अतंतः हिंसक जीवन का हिंसक अंत
विधि का विधान है। जैसा करोगे, वैसा ही भरोगे। गैंगस्टर विकास दुबे (Mostwanted Criminal Vikas Dubey) के साथ यही हुआ। आठ दिन तक समाचार की सुर्खियों में रहने वाली ख़बर का 10 जुलाई 2020 को अंत हो गया। अनगिनत लोगों की हत्या करने वाले कानपुर के मोस्टवांटेड अपराधी विकास दुबे को उत्तर प्रदेश की एसटीएफ ने अंततः मार ही डाला। हालांकि यह कोल्ड ब्लडेड मर्डर है, लेकिन प्रतिहिंसा की आग में जल रही उप्र पुलिस ने जो कुछ किया, ठीक ही किया। जिस अपराधी के ख़िलाफ़ पुलिस वाले तक गवाही देने से डरते हैं, उसे मार डालना सही था। हालांकि पुलिस कह रही है कि विकास को उज्जैन लाते समय कानपुर में प्रवेश करते ही भवती कस्बे के पास पुलिस की कार पलट गई। इसके बाद विकास दुबे ने एक पुलिस वाले की रिवॉल्वर छीन कर भागने की कोशिश की और पुलिस ने आत्मरक्षा में गोली चलाई, जिसमें विकास दुबे को सीने और कमर में गोली लगी। उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
नहीं उतरी गले पुलिस की थ्यौरी
पहली बात दुर्धटनाग्रस्त वाहन को देखकर लगता ही नहीं कि वह हादसे का शिकार हुई है, क्योंकि कोई गाड़ी चलते हुए ऐसे कैसे पलटी हो गई, जो तनिक भी क्षतिग्रस्त नहीं हुई। फिर जो गाड़ी पलट गई, उसमें बैठा हुआ विकास घायल क्यों नहीं हुआ। फिर पुलिस कह रही है, चार पुलिस वाले घायल हुए हैं। विकास दुबे, जिसके पांव में सरिया डाली गई है, इसलिए वह भाग नहीं सकता, तो वह भागने कैसे लगा। बहरहाल, यह बहस का विषय नहीं है। क्योंकि पुलिस ने अगर विकास को गोली मार दी, जो लब्बोलुआब ठीक ही किया। पुलिस ने अपनी कार्रवाई से इस ख़तरनाक अपराधी को मुख्तार अंसारी या अतीक अहमद की तरह विधायक या सांसद बनने से पहले ही ख़त्म कर दिया।
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महाकाल मंदिर में किया था नाटकीय आत्मसमर्पण
विकास दुबे की गिरफ़्तारी के बारे में बताया जाता है कि वह 9 जुलाई को सुबह सात बजे महाकालेश्वर मंदिर पहुंचा। वह मास्क लगाए हुए था। उसने महाकाल के दर्शन की पर्ची खुद कटाई थी। मंदिर में जाकर बाकायदा महाकाल की पूजा की। मौके पर स्थानीय मीडिया को भी बुला लिया था। मीडिया के सामने विकास चिल्लाने लगा, ‘मैं विकास दुबे हूं… कानपुर वाला।’ तब मंदिर के चौकीदारों ने उसे पकड़ लिया। फिर पुलिस को सूचित किया गया। कहा जा रहा है कि इनकाउंटर से बचने के लिए विकास ने पूरी योजना के साथ उज्जैन पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था।
पुलिस महकमे में विकास की भारी पैठ थी
विकास दुबे की पुलिस महकमे में पैठ कितनी गहरी थी, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कानपुर के एसएसपी ऑफ़िस से विकास दुबे की सहायता करने वाले नेताओं, शीर्ष पुलिस अफ़सरों और दूसरे प्रभावशाली लोगों की नामों की सूची वाली फ़ाइल और शहीद सीओ देवेंद्र मिश्रा की चौबेपुर थानाध्यक्ष विनय तिवारी की शिकायत वाली चिट्ठी अचानक रहस्यमय ग़ायब हो गई। इस साल मार्च में लिखी गई इस चिट्ठी में देवेंद्र मिश्रा ने विनय तिवारी पर विकास दुबे की खुली मदद करने का आरोप लगाया था। मज़ेदार बात यह है कि वह चिट्ठी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और उत्तर प्रदेश ही नहीं देश के हर नागरिक के वॉट्सअप पर आ गई। विकास को पकड़ने में जुटी पुलिस विकास के सिर पर इनाम बढ़ाती रही और इनामी राशि 50 हज़ार से पांच लाख रुपए तक पहुंच गई।
विकास दुबे कैसे बना ख़तरनाक अपराधी?
कानपुर में जब से सीओ देवेंद्र कुमार मिश्रा समेत आठ पुलिसवालों की हत्या हुई, तब से हर किसी के जुबान पर विकास दुबे का नाम आया। हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, रंगदारी वसूलना, डकैती, लूटपाट और अवैध रूप से दूसरों की ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने जैसे एक दो नहीं, बल्कि पांच-पांच दर्जन गंभीर अपराधों में लिप्त विकास दुबे के बारे में 3 जुलाई से पहले क्राइम रिपोर्टरों के अलावा कोई जानता ही नहीं था। विकास दुबे ने वह दुस्साहस किया, जो अपराधी तो दूर नक्सली और आतंकवादी भी नहीं कर पाते?
तीन दशक से अपराध जगत में सक्रिय विकास
पिछले तीन दशक से अपराध और राजनीति की दुनिया का बेताज़ बादशाह कहे जाने वाले मोस्टवांटेड अपराधी विकास दुबे को नब्बे के दशक से ही राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था। राजनीतिक संरक्षण में वह फला-फूला और आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देते हुए ख़ूब पैसे भी बनाए। नेताओं के लिए उसे संरक्षण देना इसलिए ज़रूरी था, क्योंकि बिल्हौर सर्कल के शिवराजपुर, चौबेपुर, शिवली और बिठूर थानों में उसकी बड़ी धमक थी। इन थानों के तहत आने वाले लगभग पांच सौ गांवों के लोग उसके फ़तवे पर वोट देते थे। लिहाज़ा, विधायक या सांसद बनने के लिए विकास का खुला समर्थन ज़रूरी होता है।
सीएम बदलते रहे, पर अपराधी पाता रहा संरक्षण
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि नब्बे के दशक से ही विकास दुबे के हर पार्टी के नेता, चाहे वह विधायक हों या लोक सभा सदस्य, से बड़े मधुर संबंध थे। कई नेताओं का तो वह पूरा चुनावी ख़र्च वहन करता था। इसीलिए उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री बदलते रहे, लेकिन विकास दुबे को बराबर संरक्षण मिलता रहा। चाहे मुलायम सिंह यादव हों, कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, रामप्रकाश गुप्ता, मायावती, अखिलेश यादव या योगी आदित्यनाथ हों, विकास का रुतबा जस का तस ही रहा। क्या मजाल कि स्थानीय पुलिस उस पर हाथ डाल दे। गांव में उसने अपना घर क़िले जैसा बना रखा है। बिना उनकी मर्ज़ी के घर के भीतर कोई जा नहीं सकता था।
मंत्री ब्रजेश पाठक के साथ विकास की फोटो वायरल
कानपुर एनकाउंटर में विकास दुबे का नाम आने के बाद से ही योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल में विधि मंत्री ब्रजेश पाठक के साथ उसकी फोटो वायरल हुई। अखिलेश यादव के कार्यकाल में मुलायम सिंह का अपने आपको धमकाने वाला ऑडियो टेप जारी करके चर्चा में आए प्रदेश के सीनियर आईपीएस अफ़सर अमिताभ ठाकुर ने तो सीधे तौर पर ब्रजेश पाठक पर विकास को संरक्षण देने का आरोप लगाया था। कहा जाता है कि ब्रजेश पाठक से विकास दुबे का संबंध तब से है, जब ब्रजेश पाठक बसपा के सांसद हुआ करते थे। आरोप है कि विकास को भाजपा सरकार में मंत्री रही प्रेमलता कटियार का भी वरदहस्त मिला हुआ था। इतना ही नहीं, विरोधी आरोप लगाते हैं कि विकास को बिठूर के भाजपा विधायक अभिजीत सांगा का भी संरक्षण प्राप्त था। बसपा के कद्दावर नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी पर भी विकास को पनाह देने के आरोप लगे थे। समाजवादी पार्टी के एमएलसी कमलेश पाठक का वरदहस्त विकास को मिला हुआ था। कमलेश कानपुर में इसी साल मार्च में अधिवक्ता मंजुल चौबे और उनकी बहन की पुलिस के सामने गोली मारकर हत्या करने के आरोपी हैं और इन दिनों आगरा जेल में बंद हैं।
1990 में रखा अपराध की दुनिया में कदम
मूल रूप से कानपुर में शिवली थाना क्षेत्र के बिकरू गांव के रहने वाले 48 वर्षीय अपराधी विकास दुबे पुत्र राम कुमार दुबे बचपन से ही जुर्म की दुनिया का बादशाह बनना चाहता था। उसने अपराध की दुनिया में 1990 में तब कदम रखा, जब पिता के अपमान का बदला लेने के लिए उसने नवादा गांव के किसानों को जम कर पीटा था। विकास के ख़िलाफ़ शिवली थाने में पहला मामला दर्ज़ हुआ था। ब्राह्मण बाहुल्य क्षेत्र में पिछड़ों की हनक को कम करने के लिए विकास को लगातार राजनीतिक संरक्षण मिलता रहा। सबसे पहले पूर्व विधायक नेकचंद्र पांडे ने उसे संरक्षण दिया। वह क्षेत्र में दबंगई के साथ मारपीट करता रहा, थाने पहुंचते ही नेताओं के फोन आने शुरू हो जाते थे। कुछ दिनों बाद तो पुलिस ने भी उस पर नज़र टेढ़ी करनी छोड़ दी थी।
गांव के ही एक युवक की हत्या
अगले साल यानी 1991 में विकास दुबे ने एक दलित युवक की हत्या कर दी। चौबेपुर थाने में उसके ख़िलाफ़ हत्या का मुक़दमा दर्ज़ हुआ। कहा जाता है कि इस अपराध से बचने के लिए विकास दुबे बिल्हौर से जनता दल विधायक और मुलायम के खास मोतीलाल देहलवी के संपर्क में आया। बाद में मोतीलाल जब उसकी मदद करने में आनाकानी करने लगे तो विकास ने जनता पार्टी के नेता शिव कुमार बेरिया का दामन थामा। बिल्हौर विधानसभा चुनाव में उसने उनकी मदद की। हालांकि सूबे में कल्याण सिंह की अगुआई में भाजपा की सरकार बन गई थी, मगर समाजवादी पार्टी के ज़रिए भाजपा शासन में भी उसे संरक्षण मिलता रहा। 1992 में विकास ने एक दलित की हत्या कर दी, लेकिन नेताओं के सरंक्षण की वजह से उसका बाल भी बांका नहीं हुआ।
गेस्ट-हाउस कांड के बाद बसपा में आया
बताया जाता है कि तीन चार साल तक विकास दुबे शिव कुमार बेरिया का अनुयायी बना रहा, लेकिन सूबे में बनते-बिगड़ते राजनीतिक समीकरण के बीच जब लखनऊ गेस्ट-हाउस कांड के बाद मायावती मुख्यमंत्री बनीं तो उसने मायावती को देवी की तरह पूजने वाले भगवती प्रसाद सागर का दामन थाम लिया और 1996 में उनकी खूब मदद की। लिहाज़ा, सागर बसपा के टिकट पर विधायक बन गए। जब मायावती मुख्यमंत्री थीं, तब विकास का सिक्का बिल्हौर, शिवराजपुर, बिठूर, चौबेपुर के साथ ही कानपुर शहर में भी चलने लगा। इस दौरान विकास ने ज़मीनों पर अवैध कब्जे के साथ और गैर कानूनी तरीकों से संपत्ति बनाई। विकास ने भी राजनीति के दाव पेंच सीखे और जेल में रहते हुए उसने शिवराजपुर से नगर पंचायत का चुनाव जीत लिया।
हरिकिशन श्रीवास्तव पहले राजनीतिक गुरु
नब्बे के दशक के अंतिम दौर में विकास दुबे ने ख़ुद राजनीति में उतरने का मन बना लिया। उसे राजनीति में लाने का श्रेय चौबेपुर विधानसभा के पूर्व बसपा विधायक और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हरिकिशन श्रीवास्तव को जाता है। हरिकिशन श्रीवास्तव की गिनती बसपा के बड़े नेताओं में होती है। कहा जाता है कि पूर्व विधायक जो काम नहीं कर पाते थे उनके लिए उनका काम विकास करता था। विकास खुद कहता था कि उस राजनीति में लाने का श्रेय हरिकिशन का ता। वहीं, उसके राजनीतिक गुरु रहे। कहा जाता है कि हरिकिशन श्रीवास्तव ने विकास दुबे को बहन मायावती से मिलवाया और उससे बसपा टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार रहने को कहा था।
भाजपा नेता शिवली थाने में घुस कर हत्या
बहरहाल, इस दौरान विकास दुबे की नज़र प्रदेश में राजनीतिक समीकरण पर बराबर रही और इसीलिए 2002 में फिर से समाजवादी पार्टी के शिवकुमार बेरिया का भक्त बन गया और विधायक बनने में उनकी हर संभव मदद की, लेकिन उसने बसपा के भगवती सागर से संबंध बनाकर रखा। अक्टूबर 2001 में विकास ने राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त भाजपा के संतोष शुक्ला की शिवली थाने में घुस कर हत्या कर दी। इस गोलीबारी में दो पुलिस वाले भी मारे गए। इस हत्याकांड के बाद विकास पूरे प्रदेश में छा गया। उसका ख़ौफ़ इतना बढ़ा कि उसकी तूती बोलने लगी। ज़मीन की ख़रीद-फ़रोख़्त, अवैध क़ब्ज़ा या सुपारी मर्डर, जैसे कार्य वह आसानी से करता गया और सबूत के अभाव में बचता गया। लोग डर के मारे उसके ख़िलाफ़ बयान ही नहीं देते थे। उसके ख़ौफ़ का आलम ऐसा था कि लोग अपने छोटे-बड़े झगड़े को सुलझाने के लिए पुलिस की बजाय विकास के पास जाते थे।
मुलायम ने नहीं दी रिहाई के फैसले को चुनौती
उत्तर प्रदेश की राजनीति में विकास दुबे कितना प्रभावशाली था, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि शिवली थाना गोलीबारी में दो पुलिस वालों के मारे जाने के बावजूद उस केस में पुलिस ने कमज़ोर चार्जशीट बनाया। मुक़दमे की सुनवाई के दौरान सभी 19 पुलिस वाले ही अदालत में अपने बयान से ही मुकर गए। किसी पुलिस वाले ने विकास के ख़िलाफ़ गवाही देने की हिम्मत नहीं जुटाई। लिहाज़ा, अदालत ने उसे 2005 में बरी कर दिया। मज़ेदार बात यह है कि विकास को बाइज़्ज़त बरी करने वाले जज एचएम अंसारी अगले ही दिन सेवानिवृत्त हो गए। तब मुलायम सिंह यादव सूबे के मुखिया थे, लेकिन सबसे अहम यह कि उनकी सरकार की ओर से भी विकास को बरी करने के अदालत के फ़ैसले को हाईकोर्ट में चुनौती नहीं दी गई।
सीओ अब्दुल समद को बंधक बनाकर पीटा था
दिन-दहाड़े भाजपा नेता और दो पुलिस वालों की हत्या करने के बावजूद बाइज़्जत बरी होने और उस फैसले को मुलायम सरकार द्वारा हाईकोर्ट में चुनौती न देने से विकास दुबे का दबदबा कानपुर में पूरे पुलिस महकमे में भी बढ़ गया। पुलिस वाले भी उससे डरने लगे। यही वजह है कि 2005 में झगड़ा होने पर विकास और उसके आदमियों ने बिल्हौर के सर्कल अफ़सर (सीओ) अब्दुल समद को ही बंधक बना लिया था और कमरे में बंद करके अब्दुल समद को बुरी तरह पीटा था। इसके बावजूद कानपुर पुलिस ने उसके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की। इससे उसका दुस्साहस और बढ़ गया।
पूरे कानपुर में स्थापित किया दबदबा
सन् 2006 के आसपास बसपा में कमलेश कुमार दिवाकर काफी प्रभावशाली हो गए थे। कानपुर के होने के कारण उनका दावा बिल्हौर और भोगनीपुर विधानसभा सीटों पर था। लिहाज़ा, बसपा ने 1993 में भोगनीपुर सीट से विधायक का चुनाव जीत चुके भगवती प्रसाद सागर को झांसी के मऊरानीपुर विधानसभा से चुनाव लड़वाया। उन्होंने न केवल वहां जीत हासिल की, बल्कि तीसरी बार विधायक बनने पर मायावती सरकार में राज्यमंत्री भी बनाए गए। स्थानीय लोगों का कहना है कि इसका लाभ विकास को भी मिला। इधर 2007 विधानसभा चुनाव में कमलेश कुमार दिवाकर बिल्हौर से बसपा का टिकट मिला तो, विकास ने उन्हें विजयश्री दिलाने में भरपूर सहयोग दिया। प्रदेश में बसपा को बहुमत मिला और विकास के कारोबार का दायरा बढ़ता गया। बसपा से मिल रहे संरक्षण के बाद उसने अपना दबदबा पूरे कानपुर में स्थापित कर लिया।
सपा मंत्री करती थीं चरण-वंदना
2012 में विकास दुबे ने देखा कि मायावती की इमेज ख़राब हो रही है। विकास के संरक्षक भगवती सागर को भी मायावती ने बसपा से हकाल दिया था। उस समय अखिलेश यादव अपनी साइकल यात्रा से जनता का जबरदस्त समर्थन हासिल कर रहे थे। बस क्या था, विकास ने अपनी वफ़ादारी की कार समाजवादी पार्टी की ओर मोड़ दी और 2012 के विधान सभा चुनाव में बिल्हौर से सपा प्रत्याशी अरुणा कुमारी कोरी का खुला समर्थन किया। लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार राधेकृष्ण कहते हैं कि विकास दुबे के समर्थन से विधायक और अखिलेश सरकार में महिला कल्याण और सांस्कृतिक मंत्री बनी अरुणा कुमारी कोरी जब भी उस अपराधी से मिलती थीं तो उसकी चरण-वंदना करती थीं। हालांकि इसके लिए अरुणा कुमारी कोरी बोलती थीं, कि वह ब्राह्मण देवता हैं, वह उनका चरण छूकर उनसे आशीर्वाद लेती हैं।
शिवपाल ने की मदद जिला परिषद चुनाव में
वरिष्ठ पत्रकार राधेकृष्ण कहते हैं कि “अरुणा कुमारी कोरी की बहुत ख़ास हैं। इसीलिए जब अखिलेश सिंह यादव के साथ मतभेद होने पर शिवपाल सिंह यादव के समाजवादी पार्टी छोड़ी तो अरुणा कुमारी कोरी ने भी सपा छोड़ दी थी। अरुणा कुमारी कोरी के जरिए विकास दुबे ने शिवपाल यादव तक पहुंच बना ली थी। कहा तो यहां तक जाता है कि जिला परिषद चुनाव में शिवपाल सिंह ने विकास की जीतने में मदद की थी। यही वजह है कि पुलिस कभी उसे ग्रिल करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई।” 2014 में देश में नरेंद्र मोदी की लहर के बाद राज्य में भाजपा को उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से 73 पर जीत प्राप्त हुई। विकास को अपना भविष्य भाजपा में दिखने लगा। इसी दौरान उसके संरक्षक रहे भगवती प्रसाद सागर ने भी भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा ने 2017 के विधान सभा भगवती सागर को बिल्हौर से टिकट दिया और वह विकास के सहयोग से बड़े अंतर से चुनाव जीत गए।
विकास के डर से प्रधान ने गांव दी छोड़ दिया
कानपुर के जिला पंचायतराज अधिकारी सर्वेश कुमार पांडेय के मुताबिक शिवराजपुर ब्लॉक की ग्राम पंचायत बिकरू में 2005 में हुए प्रधानी के चुनाव में विकास दुबे के छोटे भाई दीप प्रकाश की पत्नी अंजलि दुबे ने जीत हासिल की थी। 2010 के चुनाव में रजनीकांत कुशवाहा ने बाजी मारी, लेकिन विकास का ख़ौफ़ इस कदर था कि चुनाव जीतने का बाद रजनीकांत कुशवाहा वापस गांव नहीं गए। इसके बाद जिलाधिकारी ने 3 सितंबर 2010 को तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया। इस 3 सदस्य कमेटी में विशुना देवी ने अध्यक्ष के रूप में काम किया था। 2015 के चुनाव में एक बार फिर विकास के भाई की पत्नी अंजलि दुबे ने जीत हासिल की।
15 साल में निर्विरोध जिला पंचायत सदस्य
बहरहाल, 1990 के दशक में विकास दुबे लगातार अपराध करता रहा। संतोष शुक्ला के भाई मनोज शुक्ला कहते हैं, “पुलिस की गिरफ़्त से अपने आपको बचाने के लिए विकास 1995 में बीएसपी से जुड़ गया और जिला पंचायत का सदस्य बन गया। इसके बाद उसकी पत्नी समाजवादी पार्टी के सहयोग से पंचायत का चुनाव जीती। मनोज शुक्ला ने बेहद निराशा से कहा कि 20 साल में विकास हमेशा अपने राजनीतिक कनेक्शन की वजह से छूटता रहा। विकास के परिवार से पिछले 15 साल में लगातार जिला पंचायत सदस्य निर्विरोध निर्वाचित हो रहे। वह गांव के 15 साल से प्रधान भी नियुक्त होते आ रहे हैं।”
जारी रहा हत्या करने का सिलसिला
विकास दुबे ने एक विवाद के बाद वर्ष 2000 में शिवली थाना क्षेत्र स्थित ताराचंद इंटर कॉलेज के सहायक प्रबंधक सिद्धेश्वर पांडेय की हत्या कर दी थी। इस घटना ने विकास को रातों-रात सबकी नजर में ला दिया। इसके बाद तो जैसे विकास कानपुर में अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह बन गया। उसने उसी साल जेल में रहते हुए ही रामबाबू यादव नामक शख्स की हत्या करवा दी। जेल से बाहर आने पर वर्ष 2001 में उसने थाने में संतोष शुक्ला और दो पुलिसकर्मियों को मार डाला। वर्ष 2004 में विकास ने केबल व्यवसाई दिनेश दुबे की हत्या कर दी।
एक हत्याकांड में आजीवन कारावास
सन् 2002 में ही विकास ने जेल में रहते हुए शिवली के पूर्व जिला पंचायत सदस्य लल्लन बाजपेयी पर जानलेवा हमला करवाया जिसमे वाजपेयी घायल हुए और उनके 3 साथी मौक़े पर ही मारे गए। विकास के नाम एफ़आईआर दर्ज़ करवाई गई लेकिन पुलिस ने उसका नाम चार्जशीट से हटा दिया। लल्लन वाजपेयी बताते हैं, “मेरे ऊपर हुए हमले में पुलिस ने विकास का नाम ही आरोप पत्र से हटा दिया।” बहरहाल, ताराचंद इंटर कॉलेज के सहायक प्रबंधक सिद्धेश्वर पांडेय की हत्या में उसे आजीवन कारावास की सज़ा हो गई। लेकिन वह फ़रार हो गया था। लिहाज़ा, उसके ख़िलाफ़ गुंडा एक्ट और गैंगस्टर की कार्रवाई की गई। वर्ष 2017 में उसे यूपी एसटीएफ़ ने पकड़ लिया और पूछताछ में उसने भाजपा के भगवती सागर और अभिजीत सांगा का नाम लिया। इसके बाद वह जेल में था। बहरहाल, आम चुनाव से पहले एक सत्तारूढ़ दल के नेता ने उसे जेल से बाहर निकलवाने में मदद की और वह जेल से बाहर आ गया।
राहुल तिवारी की एफआईआर निर्णायक
वस्तुतः, अपराधी विकास दुबे के लिए बुरे समय की शुरुआत तब हुई, जब उसने और उसके लोगों ने बिकरू गांव के ही निवासी राहुल तिवारी पर कातिलाना हमला कर दिया। राहुल तिवारी ने विकास दुबे के ख़िलाफ़ इंडियन पैनल कोड की धारा 307 के तहत हत्या के प्रयास का मुक़दमा दर्ज कराया। इसके बाद चौबेपुर का थाना इंचार्ज विनय तिवारी, जिसे विकास दुबे को पुलिस कार्रवाई की सूचना देने के आरोप में निलंबित करके गिरफ़्तार कर लिया गया, राहुल को लेकर विकास के घर गया। विकास दुबे ने राहुल को थाना प्रभारी के सामने ही धक्का देकर घर से बाहर निकाल दिया और विनय तिवारी पर ही राइफल तान दी। इसके बाद शिवराजपुर थाने के एसओ महेश कुमार यादव विकास को पकड़ने बिकरू गांव में उसके घर गए।
सीओ, एसओ समेत आठ पुलिस वाले शहीद
बताया जाता है कि विकास के आदमियों ने महेश यादव और उनके सहयोगियों को घेर लिया। इस पर महेश यादव ने थाने में फोन किया और बताया, “बदमाशों ने उन लोगों को घेर लिया है। गोलियां चल रही हैं। बचना मुश्किल है। लिहाज़ा, जल्दी से अतिरिक्त फ़ोर्स भेजी जाए।” जैसे ही बात की जानकारी थाने में पहुंची, बड़ी संख्या में पुलिस मौक़े पर पहुंची। जब अतिरिक्त बल वहां पहुंची, तब तक थानाध्यक्ष विनय तिवारी से गुप्त सूचना पाकर विकास दुबे ने पूरी तरह से मोर्चेबंदी कर ली थी और पुलिस दल पर एके 47 से गोलियां चलाई जिनमें महेश यादव के अलावा सीओ देवेंद्र मिश्रा और चौकी इंचार्ज अनूप कुमार समेत आठ पुलिस वाले शहीद हो गए। बताया जाता है विकास ने मुठभेड़ के बाद कई पुलिस वालों को पकड़ लिया था और उन्हें बड़ी बर्बर मौत दी। सीओ को मारने से पहले उनके दोनों पांव कुल्हाड़ी से काट दिया था।
विकास के मामा व चचेरा भाई मारे गए
कहा जाता है कि बाद में पुलिस ने विकास दुबे के मामा प्रेमप्रकाश उर्फ प्रेमकुमार पांडेय और चचेरे भाई अतुल दुबे को पकड़ लिया और कुछ दूर एक बगीचे में ले जाकर दोनों को गोली मार दी। हालांकि पुलिस ने आधिकारिक तौर पर कहा है कि विकास के दोनों रिश्तेदार मुठभेड़ में शामिल थे और पुलिस की जवाबी कार्रवाई में मारे गए। पुलिस ने दोनों के शवों का पोस्टमार्टम कराया और परिजनों को सूचना दी, लेकिन शव लेने के लिए कोई भी नहीं आया। इसके चलते पुलिसकर्मियों ने ही भैरोघाट स्थित विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार करा दिया।
हर विभाग विकास दुबे के आदमी
कानपुर में एक स्थानीय पत्रकार सुरक्षा कारणों से नाम न छापने की शर्त पर कह, “विकास दुबे के पास बहुत अधिक मुखबिर थे। ये लोग इतनी बड़ी संख्या में थे कि उससे जुड़ी कोई भी सूचना उस तक पहुंचने से कोई रोक नहीं सकता। पुलिस, प्रशासन, पीडब्ल्यूडी, नगर निगम हो या अन्य कोई भी सरकारी विभाग, हर जगह उसके आदमी बैठे थे। दूसरी ओर राज्य पुलिस सर्विलांस और आधुनिक संसाधनों पर निर्भर था। पुलिस का मुखबिर तंत्र ख़त्म हो चुका। विकास ने प्रशासन और पुलिस में सबका कमीशन फ़िक्स कर रखा था। अपराध की दुनिया का नेटवर्क उसने अलग से तैयार किया था। उसके लोग उसे शहर से लेकर गांव देहात तक की जानकारियां देते थे।
माता-पिता ने पूछा, हमें बेघर क्यों कर दिया?
इस घटना के बाद पुलिस ने विकास दुबे और उसके मामा का घर ज़मीदोज़ कर दिया। विकास के बारे में जब उसकी मां सरला देवी से पूछा गया तो उन्होंने माना कि उसने ग़लत किया जिसकी सज़ा उसे मिलनी चाहिए। मां सरला ने कहा, “मेरे बेटे को नेता-नगरी ने अपराधी बना दिया। हरिकिशन जो कहते रहे, उसने वही किया। अब यही नेता उसकी जान लेने पर तुली है। पर, सरकार को सोचना चाहिए कि गलती विकास ने की है तो उसे सज़ा दे। हमारा घर क्यों तोड़ डाला? अब हम बुजुर्ग कहां रहेंगे?” स्थानीय लोगों ने बताया कि विकास के पिता एक किसान हैं। विकास तीन भाइयों में सबसे बड़ा है। एक भाई की मृत्यु हो चुकी है। विकास के दो बेटे हैं जिनमें से बड़ा इंग्लैंड में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा है तो दूसरा कानपुर में ही रहकर ग्रेजुएशन कर रहा है।
अब नहीं खुलेगा पनाहगारों का राज़
विकास दुबे के मारे जाने के बाद वे राजनेता, पुलिस अफसर और दूसरे लोग निश्चित रूप में प्रसन्न हो रहे होंगे, क्योंकि पुलिस ने विकास को मार कर उन्हें बचा लिया। विकास दुबे के खात्मे के साथ वह राज़ भी दफ़न हो गया कि विकास को किस नेता और किस पुलिस अधिकारी का संरक्षण मिला। अब कोई राज़ नहीं खुलेगा। कहने का मतलब राजनीति की दुकान वैसे ही चलती रहेगी, जैसा अब तक चलता रहा है। हां, विकास की जगह कोई और अपराधी ले लेगा। कुछ दिन वह भी नेताओं, पुलिस और कारोबारियों की मदद करता रहेगा फिर दुर्दांत होने पर उसे भी एनकाउंटर में मार दिया जाएगा।
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लेखक – हरिगोविंद विश्वकर्मा