र को आगे बढ़ाने में सज्जाद हुसैन का योगदान रहा। उनकी धुन पर ‘दोस्ती’ के गाने बदनाम मुहब्बत कौन करे, कोई प्रेम का दे संदेसा, अब कौन है मेरा, जैसे गाने हिट हुए। 1944 में ‘दुहाई’ और 1945 में ‘बडी मां’ रिलीज हुई। ‘बड़ी मां’ में उनके साथ लता और आशा भोसले ने भी अभिनय किया। उसी साल ‘विलेज गर्ल’ आई। इस दौरान शौकत हुसैन रिज़वी के निर्देशन में नूरजहां ने ‘नौकर’ और ‘जुगनू’ जैसी फिल्मों मे अभिनय किया। इन फिल्मों की कामयाबी से उनकी धाक जम गई।

इसे भी पढ़ें – वक्त ने किया क्या हसीन सितम…

बंबई में महज चार साल में नूरजहां अपने समकालीनों से आगे निकल गईं। 1945 में पहली बार किसी महिला की आवाज़ में कव्वाली रिकॉर्ड की गई। ‘जीनत’ की कव्वाली आहें ना भरी शिकवे ना किए को उन्होंने गायिका कल्याणी, जोहराबाई अंबालेवाली और अमीरबाई कर्नाटकी के साथ गाया। वह साल उनके लिए कामयाबी का साल था। उनकी चार सुपरहिट फिल्में रिलीज़ हुईं। श्यामसुंदर तीसरे संगीतकार थे जो नूरजहां को बुलंदी तक ले गए। उनकी धुन पर ‘गांव की गोरी’ में नूरजहां ने किस तरह से भूलेगा दिल, और सजन बलम परदेसी जैसे यादगार गाने गाए। उनकी आवाज़ की रसीली मुरकियां अपने उतार-चढ़ावों के ज़रिए सुननेवालों पर ग़ज़ब का असर छोड़ती हैं। इस फिल्म का गाना बैठी हूं तेरी याद का ले करके सहारा कर्णप्रिय है। लोग ‘लाल हवेली’, और ‘मिर्ज़ा साहिबां’ जैसी उनकी क्लासिक फिल्मों के आज भी दीवाने हैं।

Noor-Jahan1-300x150 आवाज दे कहां है दुनिया मेरी जवां है...

1946 में आई मेहबूब ख़ान की सुपरहिट फिल्म ‘अनमोल घड़ी’ ने नूरजहां को दुनिया भर में मशहूर कर दिया। इस के गानों ने सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर डाले। सुरेंद्र और सुरैया के साथ नूरजहां की यह फ़िल्म भी हिट थी। तनवीर नक़वी के दिल को छीने वाले भावनापूर्ण गीतों को कालजयी संगीतकार नौशाद ने धुन में ढाला। वैसे तो फिल्म के सभी गाने सुपरहिट हुए, लेकिन नूरजहां के गाए गीत आवाज़ दे कहां है, जवां है मोहब्बत और मेरे बचपन के साथी तो इतने लोकप्रिय हुए कि तीनों गाने आज भी लोगों की जुबां पर हैं। 1947 में विभाजन के बाद वह पति शौक़त के साथ बंबई को छोड़कर लाहौर चली गईं। अभिनेता दिलीप कुमार ने उनसे भारत में ही रहने की गुज़ारिश की तो उन्होंने बड़ी बेरुखी के साथ कहा था ‘मैं जहां पैदा हुई हूं वहीं जाऊंगी।’

इसे भी पढ़ें – क्या ध्यान भटकाने के लिए सुशांत के डिप्रेशन की कहानी गढ़ी गई?

लाहौर में नूरजहां ने ‘शाहनूर’ स्टूडियो की नींव रखी और 1950 में ‘चन्न वे’ का निर्माण किया। इसका निर्देशन करके वह पाकिस्तान की पहली महिला निर्देशक बन गईं। फिल्म ने बॉक्स आफिस पर खासी कमाई की। इसका गाना तेरे मुखड़े पे काला तिल वे पाकिस्तान में बहुत लोकप्रिय हुआ। इसका संगीत फ़िरोज़ निज़ामी का था। इसी बीच उनकी ‘जुगनू’ भी सफल रही। बाद में ‘दुपट्टा’ फिल्म आई, जिसके गाने तुम ज़िंदगी को ग़म का फ़साना बना गए, जिगर की आग से इस दिल को जलता देखते जाओ और चांदनी रातें…चांदनी रातें सरहद के दोनों पार सराहे गए। उधर, ग़ुलाम हैदर ने भी पाकिस्तान का रुख कर लिया था। उनकी और नूरजहां की जोड़ी ने ‘गुलनार’ फ़िल्म में हिट गाने दिए। उनमें सखी री नहीं आये सजनवा और लो चल दिए वो हमको तसल्ली दिए बगैर बेहद लोकप्रिय हुए।

इसे भी पढ़ें – सुशांत सिंह की मौत की सीबीआई जांच से शिवसेना नाराज़ क्यों है?

इस बीच नूरजहां ने ‘फतेखान’, ‘लख्ते जिगर’ और ‘इंतेजार’ अभिनय किया। पाकिस्तान में गायिका के रूप में उनकी पहली फिल्म 1858 की ‘जान-ए-बहार’ थी। इसका कैसा नसीब लाई गाना काफी लोकप्रिय हुआ। इसके बाद उन्होंने अनारकली, परदेसियां और कोयल और 1961 में मिर्जा ग़ालिब जैसी सफल फिल्मों में अभिनय किया। उनकी आख़िरी फिल्म बतौर अभिनेत्री ‘बाजी’ थी जो 1963 में रिलीज़ हुई। पारिवारिक दायित्वों के कारण उन्हें उसी साल अभिनय को अलविदा करना पड़ा। हालांकि, उन्होंने गायन जारी रखा, लेकिन 1996 में संगीत और गायन से भी संन्यास ले लिया। उसी साल आई पंजाबी फिल्म ‘सखी बादशाह’ में नूरजहां ने अपना अंतिम गाना कि दम दा भरोसा गाया।

Noor-Jahan2-240x300 आवाज दे कहां है दुनिया मेरी जवां है...

हिंदी सिनेमा में स्थापित होने के बावजूद नूरजहां अपनी आवाज़ में नित्य नए प्रयोग किया करती थीं। गाना रिकॉर्ड करते समय उसमें अपना दिल, आत्मा और दिमाग़ सब कुछ झोंक देती थीं। इतनी मेहनत करने से रिकॉर्डिंग के समय उन्हें बहुत अधिक पसीना होता था। अपनी इन ख़ूबियों की वजह से वह ठुमरी गायकी की महारानी कहलाने लगीं। महानतम गायिकाओं में शुमार की जाने वाली नूरजहां को लोकप्रिय संगीत में क्रांति लाने और पंजाबी लोकगीतों को नया आयाम देने का श्रेय जाता है। फिल्मों में उनकी आवाज का जादू श्रोताओ के सर चढ़कर बोलता था। आज हर उदीयमान गायक की वह प्रेरणास्रोत हैं।

इसे भी पढ़ें – जन्म से ही विरोध का सामना करती रही हैं कंगना राणावत

1965 की भारत-पाकिस्तान जंग में नूरजहां ने पाकिस्तानी फौजियों की हौसला अफज़ाई के लिए कई गाने गाए। मशहूर शायर फैज़ अहमद फैज़ की नज़्म मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग उन्होंने फिल्म ‘कैदी’ में गाई थी। ख़ुद नूरजहां से मुत्तासिर फैज़ ने क़ुबूल किया कि इस नज़्म को नूरजहां से बेहतर कोई नहीं गा सका। फैज़ उस वक़्त मशहूर नाम थे। अपनी नज़्म के मशहूर होने के बाद वह नूरजहां के दीदार के लिए बिना बताए उनके घर पहुंच गए। हमेशा सजी संवरी रहने वाली नूरजहां को जब उनके खादिम ने बताया कि कोई फैज़ अहमद नाम का बंदा मिलने आया है, तो वह नंगे पैर, बिना किसी मेकअप के दरवाज़े पर उनसे मिलने दौड़ी चली गईं।

इसे भी पढ़ें – परिस्थितिजन्य सबूत कहते हैं, सुशांत ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उनकी हत्या की गई

नूरजहां फ़ैज़ का बेहद सम्मान करती थीं। एक जलसे में मलिका पुखराज ने फ़ैज़ को ‘भाई’ कहा तो नूरजहां ने कहा, “मैं फ़ैज़ को भाई नहीं, बल्कि महबूब समझती हूं।” इसी तरह एक मुशायरे में फ़ैज़ से उनकी नज़्म मुझसे सुनाने की मांग हुई तो वह बोले, “भाई वह नज़्म तो अब नूरजहां की हो गई है। अब उस पर मेरा कोई हक़ नहीं रहा।” करियर के शिखर पर भी पहुंचने के बावजूद भी उनकी मानवीय मूल्यों में आस्था कम न हुई। उन पर किताब लिखने वाले एजाज़ गुल कहते हैं, नूरजहां घर पर रिहर्सल करती थीं। एक बार संगीतकार निसार बज़्मी उनके घर गए और चाय देते चाय की कुछ बूंदें प्याली से छलक कर बज़्मी के जूते पर गिर गईं। नूरजहां फ़ौरन झुकीं और अपनी साड़ी के पल्लू से चाय को साफ़ करने लगीं। निसार ने रोका तो उन्होंने कहा, “आप जैसे लोगों की वजह से ही मैं इस मुक़ाम तक पहुंची हूं।”

Noor-Jahan4-216x300 आवाज दे कहां है दुनिया मेरी जवां है...

हमेशा यह बहस होती रही है कि नूरजहां और लता मंगेशकर में बेहतर कौन है? ‘नौशादनामा’ के लेखक राजू भारतन के अनुसार, बेशक नूरजहां लता से बेहतर थीं। ‘स्वरों की यात्रा’ में पंकज राग लिखते हैं, “उनकी असाधारण गायकी में जितनी रेंज व विविधता थी वैसा किसी गायिका में नहीं थी। उनकी रागदार आवाज़ में ग़ज़ब की तेज़ी और कशिश थी। वह बिजली-सी कौंधती थी। आरोह-अवरोह में उन्हें मेहनत नहीं करनी पड़ती थी।” नौशाद के अनुसार “पाकिस्तान जाने से नूरजहां का नुकसान हुआ। वहां तब बड़े संगीतकार नहीं थे। इससे वह पंजाबी गायन तक सिमटकर रह गईं। जबकि लता के साथ तकरीबन हर भाषा के संगीतज्ञ थे और वह बेशुमार गाने गातीं।” दोनों का फ़िल्मी कैरियर संवारने वाले ग़ुलाम हैदर के अनुसार, “लता हिंदुस्तान की आवाज़ बनने के लिए ही बनी थीं। और नूरजहां पाकिस्तान की।”

इसे भी पढ़ें – सुशांत को ब्लैकमेल कर रही थी रिया चक्रवर्ती

वर्ष 1982 में इंडिया टॉकी के गोल्डेन जुबली समारोह में नूरजहां को भारत आने को न्योता मिला। फ़रवरी की वह शाम बेहद यादगार शाम थी। दिलीप कुमार ने उनका इस्तकबाल करते हुए कहा था, “नूरजहां जी, जितने बरस के बाद आप हमसे मिलने आईं हैं, ठीक उतने ही बरस हम सबने आपका इंतज़ार किया है।” सुनकर वह उनके गले लगकर भावुक हो उठीं। उन्होंने सिर्फ एक गाना ही गया और वह था, ‘आवाज़ दे कहां है, दुनिया मेरी जवां है।’ गीत के दर्द को हर किसी ने महसूस किया। उन्होंने कहा, “मैं भी अल्लाह से दुआ मांगती रहीं कि एक बार मरने से पहले हिंदुस्तान के दोस्तों से मिलवा दे।”

इसे भी पढ़ें – क्या पुरुषों का वर्चस्व ख़त्म कर देगा कोरोना?

हिंदी फिल्मों के अलावा नूरजहां ने पंजाबी, उर्दू और सिंधी फिल्मों में भी अपनी आवाज़ से श्रोताओं को मदहोश किया। उन्होंने कुल 10 हजार गाने गाए। पाकिस्तान में 14 फिल्में बनाईं जिसमें 10 उर्दू फिल्में थीं। उन्हें मल्लिका-ए-तरन्नुम (क्वीन ऑफ मेलोडी) सम्मान से नवाजा गया। 1966 में उन्हें मनोरंजन के क्षेत्र में पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान ‘तमगा-ए-इम्तियाज़’ दिया गया था। 74 साल की उम्र में 23 दिसंबर 2000 को दिल का दौरा पड़ने से नूरजहां का निधन हो गया।

रिसर्च और लेख – हरिगोविंद विश्वकर्मा

इसे भी पढ़ें – ठुमरी – तू आया नहीं चितचोर

नूरजहां की गायिकी का दुर्लभ विडियो

 

मुंबई में लोकल रेल सेवा करीब तीन महीने बाद 15 जून 2020 से बहाल

0

मुंबई में लोकल रेल सेवा करीब तीन महीने बाद 15 जून 2020 से बहाल

करीब तीन महीने के लंबे अंतराल के बाद मुंबई की लाइफलाइन कही जाने वाली उपनगरीय रेल सेवा सोमवार (15 जून से 2020) आंशिक रूप से बहाल कर दी गई है। यह सेवा वैश्विक महामारी कोरोना वाइरस के प्रकोप के चलते लागू किए गए लॉकडाउन के कारण 22 मार्च से बंद कर दी गई थी।

Mumbai-Local-Train1-300x167 मुंबई में लोकल रेल सेवा करीब तीन महीने बाद 15 जून 2020 से बहाल

पश्चिम रेलवे और मध्य रेलवे के मुख्यजन संपर्क अधिकारी रवींद्र भाकर और शिवाजी सुतार ने अपील की है कि शुरुआती दौर में लोकल सेवा केवल राज्य सरकार के उन कर्मचारियों के लिए है, जो अति आश्यक सेवा से जुड़े हुए हैं। स्टेशन में प्रवेश केवल परिचय पत्र देखकर दिया जाएगा। रेलवे ने आम लोगों के अपील की है कि वे अनावश्यक रूप से स्टेशन पर न पहुंचें।

रेलवे की अंग्रेज़ी प्रेस विज्ञप्ति का हिंदी अनुवाद

पश्चिम रेलवे एवं मध्य रेलवे की संयुक्ति प्रेस विज्ञप्ति

पश्चिम रेलवे और मध्य रेलवे ने अपनी उपनगरीय रेल सेवाओं को सेवाएं आंशिक तौर पर आज से बहाल कर दिया है। यह सेवा आम नागरिकों के लिए नहीं, बल्कि केवल राज्य सरकार के आवश्यक सेवा से जुड़े हुए कर्मचारियों के लोगों के लिए है।

पश्चिम रेलवे

पश्चिम रेलवे चर्चगेट और दहाणु रोड के बीच अपनी 12 कोच की उपनगरीय सेवाओं में रोज़ाना कुल 120 अर्थात 60 अप और 60 डाउन गाड़ियों का संचालन करेगा। यह सेवा आज सुहब यानी सोमवार, 15 जून, 2020 से शुरू हो गई है। यह सेवा केवल आवश्यक सेवाओं की ड्यूटी पर लगे राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिए है।

ये ट्रेनें 15 मिनट के अंतराल पर सुबह 5.30 बजे से रात 11.30 बजे तक चल रही हैं।

अधिकतम सेवाएं चर्चगेट और विरार के बीच चल रही है। लेकिन कुछ ही ट्रेन डहाणु रोड तक चल रही हैं।

ये ट्रेन चर्चगेट और बोरिवली के बीच तेज लोकल और बोरिवली के आगे धीमी चल रही हैं।

मध्य रेल

मध्य रेल ने राज्य सरकार के आवश्यक कर्मचारियों के लिए मुंबई डिवीजन (मध्य रेल) की लोकल सेवा को आंशिक रूप से बहाल कर दिया है।

  • रोज़ाना कुल 200 ट्रेन सेवाएं चलेंगी जिनमें 100 अप और 100 डाउन ट्रेन होंगी।
  • छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस से कसारा/कर्जत/कल्याण/ठाणे के बीच 130 सेवाएं (65 अप और 65 डाउन) शुरू हो गई है।
  • छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस से पनवेल के बीच 70 ट्रेन सेवाएं (35 अप और 35 डाउन) शुरू हो गई है।
  • सभी गाडियां फास्ट हैं और केवल प्रमुख स्टेशनों पर रुक रही हैं।
  • बाहर से आनेवाली गाड़ियां छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस पर सुबह 7 बजे, 9 बजे, 10 बजे, दोपहर 3 बजे, रात 9 बजे और रात 11 पहुंचेंगी और छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस से सुबह 7 बजे, 9 बजे, दोपहर 3 बजे, शाम 6 बजे, रात 9 बजे, 11 बजे रवना होंगी।
  • राज्य सरकार नोडल अथारिटी होगी।
  • राज्य सरकार की आवश्यक सेवाओं में लगे पश्चिम रेलवे पर चलने वाले 50 हजार कर्मचारियों सहित लगभग
  • 25 लाख कर्मचारी इन ट्रेनों से यात्रा करेंगे।
  • यह विशेष उपनगरीय सेवाएं सेवा सामान्य यात्रियों या जनता के लिए नहीं होंगी और केवल राज्य सरकार के आवश्यक सेवा कर्मचारियों के लिए ही होगी। इसका सख्ती से पालन किया जाएगा।
  • इसके लिए हर स्टेशन पर रेलवे की टिकट खिड़की को खोल दिया गया है।
  • आवश्यक सेवा से जुड़े रेलवे कर्मचारियों पहले से चल रही गाड़ियां चलती रहेंगी।
  • विभिन्न स्टेशनों पर रेलवे सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है।
  • फूड (खाद्य सामग्री) स्टॉल नहीं खोले जाएंगे।
  • स्टेशन में प्रवेश केवल परिचय पत्र के आधार पर दिया जाएगा।
  • हर ट्रेन में 700 यात्री ही यात्रा कर सकेंगे।
  • यात्रियों की स्टेशन में प्रवेश करने से पहले बुखार वगैरह की स्क्रिनिंग की जाएगी।
  • सभी यात्रियों को केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देश मसलन मास्क, और सोशल डिस्टेंसिग का पालन करना होगा।

विशेष अपील

आम लोगों से यह अनुरोध किया जाता है कि कोविड़-19 के चलते अनावश्यक रूप से स्टेशनों पर न जाएं और चिकित्सा और सोशल दूरी जैसे प्रोटोकॉल का पालन न करें।

रवींद्र भाकर/ शिवाजी सुतार
मुख्यजन संपर्क अधिकारी

पश्चिम रेलवे/मध्य रेलवे

 

Mumbai-Local-Train2-300x284 मुंबई में लोकल रेल सेवा करीब तीन महीने बाद 15 जून 2020 से बहाल Mumbai-Local-Train3-246x300 मुंबई में लोकल रेल सेवा करीब तीन महीने बाद 15 जून 2020 से बहाल

इसे भी पढ़ें – महाराष्ट्र में कोरोना संक्रमण बेक़ाबू, पर सूना है राज्य का सबसे शक्तिशाली बंगला ‘वर्षा’

क्या अपने प्यार को कभी भूल ही नहीं पाए सुशांत?

1

जिस स्टारडम, जिस शोहरत, जिस कामयाबी, जिस धन-दौलत या जिस ऐशो आराम को हासिल करने के लिए कोई इंसान ज़िंदगी भर भागता रहता है। तो क्या ये तमाम उपलब्धियां भी उसे अंततः संतुष्ट नहीं कर पाती है? तो क्या स्टारडम, शोहरत, कामयाबी, धन-दौलत या ऐशो आराम संतुष्टि की गारंटी नहीं होता? यानी इंसान इनसे भी संतुष्ट नहीं होता है। अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के असल में मौत को गले लगा लेने के बाद हर कोई यही सवाल कर रहा है और अपने ढंग से जवाब खोज रहा है।

इसे भी पढ़ें – सुशांत सिंह की मौत की सीबीआई जांच से शिवसेना नाराज़ क्यों है?

Sushant2-138x300 क्या अपने प्यार को कभी भूल ही नहीं पाए सुशांत?Sushant1-138x300 क्या अपने प्यार को कभी भूल ही नहीं पाए सुशांत?

कोरोना संक्रमण और लोग-बाग़ अपनी या अपने परिजन की मौत को भूल कर यही सवाल कर रहे हैं। कुछ लोग यह सवाल मित्रों से कर रहे हैं, कुछ लोग यह सवाल ख़ुद से तो मीडिया वाले यही सवाल ग्लैमर दुनिया के लोगों से कर रहे हैं। कुछ लोग यह सवाल सोशल मीडिया पर कर रहे हैं। तो कुछ लोग सदमे में आकर यह सवाल कर रहे हैं। और यह सवाल जितना किया जा रहा है, उतना ही जटिल होता जा रहा है। मशहूर पटकथा लेखक संजय मासूस ने इसी तरह का सवाल फेसबुक पर किया है।

Sanjay-Masoom-300x197 क्या अपने प्यार को कभी भूल ही नहीं पाए सुशांत?

इसे भी पढ़ें – सुशांत सिंह की रहस्यमय मौत – सीबीआई जांच से झिझक क्यों?

दरअसल, किसी के समझ में ही नहीं आ रहा है कि आख़िर यह अचानक क्या हो गया। जिस अभिनेता से बॉलीवुड में लोग बहुत लंबी पारी खेलने की उम्मीद कर रहे थे, उसका महज 34 साल में अपने जीवन से मोहभंग कैसे हो गया? आख़िर ऐसा क्या हो गया, जिससे पल भर में सुशांत को लगा कि जीवन ही बेकार है, नश्वर है। उन्हें क्यों लगा कि जो जीवन वह जी रहे हैं, वह जीवन नहीं, जो कुछ वह कर रहे हैं, वह कार्य नहीं है, जो कुछ वह हासिल कर रहे हैं, उसे तो उन्होंने हासिल करने की सोची ही नहीं।

Sushant3-1-138x300 क्या अपने प्यार को कभी भूल ही नहीं पाए सुशांत?Sushant4-138x300 क्या अपने प्यार को कभी भूल ही नहीं पाए सुशांत?

यानी भले लोग स्टारडम, शोहरत, कामयाबी धन-दौलत या ऐशो आराम को ही अपना जीवन मान लें, लेकिन सुशांत ने नहीं माना। उनके लिए यह सब कुछ हासिल करना जीवन नहीं था। फिर सुशांत के लिए जीवन क्या था? सांस लेना ही जीवन नहीं था? किसी का साथ जीवन नहीं था? या संबंध जीवन नहीं था, तब आख़िर सुशांत के लिए जीवन क्या था? क्या वह जीवन में बहुत अकेले हो गए थे। क्या यही अकेलापन ने अंततः उन्हें अपनी इहलीला ख़त्म करने के लिए मजबूर कर दिया?

इसे भी पढ़ें – सुशांत को ब्लैकमेल कर रही थी रिया चक्रवर्ती

बिहार के पूर्णिया के रहने वाले सुशांत ने 2008 से कैमरे के सामने अभिनय की शुरुआत की। ‘किस देश में है मेरा दिल’ नाम के धारावाहिक में छोटे पर्दे पर करियर की शुरुआत की थी। बालाजी फिल्म्स की एकता कपूर की ज़ी टीवी पर प्रसारित धारावाहिक ‘पवित्र रिश्ता’ से उन्हें समर्थ अभिनेता की अलग पहचान मिली। उन दिनों एक्टिंग के साथ-साथ सुशांत और अंकिता के रिलेशनशिप के भी चर्चे होते थे। दोनों की जोड़ी को टीवी दर्शकों ने खूब पसंद किया था।

Sushant5-138x300 क्या अपने प्यार को कभी भूल ही नहीं पाए सुशांत?

बड़े परदे पर अपने करियर की शुरुआत सुशांत ने फिल्म ‘काय पो चे!’ से की। उस फिल्म में सुशांत मुख्य अभिनेता थे और उनके अभिनय की बहुत तारीफ़ भी हुई थी। सुशांत रूपहले परदे पर दूसरी बार शुद्ध देसी रोमांस में वाणी कपूर और परिणीति चोपड़ा के साथ दिखे थे। सुशांत ने सबसे ज्यादा चर्चा, कामयाबी और शोहरत भारत के पूर्व क्रिकेट कप्तान एम एस धोनी का किरदार निभा कर बटोरी थी। निर्देशक नीरज पांडे की एम एस धोनी की बायोपिक सुशांत के करियर की पहली फिल्म थी, जिसने सौ करोड़ रुपए का कलेक्शन किया। इसके अलावा सुशांत ने फिल्म ‘सोनचिड़िया’ और ‘छिछोरे’ जैसी फिल्मों में काम किया। उनकी अंतिम फिल्म ‘केदारनाथ’ थी जिसमें वे सारा अली खान के साथ दिखे थे। उनकी अपकमिंग फिल्म किजी और मैनी थी। कुछ समय पहले इस फिल्म का फर्स्ट लुक भी रिलीज हुआ था। कभी-कभी हम क्या सोचते हैं और हो कुछ और जाता है। संभवतः सुशांत ने भी जो कुछ सोचा होगा, उस हिसाब से कुछ घटित नहीं हुआ।

इसे भी पढ़ें – क्या पुरुषों का वर्चस्व ख़त्म कर देगा कोरोना? महिलाएं काम पर जाएंगी, पुरुष घर में खाना बनाएंगे!

सुशांत की रोमांस की बात करें तो भले पिछले कुछ दिनों से अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती के साथ उनका नाम जोड़ा जा रहा था, लेकिन अपनी पहली कोस्टार अंकिता लोखंडे को संभवतः सुशांत कभी भूल ही नहीं सके। दरअसल, अंकिता ने भी ‘पवित्र रिश्ता’ से ही अपने अभिनय रूपी सफर की शुरुआत की थी। माना जाता है कि दोनों के बीच बहुत लंबे समय तक रिश्ता रहा। दोनों लिव-इन रिलेशन में रहते थे।

Sushant-Ankita-1-300x205 क्या अपने प्यार को कभी भूल ही नहीं पाए सुशांत?Sushant-Rhea-Cover-300x225 क्या अपने प्यार को कभी भूल ही नहीं पाए सुशांत?

बहरहाल, ब्रेकअप के बाद सुशांत अपनी गर्लफ्रेंड अंकिता से रिश्ता भले ख़त्म हो गया हो, लेकिन सुशांत अंकिता को भूल नहीं सके। वह अंकिता को बुरी तरह मिस करते थे। एक बार सुशांत से अंकिता के बारे में पूछा गया, तो सुशांत भावुक हो गए थे। सुशांत ने ट्विटर पर 16 अप्रैल 2016 को एक भावुक स्टेटस भी शेयर किया था। इससे साफ पता लगा कि अंकिता से ब्रेकअप के बावजूद सुशांत उस रिश्ते से कभी बाहर नहीं आ पाए।

यह संयोग या दुर्योग है कि कुछ दिन पहले ही सुशांत की पूर्व मैनेजर रहीं दिशा सालियान ने भी ख़ुदकुशी कर ली थी। दिशा मुंबई के मालाड में अपने मॉडल-एक्टर मंगेतर रोहन राय के साथ रहती थी और उसी इमारत की 14वीं मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर ली थी।

इसे भी पढ़ें – डायबिटीज़ मरीज़ हो सकते हैं केवल छह महीने में पूरी तरह से शुगर फ्री, हरा सकते हैं कोरोना को भी…

Old-post-300x95 क्या अपने प्यार को कभी भूल ही नहीं पाए सुशांत?

और कुछ दिन बाद ख़ुद सुशांत भी आत्महंता बन गए। क्यों कहते हो आत्महंताओं को कायर, सबको पड़ेगा लगाना फांसी एक दिन।

लेखक- हरिगोविंद विश्वकर्मा

चीन जानता है, चीनी सामान के बिना नहीं रह सकते भारतीय

0

WhatsApp-Image-2020-06-16-at-10.26.08-PM-287x300 चीन जानता है, चीनी सामान के बिना नहीं रह सकते भारतीय

क्या आपको पता है, भारत के लोग चीनी अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक योगदान करते हैं। हर साल चीनी कंपनियां भारत से 5 लाख 60 हजार करोड़ रुपए का मुनाफा कमा कर अपने देश चीन ले जाती हैं। भारत में मोबाइल फोन के बाजार में चीनी कंपनियों की हिस्सेदारी 72 फ़ीसदी है। इसी तरह आटोमोबाइल सेक्टर में चीन की भागीदारी 40 फीसदी है। इसी तरह फ्रिज-एयरकंडिशन आदि क्षेत्र में चीनी कंपनियां भारत में बड़ा कारोबार कर रही है।

Violent-Clash-With-China-in-Ladakh-300x150 चीन जानता है, चीनी सामान के बिना नहीं रह सकते भारतीय

चीन से संबंधित मामलों पर नज़र रखने वाले दुनिया भर के विशेषज्ञ आम राय से मानते हैं कि भारतीय नागरिकों की फितरत ही ऐसी होती है कि वे सस्ते सामान की ओर दुनिया के दूसरे देशों के नागरिकों की तुलना में बहुत अधिक आकर्षित होते रहे हैं और एक तरह से सस्ते सामान के बिना रह ही नहीं सकते हैं। विश्व में सबसे सस्ते सामान बनाने वाला चीन भारतीयों की इस मानसिकता का ही फायदा उठा रहा है और भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करने की हिमाक़त करता रहा है। यही वजह है कि चीन और भारत के सैनिकों की झड़प हो रही है।

 

Boycott-China-300x173 चीन जानता है, चीनी सामान के बिना नहीं रह सकते भारतीय

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी सरकार के मुखपत्र “ग्लोबल टाइम्स” ने चीन पर नज़र रखने वाले कई विशेषज्ञों से बातचीत के बाद इस बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन में निर्मित सामान और चीनी सॉफ्टवेयर भारतीय नागरिकों के लिए ऑक्सीजन की तरह हैं। भारतीयों को चीन में बने सामान न मिले तो वे ज़िंदा ही नहीं रह पाएंगे। इसलिए चीनी सरकार को इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए कि भारत से संबंध ख़राब होने पर चीनी कंपनियों के भारत में हो रहे लाखों करोड़ रुपए के मुनाफ़े पर कोई असर पड़ेगा।

xiaomi_mi-300x300 चीन जानता है, चीनी सामान के बिना नहीं रह सकते भारतीय

संभवतः यही वजह है कि जब चीन ने आतंकवादी मौलाना मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करने की मांग को वीटो किया था, तभी से भारत में देशभक्ति का राग आलापने वाले लोग पिछले गला फाड़-फाड़ कर चाइनीज़ प्रॉडक्ट के इस्तेमाल को बंद करने की अपील कर रहे हैं, लेकिन हक़ीक़त में चीनी प्रॉडक्ट के व्यसनी हो चुके भारतीय नागरिक अपनी आदत से बाज नहीं आ रहे हैं। हालत यह है कि पिछले साल चीनी कंपनियों का भारत में कारोबार दिन दूना-रात चौगुना बढ़ता हुआ 5 लाख 60 हज़ार करोड़ रुपए के फीगर को पार कर गया।

Chine-India चीन जानता है, चीनी सामान के बिना नहीं रह सकते भारतीय

चीन के अस्तित्व को अगर मानवता ही नहीं, बल्कि संपूर्ण मानव सभ्यता के लिए ख़तरा कहा जाए तो न तो अतिशयोक्तिपूर्ण होगा और न ही किसी तरह की ग़लत बयानबाज़ी। यही वजह है कि चीन जहां है, वहां विवाद से उसका नाता रहा है। चीन 1949 से तिब्बत पर क़ब्ज़ा कर रखा है। हांगकांग में कत्लेआम शुरू कर दिया है। दक्षिण चीन सागर के बारे में तो चीन ने अंतरराष्ट्रीय अदालत का फ़ैसला ही मानने से इनकार कर दिया। चीन का भारत ही नहीं बल्कि जापान, वियतनाम, दक्षिण कोरिया

Chinese-Indian-300x180 चीन जानता है, चीनी सामान के बिना नहीं रह सकते भारतीय

इन सबके लिए चीन की मध्यकाल वाली विस्तारवादी सोच ही ज़िम्मेदार है। चीन की इसी नीति के चलते आज सीमा पर कमोबेश यह युद्ध जैसे हालात हैं। चीन की सेना भारत के लद्दाख में कई किलोमीटर अंदर तक आ गई हैं। इसके बावजूद भारत में चीनी कंपनियों के कारोबार का ग्राफ बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है।

यही वजह है कि भारत और चीन के तनावपूर्ण सीमा विवाद के बीच रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड विजेता शिक्षविद सोनम वांगचुक का चीनी सामानों और सॉफ्टवेयर्स का बहिष्कार करने वाला वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ। योगगुरु बाबा रामदेव समेत अनेक नामचीन लोगों ने इस वीडियो में सोनम की कही बातों का समर्थन करते हुए चीनी सामान और सॉफ्टवेयर्स के वहिष्कार की अपील की। लेकिन इसके बावजूद चीन निर्मित सामनों और सॉफ्टवेटर का इस्तेमाल जस का तस है।

Chines2-300x196 चीन जानता है, चीनी सामान के बिना नहीं रह सकते भारतीय

चीनी उत्पाद के बायकॉट के आह्वान के बावजूद चीनी कंपनी बाइटडांस का सॉफ्टवेयर टिकटोक भारत में लोकप्रियता के शिखर पर है। इस सॉफ्टवेयर ने भारत में यू-ट्यब को भी पीछे छोड़ दिया है। इस ऐप को आज भी तक़रीबन हर भारतीय ख़ासकर युवाओं के मोबाइल में देखा जा सकता है। इसी तरह शेयर इट के ऐप भारत में बेहद लोकप्रिय हैं। चीनी मोबाइल फोन और टैब बनाने वाली शाओमी एमआई के उत्पाद भारत में सैमसंग को पीछे छोड़ चुके हैं।

WhatsApp-Image-2020-06-14-at-15.28.57-300x169 चीन जानता है, चीनी सामान के बिना नहीं रह सकते भारतीय

चीनी मोबाइल फोन ओप्पो, विवो, वनप्लस, हुवेई, कूलपैड, मोटोरोला, लीइको, लेनेवो, मीज़ू, टेक्नो, होनोर, जियोनी, जीफाइव और टीसीएल भारतीय बाज़ार में छाए हुएं हैं। इनका इस्तेमाल जिस तरह लोग कर रहे हैं, उससे यह तय है कि लाख अपील की जाए, लेकिन भारतीय नागरिक कभी इनसे मुक्त नहीं हो सकते। भारत में लोकप्रिय कई स्वदेसी और गैरचीनी कंपनियों में चीनी कंपनियों ने निवेश कर रखा है। मसलन पेटीएम और स्नैपडील में अलीबाबा, हाइक मेसेंजर, मेक माई ट्रिप और फ्लिकार्ट में चीनी कंपनी टेंसेंट होल्डिंग्स का भारी निवेश है। इसी तरह ओला का बड़ा स्टैक चीन की दीदी चूइंग ने ले रखा है।

Chines-Side-300x180 चीन जानता है, चीनी सामान के बिना नहीं रह सकते भारतीय

चायनीज इंस्टिट्यूट ऑफ़ कन्टेम्पोरेरी इंटरनेशनल रिलेशन से संबंध साउथ एशियन स्टीज़ के उपनिदेशक लॉऊ चुन्हावो कहते हैं, चीनी उत्पादों के ख़िलाफ़ भारत में यह कोई पहला अभियान नहीं है। जब भी चीन ऐसा कुछ करता है, तो भारत के हितों के प्रतिकूल जाता है, तब तब चीनी सामानों के बहिष्कार की बात की जाती है, लेकिन मामला थोड़े दिन में टांयटांय फिस्स हो जाता है। चीनी सामानों के बिना जीवन-यापन भारत के लोगों के लिए बहुत मुश्किल है।

Chines-product चीन जानता है, चीनी सामान के बिना नहीं रह सकते भारतीय

चुन्हावो कहते हैं कि चीनी बाज़ार में चीनी मोबाइल कंपनियों की बागीदारी 72 फीसदी है। इसे खत्म करना असंभव है। चुन्हावो आगे कहते हैं कि स्मार्ट टीवी कारोबार में चीनी कंपनियों का हिस्सेदारी 45 फीसदी है। फिर चीनी टीवी दूसरे ब्रांडों से 20 से 45 फीसदी सस्ता होता है। इसके अलावा चीन में बने रेफ्रिजरेटर, घड़ी, कैलकुलेटर और अन्य सामानों से भारतीय बाज़ार भरे पड़े हैं। इसके अलावा दूसरे ढेर सारे क्षेत्र में भी चीनी उत्पादों पर भरात की बुरी तरह निर्भरता है। भारत में स्वदेशी उत्पादन का देश के जीडीपी में हिस्सेदारी केवल 16 फीसदी है। ऐसे में भारतीय कंपनियां चीन का स्थान लेने की हालत में नहीं हैं।

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

इसे भी पढ़ें – क्या पुरुषों का वर्चस्व ख़त्म कर देगा कोरोना?