Home Blog Page 51

कहानी विकास दुबे की – जैसी करनी वैसी भरनी

0

Vikas-Dubey-1-232x300 कहानी विकास दुबे की - जैसी करनी वैसी भरनी

अतंतः हिंसक जीवन का हिंसक अंत

विधि का विधान है। जैसा करोगे, वैसा ही भरोगे। गैंगस्टर विकास दुबे (Mostwanted Criminal Vikas Dubey) के साथ यही हुआ। आठ दिन तक समाचार की सुर्खियों में रहने वाली ख़बर का 10 जुलाई 2020 को अंत हो गया। अनगिनत लोगों की हत्या करने वाले कानपुर के मोस्टवांटेड अपराधी विकास दुबे को उत्तर प्रदेश की एसटीएफ ने अंततः मार ही डाला। हालांकि यह कोल्ड ब्लडेड मर्डर है, लेकिन प्रतिहिंसा की आग में जल रही उप्र पुलिस ने जो कुछ किया, ठीक ही किया। जिस अपराधी के ख़िलाफ़ पुलिस वाले तक गवाही देने से डरते हैं, उसे मार डालना सही था। हालांकि पुलिस कह रही है कि विकास को उज्जैन लाते समय कानपुर में प्रवेश करते ही भवती कस्बे के पास पुलिस की कार पलट गई। इसके बाद विकास दुबे ने एक पुलिस वाले की रिवॉल्वर छीन कर भागने की कोशिश की और पुलिस ने आत्मरक्षा में गोली चलाई, जिसमें विकास दुबे को सीने और कमर में गोली लगी। उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

Accident-300x203 कहानी विकास दुबे की - जैसी करनी वैसी भरनी

नहीं उतरी गले पुलिस की थ्यौरी

पहली बात दुर्धटनाग्रस्त वाहन को देखकर लगता ही नहीं कि वह हादसे का शिकार हुई है, क्योंकि कोई गाड़ी चलते हुए ऐसे कैसे पलटी हो गई, जो तनिक भी क्षतिग्रस्त नहीं हुई। फिर जो गाड़ी पलट गई, उसमें बैठा हुआ विकास घायल क्यों नहीं हुआ। फिर पुलिस कह रही है, चार पुलिस वाले घायल हुए हैं। विकास दुबे, जिसके पांव में सरिया डाली गई है, इसलिए वह भाग नहीं सकता, तो वह भागने कैसे लगा। बहरहाल, यह बहस का विषय नहीं है। क्योंकि पुलिस ने अगर विकास को गोली मार दी, जो लब्बोलुआब ठीक ही किया। पुलिस ने अपनी कार्रवाई से इस ख़तरनाक अपराधी को मुख्तार अंसारी या अतीक अहमद की तरह विधायक या सांसद बनने से पहले ही ख़त्म कर दिया।

इसे भी पढ़ें – कहानी मुन्ना बजरंगी की

महाकाल मंदिर में किया था नाटकीय आत्मसमर्पण

विकास दुबे की गिरफ़्तारी के बारे में बताया जाता है कि वह 9 जुलाई को सुबह सात बजे महाकालेश्वर मंदिर पहुंचा। वह मास्‍क लगाए हुए था। उसने महाकाल के दर्शन की पर्ची खुद कटाई थी। मंदिर में जाकर बाकायदा महाकाल की पूजा की। मौके पर स्थानीय मीडिया को भी बुला लिया था। मीडिया के सामने विकास चिल्लाने लगा, ‘मैं विकास दुबे हूं… कानपुर वाला।’ तब मंदिर के चौकीदारों ने उसे पकड़ लिया। फिर पुलिस को सूचित किया गया। कहा जा रहा है कि इनकाउंटर से बचने के लिए विकास ने पूरी योजना के साथ उज्जैन पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था।

Vikas-D2-300x189 कहानी विकास दुबे की - जैसी करनी वैसी भरनी

पुलिस महकमे में विकास की भारी पैठ थी

विकास दुबे की पुलिस महकमे में पैठ कितनी गहरी थी, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कानपुर के एसएसपी ऑफ़िस से विकास दुबे की सहायता करने वाले नेताओं, शीर्ष पुलिस अफ़सरों और दूसरे प्रभावशाली लोगों की नामों की सूची वाली फ़ाइल और शहीद सीओ देवेंद्र मिश्रा की चौबेपुर थानाध्यक्ष विनय तिवारी की शिकायत वाली चिट्ठी अचानक रहस्यमय ग़ायब हो गई। इस साल मार्च में लिखी गई इस चिट्ठी में देवेंद्र मिश्रा ने विनय तिवारी पर विकास दुबे की खुली मदद करने का आरोप लगाया था। मज़ेदार बात यह है कि वह चिट्ठी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और उत्तर प्रदेश ही नहीं देश के हर नागरिक के वॉट्सअप पर आ गई। विकास को पकड़ने में जुटी पुलिस विकास के सिर पर इनाम बढ़ाती रही और इनामी राशि 50 हज़ार से पांच लाख रुपए तक पहुंच गई।

विकास दुबे कैसे बना ख़तरनाक अपराधी?

कानपुर में जब से सीओ देवेंद्र कुमार मिश्रा समेत आठ पुलिसवालों की हत्या हुई, तब से हर किसी के जुबान पर विकास दुबे का नाम आया। हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, रंगदारी वसूलना, डकैती, लूटपाट और अवैध रूप से दूसरों की ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने जैसे एक दो नहीं, बल्कि पांच-पांच दर्जन गंभीर अपराधों में लिप्त विकास दुबे के बारे में 3 जुलाई से पहले क्राइम रिपोर्टरों के अलावा कोई जानता ही नहीं था। विकास दुबे ने वह दुस्साहस किया, जो अपराधी तो दूर नक्सली और आतंकवादी भी नहीं कर पाते?

Vikas-Dubey-300x169 कहानी विकास दुबे की - जैसी करनी वैसी भरनी

तीन दशक से अपराध जगत में सक्रिय विकास

पिछले तीन दशक से अपराध और राजनीति की दुनिया का बेताज़ बादशाह कहे जाने वाले मोस्टवांटेड अपराधी विकास दुबे को नब्बे के दशक से ही राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था। राजनीतिक संरक्षण में वह फला-फूला और आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देते हुए ख़ूब पैसे भी बनाए। नेताओं के लिए उसे संरक्षण देना इसलिए ज़रूरी था, क्योंकि बिल्हौर सर्कल के शिवराजपुर, चौबेपुर, शिवली और बिठूर थानों में उसकी बड़ी धमक थी। इन थानों के तहत आने वाले लगभग पांच सौ गांवों के लोग उसके फ़तवे पर वोट देते थे। लिहाज़ा, विधायक या सांसद बनने के लिए विकास का खुला समर्थन ज़रूरी होता है।

सीएम बदलते रहे, पर अपराधी पाता रहा संरक्षण

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि नब्बे के दशक से ही विकास दुबे के हर पार्टी के नेता, चाहे वह विधायक हों या लोक सभा सदस्य, से बड़े मधुर संबंध थे। कई नेताओं का तो वह पूरा चुनावी ख़र्च वहन करता था। इसीलिए उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री बदलते रहे, लेकिन विकास दुबे को बराबर संरक्षण मिलता रहा। चाहे मुलायम सिंह यादव हों, कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, रामप्रकाश गुप्ता, मायावती, अखिलेश यादव या योगी आदित्यनाथ हों, विकास का रुतबा जस का तस ही रहा। क्या मजाल कि स्थानीय पुलिस उस पर हाथ डाल दे। गांव में उसने अपना घर क़िले जैसा बना रखा है। बिना उनकी मर्ज़ी के घर के भीतर कोई जा नहीं सकता था।

VIKAS-DUBEY-Brijesh-Pathak-300x194 कहानी विकास दुबे की - जैसी करनी वैसी भरनी

मंत्री ब्रजेश पाठक के साथ विकास की फोटो वायरल

कानपुर एनकाउंटर में विकास दुबे का नाम आने के बाद से ही योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल में विधि मंत्री ब्रजेश पाठक के साथ उसकी फोटो वायरल हुई। अखिलेश यादव के कार्यकाल में मुलायम सिंह का अपने आपको धमकाने वाला ऑडियो टेप जारी करके चर्चा में आए प्रदेश के सीनियर आईपीएस अफ़सर अमिताभ ठाकुर ने तो सीधे तौर पर ब्रजेश पाठक पर विकास को संरक्षण देने का आरोप लगाया था। कहा जाता है कि ब्रजेश पाठक से विकास दुबे का संबंध तब से है, जब ब्रजेश पाठक बसपा के सांसद हुआ करते थे। आरोप है कि विकास को भाजपा सरकार में मंत्री रही प्रेमलता कटियार का भी वरदहस्त मिला हुआ था। इतना ही नहीं, विरोधी आरोप लगाते हैं कि विकास को बिठूर के भाजपा विधायक अभिजीत सांगा का भी संरक्षण प्राप्त था। बसपा के कद्दावर नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी पर भी विकास को पनाह देने के आरोप लगे थे। समाजवादी पार्टी के एमएलसी कमलेश पाठक का वरदहस्त विकास को मिला हुआ था। कमलेश कानपुर में इसी साल मार्च में अधिवक्ता मंजुल चौबे और उनकी बहन की पुलिस के सामने गोली मारकर हत्या करने के आरोपी हैं और इन दिनों आगरा जेल में बंद हैं।

1990 में रखा अपराध की दुनिया में कदम

मूल रूप से कानपुर में शिवली थाना क्षेत्र के बिकरू गांव के रहने वाले 48 वर्षीय अपराधी विकास दुबे पुत्र राम कुमार दुबे बचपन से ही जुर्म की दुनिया का बादशाह बनना चाहता था। उसने अपराध की दुनिया में 1990 में तब कदम रखा, जब पिता के अपमान का बदला लेने के लिए उसने नवादा गांव के किसानों को जम कर पीटा था। विकास के ख़िलाफ़ शिवली थाने में पहला मामला दर्ज़ हुआ था। ब्राह्मण बाहुल्य क्षेत्र में पिछड़ों की हनक को कम करने के लिए विकास को लगातार राजनीतिक संरक्षण मिलता रहा। सबसे पहले पूर्व विधायक नेकचंद्र पांडे ने उसे संरक्षण दिया। वह क्षेत्र में दबंगई के साथ मारपीट करता रहा, थाने पहुंचते ही नेताओं के फोन आने शुरू हो जाते थे। कुछ दिनों बाद तो पुलिस ने भी उस पर नज़र टेढ़ी करनी छोड़ दी थी।

गांव के ही एक युवक की हत्या

अगले साल यानी 1991 में विकास दुबे ने एक दलित युवक की हत्या कर दी। चौबेपुर थाने में उसके ख़िलाफ़ हत्या का मुक़दमा दर्ज़ हुआ। कहा जाता है कि इस अपराध से बचने के लिए विकास दुबे बिल्हौर से जनता दल विधायक और मुलायम के खास मोतीलाल देहलवी के संपर्क में आया। बाद में मोतीलाल जब उसकी मदद करने में आनाकानी करने लगे तो विकास ने जनता पार्टी के नेता शिव कुमार बेरिया का दामन थामा। बिल्हौर विधानसभा चुनाव में उसने उनकी मदद की। हालांकि सूबे में कल्याण सिंह की अगुआई में भाजपा की सरकार बन गई थी, मगर समाजवादी पार्टी के ज़रिए भाजपा शासन में भी उसे संरक्षण मिलता रहा। 1992 में विकास ने एक दलित की हत्या कर दी, लेकिन नेताओं के सरंक्षण की वजह से उसका बाल भी बांका नहीं हुआ।

गेस्ट-हाउस कांड के बाद बसपा में आया

बताया जाता है कि तीन चार साल तक विकास दुबे शिव कुमार बेरिया का अनुयायी बना रहा, लेकिन सूबे में बनते-बिगड़ते राजनीतिक समीकरण के बीच जब लखनऊ गेस्ट-हाउस कांड के बाद मायावती मुख्यमंत्री बनीं तो उसने मायावती को देवी की तरह पूजने वाले भगवती प्रसाद सागर का दामन थाम लिया और 1996 में उनकी खूब मदद की। लिहाज़ा, सागर बसपा के टिकट पर विधायक बन गए। जब मायावती मुख्यमंत्री थीं, तब विकास का सिक्का बिल्हौर, शिवराजपुर, बिठूर, चौबेपुर के साथ ही कानपुर शहर में भी चलने लगा। इस दौरान विकास ने ज़मीनों पर अवैध कब्जे के साथ और गैर कानूनी तरीकों से संपत्ति बनाई। विकास ने भी राजनीति के दाव पेंच सीखे और जेल में रहते हुए उसने शिवराजपुर से नगर पंचायत का चुनाव जीत लिया।

हरिकिशन श्रीवास्तव पहले राजनीतिक गुरु

नब्बे के दशक के अंतिम दौर में विकास दुबे ने ख़ुद राजनीति में उतरने का मन बना लिया। उसे राजनीति में लाने का श्रेय चौबेपुर विधानसभा के पूर्व बसपा विधायक और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हरिकिशन श्रीवास्तव को जाता है। हरिकिशन श्रीवास्तव की गिनती बसपा के बड़े नेताओं में होती है। कहा जाता है कि पूर्व विधायक जो काम नहीं कर पाते थे उनके लिए उनका काम विकास करता था। विकास खुद कहता था कि उस राजनीति में लाने का श्रेय हरिकिशन का ता। वहीं, उसके राजनीतिक गुरु रहे। कहा जाता है कि हरिकिशन श्रीवास्तव ने विकास दुबे को बहन मायावती से मिलवाया और उससे बसपा टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार रहने को कहा था।

भाजपा नेता शिवली थाने में घुस कर हत्या

बहरहाल, इस दौरान विकास दुबे की नज़र प्रदेश में राजनीतिक समीकरण पर बराबर रही और इसीलिए 2002 में फिर से समाजवादी पार्टी के शिवकुमार बेरिया का भक्त बन गया और विधायक बनने में उनकी हर संभव मदद की, लेकिन उसने बसपा के भगवती सागर से संबंध बनाकर रखा। अक्टूबर 2001 में विकास ने राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त भाजपा के संतोष शुक्ला की शिवली थाने में घुस कर हत्या कर दी। इस गोलीबारी में दो पुलिस वाले भी मारे गए। इस हत्याकांड के बाद विकास पूरे प्रदेश में छा गया। उसका ख़ौफ़ इतना बढ़ा कि उसकी तूती बोलने लगी। ज़मीन की ख़रीद-फ़रोख़्त, अवैध क़ब्ज़ा या सुपारी मर्डर, जैसे कार्य वह आसानी से करता गया और सबूत के अभाव में बचता गया। लोग डर के मारे उसके ख़िलाफ़ बयान ही नहीं देते थे। उसके ख़ौफ़ का आलम ऐसा था कि लोग अपने छोटे-बड़े झगड़े को सुलझाने के लिए पुलिस की बजाय विकास के पास जाते थे।

Vikas-D3-300x198 कहानी विकास दुबे की - जैसी करनी वैसी भरनी

मुलायम ने नहीं दी रिहाई के फैसले को चुनौती

उत्तर प्रदेश की राजनीति में विकास दुबे कितना प्रभावशाली था, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि शिवली थाना गोलीबारी में दो पुलिस वालों के मारे जाने के बावजूद उस केस में पुलिस ने कमज़ोर चार्जशीट बनाया। मुक़दमे की सुनवाई के दौरान सभी 19 पुलिस वाले ही अदालत में अपने बयान से ही मुकर गए। किसी पुलिस वाले ने विकास के ख़िलाफ़ गवाही देने की हिम्मत नहीं जुटाई। लिहाज़ा, अदालत ने उसे 2005 में बरी कर दिया। मज़ेदार बात यह है कि विकास को बाइज़्ज़त बरी करने वाले जज एचएम अंसारी अगले ही दिन सेवानिवृत्त हो गए। तब मुलायम सिंह यादव सूबे के मुखिया थे, लेकिन सबसे अहम यह कि उनकी सरकार की ओर से भी विकास को बरी करने के अदालत के फ़ैसले को हाईकोर्ट में चुनौती नहीं दी गई।

सीओ अब्दुल समद को बंधक बनाकर पीटा था

दिन-दहाड़े भाजपा नेता और दो पुलिस वालों की हत्या करने के बावजूद बाइज़्जत बरी होने और उस फैसले को मुलायम सरकार द्वारा हाईकोर्ट में चुनौती न देने से विकास दुबे का दबदबा कानपुर में पूरे पुलिस महकमे में भी बढ़ गया। पुलिस वाले भी उससे डरने लगे। यही वजह है कि 2005 में झगड़ा होने पर विकास और उसके आदमियों ने बिल्हौर के सर्कल अफ़सर (सीओ) अब्दुल समद को ही बंधक बना लिया था और कमरे में बंद करके अब्दुल समद को बुरी तरह पीटा था। इसके बावजूद कानपुर पुलिस ने उसके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की। इससे उसका दुस्साहस और बढ़ गया।

पूरे कानपुर में स्थापित किया दबदबा

सन् 2006 के आसपास बसपा में कमलेश कुमार दिवाकर काफी प्रभावशाली हो गए थे। कानपुर के होने के कारण उनका दावा बिल्हौर और भोगनीपुर विधानसभा सीटों पर था। लिहाज़ा, बसपा ने 1993 में भोगनीपुर सीट से विधायक का चुनाव जीत चुके भगवती प्रसाद सागर को झांसी के मऊरानीपुर विधानसभा से चुनाव लड़वाया। उन्होंने न केवल वहां जीत हासिल की, बल्कि तीसरी बार विधायक बनने पर मायावती सरकार में राज्यमंत्री भी बनाए गए। स्थानीय लोगों का कहना है कि इसका लाभ विकास को भी मिला। इधर 2007 विधानसभा चुनाव में कमलेश कुमार दिवाकर बिल्हौर से बसपा का टिकट मिला तो, विकास ने उन्हें विजयश्री दिलाने में भरपूर सहयोग दिया। प्रदेश में बसपा को बहुमत मिला और विकास के कारोबार का दायरा बढ़ता गया। बसपा से मिल रहे संरक्षण के बाद उसने अपना दबदबा पूरे कानपुर में स्थापित कर लिया।

सपा मंत्री करती थीं चरण-वंदना

2012 में विकास दुबे ने देखा कि मायावती की इमेज ख़राब हो रही है। विकास के संरक्षक भगवती सागर को भी मायावती ने बसपा से हकाल दिया था। उस समय अखिलेश यादव अपनी साइकल यात्रा से जनता का जबरदस्त समर्थन हासिल कर रहे थे। बस क्या था, विकास ने अपनी वफ़ादारी की कार समाजवादी पार्टी की ओर मोड़ दी और 2012 के विधान सभा चुनाव में बिल्हौर से सपा प्रत्याशी अरुणा कुमारी कोरी का खुला समर्थन किया। लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार राधेकृष्ण कहते हैं कि विकास दुबे के समर्थन से विधायक और अखिलेश सरकार में महिला कल्याण और सांस्कृतिक मंत्री बनी अरुणा कुमारी कोरी जब भी उस अपराधी से मिलती थीं तो उसकी चरण-वंदना करती थीं। हालांकि इसके लिए अरुणा कुमारी कोरी बोलती थीं, कि वह ब्राह्मण देवता हैं, वह उनका चरण छूकर उनसे आशीर्वाद लेती हैं।

शिवपाल ने की मदद जिला परिषद चुनाव में

वरिष्ठ पत्रकार राधेकृष्ण कहते हैं कि “अरुणा कुमारी कोरी की बहुत ख़ास हैं। इसीलिए जब अखिलेश सिंह यादव के साथ मतभेद होने पर शिवपाल सिंह यादव के समाजवादी पार्टी छोड़ी तो अरुणा कुमारी कोरी ने भी सपा छोड़ दी थी। अरुणा कुमारी कोरी के जरिए विकास दुबे ने शिवपाल यादव तक पहुंच बना ली थी। कहा तो यहां तक जाता है कि जिला परिषद चुनाव में शिवपाल सिंह ने विकास की जीतने में मदद की थी। यही वजह है कि पुलिस कभी उसे ग्रिल करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई।” 2014 में देश में नरेंद्र मोदी की लहर के बाद राज्य में भाजपा को उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से 73 पर जीत प्राप्त हुई। विकास को अपना भविष्य भाजपा में दिखने लगा। इसी दौरान उसके संरक्षक रहे भगवती प्रसाद सागर ने भी भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा ने 2017 के विधान सभा भगवती सागर को बिल्हौर से टिकट दिया और वह विकास के सहयोग से बड़े अंतर से चुनाव जीत गए।

विकास के डर से प्रधान ने गांव दी छोड़ दिया

कानपुर के जिला पंचायतराज अधिकारी सर्वेश कुमार पांडेय के मुताबिक शिवराजपुर ब्लॉक की ग्राम पंचायत बिकरू में 2005 में हुए प्रधानी के चुनाव में विकास दुबे के छोटे भाई दीप प्रकाश की पत्नी अंजलि दुबे ने जीत हासिल की थी। 2010 के चुनाव में रजनीकांत कुशवाहा ने बाजी मारी, लेकिन विकास का ख़ौफ़ इस कदर था कि चुनाव जीतने का बाद  रजनीकांत कुशवाहा वापस गांव नहीं गए। इसके बाद जिलाधिकारी ने 3 सितंबर 2010 को तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया। इस 3 सदस्य कमेटी में विशुना देवी ने अध्यक्ष के रूप में काम किया था। 2015 के चुनाव में एक बार फिर विकास के भाई की पत्नी अंजलि दुबे ने जीत हासिल की।

Vikas-D1-300x168 कहानी विकास दुबे की - जैसी करनी वैसी भरनी

15 साल में निर्विरोध जिला पंचायत सदस्य

बहरहाल, 1990 के दशक में विकास दुबे लगातार अपराध करता रहा। संतोष शुक्ला के भाई मनोज शुक्ला कहते हैं, “पुलिस की गिरफ़्त से अपने आपको बचाने के लिए विकास 1995 में बीएसपी से जुड़ गया और जिला पंचायत का सदस्य बन गया। इसके बाद उसकी पत्नी समाजवादी पार्टी के सहयोग से पंचायत का चुनाव जीती। मनोज शुक्ला ने बेहद निराशा से कहा कि 20 साल में विकास हमेशा अपने राजनीतिक कनेक्शन की वजह से छूटता रहा। विकास के परिवार से पिछले 15 साल में लगातार जिला पंचायत सदस्य निर्विरोध निर्वाचित हो रहे। वह गांव के 15 साल से प्रधान भी नियुक्त होते आ रहे हैं।”

जारी रहा हत्या करने का सिलसिला

विकास दुबे ने एक विवाद के बाद वर्ष 2000 में शिवली थाना क्षेत्र स्थित ताराचंद इंटर कॉलेज के सहायक प्रबंधक सिद्धेश्वर पांडेय की हत्या कर दी थी। इस घटना ने विकास को रातों-रात सबकी नजर में ला दिया। इसके बाद तो जैसे विकास कानपुर में अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह बन गया। उसने उसी साल जेल में रहते हुए ही रामबाबू यादव नामक शख्स की हत्या करवा दी। जेल से बाहर आने पर वर्ष 2001 में उसने थाने में संतोष शुक्ला और दो पुलिसकर्मियों को मार डाला। वर्ष 2004 में विकास ने केबल व्यवसाई दिनेश दुबे की हत्या कर दी।

एक हत्याकांड में आजीवन कारावास

सन् 2002 में ही विकास ने जेल में रहते हुए शिवली के पूर्व जिला पंचायत सदस्य लल्लन बाजपेयी पर जानलेवा हमला करवाया जिसमे वाजपेयी घायल हुए और उनके 3 साथी मौक़े पर ही मारे गए। विकास के नाम एफ़आईआर दर्ज़ करवाई गई लेकिन पुलिस ने उसका नाम चार्जशीट से हटा दिया। लल्लन वाजपेयी बताते हैं, “मेरे ऊपर हुए हमले में पुलिस ने विकास का नाम ही आरोप पत्र से हटा दिया।” बहरहाल, ताराचंद इंटर कॉलेज के सहायक प्रबंधक सिद्धेश्वर पांडेय की हत्या में उसे आजीवन कारावास की सज़ा हो गई। लेकिन वह फ़रार हो गया था। लिहाज़ा, उसके ख़िलाफ़ गुंडा एक्ट और गैंगस्टर की कार्रवाई की गई। वर्ष 2017 में उसे यूपी एसटीएफ़ ने पकड़ लिया और पूछताछ में उसने भाजपा के भगवती सागर और अभिजीत सांगा का नाम लिया। इसके बाद वह जेल में था। बहरहाल, आम चुनाव से पहले एक सत्तारूढ़ दल के नेता ने उसे जेल से बाहर निकलवाने में मदद की और वह जेल से बाहर आ गया।

राहुल तिवारी की एफआईआर निर्णायक

वस्तुतः, अपराधी विकास दुबे के लिए बुरे समय की शुरुआत तब हुई, जब उसने और उसके लोगों ने बिकरू गांव के ही निवासी राहुल तिवारी पर कातिलाना हमला कर दिया। राहुल तिवारी ने विकास दुबे के ख़िलाफ़ इंडियन पैनल कोड की धारा 307 के तहत हत्या के प्रयास का मुक़दमा दर्ज कराया। इसके बाद चौबेपुर का थाना इंचार्ज विनय तिवारी, जिसे विकास दुबे को पुलिस कार्रवाई की सूचना देने के आरोप में निलंबित करके गिरफ़्तार कर लिया गया, राहुल को लेकर विकास के घर गया। विकास दुबे ने राहुल को थाना प्रभारी के सामने ही धक्का देकर घर से बाहर निकाल दिया और विनय तिवारी पर ही राइफल तान दी। इसके बाद शिवराजपुर थाने के एसओ महेश कुमार यादव विकास को पकड़ने बिकरू गांव में उसके घर गए।

Kanpur-policemen-300x167 कहानी विकास दुबे की - जैसी करनी वैसी भरनी

सीओ, एसओ समेत आठ पुलिस वाले शहीद

बताया जाता है कि विकास के आदमियों ने महेश यादव और उनके सहयोगियों को घेर लिया। इस पर महेश यादव ने थाने में फोन किया और बताया, “बदमाशों ने उन लोगों को घेर लिया है। गोलियां चल रही हैं। बचना मुश्किल है। लिहाज़ा, जल्दी से अतिरिक्त फ़ोर्स भेजी जाए।” जैसे ही बात की जानकारी थाने में पहुंची, बड़ी संख्या में पुलिस मौक़े पर पहुंची। जब अतिरिक्त बल वहां पहुंची, तब तक थानाध्यक्ष विनय तिवारी से गुप्त सूचना पाकर विकास दुबे ने पूरी तरह से मोर्चेबंदी कर ली थी और पुलिस दल पर एके 47 से गोलियां चलाई जिनमें महेश यादव के अलावा सीओ देवेंद्र मिश्रा और चौकी इंचार्ज अनूप कुमार समेत आठ पुलिस वाले शहीद हो गए। बताया जाता है विकास ने मुठभेड़ के बाद कई पुलिस वालों को पकड़ लिया था और उन्हें बड़ी बर्बर मौत दी। सीओ को मारने से पहले उनके दोनों पांव कुल्हाड़ी से काट दिया था।

विकास के मामा व चचेरा भाई मारे गए

कहा जाता है कि बाद में पुलिस ने विकास दुबे के मामा प्रेमप्रकाश उर्फ प्रेमकुमार पांडेय और चचेरे भाई अतुल दुबे को पकड़ लिया और कुछ दूर एक बगीचे में ले जाकर दोनों को गोली मार दी। हालांकि पुलिस ने आधिकारिक तौर पर कहा है कि विकास के दोनों रिश्तेदार मुठभेड़ में शामिल थे और पुलिस की जवाबी कार्रवाई में मारे गए। पुलिस ने दोनों के शवों का पोस्टमार्टम कराया और परिजनों को सूचना दी, लेकिन शव लेने के लिए कोई भी नहीं आया। इसके चलते पुलिसकर्मियों ने ही भैरोघाट स्थित विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार करा दिया।

हर विभाग विकास दुबे के आदमी

कानपुर में एक स्थानीय पत्रकार सुरक्षा कारणों से नाम न छापने की शर्त पर कह, “विकास दुबे के पास बहुत अधिक मुखबिर थे। ये लोग इतनी बड़ी संख्या में थे कि उससे जुड़ी कोई भी सूचना उस तक पहुंचने से कोई रोक नहीं सकता। पुलिस, प्रशासन, पीडब्ल्यूडी, नगर निगम हो या अन्य कोई भी सरकारी विभाग, हर जगह उसके आदमी बैठे थे। दूसरी ओर राज्य पुलिस सर्विलांस और आधुनिक संसाधनों पर निर्भर था। पुलिस का मुखबिर तंत्र ख़त्म हो चुका। विकास ने प्रशासन और पुलिस में सबका कमीशन फ़िक्स कर रखा था। अपराध की दुनिया का नेटवर्क उसने अलग से तैयार किया था। उसके लोग उसे शहर से लेकर गांव देहात तक की जानकारियां देते थे।

Father कहानी विकास दुबे की - जैसी करनी वैसी भरनी Mother कहानी विकास दुबे की - जैसी करनी वैसी भरनी

माता-पिता ने पूछा, हमें बेघर क्यों कर दिया?

इस घटना के बाद पुलिस ने विकास दुबे और उसके मामा का घर ज़मीदोज़ कर दिया। विकास के बारे में जब उसकी मां सरला देवी से पूछा गया तो उन्‍होंने माना कि उसने ग़लत किया जिसकी सज़ा उसे मिलनी चाहिए। मां सरला ने कहा, “मेरे बेटे को नेता-नगरी ने अपराधी बना दिया। हरिकिशन जो कहते रहे, उसने वही किया। अब यही नेता उसकी जान लेने पर तुली है। पर, सरकार को सोचना चाहिए कि गलती विकास ने की है तो उसे सज़ा दे। हमारा घर क्यों तोड़ डाला? अब हम बुजुर्ग कहां रहेंगे?” स्थानीय लोगों ने बताया कि विकास के पिता एक किसान हैं। विकास तीन भाइयों में सबसे बड़ा है। एक भाई की मृत्यु हो चुकी है। विकास के दो बेटे हैं जिनमें से बड़ा इंग्लैंड में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा है तो दूसरा कानपुर में ही रहकर ग्रेजुएशन कर रहा है।

अब नहीं खुलेगा पनाहगारों का राज़

विकास दुबे के मारे जाने के बाद वे राजनेता, पुलिस अफसर और दूसरे लोग निश्चित रूप में प्रसन्न हो रहे होंगे, क्योंकि पुलिस ने विकास को मार कर उन्हें बचा लिया। विकास दुबे के खात्मे के साथ वह राज़ भी दफ़न हो गया कि विकास को किस नेता और किस पुलिस अधिकारी का संरक्षण मिला। अब कोई राज़ नहीं खुलेगा। कहने का मतलब राजनीति की दुकान वैसे ही चलती रहेगी, जैसा अब तक चलता रहा है। हां, विकास की जगह कोई और अपराधी ले लेगा। कुछ दिन वह भी नेताओं, पुलिस और कारोबारियों की मदद करता रहेगा फिर दुर्दांत होने पर उसे भी एनकाउंटर में मार दिया जाएगा।

इसे भी पढ़ें – कहानी – एक बिगड़ी हुई लड़की

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

कि घूंघरू टूट गए…

1

मोहे आई न जग से लाज, मैं इतना ज़ोर से नाची आज, कि घुंघरू टूट गए… लीजेंड्री कोरियोग्राफर सरोज खान (Saroj Khan) ने इन पंक्तियों पर भले किसी अभिनेत्री या मॉडल को भले न थिरकाया हो, परंतु ये पंक्तियां उस बेनजीर कलाकार के लिए एक तरह से सच ही साबित हुई हैं। बॉलीवुड को एक से बढ़ कर एक बेमिसाल झूमने वाले गानों का नजराना देने वाली उस बेमिसाल नृत्य की मास्टरजी के घुंघरू अचानक बीती रात (2-3 जुलाई 2020) हमेशा के लिए थम गए।

इसे भी पढ़ें – क्या पुरुषों का वर्चस्व ख़त्म कर देगा कोरोना?

बचपन में भजिया और पाव खाकर पलने वाली, रूपहले परदे पर लोगों को दीवाना करने वाली वैजंतीमाला, साधना, कुमकम, हेलन, शर्मिला माला सिन्हा, वहीदा रहमान, परवीन बॉबी, जीनत अमान, रेखा, श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित, ऐशवर्या राय, ग्रेसी सिंह और आलिया भट्ट जैसी अभिनेत्रियों और आमिर खान, सलमान खान, शाहरुख खान और संजय दत्त को पांव थिरकाने और अपने ताल पर नचाने और उन्हें बेहतरीन डांसर बनाने वाली लीजेंड्री कोरियोग्राफर सरोज खान को भारत का इज़ाडोरा डंकन कहें तो तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं होगा।

इसे भी पढ़ें – सिर काटने वाली पशु-प्रवृत्ति के चलते वाकई संकट में है इस्लाम

अपने डांस और कोरियोग्राफी से सबके दिलों में जगह बनाने वाली सरोज खान पिछले क़रीब सात दशक से फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय रही। कई सुपरहिट गीतों समेत करीब 2000 गाने को कोरियोग्राफ कर चुकी सरोज खान ने अपने करियर की शुरुआत साल 1974 में आई फिल्म ‘गीता मेरा नाम’ से की थी। 22 नवंबर, 1948 को हिंदू परिवार में निर्मला नागपाल के रूप में जन्मी सरोज खान के माता पिता का नाम किशनचंद संधु सिंह और नोनी सिंह था। मां-बाप की कुल पांच संतानों में वह सबसे बड़ी थीं। तीन बहने और एक बाई उनसे छोटे थे।

Saroj-Khan-2-300x225 कि घूंघरू टूट गए...

बॉलीवुड में जब कोई एक्टर या एक्ट्रेस बहुत अच्छा डांस करते हैं तो हर कोई उनके जैसे ही थिरकना चाहता है, परंतु कोई भी यह नहीं जानता कि उन्हें इस तरह से नचाने वाले कोरियोग्राफर की जिंदगी में भी दर्द और तकलीफें होती हैं। कुछ ऐसा ही हुआ था मास्टर सरोज खान के साथ भी। उनकी जिंदगी बहुत अधिक उतार-चढ़ाव भरी रही। अपने ऊपर बनी एक डॉक्यूमेटरी में सरोज खान ने ख़ुद अपने जीवन के उन पहलुओं को भी उकेरा है, जिसे आम तौर पर लोग नहीं जानते थे।

इसे भी पढ़ें – तो क्या बच जाएंगे लड़कियों से हॉट मसाज कराने वाले चिन्मयानंद?

“मेरे डैड कराची के बड़े रईस थे, देश के लेकिन विभाजन ने उन्हें कंगाल बना दिया था। बंटवारे के बाद पाकिस्तान और हिंदुस्तान से उन्हें एक चटाई के सिवा कुछ भी नहीं दिया। मेरे डैड पाकिस्तान से एक चटाई लेकर भारत में मुंबई के माहिम में आए। मेरा जन्म आज़ादी के बाद हुआ। माहिम पुलिस स्टेशन के पास पीडब्ल्यूडी चाल में वन रूम किचन के घर में हमारे परिवार के सात लोग रहते थे। जब मैं ढाई साल की थी, तो घर में अपनी परछाई देखकर हाथ हिलाती थी, मेरी मम्मी को लगा कि मैं पागल ही हूं। वह मुझे डॉक्टर के पास ले गई, उससे बताया कि मेरी बेटी परछाई को देखकर हाथ हिलाती है। डॉक्टर ने कहा कि इसके हावभाव से लग रहा है, यह फिल्मों में जाएगी।”

इसे भी पढ़ें – महात्मा गांधी की हत्या न हुई होती तो उन्हें ही मिलता शांति नोबेल सम्मान

पैसों की बहुत अधिक तंगी के चलते सिर्फ 3 साल की उम्र में सरोज खान ने काम करना शुरू कर दिया था। बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट अपने करियर की शुरुआत उन्होंने फिल्म ‘नजराना’ से की थी। 50 के दशक में उन्होंने कई फिल्मों में बतौर बैकग्राउंड डांसर भी काम किया था। इसके बाद उन्होंने फिल्म कोरियोग्राफर बी सोहनलाल से डांस की विधिवत ट्रेनिंग ली थी और आधुनिक नृत्य की जननी कही जाने वाली इज़ाडोरा डंकन की तरह नृत्य की हर विधा में महारत हासिल की।

Saroj-Khan-2-300x164 कि घूंघरू टूट गए...

 

“तीन साल की उम्र में मुझे फिल्म ‘नजराना’ बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट अपने करियर की शुरुआत करने का मौका मिला। इसके बाद में घर में ही नृत्य सीखने लगी और नाचने में पारंगत हो गई। इसके बाद जब में कोई चार या पांच साल की थी तो मेरा नृत्य देखकर बेवी नाज के साथ काम राधा के रुप में नृत्य करने का मौका मिला। मुझे श्यामा का बचपन का रोल करना था। वह सपने में चांद पर बैठ कर गाना गा रही है। इसके लिए पहले बेबी नाज को चुना गया पर वह नृत्य नहीं जानती थी, जबकि मैं एक्पर्ट डांसर बन चुकी थी। मुझे और बेबी को ‘आगोश’ (1953) में बुलाया गया। वह कृष्णा बनी और मैं राधा बनी। हम मेकअप किए हुए थे उसी समय एक वृद्ध आया और हमारे पांव स्पर्श कर लिया। उसे लगा हम वास्तविक राधा-कृष्ण हैं।”

इसे भी पढ़ें – खेती को आत्मनिर्भरता लौटाने की दरकार

“घर में मां के बाद मैं सबसे बड़ी थी और मेरा भाई सबसे छोटा था। भाई के साल भर का होने से पहले ही हमारे सिर से पिता का साय उठ गया। मां के सामने गंभीर संकट था, बच्चों का पेट पालने का। उस समय फिल्म दुनिया में नियमित काम नहीं मिलता था। लिहाज़ा घर में तंगी रहती थी। हम इतने ग़रीब थे कि घर में खाने को कुछ नहीं होता था। मैं झूठमूठ का खाने बनाने का बहाना करती थी। हमारी मदद उस समय मेरे पड़ोसी ने की जो भजिया का ठेला लगाता था। शाम को जो भी भजिया बच जाती थी उसमें पांव डालकर वह मेरे घर दे जाता था। पहली बार तो मां ने लेने से इनकार कर दिया। लेकिन उसने कहा कि तुम भले मत खाओं पर बच्चों को तो पेट भरने दो। इसके बाद वह मेरे पांव डालकर घर दे देता था। इस तरह हम पांच भाई बहनों का बचपन प्याज की भजिय़ा और पांव खाते हुए बीता।”

इसे भी पढ़ें – कोई महिला कम से कम रेप का झूठा आरोप नहीं लगा सकती, 1983 में ही कह चुका है सुप्रीम कोर्ट

“उसी दौरान मुझे पहले ग्रुप डांस के रूप में मधुबाला के साथ नृत्य करने का मौका मिला। एक बार में शशिकपूर से मिली और उनसे कहा मुझे ग्रुप डांस करने का मौका दीजिए, इससे मेरा घर चल जाएगा। उस समय ग्रप डांस में शामिल लोगों को हफ्ते भर बाद पेमेंट मिलता था। दिवाली का समय था और घर में कुछ भी नहीं था। तब मैं साहस जुटाकर शशि कपूर के पास गई और बोली – मेरे घर में कुछ नहीं है, घर में खाने का कोई सामान नहीं है और कल दिवाली है। पेमेंट मिलेगी सात दिन बाद। मेरे पास पैसे नहीं है, तब शशि कपूर ने उस समय 200 रुपए देते हुए बोले फिलहाल तो मेरे पास यही दो सौ हैं। मैंने उनके पैसे कभी वापस नहीं किए।”

Saroj-Khan-BW कि घूंघरू टूट गए...

“फिल्म दुनिया बड़े लोगों के लिए थी, मेरे जैसे आंर्थिक रूप से कमज़ोर लड़की के लिए केवल फिल्मों में नृत्य करे गुजारा करना मुमकिन नहीं था। इसलिए मैंने छह महीने का नर्सिंग का कोर्स किया और केईएम अस्पताल में नौकरी करने लगी। उसी दौरान नृत्य का मौका मिला तो मैंने नौकरी छोड़ दी। उसके बाद मैंने टाइपराइटिंग और शार्टहैंड का कोर्स किया। ग्लैक्सो कंपनी में टेलिफोन रेसेप्सनिस्ट की नौकरी करने के लिए उसके वरली ऑफिस गई। बाद में मैं कलाकारों का मेकअप करने लगी।”

इसे भी पढ़ें – कहानी – एक बिगड़ी हुई लड़की

सरोज खान की शादी को लेकर कहा जाता है कि शादी के दौरान वह स्कूल में पढ़ती थीं और सोहनलाल उनके डांस मास्टर थे। उन्होंने सरोज के गले में एक काला धागा बांध दिया। उनके घरवालों ने कहा कि अब तुम्हारी शादी हो गई और अब तुम्हें सोहनलाल के साथ ही रहना होगा। लिहाज़ा, उस धागे को शादी का धागा मान लिया गया। सोहनलाल पहले से ही शादीशुदा थे और उनके चार बच्चे भी थे। बहरहाल, 1961 में सरोज उनकी दूसरी पत्नी बन गई। मजेदार बात यह है कि कहा जाता है कि सरोज को पति के पहले से शादीशुदा होने की जानकारी पहला बच्चा राजू के पैदा होने के बाद तब लगी, जब सोहनलाल ने उनके बच्चे को अपना नाम देने से मना कर दिया।

इसे भी पढ़ें – कहानी – डू यू लव मी?

इसके बाद दोनों के बीच विवाद चलता रहा। इस दौरान सरोज ने 1965 में दूसरे बच्चे को जन्म दिया जो आठ महीने बाद चल बसा। बाद में एक और बेटी सुकन्या पैदा हुई। बहरहाल, इसके बाद चार साल के संक्षिप्त वैवाहिक जीवन जीने के बाद वह सोहनलाल से अलग हो गईं। दोनों बच्चों की परवरिश खुद किया। सोहनलाल से अलग होने के बाद सरदार रोशन खान से निकाह कर लिया और अपने नाम के आगे खान लगा लिया। दोनों की एक बेटी पैदा हुई, जिसका नाम हिना खान है।

Saroj-Khan-6 कि घूंघरू टूट गए...

“मैं बहुत छोटी उम्र में कालजयी नृत्य मास्टर कथक नृत्य सम्राट बी सोहनलाल के सानिध्य में आई। साधना और वैजंती माला को पैर थिरकाना सिखाने वाले सोहनलाल ने पहले ज़्यादा तवज्जो नहीं दी, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने मेरी नृत्य शैली को नोटिस किया। उन्होंने पाया कि मैं नृत्य में पूरी तरह डूबी हुई हूं। बस उन्होंने मुझे अपना शागिर्द बना लिया। उन्होंने मुझे नृत्य की हर विधा में बेहद कठोर बनाया। उन्होंने मुझे आंख मटकाना सिखाया, भौहों का मूवमेंट सिखाया। उनके सानिध्य में मैं एक मुकम्मिल डांसर बन गई। स्टूडियो मेरे लिए मंदिर और सोहनलाल भगवान बन गए।”

इसे भी पढ़ें – कहानी – अनकहा

“दरअसल, सोहनलाल लीजेंडरी डांस मास्टर थे। उन्होंने 4 साल की उम्र से ही कथक नृत्यशैली सीखना शुरू किया था। वह कथक के महान नर्तक थे। 11 साल की उम्र से मैं भी उनसे डांस सीखने लगी। सोहनलाल ने मुझे कथक, मणिपुरी, कथकली, भरटनाट्यम आदि नृत्याशैली का प्रशिक्षण दिया। धीरे-धीरे मैं अपने अंदर उन्हें ही देखने लगी। मुझे लगने लगा कि वह मेरे अंदर रच बस गए हैं। इसीलिए जब मैं मास्टर को दूसरी कलाकारों के साथ कंपोज करते देखती थी तो मेरी जान ही जल जाती थी। मैं उन पर अपना ही अधिकार समझती थी। दरअसल, आध्यात्मिक रूप से वह मेरे दिलो-दिमाग़ पर छाए हुए थे। उनसे डांस सीखते-सीखते कब उनसे प्यार करने लगी, मुझे ही पता नहीं चला। मुझे लगने लगा कि मेरे और मेरे नृत्य के लिए वह ऑक्सीजन की तरह है। खुद सोहनलाल भी मेरे डांस पर फिदा थे। लिहाज़ा मैंने महज 13 साल की उम्र में 43 वर्षीय सोहनलाल के साथ सात फेरे ले लिया। मैं मारवाड़ी शैली में 24-24 चूड़ियां पहनती थी।”

इसे भी पढ़ें – कहानी – बेवफ़ा

गीता मेरा नाम के बाद कुछ और फिल्में करने के बाद सरोज को चर्चा मिली गुलज़ार की खूबसूरत फ़िल्म मौसम (1975) और सुभाष घई निर्देशित सफल फिल्म हीरो से, जो 1983 में आयी थी। उसके बाद मिस्टर इंडिया ने तो उन्हें स्थापित कर दिया। 1989 में फिल्म ‘तेजाब’ के सुपरहिट डांस नंबर ‘एक दो तीन…’ को कोरियोग्राफ करने के बाद फिल्म फेयर अवार्ड में बेस्ट कोरियोग्राफर की एक अलग कैटेगरी बनाई गई और उऩ्हें सबसे पहला अवॉर्ड दिया गया था। सरोज को बेहतरीन कोरियोग्राफी के लिए आठ बार फ़िल्म फ़ेयर सर्वश्रेष्ठ कोरियोग्राफी पुरस्कार मिला। तेजाब के अलावा पुरस्कृत फिल्में थीं चालबाज़ (1990), सैलाब (1991), बेटा (1993), खलनायक (1994), हम दिल दे चुके सनम (2000), देवदास (2003) और गुरु (2008)। ‘देवदास’ के ‘डोला रे डोला’, फ़िल्म ‘जब वी मेट’ के ‘ये इश्क हाय’ और फ़िल्म ‘श्रृंगारम’ के सभी गानों के लिए तो उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 2002 में लगान के लिए उन्हें अमेरिकी कोरियोग्राफी अवार्ड दिया गया।

इसे भी पढ़ें – कहानी – हां वेरा तुम!

सरोज खान बॉलीवुड की सबसे पॉपुलर डांसर डाइरेक्टर थीं। उनकी एक डांस अकादमी भी है। राउडी राठौर, एजेंट विनोद, खट्टा मीठा, दिल्ली-6, नमस्ते लंदन, धन धना धन गोल, सांवरिया, डॉन – द चेस बिगिन्स अगेन, फना, वीर-जारा, स्वदेश, कुछ ना कहो, साथिया, फिज़ा, ताल, मैं और प्यार हो गया, परदेस, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, याराना, मोहरा, अंजाम, बाज़ीगर, आईना, डर, आवारगी, चांदनी, नगीना और हीरो समेत अनगिनत फिल्मों में कोरियाग्राफी की। वह लंबे समय से अपने काम से ब्रेक पर थीं लेकिन बीते साल (2019) उन्होंने वापसी की और मल्टीस्टारर फिल्म ‘कलंक’ और कंगना राणवत की फिल्म ‘मणिकर्णिकाः द क्वीन ऑफ झांसी’ में एक-एक गाने को कोरियॉग्राफ किया था। सरोज खान बहुमुखी प्रतिभा की धनी थीं। उन्होंने 12 फिल्मों में बतौर राइटर भी काम किया।

Saroj-Khan-5-300x225 कि घूंघरू टूट गए...

सरोज खान को बिल्कुल पसंद नहीं थी कि कोई उनकी मिमिक्री भी करे या उन्हें मजाक के पात्र बनाए। पिछले कुछ समय से उन्होंने डांस सिखाना छोड़ दिया था, मगर कभी-कभार किसी रिएलिटी शो में बहुत रिक्वेस्ट पर मेहमान बनकर आ जाती थीं। सरोज अपनी बेबाकी के लिए भी जानी जाती थीं। कुछ समय पहले ही उन्होंने कास्टिंग काउच पर विवादास्पद बयान देकर खुद को फंसा दिया था। उन्होंने कहा था कि कास्टिंग काउच इंडस्ट्री में कोई नई बात नहीं है, ये सब बाबा आदम के जमाने से होता आया है। मगर यहां पर किसी के साथ गलत करने पर उसे यूं ही छोड़ा नहीं जाता, बल्कि उसे रोटी, कपड़ा और मकान की सुविधा जरूर दी जाती है। इस मामले में बॉलीवुड में इंसानियत है। 2012 में निधि तुली के निर्देशन में -द सरोज खा स्टोरी नाम से पीएसबीटी और भारतीय फिल्म डिविजन की ओर से उनके जीवन पर एक डॉक्यूमेंटरी बनाई गई। बहरहाल वे दुनिया को अपने ठुमके से जीत कर चली गईं क्षतिज के उस पार। जहां से कोई कभी वापस नहीं आता है।

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

इसे भी पढ़ें – कहानी – बदचलन

 

कहानी – अनकहा

2

हरिगोविंद विश्वकर्मा

अचानक नींद टूटे गई। कोई आधा घंटा पहले। कोई सपना देख रही थी मैं। बालकनी में कौवे ने आकर कांव-कांव शुरू कर दिया। उसकी कांव-कांव सुनकर अचानक नींद खुल गई। कौन-सा सपना था…? क्या देख रही थी मैं सपने में…? मैंने याद करने की बहुत कोशिश की, लेकिन कुछ याद ही नहीं आया।

साल भर से ऐसा हो रहा है। ख़ासकर, जब से रोहित के दूसरी शादी करने की ख़बर सुनी हूं। हालांकि, मैंने स्वेच्छा से उसका घर छोड़ा था। मैं मिस भी नहीं करती। इसके बावजूद मेरे जीवन में एक खालीपन सा भर गया है। पता नहीं क्यों मैं ख़ुश नहीं रहती।

दरअसल, रोहित मुझसे ही नहीं, बल्कि मम्मी-पापा से भी बहुत बदतमीज़ी से पेश आने लगा था। वह आला दर्जे का घटिया इंसान था। उसके साथ पल भर भी रहना मुमकिन नहीं था, पूरी ज़िदगी की तो बात ही छोड़िए। मेरा दम घुटता था उसके साथ। लिहाज़ा, मैंने ही उससे रिश्ता ही तोड़ लेना बेहतर समझा…

लेकिन अब… अब तो लगता है, उस रिश्ते के साथ-साथ मैंने अपना चैन और सुकून भी गंवा दिया। आने को तो मैं मम्मी-पापा के घर आ गई उस समय। लेकिन मुझे अकेला देखकर दोनों हर वक़्त बिना वजह दुखी रहते हैं। मेरी बेचैनी की यही सबसे बड़ी वजह है। मैं ममा-डैड को दुखी बिल्कुल नहीं देख सकती। एक अपराधबोध सा होता है कि उनके दुख का कारण मैं हूं।

इसे भी पढ़ें – कहानी – बदचलन

हालांकि, ममा से मैं साफ़-साफ़ कह चुकी हूं कि मैं अकेले ही ज़िंदगी जी लूंगी। परंतु इन दिनों एक असुरक्षा की भावना से हरदम दबी-सी रहती हूं। शायद इसी कारण नींद लगते ही न जाने कैसे-कैसे सपने देखने लगती हूं। पता नहीं क्या-क्या देखने लगती हूं सपने में। नींद भी बिस्तर पर पड़ते ही दबोच लेती है। मगर, जल्द ही सपनों का सिलसिला शुरू हो जाता है, लेकिन पूरा सपना कभी नहीं देख सकी। बीच में किसी न किसी कारण से जाग जाती हूं या फिर जगा दी जाती हूं। उसके बाद बहुत कोशिश के बावजूद याद नहीं आता कि सपने में कौन था, या फिर किसका सपना था। हां, एक अवसाद से ज़रूर भर जाती हूं अंदर तक।

साल भर से ऐसे ही चल रही है ज़िंदगी। अब तो आदत-सी बनती जा रही है। सुबह-सुबह उठना, स्कूल जाना, वहां बच्चों का क्लासेस अटेंड करना, दोपहर बाद छुट्टी, अंत में घर वापस आ जाना और खा-पीकर बिस्तर पर पड़ जाना। हां, हफ़्ते में एक या दो बार एफ़एम रेडियो की ड्यूटी। बस यही है मेरी दिनचर्या।

Ankaha6-300x300 कहानी - अनकहा

अचानक से कॉलबेल बजी।

ममा को पता है, मैं उठने वाली नहीं। सो, दरवाज़ा उन्होंने ही खोला।

-कौन है ममा?

-अनुज हैं। ममा ने आकर बताया।

जीज्जू नाम सुनते ही मैं बिस्तर से उठ गई। बालों को हाथों से ही लपेटती हुई मैं हॉल में पहुंच गई।

-हाइ जीज्जू!? कहने को तो मैं कह गई, लेकिन उनका हुलिया देखकर मेरे होश उड़ गए। इतना दुर्बल और इतना कमज़ोर मैंने उन्हें शायद कभी नहीं देखा था। शेव बनाने के बावजूद मलीन, पीला और कांतिहीन चेहरा। एकदम बेरौनक-सा। धंसी हुई आंखें और उनमें गहरी निराशा के भाव। आंखों के नीचे का हिस्सा स्याह। ऐसा लग रहा था, किसी सोच में बहुत गहरे डूबे हुए हैं जीज्जू।

-कैसी हो? वहीं चिरपरिचित शैली। औपचारिक अभिवादन। दम तोड़ती सी आवाज़।

-मैं तो ठीक हूं…! लेकिन जीज्जू तुम… शब्दों ने धोखा दे दिया। छल किया मुझसे। लिहाज़ा, मैं पूरा वाक्य बोल नहीं पाई। कहना चाहती थी, जीज्जू खाना नहीं मिलता क्या? ये कैसी हालत बना रखी है तुमने अपनी?

मैं हतप्रद, सामने सोफ़े पर बैठ गई। उन्हें निहार रही थी। जबकि उनकी नज़र बाहर की तरफ़ थी। खिड़की के बाहर। दूर आकाश की ओर, जाने क्या तलाश रही थीं उनकी आंखें। और, अंगूठा फ़र्श से जूझ रहा था।

इसे भी पढ़ें – कहानी – हां वेरा तुम!

पूरे डेढ़ साल बाद मैं देख रही थी उन्हें। हालांकि रहते थे, इसी शहर में और ममा-पापा से मिलने अमूमन हर महीने आते भी थे। लेकिन उनका आगमन ही ऐसे समय होता था, जब मैं स्कूल में होती थी। शायद वह जानबूझ कर ऐसे समय आते हैं, ताकि मुझसे मुलाक़ात न हो सके। वह हमेशा मुझसे कतराते रहते हैं।

-तबीयत तो ठीक है न बेटा? ममा ने पूछा। वह पानी लेकर आई थीं।

-जीज्जू ने डबडबाई आंखों से ममा को देखा… बड़ी देर बाद बोले… ठीक हूं…!

-चाय बनाऊं? अचानक मेरे मुंह से निकला। जीज्जू मुझे देखने लगे। ममा भी घूरने लगीं।

मुझे तुरंत अपनी ग़लती का एहसास हुआ। दरअसल, जीज्जू को बहुत कॉफ़ी पसंद है, यह बात घर में हर कोई जानता था। मैं भी।

मैं चुपचाप किचन में आ गई। पछता रही थी, अपनी ग़लती पर। चूल्हे पर दूध रख दिया और चीनी और कॉफ़ी के डिब्बे निकालने लगी।

Ankaha4-200x300 कहानी - अनकहा

मुझे याद आया पिछले साल दो अक्टूबर को आख़िरी बार मेरी जीज्जू से मुलाक़ात हुई थी। तब तक मेरा रोहित से तलाक़ नहीं हुआ था। हमारा मामला कोर्ट में चल ही रहा था। मेरे लिए अनिर्णय और तनाव भरा दौर था वह। मैंने जीज्जू से ठीक से बात नहीं की थी उस बार। मैंने उनके पास ही नहीं गई। वे ही मेरे पास आए तो मैंने बेरुखी से जवाब दिया था। शायद उसी से वह बुरी तरह हर्ट हो गए थे। हालांकि कुछ बोले नहीं थे। वैसे भी जीज्जू आमतौर पर कम ही बोलते हैं।

इसे भी पढ़ें – कहानी – एक बिगड़ी हुई लड़की

उस दिन वह रात में ही चले गए तो ममा मुझे डांटने लगीं।

-तुम सामान्य शिष्टाचार भी भूलती जा रही हो। अनुज से ठीक से बात क्यों नहीं की। मत भूलो कि अब भी वह इस घर के बड़े दामाद हैं। आने पर तुम्हें उनके पास बैठना चाहिए। पहले तो हरदम चिपकी रहती थी। अब क्या हो गया तुम्हें?

दूध खौलने लगा था। मैंने उसमें चीनी डाल दी।

मुझे याद है… मेरी शादी से पहले एक बार जीज्जू घर आए। वह मुझसे बहुत खुल गए थे। मैं भी उनको कभी आप तो कभी तुम कहने लगती थी। हम लोग ख़ूब धमाचौकड़ी करने लगे थे। उस दिन उनके हाथ में एक अख़बार था। पहले पन्ने पर बॉक्स एक खबर छपी थी, इमरान ने जेमिमा गोल्डस्मिथ से शादी रचाई। उस समय तक हम सब से मिलने के लिए जीज्जू हफ़्ते-पखवारे में ज़रूर आ जाते थे। उस दिन ममा की किसी बात पर मेरा उनसे झगड़ा हो गया था। उसी के चलते मैं बहुत अपसेट थी। घर में प्रवेश करते ही जीज्जू ने वह ख़बर मुझे दिखाई।

-देखा तुमने, इमरान ने जेमिमा से निकाह कर लिया। उन्होंने कहा था।

-ये ख़बर तो मैंने कल ही टीवी पर देख लिया था। मैंने लापरवाही भरे अंदाज़ से कहा।

-तुम्हें पता है दोनों की उम्र में 21 साल का फ़ासला है।

-तो क्या हुआ। मेरा स्वर तेज़ हो गया था।

-पागल हो तुम। इमरान खान 42 साल का है और जेमिमा गोल्डस्मिथ महज 21 की। जीज्जू उसी धुन में बोलते गए।

-लेकिन यह सब तुम मुझे क्यों बता रहे हो जीज्जू। मैं झल्ला बड़ी, आप भी न… जीज्जू… मैं एकदम से चिढ़ गई थी। मेरी आवाज़ का लेवल बहुत तेज़ हो गया था।

जीज्जू इस तरह के जवाब के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे शायद। इसलिए अचानक उनका चेहरा पीला पड़ गया।

-अरे… क्या हुआ तुमको। बुरा मान गई, ओह, सॉरी… सॉरी रागिनी। एक्सट्रिमली सॉरी… ग़लती हो गई।

-इट्स ओके जीज्जू…

मैं थोड़ी कूल हुई, लेकिन अपसेट तब भी थी।

-पता नहीं मुझे क्या हो गया था। सॉरी यार… अब… आइंदा ऐसी ग़ुस्ताखी नहीं होगी। सचमुच उनका स्वर भीगा सा लग रहा था। उनकी आंखों में डर था… पछतावा था… अपराधबोध था… वह एकदम से चुप हो गए थे।

हमारे बीच बहुत देर तक सन्नाटा पसरा रहा। कुछ देर बाद मुझे लगा कि मैंने कुछ ज़्यादा रिएक्ट कर दिया।

-नहीं जीज्जू, मैंने उनसे कहा, -आप सॉरी मत बोलिए। ग़लती मेरी है। आप तो बस ख़बर बता रहे थे।

मैंने सफ़ाई पेश करने की कोशिश तो की, मगर तब तक डैमेज हो चुका था। लाइफ़टाइम डैमेज…

उनके चेहरे पर अजीब तरह के भाव देखे थे, उस दिन मैंने। उनका एकदम से रंग ही उड़ गया था। जैसे उनसे कोई बहुत बड़ा अपराध हो गया हो और पछता रहे हों। बड़े निरीह प्राणी लग रहे थे, किसी मासूम बच्चे की तरह।

पहली बार वह रात में ही चले गए। मेरे बेरुखे व्यवहार से एकदम अपसेट हो गए थे। सो, रोकने से भी रुकने वाले नहीं थे। उनके जाने के बाद घर में अजीब सा खालीपन भर गया था।

मुझे तो नींद ही नहीं आई। देर रात तक मैं यही सोचती रही कि जीज्जू इमरान-जेमिमा की शादी की ख़बर इतने गर्मजोशी के साथ मुझे क्यों बता रहे थे? आख़िर यह प्रसंग उन्होंने मुझसे ही क्यों छेड़ा? वह क्या कहना चाहते थे इमरान-जेमिमा के बहाने? कहीं उनका मतलब कुछ और तो नहीं था? कोई बात तो छिपी नहीं थी उनकी ख़बर में? वह कोई संदेश तो नहीं देना चाहते थे? कहीं मुझसे यह तो नहीं कहना चाहते थे कि जब पति-पत्नी की उम्र के बीच 21 साल का फासला हो सकता है तो… उनकी ख़ामोशी और निग़ाह में कुछ न कुछ तो ज़रूर था। वह उस बहाने मुझसे कुछ तो कहना चाहते थे। लेकिन मेरे सहसा उखड़ जाने से शायद डर गए थे। अपनी भावनाओं को शब्दों में नहीं पिरो पाए… वैसे भी वह बहुत कम बोलते थे। ज़बान पर ताला लगाए रहते थे। हर वक़्त एक झिझक पसरी रही थी उनके व्यक्तित्व पर।

इसे भी पढ़ें – कहानी – बेवफ़ा

जीज्जू की मैरीड लाइफ़ बहुत संक्षिप्त रही। दो साल से भी कम। दीदी के स्वभाव से मैं भली-बांति परिचित थी। वह बचपन से ही ग़ुस्सैल स्वभाव की थीं। वह जीज्जू से अच्छा व्यवहार नहीं करती थीं। मुझे ही नहीं ममा और डैड को भी पता था कि बिना बात के, बिना वजह वह जीज्जू से लड़ती रहती हैं। हरदम चुभने वाली बात बोल देती हैं। कोसती रहती हैं। दोनों के बीच कोई समस्या ही नहीं थी। इसके बावजूद उनकी लाइफ़ कुत्ते-बिल्ली जैसी थी। जीज्जू ने तो कभी कोई गिला-शिकवा ही नहीं किया। एक लब्ज़ तक नहीं बोला। उनको दीदी से कोई परेशानी थी ही नहीं। जबकि दीदी के पास शिकायत ही शिकायत रहती थी। ऐसा लगता था, वह दुनिया की सबसे दुखी औरत हैं। इसके बावजूद डिलीवरी के समय जब दीदी की अस्पताल में अचानक मौत हुई तो हम सबने जीज्जू को फूट-फूटकर रोते हुए देखा था। सच में रूखे व्यवहार के बावजूद जीज्जू के दिल में दीदी के लिए बहुत प्यार था। मैटेरियलिस्टिक सोच वाली मेरी दीदी ही कभी अपने पति के प्यार को समझ नहीं पाईं।

दीदी की असामयिक मौत के बाद तो जीज्जू की दुनिया ही वीरान हो गई। उनके जीवन में एक गहरा खालीपन भर गया। उनका हमारे यहां आना अचानक से कम हो गया। चार महीने तक तो उन्होंने एक फोन भी नहीं किया। उनकी कमी मैं ही नहीं, ममा-डैड भी फील करने लगे थे। एक दिन रविवार के दिन ममा ने मुझे जीज्जू के घर भेजा। उनको लेकर आने के लिए।

मैं उनके घर पहुंची और कॉलबेल नहीं दबाई। दरवाज़ा हलक़े से पुश किया तो खुल गया। लैच अंदर से बंद ही नहीं था। उन्हें चौंकाने के लिए चुपचाप कमरे में घुसी। पर वह हॉल में ही थे। सोफे पर पैंट-टीशर्ट में सो गए थे। कमरे में हर जगह सामान बिखरे पड़े थे। एकदम बेतरतीब घर। बिना पत्नी या औरत के घर का हाल कैसा होता है, मुझे पता चल रहा था। मैं वहां दीदी के रहते भी कई बार आ चुकी थी। तब घर सलीके से सजा रहता था। दीदी में चाहे जितनी कमी रही हो, वह घर की सफाई पर ख़ास ध्यान देती थी। हर चीज़ अपनी जगह रखी मिलती थी। मैं जीज्जू के सामने खड़ी हो गई। वह गहरी निद्रा में सोए थे। उनका चहरा बच्चों की तरह निरीह लग रहा था। अचानक से उन पर मुझे प्यार आने लगा। पहली बार मेरा दिल बेक़ाबू हो रहा था। ऐसा मैंने महसूस किया। मन में आया, उनके माथे को चूम लूं। मेरे होंठ धीरे-धीरे उनकी ओर बढ़ने लगे। मैं उन्हें किस करने वाली ही थी कि अचानक किसी अदृश्य ताक़त ने मुझे रोक दिया।

-उफ्.. मैं ये क्या करने जा रही थी। मैं सोचने लगी, यह दुर्बलता कहां से आई मेरे अंदर। क्या मुझे भी प्यार की ज़रूरत है? किसी पुरुष के सानिध्य की दरकार है? मेरे अंदर सवालों का सैलाब आ गया। मैंने सिर झटका और उनसे परे हट गई।

थोड़ी देर में उनको जगाया तो वह हड़बड़ा कर उठ गए। मैंने उन्हें बताया कि ममा ने बुलाया है। तो उन्होंने इनकार नहीं किया। उनकी कार से ही उन्हें साथ लेकर घर आ गई। ममा बहुत ख़ुश हुईं और डैड भी। मैं तो पहले से ही ख़ुश थी।

उसके बाद जीज्जू फिर से घर आने लगे थे। अगर बिना मुलाक़ात के हफ़्ता-पखवारा गुज़रता तो मैं फ़ौरन शिकायत करने लगती थी। तो उसी दिन रात तक वह सामने होते ही थे, किसी आज्ञाकारी बालक की तरह।

दूध जल रहा है रागिनी। यह ममा का स्वर था।

सचमुच दूध उबलकर चूल्हे पर गिर रहा था। मैंने झटके से गैस बंद कर दिया। दूध को तीन कप में उड़ेला और कॉफी डाल कर हिलाया। फिर प्लेट में रख कर बाहर आ गई।

हाथ-मुह धो लो जीज्जू… प्लेट तिपाई पर रखते हुए मैंने कहा था।

जीज्जू बॉश बेसिन की ओर चले गए और मैं अतीत की जानिब।

Ankaha3-300x300 कहानी - अनकहा

उस दिन शाम को ही जीज्जू घर आए थे। जैसे ही उन्होंने घर में क़दम रखा, मैंने आइसक्रीम की फ़रमाइश कर दी।

ठीक है, अभी लेकर आया। जीज्जू वापस लौटने लगे।

रुको, मैं भी साथ चलूंगी। सहसा मैंने उनका हाथ पकड़ लिया।

जीज्जू को यक़ीन ही न हुआ, क्योंकि अब तक कभी मैं उनके साथ अकेले बाहर नहीं गई थी। जीज्जू की तो ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। मैंने इतना ख़ुश उन्हें कभी देखा ही नहीं था। इंसान इतना भी ख़ुश हो सकता है। उसकी आंखों में इतनी ख़ुशी तैर सकती है, मैंने पहली बार महसूस किया। मैंने ही नहीं, इस बात को ममा ने भी नोटिस किया।

जब हम बाहर निकले तो सात बज रहे थे। सूर्यास्त बस होने ही वाला था। मैं पीले रंग के पंजाबी सूट में थी और जीज्जू चेक शर्ट और जींस पहने हुए थे। हालांकि वह अपनी कार से आए थे, लेकिन आइसक्रीम की दुकान तक मैंने पैदल चलने का आग्रह किया। वह कभी मेरी बात को टालते नहीं थे। पैदल चलने के लिए भी मान गए। मैं उनके साथ थोड़ा चहलक़दमी करने के बहाने वक़्त बिताना चाहती थी।

कॉलोनी की दर्जन भर महिलाएं लॉन में बैठी गपशप कर रही थीं, उनमें अविनाश आंटी भी थी। सामना होते ही जीज्जू ने उनसे नमस्ते किया।

-अरे वाह, घूमने… बुरा मत मानना बेटा, तुम दोनों की जोड़ी ख़ूब फब रही है। अविनाश आंटी मुस्कुरा कर बोलीं। मैंने तिरछी नज़र से जीज्जू को देखा, सचमुच वह बड़े हैंडसम लग रहे थे। हालांकि अविनाश आंटी की बात सुनकर वह असहज से हो गए थे।

अविनाश आंटी जीज्जू से बात करने लगीं।

इसे भी पढ़ें – ठुमरी – तू आया नहीं चितचोर

वैसे, हम दोनों की जोड़ी का फबना कोई हैरान करने वाला नहीं था। जीज्जू मुझसे पांच-छह साल से ज़्यादा बड़े नहीं थे। मैं खुद दीदी से केवल तीन साल छोटी थी। दरअसल, पापा मेरी और दीदी की शादी एक ही साथ करना चाहते थे। मगर मेरा कहीं रिश्ता ही तय नहीं हो पा रहा था। लिहाज़ा, दीदी की शादी पहले कर दी गई और मेरे लिए योग्य वर की तलाश जारी रही। ममा बेटे की कमी शिद्दत से फील करती थीं, इसीलिए शादी के बाद जीज्जू को पुत्र की तरह मानने लगी थीं। जीज्जू में वह अपना बेटा देखती थीं, वैसे भी दामाद एक तरह से बेटा ही होता है।

इसलिए दीदी की असामयिक मौत के बाद भी ममा की इच्छा थी कि जीज्जू का इस घर से नाता पहले की तरह बना रहे। वह जीज्जू को उतनी ही शिद्दत से मानती थीं। उनके अंदर मैंने अपनी और जीज्जू की शादी कर देने की दबी इच्छा भी देखी थी। लेकिन उनकी कभी मुझसे इस बारे में बात करने की इच्छा नहीं हुई। लिहाजा, वह मेरे सामने जीज्जू की ख़ूब तारीफ़ करती थीं। दरअसल, ग़ुस्सा करने में मैं दीदी से कम नहीं थी, लेकिन घर में मैं अपनी बड़ी बहन के मुक़ाबले ज़्यादा समझदार मानी जाती थी। मैं अधिक ऐडजस्टेबल थी। वैसे मां ने यह जानने के बाद भी कि मेरी लाइफ़ में कोई बॉयफ्रेंड या क्लोज्ड फ्रेंड नहीं है, सीधे कभी कुछ नहीं कहा। इस मामले में वह मुझसे बहुत डरती थीं। मुझे भी डैड को परेशान देखकर लगता था कि मैं इस तरह की लड़की क्यों निकलीं, जिसकी शादी के लिए योग्य लड़का ही नहीं मिल रहा है। इतना अधिक पढ़ने की क्या ज़रूरत थी। वैसे, जीज्जू मुझे अच्छे लगते थे। सो दीदी की जगह लेने में मुझे कोई हर्ज नहीं था। फिर उनकी अच्छी सेलरी वाली सरकारी नौकरी हर सिंगल लड़की के लिए अट्रैक्शन थी। हालांकि इस मामले में सारा फैसला डैड को ही लेना था।

अविनाश आंटी की बात ही ख़त्म नहीं हो रही थी। औपचारिकता निभाने के लिए जीजू भी अपने काम के बारे में बताने लगे।

-मार्केट जा रहे हो?

-हां, इनकी जेब खाली कराने का इरादा है। मैंने जीज्जू की ओर देखते हुए कहा।

-जाओ-जाओ, जीजा की जेब पर साली का हक़ सर्वमान्य है। बिलकुल जेब खाली कराओ। जाओ… ऑल द बेस्ट…

हम आगे बढ़ गए…

-जीज्जू, क्या सोचने लगे… मैंने राह चलते पूछा।

-कुछ तो नहीं, जीज्जू अचानक चौंक पड़े जैसे मैने कोई अप्रत्याशित सवाल कर दिया हो।

मैं चुप हो गई। वह चलते रहे। एकदम ख़ामोश।

-अच्छा जीज्जू, हम साथ-साथ चलते क्या वास्तव में फब रहे हैं? मेरा मतलब हमारी जोड़ी… अविनाश आंटी ने जो…

-मुझे क्या पता… वह बार-बार मुझे निहार रहे थे।

-पर मुझे तो आप बहुत स्मार्ट और हैंडसम लग रहे हैं, खूब हैंडसम… एकदम झक्कास…

-तुम भी तो ख़ूबसूरत हो… कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं। ये सूट तो तुम्हारी ख़ूबसूरती में चार चांद लगा रहा है। किसी की… क्या मेरी ही नज़र न लग जाए कहीं… सच्ची रे…

-थैंक्स जीज्जू… मैंने कॉम्पलिमेंट स्वीकार कर लिया।

जीज्जू हाथ-मुंह धोकर वापस आकर सोफे पर बैठ गए। हम तीनों चुपचाप कॉफी पीते रहे। थोड़ी देर में ममा अंदर के कमरे में चली गईं। हम दोनों अकेले रह गए। आसपास बहुत देर तक नीरवता ही पसरी रही।

-क्या कर रही हो आजकल? मुझे लगा जीज्जू औपचारिकता पूरी कर रहे हैं।

-करूंगी क्या … पढ़ा रही हूं बच्चों को। फिर और करने के लिए है क्या… हफ़्ते में दो बार एफएम की ड्यूटी है। वैसे एक कॉलेज में लेक्चरर पोस्ट के लिए अप्लाई कर दिया है। मैंने बहुत धीरे से जवाब दिया।

-रोहित ने दूसरी शादी कर ली? जीज्जू फिर बोले, अभी ममा बता रही थीं मुझे।

-हां, मैं थोड़ी देर चुप रह कर बोली, -सच ख़बर है यह। वैसे ठीक ही किया उसने।

-तुमने रोका नहीं। जीज्जू मुझ पर नज़र गड़कर बोले।

-नहीं… मैं उसके साथ रह ही नहीं सकती थी… वैसे उसके बारे में आपकी आशंका सच निकली। वह बड़ा नीच और पतित है। ऐसे आदमी के साथ पल भर भी नहीं रहा जा सकता। मैं उसके साथ रहकर ज़िंदा ही नहीं रह पाती। मेरा दम घुटता था उसके साथ। मैंने अपने मन की भड़ास निकाल दी।

इसे भी पढ़ें – कब आओगे पापा?

दरअसल, डैड के ही एक दोस्त ने किसी दिन शराब के नशे में ऐसा व्यंग्य कर दिया कि वह सहन नहीं कर सके। उसने कहा कि पैसा बचाने के लिए वह अपनी छोटी लड़की की शादी अपने विधुर दामाद से करना चाह रहे हैं। यह बात डैड को अंदर तक चुभ गई। वह कई दिन टेंशन में रहे। वह सात-आठ साल से मेरे लिए लड़का खोज रहे थे, पर कायदे का लड़ा मिल ही नहीं रहा था। इस कारण से मुझे डैड से गहरी सहानुभूति हो गई थी। मैं उन्हें टेंशन में नहीं देखना चाहती थी। इत्तिफाक से उन्हीं दिनों एक करीबी रिश्तेदार ने रोहित का नाम सुझाया। वह एक निजी कंपनी में प्रोडक्शन इंजीनियर था। घर का दामाद होने के नाते उसे देखने के लिए डैड के साथ जीज्जू भी गए। बाद में मुझे देखने के लिए रोहित भी मेरे घर आया। पहली मुलाक़ात में वह मुझे बुरा नहीं लगा। उसकी उम्र थोड़ी ज्यादा लगी, मैं तीस की हो गई थी, वह पैंतालिस के आसपास था। वैसे यह अंतर उतना अधिक नहीं था कि रिश्ता ही ठुकरा दिया जाए। हां, उसकी सेलरी ज़रूर जीज्जू से ज़्यादा थी। मतलब, सेलरी उम्र में गैप की भरपाई कर रही थी। कुल मिला कर पिता की परेशानी को कम करने के लिए आतुर लड़की के लिए वह उचित जीवनसाथी जान पड़ा। यानी उत्तम वर। रोहित और उसके साथ आए लोग खाना खाने के बाद चले गए। जीज्जू बहुत दिन बाद उस दिन रात में रुक गए। उनके साथ मैं और ममा ड्राइंग हॉल में बैठे थे।

रोहित तुम्हें पसंद है न? अचानक जीज्जू ने सवाल किया। वह काफी सीरियस लग रहे थे।

हां… और आपको। सच-सच बताना जीज्जू। मेरी लाइफ़ का सवाल है। मेंने चुहल की।

वह मुझे देख रहे थे। देखे जा रहे थे। अपलक। मुझे लगा कि कुछ सोच रहे हैं। फिर लगा कि मुझे देख रहे हैं। फिर लगा कि वह देख भले रहे है लेकिन कुछ सोच रहे हैं।

बताइए न जीज्जू। मैंने दोबारा पूछा, कैसा लगा रोहित आपको…?

अबकी उन्होंने नज़र मेरे चेहरे से हटा ली। बहुत देर तक सोचते रहे चुपचाप।

सच कहूं तो वह मुझे जमा नहीं। यह जीज्जू का निष्कर्ष था। दो टूक। एकदम प्रत्याशित।

क्यों? यह ममा का सवाल था। जो जीज्जू के निष्कर्ष से असहज हो गई थीं।

सब कुछ ठीक लगा। नौकरी भी शानदार है। उसकी उम्र तो ज़्यादा है ही, उसका स्वभाव भी ठीक नहीं लगा मुझे। मुझे वह बहुत ज़्यादा इगोइस्ट लगा। उससे मैं दो बार मिला। वह मुझसे जिस तरह मिला, जिस तरह से बातचीत की, वह ठीक नहीं लगा मुझे। इसीलिए वह मुझे जंचा नहीं। वह तुम्हारे लिए क़ाबिल जीवनसाथी नहीं है वह। नॉट ऐट ऑल। एक इगोइस्ट व्यक्ति जो तुमसे उम्र में पंद्रह साल बड़ा है, मैं ऐसे आदमी के साथ तुम्हारी शादी के पक्ष में नहीं हूं। तुम्हारे लिए हम और अच्छा लड़का खोजेंगे। जीज्जू बहुत गंभीर थे।

वह ममा से मुखातिब हुए, -मम्मी, यह लड़का अपनी रागिनी के लिए ठीक नहीं।

मैं जीज्जू के निष्कर्ष से बिल्कुल सहमत नहीं थी। सो आपा खो बैठी और उबल पड़ी, -क्या जीज्जू। आप भी पहेलियां बुझाने लगे। आप साफ़-साफ़ क्यों नहीं कह देते कि आपको मेरे होने वाले पति से जलन हो रही है। मैं ग़ुस्से से कांपने लगी।

-अरे अरे। पागल हो गई है क्या। ममा अचानक तमतमा उठीं। वह भी ग़ुस्से से कांप रही थी।

मैं भी सकते में थी कि मेरे मुंह से अपने जीज्जू के लिए यह क्या निकल गया। जिसे मैं जीजा कम दोस्त ज़्यादा मानती रही, उसके लिए इतने कठोर अल्फाज़ मैं कैसे बोल गई।

इसे भी पढ़ें – ग़ज़ल – आ गए क्यों उम्मीदें लेकर

दरअसल, पापा कितने साल से मेरी शादी को लेकर परेशान थे। सुयोग्य वर के लिए देश के कोने-कोने जा चुके थे। इतनी मुश्किल से यह रिश्ता बन रहा था। और जीज्जू को लड़का इसलिए पसंद नहीं था क्योंकि उसने इनसे ठीक से बात नहीं की। इसी बात पर मैं अपना आपा खो बैठी थी।

मैं पछता रही थी।

जीज्जू का तो चेहरा ही सफ़ेद पड़ गया था। काटो तो ख़ून नहीं। चेहरे पर एक दयनीय मुस्कान चिपक गई थी। मानो उनकी चोरी सरेआम पकड़ ली गई हो।

थोड़ी देर बाद बोले, -सॉरी रागिनी… ग़लती हो गई… रियली सॉरी… वह कांप रहे थे।

-तुम कुछ भी बोलने लगती हो रागिनी। बिना सोचे-समझे क्या-क्या बोल दिया। ममा बोलीं।

-नहीं मम्मी। रागिनी का ग़ुस्सा अनुचित नहीं है। मैं ही कुछ ज़्यादा बोल गया। सारा दोष मेरा है। कोई स्त्री अपने होने वाले पति के लिए ऐसे कमेंट्स सुनकर चुप नहीं रह सकती। अगेन सॉरी रागिनी। प्लीज़ फ़ॉरगिव मी।

मैं उठी और अपने कमरे में आ गई। थोड़ी देर में ममा वहां आईं। मुझे डांटने लगी। तुम बेसिक शिष्टाचार भी भूल गई हो। वह घर के दामाद हैं। उनकी बात को ठंडे दिमाग से लेना चाहिए था न।

मैं चुप ही रही।

Ankaha2-240x300 कहानी - अनकहा

बहरहाल, रोहित से मेरी शादी हो गई। विदाई के समय जीज्जू फूट से पड़े थे। आंसुओं की धार निकल आई थी। उसे छिपाने के लिए वह दूर चले गए थे। पर मैंने उन्हें नोटिस किया था। उनमें कुछ ज़रूर ऐसा था, जो मुझे अंदर तक कचोट गया। मेरी भी आंख भर आई थी।

कार में मैं रोहित की बग़ल में बैठी जीज्जू को निहार रही थी। ऐसा लग रहा कि सचमुच वह मुझसे अपेक्षाएं पाले हुए हैं। बस संकोचवश कुछ कह नहीं पाए।

रोहित भी पता नहीं क्यों जीज्जू से चिढ़ता था, मुझे बाद में पता चला। बहरहाल, सुहागरात में ही मुझे रोहित का स्वभाव बड़ा अटपटा लगा। धीरे-धीरे जीज्जू का निष्कर्ष या आशंका सच साबित होने लगी। रोहित मुझ पर ऊल-जलूल आरोप लगाने लगा। मुझे हर बार सफ़ाई देनी पड़ती थी। हमारा रिश्ता पहले दिन से ही कमज़ोर पड़ने लगा। बाद में मुझे उसके साथ घुटन सी होने लगी।

बाहर एकमात्र बचे पीपल के वृक्ष पर पंछियों की कलरव होने लगी थी। जो लगातार बढ़ती जा रही थी।

-मैं बेंगलुरु जा रहा हूं। जीज्जू कॉफी ख़त्म करके बोल पड़े।

-क्यों… मेरे मुंह से निकल पड़ा।

ममा भी चौंक पड़ी थी।

-तबादला हो गया है। वह बहुत देर तक चुप रहे। फिर होंठ थरथराए, -फिर यहां मन भी तो नहीं लगता था मेरा। इसलिए ट्रांसफर को ऐक्सेप्ट कर लिया। दूसरे शहर में जाऊंगा, तो शायद कुछ बदलाव फील करूं…

-यहां मन नहीं लगता… मतलब… मैं कुछ कहना चाह रही थी पर ज़बान कांप कर रह गई। दग़ा दे गई। बस मैं उन्हें देख रहा थी। वह कहीं और खोए थे।

-वैसे भी कोई वजह भी तो नहीं है यहां रहने की। सरकारी नौकरी है, ट्रांसफर रिजेक्ट भी नहीं कर सकता। जैसे बारह साल पहले यहां आया था, अब चला जाऊंगा यहां से दूसरे शहर में।

-कब ड्यूटी जॉइन कर रहे हो?

-मंडे से ड्यूटी जॉइन करनी है। फ्लाइट कल ही है।

-और यहां का घर… और… यह मेरी आवाज़ थी।

-पड़ा रहेगा। हो सकता है किसी के काम आए। जीज्जू बहुत धीरे से बोले इस बार। अनिच्छा से।

मेरी तो कुछ समझ में ही नहीं आया कि कैसे रिएक्ट करूं… अचानक से लगा कुछ तो मुझसे दूर जा रहा है। कुछ तो जो मेरा है, अब मेरा नहीं रहेगा। तो क्या मेरा ही अंश मुझसे दूर हो रहा है और मैं उसे रोक नहीं कर पा रही हूं। मैंने अपने आप से सवाल किया।

-तुम क्यों जा रहे हो जीज्जू?

-क्या करें, कुछ चीज़ें हमारे बस में नहीं होती है।

-अब कब आओगे..

-देखो… कब आना होता है।

-फोन तो करोगे न जीज्जू? मेरा स्वर बहुत आर्द्र हो उठा।

-हां-हां। रोज़ाना फोन करूंगा। तुम्हें फोन नहीं करूंगा तो किसको करूंगा। तुम लोगों के अलावा कौन है ही मेरा। तुम भी जवाब दोगी न? उनकी ज़बान हलक में फंसी हुई सी लगी। आंखें भर आई थी। वह मुझे निहार रहे थे।

मैं भी बोल नहीं पा रही था। बड़ी मुश्किल से सिर हिला कर हां कह पाई।

-चलता हूं ममा। उन्होंने मां की पदधूलि ली। फिर मेरी तरफ देखने लगे। वही हसरत भरी नज़र।

मन में जीज्जू के लिए ढेर सारा प्यार उमड़ आया था। मन कर रहा था उन्हें अभी बांहों में भर लूं। कह दूं, मत जाओ जीज्जू। तुम्हारे बिना कैसे जीऊंगी। भले तुमसे नियमित मुलाकात नहीं होती थी, परंतु तुम्हारी इस शहर में मौजूदगी से एक संबल मिलता था। ऐसे लगता था, मैं अकेले नहीं हूं, कोई तो है हमारा। अब तुम मुझे उससे भी वंचित कर रहे हो। ये सारे वाक्य ज़बान से निकले ही नहीं।

जीज्जू ने सहसा मेरी ओर नज़र उठाई। पहली बार इतनी भरपूर नज़र मुझ पर डाली थी। मैं तो उस निगाह से सराबोर हो गई। मुझे लगा वह कहना चाह रहे है, रागिनी, रोक क्यों नहीं लेती अपने जीज्जू को। क्यों नहीं करती कोई पहल। अब कौन सी बाधा है हमारे बीच। लेकिन बोल ही नहीं पा रहे थे। लेकिन हमेशा की तरह इस बार भी अपनी भावनाओं को शब्द नहीं दे पाए। आज भी वहीं झिझक जो हमेशा उनके दामन से चिपकी रही।

सहसा उन्होंने दरवाज़ा खोला ओर बाहर निकल गए।

मैं अपने कमरे में आई और धम्म से गिर पड़ी अपने बिस्तर पर।

इसे भी पढ़ें – कहानी – डू यू लव मी?

चीन में उइगर मुस्लिम महिलाओं की जबरन नसबंदी!

0

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार ने उइगर मुस्लिम (Uyghur Muslim) आबादी पर अंकुश लगाने के लिए बेहद आक्रामक रुख अपनाया है। चीन ने मुस्लिमों की आबादी को कंट्रोल में रखने के लिए चीन के पश्चिमी प्रांत शिनजियांग में बड़े पैमाने पर एक अभियान चलाया हुआ जिसके तहत उइगर समुदाय के पुरुषों-महिलाओं की जबरदस्ती नसबंदी और गर्भपात किया जा रहा है। गौरतलब है कि देश भर में जहां आईयूडी के इस्तेमाल और नसबंदी में गिरावट आई है वहीं शिनजियांग में ये तेजी से बढ़ रहे हैं। इसकी वजह वहां की बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने की कोशिश है। चचीन पर नज़र रखने वाले कुछ जानकार इसे “जनसांख्यिकी नरसंहार” का नाम भी दे रहे हैं। चीनी सरकार मानती रही है कि मुसलमानों की बढ़ती आबादी गरीबी और कट्टरपंथ बढ़ावा देती है। हालांकि चीनी सरकार ने जबरन नसबंदी और गर्भपात की मीडिया रिपोर्ट को ग़लत क़रार दिया है।

दुनिया में किसी कोने में मुसलमानों पर ज़ुल्म होता है तो आम मुसलमान इस्लाम के भाईचारे का हवाला देते हुए पीड़ितों के समर्थन में उठ खड़ा हो जाता है, लेकिन चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों पर हो रहे ज़ुल्म के ख़िलाफ़ कोई आवाज़ नहीं उठा रहा है। 2012 में जब रोहिंग्या मुसलमानों को कथित तौर पर म्यानमार से निकाला जाने लगा तो उनके समर्थन में मुंबई के आज़ाद मैदान में मुसलमानों ने भारी उपद्रव किया था। हिंसा की होली खेली और पुलिस बल पर पथराव किया गया था। बहरहाल, मुंबई पुलिस के अत्यधिक संयम के चलते उस समय भारी मारकाट होने से बच गया। इसी तरह भारत में फलिस्तीन के मुसलमानों का इतना अंध समर्थन किया जाता है कि आम मुसलमान इज़राइल को अपना दुश्मन नंबर एक मानता है। मुसलमानों की नाराज़गी के डर से ही इज़राइल जैसे विकसित और समान विचारधारा वाले देश के साथ रिश्ते को बेहतर बनाने में कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकारों ने कभी दिलचस्पी ही नहीं ली।

इसे भी पढ़ें – इज़राइल से क्यों नफ़रत करते हैं मुस्लिम ?

शिनजियांग में उइगर मुसलमानों पर ज़ुल्म होने की ख़बरें अक्सर आती रहती हैं। वहां मस्जिदों पर बुलडोजर चलवाया जाता है। उइगरों की धार्मिक स्वतंत्रता पर भी अंकुश लगा है। मेलबोर्न आस्ट्रेलिया के ला-त्रोबे यूनिवर्सिटी के जातीय समुदाय और नीति के विशेषज्ञ रिसर्चर जेम्स लीबोल्ड कहते हैं, “चीन की सत्ताधारी चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी इस्लाम को ख़तरा मानती है। लंबे समय से चीन सरकार अपने समाज को सेक्यूलर बनाने की कोशिक कर रही है। इसीलिए उइगरों पर अत्याचार किया जा रहा है।” पिछले साल गर्मियों में रमज़ान महीने में ही शिंजियांग के होतन शहर की सबसे प्रमुख हेयितका मस्जिद को ढहा दिया गया। लिहाज़ा, जब रमज़ान में दुनिया के कोने-कोने में मुसलमान ख़ुशी से ईद मना रहे थे, तब दर्जनों मस्जिद गिराए जाने से शिनजियांग के मुस्लिम बस्तियों में सन्नाटा पसरा था, क्योंकि ऊंची गुंबददार मस्जिद की निशानी मिटने से बस्ती वीरान थी। वहां सुरक्षाकर्मियों की भारी मौजूदगी थी। 2014 में शिंजियांग सरकार ने रमज़ान में मुस्लिम कर्मचारियों के रोज़ा रखने और मुस्लिम नागरिकों के दाढ़ी बढ़ाने पर पाबंदी लगा दी थी। अंतरराष्ट्रीय मीडिया के मुताबिक 2014 में ही सख़्त आदेशों के बाद यहां की कई मस्जिदें और मदरसे ढहा दिए गए। 2017 के बाद से अकेले शिनजियांग में 36 मस्जिदें गिराई जा चुकी हैं। हालांकि शिनजियांग सरकार ने कहा कि वह धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करती है और नागरिक कानून की सीमा के दायरे में रहते हुए रमज़ान मना सकते हैं।

Uighur-2-300x198 चीन में उइगर मुस्लिम महिलाओं की जबरन नसबंदी!

भारत में भी रोहिंग्या के लिए हथियार उठाने की बात करने वाले तमाम मुसलमान उइगरों के मुद्दे पर चुप हैं। किसी कोने से उइगरों पर ज़ुल्म के ख़िलाफ़ कोई आवाज़ नहीं उठा रहा है। कश्मीर मुद्दे पर दुनिया के मुसलमानों से सहयोग की अपील करने वाले पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान भी शिनजियांग के एक करोड़ से ज़्यादा मुसलमानों की दुर्दशा पर ख़ामोश हैं। उइगर मुद्दे पर चीन को घेरने की जगह नरेंद्र मोदी सरकार ने इंटरपोल रेड कॉर्नर नोटिस का हवाला देकर अप्रैल 2016 में वर्ल्ड उइगर कांग्रेस की एग्ज़ीक्यूटिव कमेटी के चेयरमैन डोल्कन ईसा का ई-वीज़ा रद्द कर दिया था। जर्मनी निवासी ईसा धर्मशाला में तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा से मिलना चाहते थे। हैरानी वाली बात है कि उसी समय चीन जैश-ए-मोहम्मद सरगना मौलाना अज़हर मसूद को आतंकी घोषित कराने के प्रस्ताव का संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बार-बार विरोध कर रहा था। इतना ही नहीं, हाल ही में चीन ने कश्मीर मुद्दा भी सुरक्षा परिषद में उठाया, पर प्रस्ताव गिर गया।

इसे भी पढ़ें – शव में तब्दील होती भारत की जनता

दरअसल, शिनजियांग के उइगर मुसलमान पिछले कई दशक से ‘ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट’ चला रहे हैं। वे चीन से अलग होना चाहते हैं। 1990 में सोवियत संघ के विघटन के समय भी शिनजियांग की आज़ादी के लिए उइगर मुसलमानों ने संघर्ष किया था। उइगर आंदोलन को मध्य-एशिया में कई मुस्लिम देशों का समर्थन भी मिला था, लेकिन चीन के कड़े रुख के आगे किसी की न चली और आंदोलन को सैन्य बल से दबा दिया गया। ‘पूर्व तुर्किस्तान गणतंत्र’ नामक राष्ट्र की पिछली सदी में दो बार स्थापना हो चुकी है। पहली बार 1933-34 में काश्गर शहर में केंद्रित था और दूसरी बार 1944-49 में सोवियत संघ की सहायता से पूर्वी तुर्किस्तान गणतंत्र बना था। 1949 से इस क्षेत्र पर चीन का नियंत्रण है। चीन ‘पूर्वी तुर्किस्तान’ नाम का ही विरोध करता है। वह इसे शिनजियांग प्रांत कहता है। इसकी सीमा मंगोलिया और रूस सहित आठ देशों के साथ मिलती है। यहां की अर्थव्यवस्था सदियों से खेती और व्यापार पर केंद्रित रही है। ऐतिहासिक सिल्क रूट की वजह से यहां संपन्नता और ख़ुशहाली रही है।

Uighur-Musalman-300x160 चीन में उइगर मुस्लिम महिलाओं की जबरन नसबंदी!

शिनजियांग में पहले उइगर मुसलमानों का बहुमत था। लेकिन एक रणनीति के तहत चीन ने वफ़ादार रहे बहुसंख्यक नस्लीय समूह हान समुदाय के लोगों को यहां बसाना शुरू किया। पिछले कई साल से इस क्षेत्र में हान चीनियों की संख्या में बहुत अधिक इज़ाफ़ा हुआ। वामपंथी चीनी सरकार ‘ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट’ को दबाने के लिए हान चीनियों को यहां भेज रही है। उइगरों का आरोप है कि चीन सरकार भेदभावपूर्ण नीतियां अपना रही है। वहां रहने वाले हान चीनियों को मजबूत करने के लिए सरकार हर संभव मदद दे रही है। सरकारी नौकरियों में उन्हें ऊंचे पदों पर बिठाया जा रहा है। उइगुरों को दोयम दर्जे की नौकरियां दी जा रही हैं। दरअसल, सामरिक दृष्टि से शिनजियांग बेहद महत्वपूर्ण है और चीन ऐसे में ऊंचे पदों पर बाग़ी उइगरों को बिठाकर कोई जोखिम नहीं लेना चाहता। इसीलिए हान लोगों को नौकरियों में ऊंचे पदों पर बैठाया जा रहा है।

इसे भी पढ़ें – रोहिंग्या मुसलमान सहानुभूति के कितने हक़दार?

उइगर दरअसल अल्पसंख्यक तुर्क जातीय समूह हैं जो सभ्यता के विकास के बाद मध्य-पूर्व एशिया से आकर पूर्वी तुर्की में बस गया। आज भी ये लोग सांस्कृतिक रूप से मध्य-पूर्व एशिया से जुड़े हैं। इस्लाम के वहां पहुंचने पर ये लोग इस्लाम के अनुयायी हो गए। मध्य एशिया के इस ऐतिहासिक इलाक़े को कभी पूर्वी तुर्किस्तान कहा जाता था, जिसमें ऐतिहासिक तारिम द्रोणी और उइग़र लोगों की पारंपरिक मातृभूमि सम्मिलित हैं। इसका मध्य एशिया के उज़बेकिस्तान, किर्गिज़स्तान और कज़ाख़िस्तान जैसे तुर्क देशों से गहरा धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संबंध रहा है। उइगर आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त चीन के 55 जातीय अल्पसंख्यकों में से एक माना जाता है। साल 2018 अगस्त में संयुक्त राष्ट्र की एक कमेटी को बताया गया था कि शिनजियांग में क़रीब दस लाख मुसलमान हिरासत में रखे गए हैं। हालांकि चीन सरकार ने पहले इन ख़बरों का खंडन किया था, लेकिन इस दौरान शिनजियांग में लोगों पर निगरानी के कई सबूत सामने आए थे। तब पिछले साल चीनी प्रशासन ने माना कि तुर्कभाषी व्यावसायिक शिक्षा केंद्र चला रहे हैं, जिसका मकसद है कि लोग चीनी कानूनों से वाकिफ होकर धार्मिक चरमपंथ का रास्ता त्याग दें।

चीन के पक्षपाती रुख के चलते इस क्षेत्र में हान चीनियों और उइगरों के बीच अक्सर संघर्ष की ख़बरें आती हैं। हिंसा का सिलसिला 2008 से शुरू हुआ। इसके बाद से इस प्रांत में लगातार हिंसक झड़पें होती रही हैं। 2008 में शिनजियांग की राजधानी उरुमची में हिंसा में 200 लोग मारे गए जिनमें अधिकांश हान चीनी थे। अगले साल 2009 में उरुमची में दंगे हुए जिनमें 156 उइगर मुस्लिम मारे गए। इस दंगे की तुर्की ने कड़ी निंदा करते हुए इसे ‘बड़ा नरसंहार’ कहा था। 2012 में छह लोगों को हाटन से उरुमची जा रहे विमान को हाइजैक करने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुए। चीन ने इसमें उइगर मुसलमानों का हाथ बताया था। 2013 में प्रदर्शन कर रहे उइगरों पर पुलिस ने फायरिंग कर दी, जिसमें 27 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी। अधिकृत चीनी मीडिया ने तब कहा था कि प्रदर्शनकारियों के पास घातक हथियार थे जिससे पुलिस को गोलियां चलानी पड़ीं। अक्टूबर 2016 में बीजिंग में एक कार बम धमाके में पांच लोग मारे गए जिसका आरोप उइगरों पर लगा। उइगरों पर हिंसा की घटनाएं अक्सर होती हैं, लेकिन ऐसी घटनाओं को चीनी सरकार दबा देती है। यहां मीडिया पर पाबंदी होने के कारण ख़बरें नहीं आ पाती हैं।

इसे भी पढ़ें – क्या महात्मा गांधी को सचमुच सेक्स की बुरी लत थी?

मिस्र में दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित सुन्नी मुस्लिम शैक्षिक संस्थान अल अजहर में इस्लामिक धर्मशास्त्र का अध्ययन कर रहे उइगर छात्र अब्दुल मलिक अब्दुल अजीज का आरोप है कि एक दिन अचानक मिस्र पुलिस ने उस बिना किसी वजह के गिरफ्तार कर उसकी आंख पर पट्टी बांध दी गई। जब पुलिस ने पट्टी हटाई गई तो वह यह देखकर सकते में पड़ गया कि वह एक पुलिस स्टेशन में है और चीनी अधिकारी उससे पूछताछ कर रहे हैं। उसे दिन-दहाड़े उसके दोस्तों के साथ उठाया गया और काहिरा के एक पुलिस स्टेशन में ले जाया गया, जहां चीनी अधिकारियों ने उससे पूछा कि वह मिस्र में क्या कर रहा है। तीनों अधिकारियों ने उससे चीनी भाषा में बात की और उसे चीनी नाम से संबोधित किया ना कि उइगर नाम से। अब्दुल ने कहा कि चीन में उइगर मुसलमानों पर अत्याचारों की बात किसी से छिपी नहीं है और अब दूसरे देशों में रह रहे उइगरों पर नकेल कसा जा रहा है। दरअसल, पाकिस्तान की तरह मिस्र में भी चीन बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है, इसीलिए वहां भी उइगरों पर नकेल कसी जा रही है।

Xinjiang1 चीन में उइगर मुस्लिम महिलाओं की जबरन नसबंदी!

चीन का कहना है कि उसे उइगर अलगाववादी इस्लामी गुटों से ख़तरा है, क्योंकि कुछ उइगर लोगों ने इस्लामिक स्टेट समूह के साथ हथियार उठा लिए हैं। चीन इसके लिए उइगर संगठन ‘ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट’ को दोषी मानता है। उसके अनुसार विदशों में बैठे उइगर नेता शिनजियांग में हिंसा करवाते हैं। चीन ने सीधे तौर पर हिंसा के लिए वरिष्ठ उइगर नेता इलहम टोहती और डोल्कन ईसा को जिम्मेदार ठहराता है। ईसा चीन की ‘मोस्ट वांटेड’ की सूची में है। इन्हीं मामलों को लेकर चीन में कई उइगर नेता जेल में हैं। उइगर समुदाय के अर्थशास्त्री इलहम टोहती 2014 से चीन में जेल में बंद हैं। वहीं, उइगर संगठन चीन के आरोपों को गलत और मनगढ़ंत बताते हैं। उधर अमेरिका भी ‘ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट’ को उइगरों का अलगाववादी समूह मानता है, लेकिन वाशिंगटन का यह भी कहना है कि इस संगठन की आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने की न तो क्षमता है और न ही हैसियत। ऐसे समय जब पूरी दुनिया चीन के ख़िलाफ़ लामबंद हो रही है, तब चीन में उइगर मुसलमानों के उत्पीड़न का भी मामला उठाया जाना चहिए। ताकि इस विस्तारवादी देश को बैकफुट पर लाया जा सके।

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

पुलिस से आत्मरक्षा की गुहार लगाने के तुरंत बाद हत्या, गोरक्षा दल के होशंगाबाद अध्यक्ष रवि विश्वकर्मा के हत्यारे अब भी फरार

0

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के होशंगाबाद (Hoshangabad) जिले में विश्व हिंदू परिषद (VHP) के नेता और गोरक्षा दल (Goraksha Dal) के जिलाध्यक्ष रवि विश्वकर्मा को अपनी जान का गंभीर ख़तरा लग रहा था, इसलिए अपनी ङिफ़जत के लिए वह पुलिस से गुहार लगाने गए थे, लेकिन पुलिस को ज्ञापन देकर लौटते समय ही हत्यारों ने उनकी पीट-पीट कर हत्या कर दी। यह घटना  में शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) के शासन में पुलिस तत्परता की पोल खोल रही है। रवि विश्वकर्मा को पहले दिन दहाड़े डंडों पीट-पीट कर अधमरा किया गया, फिर गोली मार दी। यह घटना पिछले शुक्रवार यानी 27 जून 2020 को हुई। हत्या का यह लाइव वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। हत्या के तीन दिन बाद भी पुलिस हत्यारों का कोई सुराग नहीं खोज पाई है।

murder-300x185 पुलिस से आत्मरक्षा की गुहार लगाने के तुरंत बाद हत्या, गोरक्षा दल के होशंगाबाद अध्यक्ष रवि विश्वकर्मा के हत्यारे अब भी फरार

पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक 35 वर्षीय रवि विश्वकर्मा शुक्रवार की शाम होशंगाबाद से वापस अपनी कार से अपने घर पिपरिया जा रहे थे। जैसे ही कार ने पिपरिया के अंडरब्रिज को पार किया, वहां पहले से घात लगाकर बैठे बदमाशों ने उनकी कार को घेर लिया और उस पर लाठी-बल्लम और लोहे की रॉड से हमला कर दिया। हमलावर करीब 15 मिनट तक कार पर रॉड ओर डंडे से प्रहार करते रहे। इसके बाद उनमें से एक बदमाश ने रवि को दो गोली मारी। मरणासन्न रवि को अस्पताल ले जाया गया लेकिन अस्पताल में डॉक्टरों ने उन्हें ब्रॉड डेड (Brought dead) रास्ते में उनकी मौत हो गई। बताया जाता है कि रवि की घटनास्थल पर ही मौत हो गई थी। बताया जाता है कि हमलावर दूसरी गाड़ी से आए वहां आए थे। इस पूरे हत्याकांड के दौरान बदमाशों ने रवि के दो सथियों को वहां से डरा धमकाकर भागा दिया।

Live-Murder1-300x146 पुलिस से आत्मरक्षा की गुहार लगाने के तुरंत बाद हत्या, गोरक्षा दल के होशंगाबाद अध्यक्ष रवि विश्वकर्मा के हत्यारे अब भी फरार

पुलिस (Police) के अनुसार लगभग आधा दर्जन बदमाश काले रंग की कार पर हमला कर दिया। अंत में अपराधियों द्वारा फायरिंग (Firing) भी की गई। बताया जा रहा है कि वहां से गुजर रहे ऑटो में बैठे युवक ने अपने मोबाइल से हत्या का वीडियो बना लिया। होशंगाबाद पुलिस ने जांच और तेज कर दी है पुलिस ने प्रत्येक आरोपी की जानकारी देने पर दस हजार रुपये का इनाम घोषित किया है।

Goraksha-300x300 पुलिस से आत्मरक्षा की गुहार लगाने के तुरंत बाद हत्या, गोरक्षा दल के होशंगाबाद अध्यक्ष रवि विश्वकर्मा के हत्यारे अब भी फरार

पुलिस ने बताया कि रवि विश्वकर्मा के दोस्तों और कार में सवार लोगों से पूछताछ के आधार पर नौ आरोपियों पर पिपरिया थाने में मामला दर्ज किया गया है। एडिशनल एसपी अवधेश प्रताप सिंह ने बताया कि 10 लोगो पर हत्या का केस दर्ज किया गया है। आरोपियो की गिरफ्तारी के लिए पुलिस की तीन टीमें गठित की गई हैं। वीडियो के अलावा वहां लगे सीसीटीवी से कुछ फुटेज भी मिले हैं।

Live-Murder3-252x300 पुलिस से आत्मरक्षा की गुहार लगाने के तुरंत बाद हत्या, गोरक्षा दल के होशंगाबाद अध्यक्ष रवि विश्वकर्मा के हत्यारे अब भी फरार

विश्व हिंदू परिषद के नेता की दिन-दहाड़े हुई हत्या को लेकर इलाके में स्थिति बेहद तनावपूर्ण बतायी जा रही है। लोगों में पुलिस के खिलाफ भारी आक्रोश है। दिनदहाड़े हत्या की यह पूरी वारदात आपसी रंजिश से जुड़ी बताई जा रही है, इसके साथ विहिप नेता रवि ने पिछले दिनों सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिखी थी और कहा था कि वह जल्दी ही कुछ सफेदपोश लोगों को बेनकाब करेंगे। इस पोस्ट को भी हत्याकांड की वजह मानकर पुलिस अपनी जांच कर रही है।

Live-Murder2-300x284 पुलिस से आत्मरक्षा की गुहार लगाने के तुरंत बाद हत्या, गोरक्षा दल के होशंगाबाद अध्यक्ष रवि विश्वकर्मा के हत्यारे अब भी फरार

हत्या की आशंका थी रवि को

बताया जाता है कि रवि विश्वकर्मा को अपनी हत्या होने की आशंका थी इसको लेकर उन्होंने शुक्रवार को ही पुलिस को ज्ञापन सौंपा था। पुलिस की जांच में सामने आया है कि यह हत्या दोनों गुटों में वर्चस्व को लेकर अंजाम दी गई है। होशंगाबाद के पुलिस महानिरीक्षक आशुतोष रॉय का कहना है कि पहले रवि विश्वकर्मा आरोपी मुन्ना गुर्जर के साथ ही काम करता था। बाद में दोनों में अनबन हो गई और रवि ने अपना एक अलग गुट बना लिया था। उसके बाद से ही दोनों के बीच में तनातनी चल रही थी। यह पता नहीं चल पाया है कि इधर दोनों बीच में क्या कुछ हुआ जिसके चलते रवि की हत्या कर दी गई।

पिपरिया पुलिस थाना प्रभारी सतीश अंधवान ने बताया कि रवि विश्वकर्मा को दो गोलियां लगीं। एक उनके हाथ पर जबकि दूसरी उनके दूसरे हाथ पर लगने के बाद छाती में जा घुसी, जिससे उनकी घटनास्‍थल पर ही मौत हो गई। हमले में रवि विश्वकर्मा के दो साथी घायल भी हुए हैं।

MP-Congress-300x288 पुलिस से आत्मरक्षा की गुहार लगाने के तुरंत बाद हत्या, गोरक्षा दल के होशंगाबाद अध्यक्ष रवि विश्वकर्मा के हत्यारे अब भी फरार

शिवराज ने मंगलराज को जंगलराज बना दिया – कांग्रेस

मध्य प्रदेश कांग्रेस ने शनिवार को ट्वीट कर प्रदेश की कानून व्यवस्था पर सवाल उठाया है। प्रदेश कांग्रेस ने घटना का लाइव वीडियो ट्विटर पर पोस्ट कर कहा है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्य प्रदेश के मंगलराज को तीन महीने में ही जंगलराज बना दिया।

VHP-300x225 पुलिस से आत्मरक्षा की गुहार लगाने के तुरंत बाद हत्या, गोरक्षा दल के होशंगाबाद अध्यक्ष रवि विश्वकर्मा के हत्यारे अब भी फरार

यह हत्या सुनियोजित थी – विश्‍व हिंदू परिषद

हत्या की इस वारदात पर विश्‍व हिंदू परिषद के प्रांत सहमंत्री गोपाल सोनी ने कहा कि यह सुनियोजित हत्‍या है।  रवि विश्वकर्मा जिले में गायों की रक्षा के लिए काम कर रहे थे। उन्होंने इस हत्‍याकांड की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है।

सुशांत की आत्महत्या से हिल गईं सुष्मिता, डिप्रेशन पर लिखा इमोशनल नोट

1

जब से अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) ने ख़ुदकुशी की है, तभी से बॉलीवुड के कई सेलेब्रेटीज़ अपने डिप्रेशन के बारे में खुलकर बात करने लगे हैं। इससे मानसिक स्वास्थ्य और भावनाओं के महत्व पर हर तरफ चर्चा हो रही है। इसी क्रम में अभिनेत्री सुष्मिता सेन (Sushmita Sen) ने भी मेंटल हेल्थ पर अपने इंटाग्राम (Instagram) अकॉउंट पर एक बेहद इमोशनल पोस्ट (Emotional Post) को शेयर किया है।

Sush-217x300 सुशांत की आत्महत्या से हिल गईं सुष्मिता, डिप्रेशन पर लिखा इमोशनल नोट

सुष्मिता कहती हैं, “आप जिसे प्यार करते हैं या जिसके करीब हैं, उसे पूरी तरह से जानिए। ज़िंदगी उतार-चढ़ाव से भरी होती है। बस हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। जैसे हम दूसरे टॉपिक्स पर बातें करते हैं, वैसे ही हमें मेंटल हेल्थ पर भी खुलकर बोलना चाहिए। सुशांत और उन जैसे अन्य युवा हमें बताने की कोशिश कर रहे हैं कि हमें दूसरे लोगों को दोष देना शुरू करने से पहले अपनी चीजों की जिम्मेदारी लेनी होगी। जब मैंने यूट्यूब चैनल शुरू किया तो हर कोई चाहता था कि मैं मेंटल हेल्थ पर बोलूं। मैं भी सोचती रही कि ठीक है मैं मेंटल हेल्थ पर कुछ करूंगी। मैंने तय किया कि ब्लॉग लिखूंगी, लेकिन शुरू नहीं कर पाई, लेकिन जब मैंने सुशांत की खबर सुनी, तो मैंने बस लगातार लिखना शुरू कर दिया है।”

Sushmita-Yoga1-266x300 सुशांत की आत्महत्या से हिल गईं सुष्मिता, डिप्रेशन पर लिखा इमोशनल नोटSushmita2-206x300 सुशांत की आत्महत्या से हिल गईं सुष्मिता, डिप्रेशन पर लिखा इमोशनल नोट

रियल इमोशन है डिप्रेशन

बॉलीवुड (Bollywood) अभिनेत्री ने आगे लिखा है, “मैंने भी बहुत डिप्रेशन (Depression) झेला है। मुझे अच्छी तरह से पता है, यह बहुत रियल इमोशन होता है। उस वक्त हंसना बहुत ही मुश्किल हो जाता है, फिर भी हमें मौत और जीवन में से किसी एक को चुनना पड़ता है, हम जीवन को चुनते हैं, लिहाज़ा, हमें जीना पड़ता और हमें जीना भी चाहिए। हर इंसान अलग होता है। प्रतिदिन उससे निकलने की कोशिश करनी चाहिए। यादें रखें कि आप अकेले नहीं हैं। हम सभी के अंदर कोई न कोई तकलीफ़ है, जो हमें डिप्रेशन की ओर ले जाता है, फिर चाहे क्लीनिकल (Clinical) हो या ज़िंदगी के रास्ते आपको उस मोड़ तक ले आते हैं। मैं उस दर्द को बांटना चाह रही थी। हम सबकी ज़िंदगी में अलग-अलग तरह की समस्याएं हैं। हमें उससे हार नहीं माननी चाहिए। ये भी सच है कि हर इंसान अलग होता है। कुछ लोगों को दोस्तों और परिवार के सपोर्ट की ज़रूरत होती है, तो कुछ डॉक्टर या मानसिक चिकित्सक के पास जाकर बेहतर महसूस करते हैं। बस आपको किसी भी हाल में अपनी ज़िंदगी का उद्देश्य नहीं भूलना चाहिए। मेरी ज़िंदगी के कई उद्देश्य हैं। मेरी दो बेटियां हैं, जिनका उनका पालन पोषण मैं अकेले कर रही हूं। मैं सिंगल मदर (Single Mother) हूं। तो मैं सोच भी नहीं सकती कि ज़िंदगी खत्म हो गई।”

Sushmita-Yoga3-300x295 सुशांत की आत्महत्या से हिल गईं सुष्मिता, डिप्रेशन पर लिखा इमोशनल नोटSushmita-Yoga2-297x300 सुशांत की आत्महत्या से हिल गईं सुष्मिता, डिप्रेशन पर लिखा इमोशनल नोट

पड़ती है मदद की ज़रूरत

अपना अनुभव शेयर करते हुए सुष्मिता ने आगे कहती हैं, “मुझे जब भी लगता कि मेरा डिप्रेशन बढ़ रहा है तो मैं सीधे डॉक्टर के पास जाती थी। ट्रीटमेंट (Treatment) के बारे में पूछती थी। अगर आपका मन नहीं अच्छा है, आपको रोना आ रहा है, पीड़ा या तकलीफ़ हो रही है तो इसका मतलब है कि आपको मेडिकल हेल्प (medical Help) की ज़रूरत है, मुझे जब भी ऐसा लगा, तो मैंने अपने डॉक्टर से कंसल्ट किया। क्योंकि मैं जानती हूँ कि मैं ख़ुश रहने वाली इंसान हूं। अगर मुझे रोने का मन कर रहा है, तो मतलब मेरा मन ठीक नहीं है और मुझे मदद की ज़रूरत है। कई बार मेडिटेशन (Meditation) और मनोचिकित्सक (Psychiatrist) ये दोनों आपको ठीक कर देते हैं। आपके पास हारने का विकल्प नहीं होता है। मेरे पास भी नहीं था। मुझे ज़िंदगी में बहुत कुछ अकेले दम पर करना पड़ा है। मुझे अकेलेपन से डर नहीं लगता। इसलिए मैं एक ही बात सोचती हूं मुझे ठीक होना ही है।”

Sushmita3-256x300 सुशांत की आत्महत्या से हिल गईं सुष्मिता, डिप्रेशन पर लिखा इमोशनल नोटSushmita4-239x300 सुशांत की आत्महत्या से हिल गईं सुष्मिता, डिप्रेशन पर लिखा इमोशनल नोट

रील और रियल लाइफ़

पूर्व मिस यूनिवर्स (Miss Universe) ने आगे कहा है- ख़ूबसूरत और अच्छा दिखो। अच्छा दिखाओ और हर समय अच्छी रहो, यही अप्रोच रील और रियल लाइफ़ (Real Life) को एक जैसा बनाता है। ऑन स्क्रीन (Screen) और ऑफ स्क्रीन का प्रोजेक्शन बन जाता है। कई बार शोहरत मिलने के साथ, बैंक बैलेंस (Bank Balance) बढ़ने के साथ असुरक्षा भी बढ़ती है। ये सभी एक्टर की ज़िंदगी में ट्रिगर (Trigger) के रूप में जाना जा सकता है, लेकिन वास्तव में ये हम सभी की ज़िंदगी की सच्चाई है। आपको जो भी तकलीफ़ में है, बस सिर्फ़ एक बात का ख़याल रखें कि आपको बहुत से लोग प्यार करते हैं। आपकी ज़िंदगी बहुत कीमती है और आपकी खुशियां भी। अपनी खुशियों की ज़िम्मेदारी हमारी अपनी है और हमें उस ज़िम्मेदारी से भागना नहीं चाहिए। तकलीफ़ चाहे जितनी बड़ी हो, बस गुज़र जाएगी। ये ज़िंदगी ख़ूबसरत तोहफ़ा है, न जाने कितनी संभावनाएं, न जाने कितने ख़्वाब हैं इसमें। इसलिए कभी हार मत मानें। अभी तो न जाने कितने अमेजिंग मोमेंट्स (Amazing moments) भी जीने हैं हमें। इसलिए बस आगे बढ़ते रहिए।”

इसे भी पढ़े – क्या अंकिता को कभी भूल ही नहीं पाए थे सुशांत?

संकोच मत करिए

सुष्मिता कहती हैं, “अक्सर हम अपने मन की बात संकोच वश नहीं कह पाते। सोचते हैं, कैसे कहें? कोई क्या सोचेगा? लोग क्या कहेंगे? मुझे लगता है हम अपने दर्द को छिपाने में एक्सपर्ट हो गए हैं। या फिर किसी के पास इतना समय नहीं है कि वो हमारे दर्द को समझे, सुने या महसूस करे। हर किसी की ज़िंदगी मे अनगिनत प्रेशर (Pressure) है। उतार चढ़ाव हैं, लेकिन हमें हमेशा लड़ना चाहिए, कभी हार नहीं माननी चाहिए। अगर आप थक रहे हैं तो आराम करना सीखिए, क्विट (Quite) करना नहीं। हम दुनिया नहीं बदल सकते, लेकिन अपने विचारों को बदल सकते हैं। ईश्वर पर यकीन करिए। हम अपनी ज़िंदगी में खुशियां खुद ला सकते हैं, इसलिए कभी हार मत मानिए। संघर्ष करते रहिए। जीवन में कभी भी हार न मानिए। अंत तक लड़ते रहिए। ज़रूरत पड़ने पर हमेशा मदद लेने के लिए तैयार रहिए।” उन्होंने अपनी पोस्ट के साथ एक फोटो भी शेयर की, जिसमें लिखा था, ‘प्रोटेक्ट योर पीस (Protect Your Peace)’ यानि कि अपनी शांति की रक्षा करो।

Sushant-Singh-300x296 सुशांत की आत्महत्या से हिल गईं सुष्मिता, डिप्रेशन पर लिखा इमोशनल नोटSushmita8-BW-251x300 सुशांत की आत्महत्या से हिल गईं सुष्मिता, डिप्रेशन पर लिखा इमोशनल नोट

सुशांत बेहद प्रतिभाशाली कलाकार

पूर्व मिस यूनिवर्स आगे कहती हैं, “बहुत कम समय में शोहरत हासिल करने वाले सुशांत बेहद प्रतिभाशाली (talented) कलाकार थे। मैं उन्हें पर्सनली नहीं जानती थी। काश मैं उनसे मिली होती। मैं उनके अभिनय की मुरीद रही हूं। मुझे उनकी मौत की खबर सुनकर सदमा लगा। जब उनके निधन की खबर आई तो मुझसे रहा नहीं गया। यह सिर्फ एक सुशांत या एक कलाकार का सच नहीं है। बहुत सारे ऐसे लोग ऐसे मानसिक दौर से गुजर रहे हैं जिनकी आवाज हम तक पहुंच नहीं रही है। कलाकार के लिए अपनी बात को कहना और दिखाना काफी मुश्किल होता है, अगर आप अपनी यह आवाज़ को दबाकर रखते हैं। यह भी सच है कि कई बार लोग आपकी कही बातों का मज़ाक़ उड़ाने लगते हैं। मेरा मानना है कि तब भी आपको अपना सच बोलना चाहिए। आपको मेडिकल या इमोशनल मदद मांगनी चाहिए।”

Sushmita1-Aarya-300x300 सुशांत की आत्महत्या से हिल गईं सुष्मिता, डिप्रेशन पर लिखा इमोशनल नोट

आर्या से कमबैक

ख़ुद लंबे समय तक डिप्रेशन की शिकार रहीं सुष्मिता बहुत लंबे समय बाद वेब सीरीज ‘आर्या (Aarya)’ से कमबैक कर रही हैं। आर्या में उनके अभिनय की जमकर तारीफ हो रही है। इससे पहले सुष्मिता 2015 में रिलीज बंगाली फिल्म ‘निर्बाक (Nirbak)’ में रूपहले परदे पर नज़र आई थीं। बॉलीवुड की फिल्म में सुष्मिता दस साल पहले नजर आई थी। उनकी फिल्म ‘नो प्रॉब्लम (No Problem)’ 2010 में रिलीज हुई थी। सुष्मिता ने स्वीकार किया है कि पिछले 10 साल भी उनके लिए मुश्किल भरे रहे, लेकिन उन्होंने कभी भी हिम्मत नहीं हारीं। वो ज़िंदगी से लड़ती रहीं और समस्याओं को परास्त करती रहीं।

शव में तब्दील भारत की जनता

1

पार्थिव जनता। जी हां, पार्थिव केवल मानव शरीर नहीं होता, बल्कि कभी-कभी पार्थिव जनता भी हो जाती है। पार्थिव जनता का मतलब शव में तब्दील हो चुकी जनता। किसी शव के साथ आप जैसा चाहें वैसा व्यवहार कर सकते हैं। उसे डंडे से पीटिए, उसे गोली मार दीजिए या फिर उसे चाकू से बोटी-बोटी कर दीजिए। वह कोई भी रिएक्शन नहीं देगा। वह न तो चिल्लाएगा, न ही रहम की भीख मांगेगा, क्योंकि वह शव है। उसमें जान ही नहीं बची है। उसमें कोई संवेदना ही नहीं बची है। इसलिए उसके साथ चाहे जितना जुल्म कर लीजिए, वह उफ् तक नहीं करेगा। कहने का मतलब अगर आदमी का शरीर शव में तब्दील नहीं हुआ है, तो कष्ट देने वाली बातों का विरोध करेगा। मसलन, वह चिल्लाएगा, लेकिन अगर वह शव में तब्दील हो चुका है तो वह कुछ बोलेगा ही नहीं। आप चाहे जा करें।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की जनता का आजकल यही हाल है। कांग्रेस ने अपने शासन काल में जनता को वैश्विकरण, उदारीकरण, निजीकरण और कॉन्ट्रैक्ट लेबर सिस्टम का टेबलेट देकर उसे पहले गंभीर रूप से बीमार बनाया था, फिर उसे पंगु कर दिया था। तब जनता केवल पंगु हुई थी, लेकिन शव में तब्दील नहीं हुई थी। लिहाज़ा, कभी-कभार वह सरकार का विरोध कर देती थी। विरोध करते हुए देश की जनता ने 2014 में देश की बाग़डोर कांग्रेस से छीन कर देशभक्त पार्टी के हवाले कर दिया। मगर देशभक्त सरकार ने देश की पंगु जनता को देशभक्ति और जयश्रीराम का टेबलेट देकर सीधे उसे कोमा में डाल दिया। यानी उसकी विरोध करने की क्षमता ही ख़त्म कर दी।

इसे भी पढें – सुशांत की आत्महत्या से हिल गईं सुष्मिता, डिप्रेशन पर लिखा इमोशनल नोट

रही-सही कसर चीन के वुहान से निकले कोरोना वायरस की महामारी ने पूरी कर दी। कोविड 19 ने अपने प्रकोप से इस देश की लाचार जनता को शव में बदल दिया। अब यह देशभक्त सरकार शव में तब्दील हो चुकी इस जनता के साथ अपनी सुविधानुसार व्यवहार कर रही है। कह लीजिए कि वह जनता की कुटाई कर रही है। परंतु शव में तब्दील हो चुकी जनता है कि कुछ रिएक्ट ही नहीं कर रही है। यही वजह है कि पिछले कुछ महीने से पेट्रोल और डीज़ल के दाम दैनिक आधार पर बढ़ाए जा रहे हैं। इस दौरान प्रति लीटर पेट्रोल लगभग सौ रुपए और डीज़ल नब्बे रुपए के आसपास पहुंच चुका है, लेकिन जनता का कोई रिएक्शन देखने को नहीं मिल रहा है।

Crowd-petrol-pump-300x225 शव में तब्दील भारत की जनता

पहले जहां पेट्रोल और डीज़ल के दाम में महज़ कुछ पैसे बढ़ा देने से देश में भारी विरोध शुरू हो जाता था। लोग सड़क पर आ जाते थे, जगह-जगह आंदोलन करने लगते थे। इससे कभी-कभी सरकार को अपना फ़ैसला वापस लेना पड़ता था। वहीं आज पूरे देश में पेट्रोल और डीज़ल के दाम में रोज़ाना वृद्धि हो रही है, लेकिन कहीं कोई विरोध नहीं हो रहा है। हर जगह सन्नाटा पसरा है। ऐसा लगता है पूरे देश में मातम है। जीवन में कभी ऐसा भी दौर कभी आएगा, यह तो किसी ने सोचा नहीं था। पहले सरकार अस्पताल, बांध, पुल, सड़क और नहर के निर्माण पर अकूत धन ख़र्च करती थी। आजकल सरकार बड़ी-बड़ी मूर्तियां और मंदिर-मस्जिद बनवाने में व्यस्त है।

कह लीजिए कि जनता पहले से ही बेजार थी। कोरोना संक्रमण की मार ने पहले उसकी रोज़ी-रोटी छीनी। केंद्र औ राज्य के सरकारी कर्मचारियों को छोड़ दें, तो देश का हर कामकाजी नागरिक कोरोना वायरस का शिकार हो गया। यह कोरोना वायरस जनता के विनाश का सामान लेकर आया। इस वैश्विक महामारी को रोकने के लिए 25 मार्च को लॉकडाउन घोषित कर दिया गया। पहले लगा यह पखवारे या महीने भर चलेगा। लेकिन कोरोना का विस्तार लगातार होने से सरकारी लॉकडाउन अब भी बरकरार है। इससे जो कामकाज ठप तो है, लेकिन लोगों की आमदनी ज़रूर ठप है। काम देने वालों ने कह दिया, ‘काम नहीं तो पैसे नहीं’, लेकिन पेट तो रोज़ाना दो जून की रोटी मांगता है।

Crowd2-300x199 शव में तब्दील भारत की जनता

कोरोना ने सबसे पहले निचले तबक़े यानी शारीरिक श्रम करने वाले मजदूर वर्ग पर हमला किया। लोग भूखे मरने लगे। लिहाज़ा, उस जगह के लिए पलायन करने लगे, जहां भोजन मिलने की गुंजाइश थी। भोजन देने के मामले में शहर के मुक़ाबले गांव ज़्यादा उदार होता है, इसीलिए गांव में ज़िंदा रहने की संभावना शहर से अधिक होती है। लिहाज़ा, जिसे जो भी साधन मिला, वह उसी से गांव की ओर पलायन कर गया। जिन्हें कोई साधन नहीं मिला, वे पैदल ही गांव की ओर भाग खड़े हुए।

कोरोना की मार उसके बाद निम्न मध्यम वर्ग पर पड़ी। जो नौकरी करके अपना और अपने परिवार का पेट भर रहा था। लेकिन लॉकडाउन की लंबी अवधि के दौरान अधिकतर लोगों की नौकरी चली गई। अब न तो उनके पास नौकरी रह गई न ही कोई रोज़गार रहा। यूं तो सरकार ने अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वहन करते देश की कंपनियों और कारोबारियों से अपील की थी कि लॉकडाउन के दौरान किसी कर्मचारी को न तो नौकरी से निकालें और न ही उनका वेतन काटें। केवल मुनाफ़े में विश्वास करने वाली कंपनियों ने सरकार की अपील को कूड़ेदान में डाल दिया।

RBI-300x182 शव में तब्दील भारत की जनता

जो कंपनियां कर्मचारियों के बल पर करोड़ों रुपए का मुनाफ़ा कर रही थीं, लेकिन कभी भी अपने मुनाफ़े का थोड़ा सा भी हिस्सा कर्मचारियों से शेयर नहीं किया, आजकल वे कंपनियां अपने घाटे को कर्मचारियों से शेयर कर रही हैं। सरकार की अपील के बावजूद या तो कर्मचारियों को निकाल बाहर कर रही हैं या उन्हें नाममात्र का वेतन दे रही हैं। वेतन इतना कम हो गया है, कि खाने के बाद कुछ बच ही नहीं रहा है। फिर घर का किराया कैसे दें?

यही हाल मध्यम वर्ग का है। उसके पास काम तो नहीं है, लेकिन कुछ सेविंग थी, उसी से दो जून की रोटी जुटा रहे थे। इस वर्ग की सबसे बड़ी समस्या थी, कर्ज़ कि किस्तें कैसे भरें, क्योंकि इस वर्ग के अधिकतर लोगों ने कर्ज़ ले रखा है। ज़्यादातर लोग होम लोन लेकर फंस गए हैं। सरकार उन्हें मारने के लिए कर्ज़ स्थगन यानी मोरेटोरियम नाम की स्कीम लेकर आई। यानी लॉकडाउन में छह महीने कर्ज़ की किस्त मत भरिए। यह भी बैंकों या वित्तीय संस्थानों को कोई आदेश नहीं था, उनसे रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने अपील की थी।

कर्ज़दाता बैंकों और वित्तीय संस्थानों ने आरबीआई की अपील मान ली। कर्ज़ लेने वालों से कहा, “संकट की इस घड़ी में हम भी आपके साथ हैं। आप आर्थिक संकट में हैं तो छह महीने तक ईएमआई मत भरिए। हां, ब्याज माफ़ नहीं किया जा सकता। लिहाज़ा, ब्याज जारी रहने से कर्ज़ के भुगतान की अवधि छह महीने आगे खिसक जाएगी। इसके अलावा आपको ब्याज के रूप में तीन महीने की अतिरिक्त किश्त देनी होगी।” यानी मातम के मौसम में भी बैंकों और वित्तीय संस्थानों के दोनों हाथ में लड्डू रहा। बैंकवाले कोरोना को धन्यवाद दे रहे हैं कि कोरोना उनके लिए कमाने का अवसर लेकर आया।

Migrant-Labour-300x225 शव में तब्दील भारत की जनता

अभी तो कोरोना से लोगों की मौत हो रही है। अब कर्ज़ अदा न कर पाने से बड़ी तादाद में लोग डिफॉल्टर घोषित किए जा रहे हैं। जिन्होंने होम लोन ले रखा है, उनके घर सील होने के कगार पर हैं। अब उनके पास न रहने के लिए घर होगा, न करने के लिए काम होगा और न ही दो जून की रोटी नहीं होगी। इसके चलते लोग सामूहिक रूप से आत्महत्या करना शुरू करेंगे, क्योंकि उनके पास मौत को गले लगाना ही एकमात्र विकल्प होगा। कई जगह से तो मरने की ख़बर भी आने लगी है।

बदहाल यानी शव में तब्दील हो चुकी जनता बुरी तरह पराश्रित हो गई है। सरकार के लिए शव में तब्दील हो चुकी जनता से पैसे बनाने का ज़बरदस्त मौक़ा हाथ लग गया है। इसीलिए जून 2020 के पहले हफ़्ते से पेट्रोल डीजल के दाम रोज़ाना बढ़ाए जा रहे हैं। कभी किसी ने कल्पना की थी, कि ऐसा भी समय आएगा। ऐसे समय जब लोगों जीने रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन पर और बोझ डालने का काम किया जाएगा।

दरअसल, मानवता का तक़ाज़ा यह है कि जहां लोग बड़ी तादाद में मर रहे हों, वहां कोई भी संवेदनशील आदमी या संस्थान न तो राजनीति करता है और न ही सौदेबाज़ी करता है, लेकिन देशभक्त सरकार मातम के माहौल में भी अपनी तिजोरी भर रही है। लोग हैरान हैं कि सरकार जनता की पीड़ा महसूस क्यों नहीं कर रही है। कई लोगों का मानना है कि जनता की पीड़ा, जनता का दुख वही महसूस कर सकता है, जिसे दुनियादारी का अनुभव होता है। जिसे दुनियादारी का कोई अनुभव ही नहीं है, वह लोगों के दुख-दर्द नहीं समझ सकता। कोई असंवेदनशील आदमी ही मातम के इस दौर में जब लोग रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं, किसी वस्तु के दाम में वृद्धि करने की सोचेगा। यहां तो रोज़ाना पेट्रोल-डीज़ल कीमत रोज़ बढ़ाए जा रहे हैं, जिनका असर निश्चित तौर पर बाक़ी वस्तुओं की क़ीमत पर पड़ेगा।

CoverA3-209x300 शव में तब्दील भारत की जनता

हां, जो लोग राज्य सरकार या केंद्र सरकार में मुलाज़िम हैं, उन्हें नियमित रूप से वेतन मिल रहा है। यानी उनका पेट भरा है। सुबह नाश्ता, दोपहर लंच और शाम को डिनर कर रहे हैं। उन्हें न तो आज रोटी की कोई किल्लत है और न ही कल होने वाली है। ऐसे लोग ज़रूर सोशल मीडिया पर देशभक्ति का ज्ञान बांट रहे हैं। कई लोग भगवान श्री राम के मंदिर के लिए चंदा जुटाने में मस्त हैं। कहना न होगा कि आज़ादी मिलने का बाद आम नागरिक के लिए यह सबसे कठिन समय है। ऐसे में यही कहा जा सकता है, ईश्वर सबको सद्बुद्धि दे और प्रकृति मजलूम लोगों की रक्षा करे।

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

इसे भी पढ़ें – क्या पुरुषों का वर्चस्व ख़त्म कर देगा कोरोना?

रामदेव का कोरोना की दवा बनाने का दावा, जांच करेगा आयुष मंत्रालय, बिक्री पर भी रोक

0

चीन के वुहान से निकली वैश्विक महामारी कोरोना वायरस यानी कोविड 19 की वैक्सीन और दवा बनाने के लिए दुनिया भर के डॉक्टर अभी रिसर्च ही कर रहे हैं, लेकिन अभी तक किसी भी देश को कोरोना को ठीक करने विश्वसनीय दवा बनाने में सफलता नहीं मिली है, लेकिन योग गुरु बाबा रामदेव को कोरोना की दवा बनाने में सफलता मिल गई।

बाबा रामदेव ने कोरोना का इलाज करने वाली दवा खोजने का दावा किया और अपनी दवा का नाम कोरोनिल रखा है। इस दवा को योग गुरु ने 23 जून को विधिवत लॉन्च भी कर दिया। उन्होंने दवा की क़ीमत छह सौ रुपए तय की है। हालांकि आयुष मंत्रालय और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने उनके दावे से पल्ला झाड़ लिया है। आयुष मंत्रालय ने तो दवा का मेडिकल परीक्षण होने तक कोरोनिल के विज्ञापन और बिक्री पर  रोक लगा दी है।

Ramdev1-300x200 रामदेव का कोरोना की दवा बनाने का दावा, जांच करेगा आयुष मंत्रालय, बिक्री पर भी रोक

योग गुरु का कहना है कि उनकी दवा ‘कोरोनिल’ से सात दिन के अंदर सौ फीसदी रोगी कोरोना निगेटिव हो गए। उन्होंने यह भई दावा किया कि कोरोनिल दवा का सौ फीसदी रिकवरी रेट है और डेथ रेट शून्य फीसदी है। बहरहाल, कोरोना वैश्विक महामारी के खिलाफ चल रही जंग को जीतने के रामदेव के दावे की आयुष मंत्रालय ने जांच करने का फ़ैसला किया है। रामदेव ने कहा कि जिस कोरोना की औषधि पूरा दुनिया खोज रही है। लेकिन कोरोना का इलाज करने वाले तत्व हमारे आसपास मौजूद आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों में अकूत मात्रा में उपलब्ध है। बस लोगों को इसकी पहचान करने की क्षमता नहीं है। यह औषधि कोरोना संक्रमण से बचाव तथा इसके उपचार दोनों में लाभकारी है। योग गुरु ने कहा, “दिव्य श्वासारि वटी, पतंजलि गिलोय घनवटी, पतंजलि तुलसी घनवटी एवं पतंजलि अश्वगंधा कैप्सूल की संयुक्त एवं उचित मात्रा तथा दिव्य अणु तेल के सहयोग से कोरोना को परास्त कर दिया है। इन्हीं गुणकारी औषधियों के आनुपातिक मिश्रण से कोरोना महामारी की औषधि ‘कोरोनिल’ और ‘श्वासारि वटी’ तैयार की गई है।”

स्वामी ने कहा, “हमनें इस दवा का रेंडमाइज्ड प्लेसिबो कंट्रोल्ड क्लिनिकल ट्रायल 100 कोरोना संक्रमित रोगियों पर किया जिसमें 3 दिन में 69 प्रतिशत मरीज़ कोरोना नेगेटिव पाए गए, जबकि 7 दिन में ही 100 प्रतिशत मरीज़ नेगेटिव हो गए। इसकी खुराक से एक भी मरीज़ की मृत्यु नहीं हुई। यह कोरोना के उपचार के लिए विश्व में आयुर्वेदिक औषधियों का पहला सफल क्लिनिकल ट्रायल है। 100 प्रतिशत रिकवरी तथा 0 प्रतिशत मृत्यु दर प्रमाणित करती है कि कोरोना का उपचार आयुर्वेद में ही संभव है।” कोरोनिल प्रत्येक जिले, तहसील व ब्लॉक में पतंजलि स्टोर पर शीघ्र ही उपलब्ध कराई जाएगी। रामदेव ने देशवासियों से अपील की कि कोरोना से बिल्कुल न डरें, 7 दिन धीरज धरें। कोरोना भाग जाएगा।

इस अवसर पर आचार्य बालकृष्ण जी महाराज ने कहा “संपूर्ण देशवासियों के भरोसे से पतंजलि नित नए इतिहास गढ़ रहा है। हमने ऋषियों के प्राचीन ज्ञान को विज्ञान-सम्मत बनाने में सफलता हासिल की है। क्योंकि जब तक औषधि की प्रामाणिकता सर्वमान्य नहीं होती तब तक उसका आंकलन सही प्रकार से नहीं किया जाता। इनमें, अश्वगंधा में निहित शक्तिशाली कंपाउंड विथेनॉन, गिलोय के मुख्य कंपोनेंट टिनोकॉर्डिसाइड, तुलसी में पाए जाने वाले स्कूटेलेरिन, तथा दिव्य श्वासारि वटी की अत्यंत प्रभावशाली जड़ी-बूटियों जैसे- काकड़ाशृंगी (Pistacia integerrima), रुदंती (Cressa cretica), अकरकरा (Anacyclus pyrethrum) के साथ-साथ सैकड़ों फाइटोकैमिकल्स या फाइटो मेटाबोलाइट्स तथा अनेक प्रभावशाली खनिजों का वैज्ञानिक सम्मिश्रण है, जो कोरोना के लाक्षणिक एवं संस्थानिक चिकित्सा से लेकर रोगी की इम्युनिटी बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।”

Ramdev-Coronil-300x200 रामदेव का कोरोना की दवा बनाने का दावा, जांच करेगा आयुष मंत्रालय, बिक्री पर भी रोक

बालकृष्ण ने बताया कि इन औषधियों की क्लिनिकल केस स्टडी दिल्ली, अहमदाबाद और मेरठ समेत पूरे देश में की गई ओऔर रेंडमाइज्ड प्लेसिबो कंट्रोल्ड क्लिनिकल ट्रायल (RCT) को नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस एंड रिसर्च के प्रो. (डॉ.) बलवीर एस. तोमर के नेतृत्व में किया गया। इसके लिए इंस्टीट्यूश्नल एथिक्स कमेटी के अप्रूवल से लेकर सीटीआरआई (क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री ऑफ़ इंडिया) के रजिस्ट्रेशन आदि और क्लिनिकल कंट्रोल ट्रायल की सभी अर्हताएं पूर्ण की गईं।

प्रो. (डॉ.) बलवीर तोमर ने कहा कि आयुर्वेद हमारे पूर्वज ऋषियों की अमूल्य देन है। हमारे वेद, पुराण, महर्षि चरक तथा महर्षि सुश्रुत की संहिताएं पूर्णतः वैज्ञानिक हैं। किंतु प्रमाण उपलब्ध न होने के कारण आयुर्वेद एलोपैथ से पिछड़ गया। पतंजलि आयुर्वेद को पूर्ण प्रामाणिकता उपलब्ध कराने हेतु कृतसंकल्प है।

उधर कोरोनिल के प्रचार पर सरकार ने तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। आयुष मंत्रालय ने पतंजलि को आदेश दिया है कि कोरोना की इस दवा का तब तक प्रचार नहीं करें जब तक कि इसे लेकर किए गए मेडिकल दावे की जांच पूरी नहीं हो जाती है। मंत्रालय ने पतंजलि से दवा की डीटेल मांगी है ताकि पतंजलि के दावे की जांच की सके। मंत्रालय ने कहा कि पतंजलि की कथित दवा, औषधि एवं चमत्कारिक उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) कानून, 1954 के तहत विनियमित है।

ऐसी बाणी बोलिए, मन का आपा खोए…

0

आपने भी ऐसा महसूस किया होगा कि कभी-कभी हम बीमार होने पर संयोग से ऐसे डॉक्टर के पास पहुंच जाते हैं, जो बहुत हंसमुख और ज़िंदादिल होता है। उसकी बात सुनकर ही लगने लगता है कि हम ठीक हो गए हैं, तो क्या वाणी में भी इंसान की बीमारी को दूर करने की ताक़त है? वाणी बीमारी दूर करती है या नहीं यह शोध का विषय हो सकता है, लेकिन बातों का मन-मस्तिष्क पर बहुत गहरा असर पड़ता है। तो क्यों न हम कबीर के दोहे पर अमल करते हुए हमेशा मीठी वाणी ही बोलें। मधुर संवाद यानी बातचीत भी एक तरह की थेरेपी है।

वाणी यानी बोल या बोली से ही सारे कार्य सधते हैं और वाणी से ही सारे कार्य बिगड़ भी जाते हैं। मीठी वाणी जहां बोलने वाले को सम्मान दिलाती है, वहीं अप्रिय वाणी से विवाद पैदा होता है, जो बोलने वाले की बेइज़्ज़्ती तक करवा देती है। कहने का मतलब वाणी बोलने वाले और सुनने वाले दोनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। हम जिस इंसान से बात कर रहे हैं, वह किस तरह की बातें बोल रहा है, इसका हमारे ऊपर बहुत गहरा असर पड़ता है। कभी-कभी तो किसी की बात इतनी प्यारी लगती है कि उसे और सुनने का मन करता है। कॉलेज में भी कई प्रोफेसर मधुर वाणी के साथ सब्जेक्ट को इस तरह डील करते हैं, कि सभी छात्र सम्मोहित होकर उनकी बात सुनते हैं। कॉलेज में वह प्रोफेसर बड़ा लोकप्रिय हो जाता है। उसका पीरियड सबसे ज़्यादा छात्र अटेंड करते हैं।

Vani2-300x200 ऐसी बाणी बोलिए, मन का आपा खोए...

किसी से मिलने पर उसकी बात सुनकर हम सहज़ सोचने लगते हैं, कितनी अच्छी बातें बोल रहा था या बोल रही थी। कहना न होगा कि मीठी बोली पॉज़िटिविट एनर्जी की स्रोत की तरह होती है। मीठी वाणी बोलने या सुनने से आसपास पॉज़िटिव एनर्जी पैदा होती है। जो हमें ख़ुश रखती है और यह ख़ुशी अंततः हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए रामबाण की तरह काम करती है।

Vani3-277x300 ऐसी बाणी बोलिए, मन का आपा खोए...

वाणी के महत्व पर धर्मशास्त्रों के नज़रिए से दृष्टिपात करें तो यह इंद्रिय संयम के ज़रिए सुखी जीवन पाने का अहम सूत्र भी है, इसीलिए कहा गया है कि सांसारिक जीवन में मीठी वाणी के अभाव में दान-पुण्य, ज्ञान-अध्ययन या पूजा-पाठ का कोई मतलब नहीं रह जाता। यानी अगर आप मधुर भाषी हैं तो पूजा पाठ या दान-पुण्य न करें तो भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। वहीं अगर आपकी बोली कड़वी है या आप अप्रिय बातें बोलते हैं तो आप लाख दान-पुण्य या पूजा-पाठ करें, आपको कोई फल नहीं मिलने वाला। आप अपनी निगेटिव ज़बान के कारण हमेशा परेशान रहेंगे और दूसरों को भी परेशान करते रहेंगे, क्योंकि वाणी का असर सीधे दिल और दिमाग़ पर पड़ता है। मीठे बोल जहां सामने वाले को ख़ुश ही नहीं करते, बल्कि उसमें पॉज़िटिव एनर्जी का संचार करते हैं, वहीं कड़वे बोल हृदय, मर्म और अस्थि को गहरा दु:ख पहुंचाते हैं।

वाणी के व्यावहारिक पक्ष पर गौर करें तो मीठे शब्दों से न केवल बोलने और सुनने वाले को सुकून मिलता है, बल्कि मीठी वाणी से हम दूसरों का मन भी मोह या जीत लेते हैं। कहने का मतलब मीठी वाणी का जादू भी सफलता का सूत्र है। इसलिए हमेशा ध्यान रखना चाहिए किसी से बोलते समय हमारी वाणी कैसी हो? शब्द कैसे हों? कौन से ऐसे ख़ास शब्द हैं, जिनका हर इंसान जीवनभर मेल-मिलाप या व्यवहार के दौरान उपयोग कर जीवनभर सुख बंटोर सकता है और इससे तंदुरुस्त रह सकता है?

भविष्य पुराण में वाणी की अहमियत और मिठास की महिमा का वर्णन किया गया है। कहा गया है कि मीठी वाणी चंदन की भांति शीतल और सुकून देती है, जिससे जीवन और मृत्यु के बाद भी सुख की अनुभूति होती है।

Bhavishya-Puran-190x300 ऐसी बाणी बोलिए, मन का आपा खोए...

किसी नगर में एक सज्जन रहते थे। उनकी वाणी बहुत मधुर थी। जो उनके पास आता ख़ुश और संतुष्ट होकर जाता था। एक दिन एक व्यापारी आया जो ग़ुस्से में था। दरअसल, उसका इकलौता पुत्र घर छोड़ कर सज्जन के पास आ गया था। व्यापारी ने सज्जन पर अपशब्दों की बौछार कर दी। बहुत देर तक सज्जन को भला-बुरा कहता रहा। उसने नुक़सान पहुंचाने की धमकी भी दी। लेकिन सज्जन एक शब्द भी नहीं बोले। वह व्यापारी की खरी-खोटी सुनते रहे। उनके चेहरे पर शिकन तक नहीं आई। उल्टे वह चुपचाप मुस्कराते रहे। अंतत: जब व्यापारी बोलते-बोलत थक गया।

Ananya-Pandey-202x300 ऐसी बाणी बोलिए, मन का आपा खोए...

तब सज्जन ने कहा, “जो शब्द आदमी के मुंह से निकलता है, वह बाहर आने से पहले उसकी जीभ को स्पर्श करता है? बुरे वचन दूसरों पर जैसा भी प्रभाव डालें, लेकिन सबसे पहले बोलने वाले के मुंह को ही कड़वा कर देते हैं। शायद तुम्हारा मुंह भी कसैला हो रहा है?” यक़ीनन व्यापारी का स्वाद कसैला हो गया था। सज्जन ने फिर कहा कि दुर्वचन की आग पहले दुर्वचन बोलने वाले को ही जलाती है। व्यापारी ने खिड़की के बाहर बगीचे में हंसी-खुशी पढ़ते हुए अपने बेटे को देखा। सज्जन की वाणी की पॉज़िटिव एनर्जी ने व्यापारी के मन का विकार दूर कर दिया। कहने का मतलब मधुर वाणी आत्मा को तृप्त करती है, जबकि कटु वाणी स्वयं सहित सभी को अशांत कर देती है।

अत: हमें हमेशा केवल और केवल मीठा यानी मधुर वाणी ही बोलनी चाहिए। मीठा बोलेंगे तो ख़ुश रहेंगे और ख़ुश रहने का मतलब स्वस्थ होना होता है। यानी तंदुरुस्त रहना चाहते हैं तो मधुर वाणी बोलिए।

लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा

श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत की जांच क्यों नहीं हुई?

0

हरिगोविंद विश्वकर्मा

शिक्षाविद्, राजनेता और भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का एक राष्ट्र, एक विधान, एक ध्वज का सपना पूरा हो चुका है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 ए को ख़त्म कर दिया गया है। ऐसे में यह जानना रोचक होगा कि डॉ मुखर्जी क्यों चाहते थे कि जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म कर दिया जाए। आज से ठीक 63 साल पहले डॉ. मुखर्जी की कश्मीर में न्यायिक हिरासत के दौरान मौत हो गई थी। हैरानी की बात है कि उनकी मां लेडी जोगमाया देवी मुखर्जी की मांग के बावजूद न तो केंद्र सरकार और न ही जम्मू कश्मीर सरकार ने मौत की जांच करवाई। जोगमाया ही नहीं पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री डॉ. विधानचंद राय और तब के बड़े कांग्रेस नेता पुरुषोत्तमदास टंडन ने भी डॉ. मुखर्जी की मौत की जांच सुप्रीम कोर्ट के जज से कराने की ज़ोरदार मांग की थी, लेकिन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू टस से मस नहीं हुए।

इसे भी पढ़ें – अंत तक अनसुलझी ही रही दीनदयाल उपाध्याय की हत्या की गुत्थी

चार जुलाई, 1953 को जोगमाया ने नेहरू को अंग्रेज़ी में मार्मिक पत्र लिखा था। उन्होंने लिखा, “उसकी (डॉ. मुखर्जी) मौत रहस्य में डूबी हुई है। क्या यह हैरतअंगेज़ और अविश्वसनीय नहीं है कि बिना किसी ट्रायल के उसे गैरक़ानूनी ढंग से 43 दिन हिरासत में रखा गया और मुझे, उसकी मां को, जानकारी तक नहीं नहीं दी गई और वहां की सरकार ने मुझे सूचना उसके निधन के दो घंटे बाद दी। मैं अपने पुत्र की मृत्यु के लिए राज्य सरकार को ही ज़िम्मेदार मानती हूं और आरोप लगाती हूं कि उसने ही मेरे पुत्र की जान ली है। मैं तुम्हारी सरकार पर भी यह आरोप लगाती हूं कि घटना को छुपाने के लिए सांठगांठ करने की कोशिश की। इसलिए मैं, स्वतंत्र भारत के उस निडर सपूत की मां, उसकी दुखद और रहस्यमय मौत की अविलंब निष्पक्ष जांच की मांग करती हूं। मैं जानती हूं कि अब कुछ भी हो, उसका जीवन वापस नहीं लाया जा सकता, लेकिन मैं चाहती हूं भारत के लोगों पूरी घटना के असली कारणों से अवगत हों जिससे मेरे बेटे व्यक्ति की मौत हो गई।”

Srinagar-LalChowk-300x200 श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत की जांच क्यों नहीं हुई?

पांच जुलाई 1953 को जोगमाया को भेजे जवाब में नेहरू ने लिखा, “मैं श्यामा की हिरासत और मौत के बारे में ईमानदारी से जुटाई गई जानकारी के आधार पर आपको जवाब देना चाहता हूं। मैंने ढेर सारे लोगों से पूछताछ की जो उस समय घटनास्थल पर ही मौजूद थे। अब मैं केवल इतना ही कह सकता हूं कि मैं सच्चे और स्पष्ट निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि डॉ. मुखर्जी की मौत पर इस तरह का कोई रहस्य नहीं है, जिस पर विचार किया जाए।” नेहरू का डॉ. भीमराव अंबेडकर और सरदार पटेल की तरह डॉ. मुखर्जी से बहुत गंभीर मतभेद था। यहां तक कि 13 फरवरी 1953 को लोकसभा में दोनों की बीच बहुत तल्ख बहस हुई थी। जिसमें नेहरू ने अपना आपा तक खो दिया था। उसके बाद 14 अप्रैल को लोकसभा में अपने भाषण में जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की पैरवी करते हुए डॉ. मुखर्जी ने कहा कि नेहरू की नीतियों को देश के लिए विनाशकारी साबित होंगी।

इसे भी पढ़ें – क्या लालबहादुर शास्त्री की मौत के रहस्य से कभी हटेगा परदा ?

26 अक्टूबर 1947 को जम्मू कश्मीर के भारत में विलय के समझौते का बाद जम्मू कश्मीर भारत का हिस्सा तो हो गया, लेकिन धारा 370 के तहत उस समय जम्मू कश्मीर का अलग झंडा और अलग संविधान था। वहां देश के सुप्रीम कोर्ट तक का फ़ैसला लागू नहीं होता था। इतना ही नहीं, वहां का मुख्यमंत्री वजीरे-आज़म अर्थात् प्रधानमंत्री कहलाता था और जम्मू कश्मीर में भारतीयों को प्रवेश करने के लिए पासपोर्ट की तरह परमिट लेनी पड़ती थी। यानी भारत के अंदर जम्मू कश्मीर को स्वतंत्र देश का दर्जा दे दिया गया।

Pt-Jawaharlal-Nehru-236x300 श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत की जांच क्यों नहीं हुई?

डॉ. मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाने के प्रबल पैरोकार थे। इस मुद्दे पर पूरा देश उनके साथ था। अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था और कहा था, “या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊंगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा।” नेहरू सरकार को डॉ. मुखर्जी ने चुनौती दी और अपने दृढ़ निश्चय पर अटल रहे। अपने संकल्प को पूरा करने के लिए वह मई 1953 में बिना परमिट लिए जम्मू-कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वह पंजाब के उत्तरी छोर पर बसे माधोपुर तक पहुंच गए। माधोपुर में रावी को पार करते ही जम्मू कश्मीर राज्य शुरू होता है। राज्य में प्रवेश करने पर डॉ. मुखर्जी को 11 मई 1953 को वज़ीरे आज़म शेख़ अब्दुल्ला के आदेश पर हिरासत में ले लिया था।

इसे भी पढ़ें – महात्मा गांधी की हत्या न हुई होती तो उन्हें ही मिलता शांति नोबेल सम्मान

सबसे ज़्यादा हैरान करने वाली बात यह थी कि डॉ. मुखर्जी को माधोपुर से राज्य में प्रवेश करने पर लखनपुर में हिरासत में लिया गया था लेकिन उन्हें जम्मू की किसी जेल में रखने की बजाय क़रीब 500 किलोमीटर दूर श्रीनगर ले जाया गया। बताया जाता है कि वह रास्तें में ही बीमार पड़ गए और बीमारी की हालत में ही जीप में डालकर उन्हें श्रीनगर ले जाया गया। इतनी लंबी यात्रा उनकी सेहत के लिए घातक थी। परंतु जम्मू कश्मीर के पुलिस अधिकारी उन्हें श्रीनगर ले जाने के लिए अड़े रहे। वस्तुतः पंजाब सरकार डॉ. मुखर्जी को माधोपुर में ही हिरासत में ले सकती थी, लेकिन उन्हें गुरुदासपुर के डिप्टी एसपी ने सूचित किया कि सरकार ने उन्हें जम्मू कश्मीर जाने की इजाज़त दे दी है। इसी बिना पर उन्हें पंजाब-जम्मू कश्मीर सीमा पार करने दिया गया। माधोपुर की बजाय लखनपुर में हिरासत में लेने का राज्य और केंद्र को यह लाभ हुआ कि एक लोकसभा सदस्य की गिरफ़्तारी पर भी सुप्रीम कोर्ट भी दख़ल नहीं दे सकता था, क्योंकि जम्मू कश्मीर राज्य तब देश की सबसे बड़ी अदालत की ज्यूरीडिक्शन से बाहर था।

Srinagara-Assembly-300x170 श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत की जांच क्यों नहीं हुई?

डॉ. मुखर्जी को श्रीगनर में जिस जेल में रखा गया था, वह उस समय उजाड़ स्थान पर था और वहां से अस्पताल 15 किलोमीटर दूर था। श्रीनगर जेल में टेलीफोन की भी सुविधा नहीं थी। मृत्यु से पहले डॉ. मुखर्जी को अस्पताल में जिस गाड़ी में ले जाया गया उसमें जानबूझ कर उनके किसी और साथी को बैठने नहीं दिया गया। सबसे बड़ी बात यह कि डॉ. मुखर्जी की व्यक्तिगत डायरी को रहस्यमय ढंग से ग़ायब कर दिया गया। परिस्थितिजन्य साक्ष्यों से यह भी स्पष्ट होता है कि मुखर्जी को हिरासत में लेने के लिए भी किसी न किसी स्तर पर बड़ी साज़िश हुई थी।

इसे भी पढ़ें -अर्नब गोस्वामी और रिपब्लिक टीवी को खत्म करने का मुंबई पुलिस का मास्टर प्लान

सबसे बढ़कर, मुखर्जी के इलाज के तमाम दस्तावेज़ संदेहास्पद हालात में छिपा लिए गए। इन्हीं साक्ष्यों के आधार पर भारतीय जनसंघ समेत देश के कई गणमान्य लोगों ने मुखर्जी की मौत की जांच की मांग की। शेख अब्दुल्ला सरकार पर मुखर्जी की मौत में शामिल होने का शक बहुत गहरा था। इसीलिए जब आठ अगस्त 1953 को शेख अब्दुल्ला को गिरफ़्तार किया गया तो कई लोगों ने यही माना कि उनकी गिरफ़्तारी मुखर्जी की मौत के सिलसिले में हुई, जबकि, दस्तावेज़ों के मुताबिक़, शेख अब्दुल्ला को कथित तौर पर कश्मीर को भारत से अलग करने की साज़िश रचने के आरोप में डिसमिस कर जेल में डाला गया था। बहरहाल, अब्दुल्ला की गिरफ़्तारी के बाद भी मुखर्जी की मौत की जांच के लिए न तो जम्मू कश्मीर सरकार न ही केंद्र सरकार तैयार हुई।

Culcutta-University-300x107 श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत की जांच क्यों नहीं हुई?

छह जुलाई जुलाई 1901 को कलकत्ता के मशहूर शिक्षाविद् आशुतोष मुखर्जी एवं जोगमाया देवी की संतान के रूप में जन्मे डॉ. मुखर्जी ने 1917 में मैट्रिक किया और 1921 में स्नातक और 1923 में लॉ की डिग्री लेने के बाद वह विदेश चले गये। 1926 में इंग्लैंड से बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौटे। पिता का अनुसरण करते हुए उन्होंने भी अल्पायु में ही स्टडी शुरू कर दी थी। महज़ 33 साल की अल्पायु में वह कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बनाए गए। एक विचारक और प्रखर शिक्षाविद् के रूप में उनकी उपलब्धि तथा ख्याति निरंतर आगे बढ़ती गयी। वह ‘इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ़ साइंस’, बंगलौर की परिषद एवं कोर्ट के सदस्य और इंटर-यूनिवर्सिटी ऑफ़ बोर्ड के चेयरमैन भी रहे।

इसे भी पढ़ें – सरदार पटेल को क्या गृहमंत्री पद से हटाना चाहते थे महात्मा गांधी?

डॉ. मुखर्जी ने देशप्रेम का अलख जगाने के उद्देश्य से ही राजनीति में प्रवेश किया था। वह सच्चे अर्थों में मानवता के उपासक और सिद्धांतवादी थे। वह वीर सावरकर से ख़ासे प्रभावित थे और उनके राष्ट्रवाद के प्रति आकर्षित हुए और हिंदू महासभा में शामिल हुए। तब मुस्लिम लीग की राजनीति से बंगाल का माहौल हिंसक हो गया था। वहां सांप्रदायिक विभाजन की नौबत आ गई थी। कम्युनल लोगों की ब्रिटिश सरकार मदद कर रही थी। इस विषम परिस्थिति में उन्होंने यह सुनिश्चित करने का बीड़ा उठाया कि बंगाल के हिंदुओं की उपेक्षा न हो। अपनी विशिष्ट रणनीति से उन्होंने बंगाल के विभाजन के मुस्लिम लीग के प्रयासों को पूरी तरह से नाकाम कर दिया।

Shaikh-Abdullah-300x169 श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत की जांच क्यों नहीं हुई?

डॉ. मुखर्जी इस धारणा के प्रबल समर्थक थे कि सांस्कृतिक दृष्टि से सभी भारतीय एक हैं। हममें कोई अंतर नहीं। हम सब एक ही रक्त के हैं। एक ही भाषा, एक ही संस्कृति और एक ही हमारी विरासत है। इसलिए धर्म के आधार पर विभाजन नहीं होना चाहिए। परंतु उनके इन विचारों को अन्य राजनैतिक दल के तत्कालीन नेताओं ने दूसरे रूप से प्रचारित-प्रसारित किया। बावजूद इसके लोगों के दिलों में उनके प्रति अथाह प्यार और समर्थन बढ़ता गया। अगस्त, 1946 में मुस्लिम लीग ने अपने ऐक्शन प्लान के तहत जंग की राह पकड़ ली और कलकत्ता में भयंकर बर्बरतापूर्वक अमानवीय मारकाट हुई।

इसे भी पढ़ें – जाति बहिष्कृत होने के बाद जिन्ना के पिता हिंदू से मुसलमान बन गए

ब्रिटेन की विभाजन की योजना और साज़िश कांग्रेस नेताओं ने अखंड भारत संबंधी अपने वादों को ताक पर रखकर स्वीकार कर लिया। तब मुखर्जी ने बंगाल और पंजाब के विभाजन की मांग उठाकर प्रस्तावित पाकिस्तान का विभाजन कराया और आधा बंगाल और आधा पंजाब खंडित भारत के लिए बचा लिया। महात्मा गांधी और सरदार पटेल के अनुरोध पर वह केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हुए। उन्हें उद्योग जैसे महत्वपूर्ण विभाग की ज़िम्मेदारी सौंपी गई। संविधान सभा और प्रांतीय संसद के सदस्य और केंद्रीय मंत्री के नाते उन्होंने शीघ्र ही अपना विशिष्ट स्थान बना लिया। किंतु उनके राष्ट्रवादी चिंतन के चलते नेहरू समेत दूसरे नेताओं से मतभेद बराबर बने रहे। नेहरू और पाकिस्तानी पीएम लियाकत अली के बीच कथित तौर पर हिंदू विरोधी समझौते और पाकिस्तान के हिंदुओं के क़त्लेआम न रोक पाने के विरोध में छह अप्रैल 1950 को उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था।

The_first_Cabinet_of_independent_India-300x222 श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत की जांच क्यों नहीं हुई?

डॉ. मुखर्जी जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन संघचालक गुरु गोलवलकर से सलाह करने के बाद 21 अक्तूबर 1951 को दिल्ली में भारतीय जनसंघ की नींव रखी और इसके पहले अध्यक्ष बने। सन् 1952 के चुनावों में भारतीय जनसंघ ने संसद की तीन सीटों पर विजय प्राप्त की, जिनमें से एक सीट पर डॉ. मुखर्जी जीते। उन्होंने संसद में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन बनाया जिसमें 32 सदस्य लोकसभा तथा 10 सदस्य राज्य सभा शामिल हुए। बहरहाल, इस देश में किसी भी संदिग्ध मौत की केंद्रीय एजेंसी, एसआईटी या आयोग गठित करके जांच की लंबी परंपरा रही है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की कथित तौर पर हवाई दुर्घटना में मारे जाने की जांच के लिए तीन तीन आयोग बनाए गए, लेकिन डॉ. मुखर्जी के साथ घोर पक्षपात किया गया। प्रो. बलराज मोधक ने अक्टूबर 2008 में अपने एक लेख फाउंडिल ऑफ जनसंघ में कहा है कि डॉ. मुखर्जी की संदिग्ध मौत नेहरू और शेख़ के आशीर्वाद से हुई।

इसे भी पढ़ें – हिंदुस्तान की सरज़मीं पर इस्लामिक देश पाकिस्तान के बनने की कहानी

इस घटना को फ़िलहाल 63 साल हो गए। इस दौरान जम्मू-कश्मीर में कई सरकारें आईं और कई गईं। कई बार राज्य में राज्यपाल शासन भी रहा। इसी तरह दिल्ली में अनेक सरकारें बदली। जनसंघ के आधुनिक संस्करण भारतीय जनता पार्टी की भी सरकार रही, लेकिन किसी ने भी डॉ. मुखर्जी की संदिग्ध मौत से पर्दा उठाने का साहस नहीं किया। डॉ. मुखर्जी की मां जोगमाया देवी का नेहरु को लिखा गया पत्र दुर्भाग्य से अभी भी अपने उत्तर की तलाश कर रहा है।

Narendra-Modi-254x300 श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत की जांच क्यों नहीं हुई?

सबसे विचित्र बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने दो साल के कार्यकाल में इस बारे में कोई पहल नहीं की। मोदी की सरकार की जम्मू-कश्मीर नीति कमोबेश कांग्रेस सरकार जैसी ही है। कांग्रेस की तरह बीजेपी भी वहां की क्षेत्रीय पार्टी पीपुल्स डेमोक्रिटक पार्टी के साथ सत्ता सुख भोग रही है। और तो और बीजेपी ने पीडीपी को लिखित रूप में आश्वासन दिया है कि केंद्र सरकार अनुच्छे 370 को जस का तस बनाए रखेगी यानी उससे कोई छोड़छाड़ नहीं किया जाएगा, जिसके लिए डॉ. मुखर्जी ने अपना बलिदान दिया।

इसे भी पढ़ें – क्या पुरुषों का वर्चस्व ख़त्म कर देगा कोरोना?